loc -love oppose crime - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

एलओसी- लव ओपोज़ क्राइम - 15

अध्याय -15

शूटिंग से घर आने के बाद नंदिनी को अपनी तबीयत भारी -भारी सी लगी । उसने रीनी के जरिए फैमिली डॉक्टर को बुलाया । डॉक्टरने उसे चेक करनेके बाद कुछ दवाईयां दी और चले गए । नंदिनी ने कुछ खाकर दवाई खाई और आराम करने लगी ।
एक घंटे बाद नंदिनी को कुछ राहत मिली । वह हॉल में आई । उसने रीनी से कॉफी बनवाकर पी फिर दोनों टैरेस पर चली गई ।
"रीनी मैं चुप नहीं बैठ सकती । मुझे मामले की तह तक जाना ही है ।"
"हां, यह जरुरी भी है ।"
"रीनी, एक बात बताओ, इस मामले में अगर हम पुलिस की मदद लें तो कैसा रहे?
"नंदिनी, अभी मैं इसकी सलाह नहीं दे सकती । यह बहुत सेंसिटिव मैटर है । बेहतर होगा कि हम अपने तरीके से पता लगाने की कोशिश करें ।" रीनी ने सलाह दी ।
"रीनी, हम ड्राइवर का भरोसा कर सकते है । उसने हमारा हमेशा साथ दिया है ।"
"हां, सही बात है । मै उसे अभी फोन करती हूं ।"
रीनीने तुरंत ड्राइवर को फोन करके सब बातें बताई । ड्राइवर ने कहा कि कुछ दोस्तों एवं जान-पहचान वालों से पता करवाता हूं । इसके बाद नंदिनी और रीनी अपने कमरे में आ गई ।
* * *
पूर्व निश्चित प्रोग्राम के मुताबिक नंदिनी बतरा साहब से मिलने के लिए तैयार होने लगी । पिताजी को भी साथ चलना था, पर अचानक कोई काम आ जाने की वजह से उनका चलना चलना कैंसिल हो गया गया तो नंदिनी ने चेन की सांस ली । अब उनकी व रीनी की प्राइवेसी में कोई दखलअंदाजी नहीं रहेगी । रास्ते में ड्राइवर ने बताया कि ' पकिया एक गुंडा है । कई लोकल पुलिस स्टेशनो में उनके खिलाफ अनेक मामले दर्ज है । डराने -धमकाने, कुटाई से लेकर किडनैपिंग और सुपारी किलिंग तक । लेकिन यह भी पता चला है कि पकिया किसी गेंग के लिए काम करता है, उसका बॉस कोई और है ।
"हम उस तक कैसे पहोच सकते हैं? " नंदिनी ने पूछा ।
" मै'म कोई भी उसका फोन नंबर या ठिकाना नहीं बता रहा है । क्योंकि पकिया का खूब आतंक है । सभी लोग उसके नाम से ही कांपते है । "
"फिर कैसे होगा ।"
" मै'म, में कोशिश कर रहा हूं ।उस तक पहोचने की । "
अब तक कार जे. डब्ल्यू मेरियट होटल तक पहुंच चुकी थी । बतरा साहब यही ठहरे हुए थे । इस होटल की प्रेस्टीज के अनुरूप ही नंदिनी और रीनी तैयार होकर आई थी ।
* * *
जे. डब्ल्यू मेरियट होटल अमीरी और तड़क -भड़क का प्रतिक था । इस होटल ने खुलते ही शहर के अन्य होटलों की चमक -दमक, कामयाबी व शो बाजी को पीछे छोड़ दिया था । लोग यहां देखे जानेको व्यग्र रहते थे । यह धनाढ्यों व सेलिब्रेटीज का फेवरिट डेस्टिनेशन था । यह वह जगह थी जहां वे पार्टियां व रंबेरंगीयां करते थे । जे. डब्ल्यू में क्या नहीं था -अत्याधुनिक हेल्थ क्लब, जिम, डिस्को, नेशनल, इंटरनेशनल व्यंजन, बार, दोस्ताना सेवा व गोपनीयता की गारंटी ।
वर्दीधारी शोफर ने कार दरवाजा खोला । नंदिनी और रीनी रिसेप्शन पर पहुंची । नंदिनी ने बतरा साहब का नाम लिया तो रिसेप्सनिस्ट ने उन्हें बताया कि रूम नं.402, फोर्थ फ्लोर ।
दोनों चौथी मंजिल पर पहुंची । लिफ्टमैन ने इशारा किया । वे एक गलियारे में पहुंचकर दूसरे दरवाज़े के सामने रुक गई -'यही है 402।'नंदिनी ने बेल दबाई ।
मालूम होता था कि बतरा साहब नंदिनी का ही इंतजार कर रहे थे । तुरंत दरवाजा खुला । बतरा साहब को देखकर न जाने क्यों नंदिनी को अपनेपन का अहसास हुआ, इसी भावना के वशीभूत होकर उसने झूककर बतरा साहब के पांव छुए । बतरा साहब ने भी उसके सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया । रीनी यह दृश्य देखकर चकित थी क्योंकि आजतक नंदिनी ने ऐसा व्यवहार कही नहीं किया था ।
प्रोजेक्ट के बारे में बातचीत कर नंदिनी और रीनी बतरा साहब से विदाई ली । फिर वे दोनों सीधे घर आ गए ।
नंदिनी घर पर भी रह-रहकर बतरा साहब का ख्याल करती रही ।'शायद कही इन्हे देखा है ।' ' पर कब और कहा वो उसे याद नहीं आ रहा था ।' थोड़ी देर पहले जब वह बतरा साहब से मिली थी, तब उन्हें जुकाम था ।'अब तक वे ठीक हो गए होंगे कि नहीं?' इस ख्याल से नंदिनी ने सोचा कि चलो उन्हें मैं ही फोन कर बता दूं कि 'सर हम सकुशल घर पहुंच गई ' और लगे हाथ यह भी पूछ लूंगी कि 'आपकी तबियत अब कैसी है?' यह सोचकर नंदिनी ने फोन जैसे ही हाथ मैं उठाया तभी बतरा साहब का ही फोन आ गया । नंदिनी अचंबित हो गई ।
"नंदिनी बिटिया ।"
इस शब्द ने नंदिनी में नई ताजगी भर दी । बतरा साहब कह रहे थे -" बिटिया अब तुम्हारी तबियत कैसी है? "
नंदिनी फिर आश्चर्य में पड़ गई!
" आपको कैसे पता कि मेरी तबियत ख़राब है? "
"वो क्या है न बेटा कि यह बात आपके पिताजी ने मुझे बताई थी, इसलिए मैंने सोचा कि अब आप घर पहुंच गई होंगी... अब कैसी तबियत है बेटी?"
"मेरी तबियत ठीक है । आपकी कैसी है? जब मैं आई तब आपको जुकाम था । आपने दवाई लीं क्या? "
"जी बेटा!दवाई ले ली थी । अभी मैं राहत महसूस कर रहा हूं । आप अपना ख्याल रखना बेटा ।" कहकर बतरा साहब ने फोन रख दिया ।
बतरा साहब की आवाज में नंदिनी को अपनेपन की उर्जा का अहसास हुआ । प्रेम, स्नेह, व सन्मान से भरी आवाज़ सुनकर नंदिनी को एक नवीन उर्जा मिली । जब वह उनसे होटेल में मिली थी तभी इस अपनेपन की उर्जा को महसूस कर लिया था । अब फिर उनका फोन आने से नंदिनी को बड़ी राहत -सी महसूस हुई ।
"नंदिनी बेटा, पिताजी बुला रहे है ।" मां की आवाज़ ने नंदिनी की तंद्रा भंग की ।
" अभी आई मां । " कहकर वो पिता जी के पास गई ।
बतरा साहब से बात हो गई न नंदिनी? "
"जी ।" नंदिनी ने संक्षिप्त उत्तर दिया ।
"गुड! इट्स अ वेरी इम्पोर्टेन्ट प्रोजेक्ट ।"
"यस!आई नो वेरी वेल ।"
"ओके! जाओ! गुडलक।"
* * *
जिंदगी उतार -चढ़ाव का नाम है । उलझने आती है । बाधाएं आती है, अवरोध आते हैं पर इंसान अपनी सूझबूझ से सभी लड़ते है और रास्ता बनाते है । इन उलझनों को वही जानता है जिसके रास्ते में ये आती हैं अन्यथा तो लोग अपने -अपने हिसाब से इनकी परिभाषा तय करते हैं । नंदिनी को एक लोककथा याद आ रही थी - जेठ की चिलचिलाती धूप में एक घने वृक्ष के ऊपर बैठी एक चिड़िया लगातार बोले जा रही थी । उस वृक्ष के निचे अलग -अलग दिशाओं से आए तीन राहगीर विश्राम कर रहे थे । चिड़िया क्या बोल रही है, इसका अनुमान लगाना उन तीनो ने प्रारम्भ कर दिया । उनमे से पहले राहगीर तिलकधारी का मानना था कि वह कह रही है, "राम, लक्ष्मण दशरथ ।" इस पर पहलवान नुमा दूसरे राहगीर का कहना था कि नहीं वह कह रही है -दंड, मुगदर, कसरत ।यह सुनकर तीसरा राहगीर जो मसालो का व्यापारी था, कह उठा -'नहीं, वह कह रही है -लहसुन, प्याज़, अदरख ।
तो जाके पैर न कटी बिवाई, सो क्या जाने पीड़ पराई का मर्म नंदिनी से अधिक कौन जान सकता था । दर्द नंदिनी भोगत रही थी पर लोग अपनी अपनी तरह से अनुमान लगा रहे थे, जो कि सच्चाई से परे थे । इसी मर्म के बीच जीवन का पहिया घूम रहा था । अभिनव व नव्या की चिंताओं तथा नए प्रोजेक्ट की तैयारीयों के बीच समय गुजर रहा था । इस दौरान नए प्रोजेक्ट के सिलसिले में नंदिनी का बतरा साहब से कई बार मिलना हुआ, लिहाजा अपनापन अधिक बढ़ गया था ।
एक दिन नंदिनी को उदास देखकर बतरा साहब ने पूछ लिया, "बेटी क्या बात है? कई दिनों से देख रहा हूं कि तुम बहुत उदास रहती हो ।"
" कोई खास बात नहीं है अंकल! बस यू ही । "
" कुछ बात तो जरूर है बेटी!"बतरा साहब की आवाज स्नेहिल थी । "और हां तुम्हारे पिताजी आज मिलने वाले थे, पर आए नहीं ! क्या बहुत बीजी है वो?"
"जी अंकल! मेरे छोटे भाई का इलाज करवाने आज ही मम्मी -डेडी नागपुर गए हैं । परसों तक आ जायेंगे ।"
"ठीक है बेटा । जब वो आ जायेंगे तो उन्हें बता देना । पर तुम मुझे ये बताओ कि तुम्हें क्या परेशानी है? बेटा प्लीज ।"
बतरा साहब की आवाज की नमी, स्नेह व प्रेम ने नंदिनी को भावुक कर दिया ।'वाह रे नीली छतरी वाले तू बड़ा निराला है । तूने मेरे सामने प्रेम का एक नया दरवाजा बतरा साहब के रूप में खोल दिया।' यह सोचकर नंदिनी की आंखे बहने लगी । इतना अपनापन व केयरिंग से वह बेहद भावुक हो गई । वह बतरा साहब को सिर्फ चंद दिनों से ही जानती थी, पर लगता था कि यह जनम -जनम का रिश्ता हो । बतरा साहब की आंखोमे 'अभिभावकत्व 'की गहरी छाप थी । इससे नंदिनी के मन में आशा जगी वो बतरा साहब पर भरोसा कर सकती है और बतरा साहब उसकी मदद कर सकते हैं । वैसे भी, पिछले दिनों में नंदिनी के साथ जैसी घटनाएं घट रही थी, अपनों से उसे जैसा धोखा मिला उससे नंदिनी की स्थिति सम्पाती गिध की तरह हो गई थी जो सूर्य तक पहुंचने की होड़ में, सूर्य के प्रचंड ताप से अपने डेने गंवा पहाड़ की हर कंदरा में जा गिरा था ।
अगर हम कष्ट और संकटो के बीच हैं तो इसका एक मुख्य कारण हमारे आत्म के हित में होता है । लोगों से कटकर और अपने में सिमटकर हम कभी सुखी नहीं रह सकते । अपने आत्मीय सामाजिक, स्नेहिजनों से ही हम परेशानी के बारेमें बात कर सकते हैं । बतरा साहब अब गैर कहां रह गए थे । वे अपने से लगते थे । हालांकि उसके अपने ही अपने नहीं थे,पर बतरा साहब सबसे अलग थे । उनके बड़े -बड़े कॉन्ट्रैक्ट है । वे खुद भी काफ़ी नामचीन व्यक्ति है । उनकी कंपनी का भी दुनिया भर में नाम है ।उससे बढ़कर उनमे जो है वो है अपनापन जो नंदिनी के अपनों में भी नहीं था ।
नंदिनी ने बतरा साहब को पूरी बात बताई । उसे सुनकर बतरा साहब बोले, "बेटी,अब तुम कोई चिंता मत करो । अब मैं तुम्हारे साथ हूं । जल्दी ही पकिया को मैं तुम्हारे सामने खड़ा कर दूंगा ।"
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रात्रि का समय था । रीनी नंदिनी और बतरा साहब बैठे थे । तीनो कॉफी की चुस्कीयां ले रहे थे । बतरा साहब बार -बार घड़ी की तरफ देख रहे थे जैसे उन्हें किसी का बेसब्री से इंतजार हो ।
अचानक डोरबेल बजी । बतरा साहब के चेहरे की चमक बढ़ गई । उन्होंने रीनी से दरवाजा खोलने को कहा -'वे लोग आ गए ।' चार-पांच लोग एक आदमी को पकडकर अंदर लाए । एक आदमी ने, जो उन लोगों का लीडर लगता था, बतरा साहब की ओर पकड़े गए व्यक्ति को ढकेलते हुए कहा, "बतरा साहब, ये लीजिए । पकिया यही है ।"
नंदिनी और रीनी ने बतरा साहब की तरफ देखा ।
"बेटा, ये लोग सी. बी. आई. से हैं । मेरा पुराना परिचय है इनसे । ये डीएसपी राहुल त्रिपाठी हैं । इनहीं से मैंने पकिया को लाने को कहा था ।" बतरा साहब ने बताया ।
सीबीआई टीम के सामने पकिया के कस बल ढीले पड़ गए । डीएसपी राहुल त्रिपाठी की टीम ने संभवतः उसकी जमकर सेवा की थी । इसलिए पकिया ने तोते की तरह बता दिया -"साहब! एकदम ऊपर कौन है, किसके कहने पर सब हो रहा है यह तो में नहीं जानता पर मुझे आर्डर रधु ने दिया । मेरा बॉस रधुभाई है । वही हाथ पैर तोड़ने, टपकाने आदि के कॉन्ट्रैक्ट लेता है । उनके कहने पर मैंने ये किया ।"
" कौन है ये रघुभाई? " नंदिनी ने पूछा । रीनी ने भी यही सवाल दोहराया -"बताओ, कौन है ये रघु? उनकी क्या दुश्मनी है हमसे? क्यों परेशान कर रहा हमें? "
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