meri adhuri kahani books and stories free download online pdf in Hindi

मेरी अधूरी कहानी

बात उन दिनों की है जब मैं 8वी कक्षा मे था।
ठंडी का मौसम था,खूब कड़ाके की ठंड पड़ रही थी,मैं अपने कक्षा में जूते मौजे हाथ में दास्ताने पहने हुये और कान पर मफलर बांध कर कक्षा में दाखिल होते हुए अपने अध्यापक जी से क्या में अंदर आ सकता हूँ,क्योकि उस दिन मैं समय से 20 मिनट की देरी से था। पूरे कक्षा में सन्नाटा पसर गया मानो जैसे मैंने कोई गुनाह कर दिया हो,तभी अध्यापक जी ने मुझे अंदर आने को कहा। और मैं अंदर दाखिल हुआ,
तभी अचानक मुझे एक बदलाव दिखा,कि मेरी बेंच कुर्सी पर कोई और बैठा है। मतलब (बैठी है) मुझे ये देख कर थोड़ा आश्चर्य हुआ,क्योकि वो मेरी जगह थी,
क्योंकि मैं अपनी कक्षा का अब्बल छात्र था,और उस पर हमेशा मैं ही बैठा करता था। लेकिन उस दिन मुझे दूसरी बैंच कुर्सी पर बैठाना पड़ा।
तभी हमारे अध्यापक जी ने उससे मेरा परिचय कराया।इसका नाम रेनुका है। और इसने आज ही नया दाखिला लिया है,
लेकिन मुझे अच्छा नही लगा,तभी घंटी बजी और अध्यापक जी कक्षा से बाहर निकले,क्योंकि उनके बिषय का समय समाप्त हो गया था,तभी अचानक वो लड़की मेरे पास आ कर खड़ी हुई और बेबाक अंदाज में बोली ओए तेरा नाम क्या है?मैंने उसे गौर से देखा, गोरा चेहरा भूरी आँखें सुनहरे बाल होंठो पर मुस्कान,
मुझे अजीब लगा,लेकिन थोड़ी सी झुंझलाहट लिए मैंने अपना नाम उसे बताया(गुड्डू)।
उसने मुझसे पूछा कहा से पढ़ने आते हो,मैंने कहा पास ही के गाँव से आता हूँ।
न चाहते हुए भी मैंने पूछा और तुम, उसने कहा मैं अभी यहाँ नयी आई हूं मेरे पिता जी इंस्पेक्टर है,और उनकी पोस्टिंग यहाँ पास ही के कोतवाली सम्भल में हुई है।पहले हम बरेली में रहते थे।
इसलिए मेरे पिता जी ने मेरा दाखिला यहां करवाया है।मैंने पूछा तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है,उसने कहा माँ और दो बहनें है रेशमा और नेहा,उनका भी दाखिला मेरे पिता जी ने यही करवाया है।
उस दिन उसने मुझसे काफी बातचीत की मानो ऐसा लगता हो जैसे वो बरसो से मुझे जानती हो।
मुझे भी अच्छा लगने लगा उससे बात करके,धीरे धीरे समय बीतते गया और हमारी अच्छी खासी दोस्ती हो गई,
वैसे तो मैं 13 साल का था।
लेकिन मानो तो मुझे उससे प्यार हो गया था,
परन्तु सही मायने में प्यार शब्द का महत्व क्या होता है ये मुझे मालूम नही था।
हम दोनों काफी समय साथ मे बिताते थे।
उन दिनों हमारे स्कूल में एक प्रोग्राम होने वाला था,उसमे तरह तरह के खेल कूद का आयोजन किया गया था।जैसे
कबड्डी ,खो-खो,दौड़,लंबी कूद, सुलेख(राइटिंग) इत्यादि।और उसमें दो और स्कूलो ने भाग लिया था।
हमारे स्कूल की तरफ से मैंने और रेनुका ने भी भाग लिया था,वो था सुलेख(राइटिंग)।
हम सब बहुत खुश थे,लेकिन तभी अचानक हमारी स्कूल की प्रधानाध्यापिका जी,ने मुझे और रेनुका को बुलवाया,जिनका नाम मीना पंत था।
फिर क्या था, मैं और रेनुका ऑफिस में, क्या हम अंदर आ सकते है,आ जाओ मे प्रधानाध्यापिका जी ने बोला।फिर
उन्होंने कहा आप दोनों में से एक ही कम्पटीशन में भाग ले सकता है।
क्योकि स्कूल की तरफ से एक ही छात्र भाग ले सकता है,
फिर क्या था मानो सारी खुशियां जैसे मातम में तब्दील हो गई हो और हम दोनों के मुँह से एक साथ कम्पटीशन में तू बैठ जा।हम एक दूसरे को मना रहे थे।
तभी कम्पटीशन के लिये नाम अनाउंस हुआ।जिसमें रेनुका का नाम नही था,उसमे दो अलग स्कूल के लड़के थे सोनू,हुकुमसिंह और मैं।
बुझे हुये मन से मैंने कम्पटीशन में हिस्सा लिया।
और मैं लास्ट आया,लेकिन मुझे इस बात का दुख नही था जितना कि रेनुका के न भाग लेने का दुख था।
प्रोग्राम खत्म होने के बाद रेनुका ने मुझसे पूछा तुम जान बूझ कर लास्ट आये न,मैंने कहा नही वो मुझ से ज्यादा बेहतर थे।
फिर हम अपने अपने घर चले गये।
धीरे धीरे समय बितता गया।हमारी दोस्ती को लगभग 1 साल होने को था, और हमारी परीक्षा के दिन भी नजदीक आ गए थे।
अगले दिन जब मैं अपने स्कूल पहुँचा। तो देखा रेनुका कहीं नजर नही आ रही थी,फिर मैंने अपनी ही कक्षा की एक लड़की जिसका नाम रेखा था। उससे पूछा आज रेनुका क्यो नही आई।उसने मुझे बताया कि उसके घर पर मेहमान आये हुये है इसलिये वो आज नही आयेगी।फिर क्या था, मानो जैसे मैं एक मुरझाये हुये पौधे की तरह जिसमें काफी दिनों से किसी ने पानी न डाला हो।
अगले दिन सुबह सुबह रेनुका अपने माता पिता के साथ मेरे घर पर आई,
मेरी खुशी का ठिकाना देखने ही बनता था।मानो जैसे मुझे कोई अशर्फियों का खजाना मिल गया हो,
अगले ही पल रेनुका हमारे घर के अंदर अपने माँ और पिताजी के साथ दाखिल हुई,मैंने उसके पिता जी और माँ को प्रणाम किया।
उसके बाद मैंने अपनी माता जी को बताया कि ये मेरी कक्षा में पढ़ती है।और ये इसके माता पिता है,अगले ही पल रेनुका ने बताया कि वो लोग हमारे गाँव मे शंकर जी के मंदिर के दर्शन के लिये आये थे। क्योंकि अगले महीने से हमारी परीक्षा शुरू होने वाली हैं।
फिर माँ ने उन लोगो के लिऐ चाय बनाई।
अगले ही पल हम चाय की चुस्की ले रहे थे, कि तभी उसके पिता जी ने बताया कि उनका प्रोमोशन हो गया।
और उनकी पोस्टिंग वापस बरेली में हुई है वो इस साल रेनुका की परीक्षा के बाद वापस वहाँ सह परिवार चले जायेंगे।
बस इतना सुनने के बाद मेरे पैरों तले से जमीन निकल गई हो और मैंने मुँह की खाई हो।
थोड़ी देर में रेनुका ने कहा अच्छा आन्टी जी हम लोग चलते है।मैंने पुन्ह उसके माता पिता को प्रणाम किया और वो लोग चले गये।
अगले दिन मैं स्कूल के लिए तैयार हो रहा था, तभी माँ ने कहा बेटा जल्दी करो कितना समय लगाओगे।आज परीक्षा का पेहला पेपर है।रास्ते मे जाते समय शंकर जी के दर्शन कर के जाना।
आज माँ की बाते मुझे अनसुनी सी लग रही थी।मेरे दिल में एक अजीब सी उलझन ने घर बना लिया था।मैं ये तो नही जानता कि रेनुका मुझ से प्यार करती है या नही।
क्योकि वो उम्र ऐसी थी जिसमे प्यार तो था।लेकिन इसके क्या मायने होते है ये नही पता था।और फिर हमारी परीक्षाये
खत्म हो गयी।वो स्कूल का आखिरी दिन रेनुका के साथ बिताया मैंने, और हम एक दूसरे को अलविदा कह रहे थे,रेनुका ने मुझे गले लगाकर चूमा फिर बोली अपना ख्याल रखना,अगले ही पल वो वहाँ से चली गयी और मैं उसे तब तक देखता रहा जब तक वो मेरी आँखों से ओझल नही हुई।
और मैं अपनी नम आँखे लिये घर कि ओर चल दिया।



🙏समाप्त🙏