Mulakaat - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

मुलाकात - 3


हर पल अब मैं वर्षा के बारे में सोचे जा रहा था,कि अचानक मेरे मोबाइल फोन पर एक कॉल आया,फोन को मैंने अपने पेंट की राइट साइड की पॉकेट में रख रखा था।और राइट साइड में ही वर्षा मुझसे चिपक कर मेरे कंधे पर सर रख कर सोई हुई थी।
और मैं नही चाहता कि वो डिस्टर्ब हो,लेकिन उस फोन की वजह से उसे जागना पड़ा।मैंने ट्रेन के शोर की वजह से फोन को वाईव्रेट मोड में कर रखा था ।
लेकिन वाईव्रेट मोड की वजह से वर्षा की नींद में खलल पड़ गयी, और वो उस फोन की वजह से अपनी आँखें खोलते हुये अपने सर को मेरे कंधे पर देख थोड़ी हिचकिचाई ओह..आइम सॉरी..मेरी आँख लग गई मुझे पता नही चला।
मुझे उसका सॉरी बोलना ठीक नही लगा क्योकि उसकी नींद मेरे फोन की वजह से जो खुली थी।
और फिर मैंने फोन की तरफ निगाह डाली,तो मैंने देखा कॉल मेरे बड़े भैया वीर जी की थी।जो अब कट चुकी थी,फिर मैंने इधर से फ़ोन मिलाया घन्टी बज रही थी,लेकिन उधर से फोन नही उठा,मैंने दुबारा फिर फोन मिलाया पहली घन्टी बजते ही फोन उठ चुका था।उधर से हैलो की आवाज आई लेकिन वो बड़े भैया नही थे,उनका लड़का हर्षित जो बड़ा ही क्यूट था।वो मात्र छे साल का था।पर बाते वो हमेशा दादा की तरह ही करता।हर्षित घर मे सबका लाडला था।जो सेकंड क्लास में पड़ता था।

हर्षित मुझसे सवाल दागते हुये,-रोहन आपने पापा का फोन क्यो नही उठाया..??
सो रहे थे क्या..???
आपको पता नही की जर्नी के समय सावधान रहना चाहिये,अगर आपका सामान कोई ले गया तो,इतना भी समझ नही आता आपको ।

सॉरी हर्षित मैं भूल गया था,अब में सावधान हो गया ओके,फिर उसने फोन अपने पापा को दे दिया।
हा हैलो भारी भरकम आवाज में,
रोहन कैसे हो कहा पहुँचे...??

जी भैया मैं ठीक हू, ट्रेन सासाराम स्टेशन पार कर चुकी है अभी अभी,मैं भैया को बताते हुये।
फिर भैया ने,-ओके अपना ध्यान रखना और किसी का दिया कुछ भी मत खाना ट्रेन में,
जी भैया और फिर मैंने फोन काट दिया और एक लंबी सी सांस ली।हर्षित मुझे हमेशा नाम लेकर ही पुकारता था।घर में मैं छोटा होने के कारण सबके जुबां पर रोहन बेटा ये कर लो,,रोहन बेटा जरा एक गलास पानी दे दो रोहन ये रोहन वो हर घड़ी सबके जुबां पर रोहन ही रोहन लगा रहता।जिसके कारण से हर्षित भी मुझे रोहन कह कर ही पुकारता और उसका वो रोहन कह कर पुकारना मुझे काफी अच्छा लगता था।

वर्षा अपनी बड़ी बड़ी आँखें किये मुझसे पूछने लगी क्या हुआ ?
तुम इतनी लंबी साँस क्यो ले रहे हो ?
नही नही ऐसी चिंता की कोई बात नही है मेरे भैया का फोन था वो मुझे सावधान कर रहे थे,सफर में किसी का दिया कुछ मत खाना!
भैया मेरे थोड़े कड़क सुभाव के है।मुझे उन से काफी डर लगता है,लेकिन वो विना वजह कभी भी बोलना पसन्द नही करते।

"वर्षा" बस इतनी सी बात पर इतनी लंबी साँस और मुस्कुराने लगी!

उसकी वो मुस्कुराहटें और उसके चेहरे की रंगत से पता चल रहा था कि वो बेहद खुश थी।और मैं उसके ख्यालो में अपने इश्क़ की इमारते जोड़ने लगा।

मैं अब थोड़ी असहजता महसुस कर रहा था।वो एक्सप्रेस ट्रेन आज मुझे शताब्दी एक्सप्रेस लग रही थी।उसकी वो तेज रफ्तार मानो हमारे सफर को समय से पहले ही खत्म करना चाहतीं हो।
लेकिन इस सफर का अंत होना भी तो लाजमी ही था,परन्तु ये दिल कहा मानता इसे तो सिर्फ एक ही ख्वाइस थी कि उसके पहलू में बैठ बस उसे ही निहारता रहे।

कि अचानक वर्षा ने मुझसे समय पूछा...??
मैंने अपना मोबाइल निकाल कर समय देखा तो रात के पौने बारह बज रहे थे।जो मैं अपनी बातों और उसके ख्यालो में इतना मशगूल हो गया कि मुझे समय का पता नही चला,और मैं चौक गया ओह.... इतना समय हो गया और पता ही नही चला,और फिर मैंने वर्षा को रेस्ट करने के लिये कहा पर न जाने क्यों उसकी आँखों मे हल्की हल्की नमी सी दिख रही थी।मैंने उस नमी का कारण पूछा परन्तु मेरे लाख पूछने के बाद भी उसने यही कहा कुछ नही सब ठीक है।तुम सो जाओ...भला वर्षा मेरे सामने बैठी हो और मैं सो जाऊ,ये कैसे मुमकिन हो सकता है।उसकी आँखों में एक अजीब सी कशिश थी।

और मैंने फैसला भी कर लिया कि तेरी आग़ोश में,मैं अब ताउम्र ही यूही जागता रहूँगा....! मन की भाषा में अपने शब्दों को पिरो कर इन अल्फाज को अपने में सीने में समेटते हुये..!!

मैंने वर्षा से...नही मुझे आज नींद नही है....!!

तभी मैंने बाहर की ओर देखा कोई बड़ा सा शहर मालूम पड़ रहा था।आलीशान वो ऊची ऊची इमारते,लाइटों से जगमगाता चकाचौन्द सी रौशनी में लिप्त वो शहर लखनऊ ही हो सकता है।फिर ट्रेन की रफ्तार धीमी होती जा रही थी।जैसे ही ट्रेन प्लेटफार्म पर पहुँची ही थी कि गजक और रेबड़ी वालो की रेड़ी देख कर मैं अनुमान लगा चुका और तेजी से वो गजक रेबड़ी वाले अपनी रेड़ी लेकर उसके पीछे पीछे इस तरह चहल कदमी से भागे आ रहे थे,जैसे कि उनकी ट्रेन छूट रही हो,बस उन्हें देख कर इस बात का अंदाजा आ गया कि हम लखनऊ पहुँच चुके थे,लखनऊ की गजक और रेबड़ी बहुत फेमश थी।

आश्चर्य की बात तो यह थी,उस पूरी बोगी में,मैं और वर्षा ही जाग रहे थे।बोगी के अंदर का माहौल एकदम शांत था,सिर्फ वो पंखे की आवाज जो हमारे साथ अपने होने का एहसास दिला रही थी।

अचानक वर्षा चेहरे पर मुस्कान लिये मुझसे बोली क्या ये हमारी आखरी मुलाकात होगी ...??
ये मुलाकात तो एक इत्तेफाक से हो गयी,पर क्या इसके बाद भी हमारी मुलाकात फिर कभी होगी...?


उसका इस तरह से बोलना मुझे झकजोर कर रख गया।उसके चेहरे की उस झूठी मुस्कान को मैं समझ सकता था,उसके दिल मे मेरे प्रति प्यार था या नही पर एक बात तो पक्की थी,कि वो मुझसे दूर होने के गम को कम करने के लिये मुस्कुरा रही थी।लेकिन ये भी हो सकता कि उसके मन मे ऐसा कुछ हो जो वो मुझसे बताना न चाहती हो।

मुझे उससे बिछड़ने का गम अंदर ही अंदर सता रहा था,परन्तु उसके दिल में भी कही न कही कोई चुभन जरूर थी,पर बो शायद कहना नही चाह रही थी।उसके चेहरे से ये साफ झलक रहा था।
"कि जिंदगी में मेरी जिंदगी तक मेरे ही साथ रहना"
शायद वो मुझसे यही कहना चाह रही हो।पर में दावे के साथ नही कह सकता।

ट्रेन को लखनऊ स्टेशन से चले लगभग दो घन्टे का समय हो चुका,वो दो घन्टे हमारे सफर से और कम होते हुये,मुझे अभी से उस पल का एहसास हो रहा जो पल कुछ घन्टो बाद मरे इस दिल को तन्हा करने वाला था।

कि अचानक वर्षा क्या बात है तुम परेशान से लग रहे हो...??
"नही बस थोड़ा हरासमेंट सा है"जर्नी की वजह से मैं उसकी बातों को टालते हुये,

अंधेरी रात के उस सन्नाटे के बीच ट्रेन पटरियों पर अपनी पूरी रफ्तार में दौड़ रही थी...! और एक अजीब प्रकार की ध्वनियां का शोर निकल कर जो उस वातावरण को बिचलित कर रहा था।

मैं और वर्षा अब बेहद करीब हो कर बैठे हुये थे।उसके शरीर के छुअन के एहसास से, मेरे रोम रोम में वर्षा बसती चली जा रही थी।
न जाने क्यों आज मेरी पलको ने नींद को अपनी पलको पर न आने की हिदायत दे रखी थी।

धीरे धीरे रात अब हमारे आशियाने को छोड़ हमे उजाले के हवाले सोंप कर अब खुद को नींद की आगोश में लेकर चल पड़ी थी।

सूरज की वो हल्की हल्की रोशनी से मानो ऐसा लग रहा था,जैसे सूरज धरती की आगोश से निकल कर आसमान में आने के लिये बेताब हो।

सुबह के सात बजने को थे,ट्रेन अपनी रफ्तार में दौड़े जा रही थी,तभी एक पैंट्रीकार वाला बंदा चाय... चाय...चाय गरम कहते हुये आया।सुबह हो ही चुकी थी तो चाय पीना भी लाजमी था।शायद ये हमारी मुलाकात की आखरी चाय हो।

और मैंने दो चाय ली।और चाय वाले को पैसा देते हुये देख वर्षा मुस्कुराते हुये मुझसे बोली हिसाब बराबर कर रहे हो,वर्षा का यू मुस्कुराना मुझे अंदर से उसके दूर होने के एहसास को और वैचेन कर रहा था।
शायद हम हमारी मुलाकात की आखरी चाय पी रहे थे।कि तभी कही से एक आवाज ने मेरे दिल की धड़कनों को रोक दिया हो।
वो आवाज यही थी कि आगे आने वाला स्टेशन मुरादाबाद है।

क्रमशः-

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