Insaaniyat - EK dharm - 18 books and stories free download online pdf in Hindi

इंसानियत - एक धर्म - 18

अदालत कक्ष से जज साहब के बाहर जाते ही कक्ष में खुसर पुसर शुरू हो गयी । पत्रकारों में जैसे नई जान आ गयी । सभी बाहर की तरफ दौड़ पड़े अपनी अपनी यूनिट की तरफ और पूरे मनोयोग से दर्शकों तक ब्रेकिंग न्यूज़ पहुंचाने की कोशिश करने लगे । खबर थी भी बड़ी खास ! शीशे की तरह साफ दिखाई देनेवाले केस को वकिल राजन पंडित ने अपने दमदार दलीलों से पलटवा दिया था । इधर राखी के साथ बैठी रजिया की आंखें खुशी से छलक पड़ी । भावातिरेक में वह राखी के कदमों में झुक ही जाती कि राखी ने बड़ी ही आत्मीयता से उसके दोनों कंधे से उसे थाम कर अपने सीने से लगा लिया । आंखें तो राखी की भी भर आयी थीं लेकिन वह बड़ी साहसी और धैर्यवान लड़की थी । बड़े प्रेम से रजिया के दोनों हाथों को थामे राखी ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा ” भाभी ! क्या मैं तुमको भाभी कह कर बुला सकती हूं ? “
” मेरी प्यारी बहना ! तुम हमारे रिश्ते को जो चाहे नाम दे लो ! लेकिन मैं तो बस इसी बात से खुश हूं कि अल्लाह की मर्जी से हमारे बीच इंसानियत का रिश्ता कायम हुआ है और यह हमारी तरफ से ताउम्र कायम रहेगा यह इस इमानवाली का अपने पाक पैगम्बर खुदावंद करीम को हाजिर नाजिर जानकर उनकी गवाही में खुद से किया एक वादा है । खुदा कसम ! दुनिया चाहे फना हो जाये हम तुम्हारा यह अहसान कभी नहीं भुला पाएंगे । “
तभी सिपाहियों ने कटघरे में खड़े असलम को अपने घेरे में ले लिया और बाहर की तरफ ले जाने लगे । उसे फिर से सिपाहियों के घेरे में देखकर रजिया तड़प उठी । उसकी सवालिया नजरें राखी की तरफ उठ गयीं । आंखों से आंसू छलक पड़े थे लेकिन उसके कांपते होंठ खामोश थे । बहुत कुछ कहने की कोशिश कर रहे उसके होंठ अब मानो कांप कर खामोश हो गए हों । राखी ने मानो उसके मन की बात समझ ली हो । उसके आंसुओं को अपनी चुनरी से पोंछती हुई राखी उसे समझाने लगी ” चिंता न करो भाभी ! ये लोग असलम भाई को थाने ही लेकर जाएंगे जहां हम कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर आज ही असलम भाई को घर ले आएंगे । आप बिलकुल भी फिक्र न करें । “
राखी द्वारा ढाढस बंधाये जाने से रजिया थोड़ा आश्वस्त सी नजर आ रही थी । रजिया को वहीं अकेला छोड़ कर राखी वकिल राजन पंडित की तरफ बढ़ी जो अपनी जगह से उठकर जज साहब के नजदीक बैठने वाले बाबू से कुछ बात कर रहे थे ।
अपने सामने पड़े कागजों के ढेर में से कुछ पन्ने पलटते हुए वह बाबू वकिल राजन पंडित की तरफ प्रशंसात्मक नजरों से देख रहा था ।
मनचाहा कागज पाते ही उसे निकालते हुए उसने वह कागज वकिल साहब की तरफ बढ़ाते हुए कहा ‘ लीजिए वकिल साहब ! यह आर्डर की कॉपी है । आज तो आपने कमाल कर दिया । वाकई ऐसा पहली बार हुआ है जब हत्या के मुलजिम को पहली ही बार में जमानत मिल गयी है । “
खुशी का भाव चेहरे पर लाते हुए पंडितजी वह कागज अपने हाथ में थामते हुए बोले ” बहुत बहुत धन्यवाद ! बड़े बाबू ! हर काम जो किया जाता है कभी न कभी कोई सबसे पहले करता है इसमें मेरा कुछ नहीं है मैंने तो बस अपना काम किया है और मुझे खुशी है कि कम से कम आज तो मैं अपने मकसद में कामयाब हुआ हूँ । उम्मीद है आगे भी प्रभु मेरी मदद करेंगे । “
राखी उनके नजदीक पहुंच चुकी थी । कागज हाथ में लिए वकिल साहब मुड़े तो उनकी निगाहें राखी से जा टकरायीं । राखी की निगाहों में अपने लिए प्रशंसा और श्रद्धा के भाव को पढ़ने में वकिल साहब से कोई गलती नहीं हुई । राखी कुछ कहने ही जा रही थी कि पंडित जी बोल पड़े ” राखी बेटा ! ये जजमेन्ट की नकल तो हमें मिल गयी है और हमारा काम आसान हो गया है । अब हमें सिर्फ जमानत के पच्चीस हजार रुपयों का प्रबंध करना है और यहीं जमा करना है । पैसा जमा कराने की रसीद के साथ ही इस आदेश की कॉपी थाने में दिखाते ही उन्हें असलम को रिहा करना पड़ेगा । क्या रजिया के पास इतने पैसों का प्रबंध हो जाएगा ? पुछ कर देखो । मैं अपने दफ्तर में तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं । समझ गयी ? ” कहकर वकिल साहब अदालत कक्ष से बाहर की तरफ निकल पड़े ।
कक्ष से बाहर आते ही लोगों की भीड़ के बीच खड़े पत्रकारों के समूह ने उन्हें घेर लिया ।
उनके सामने अपना अपना माइक थामे पत्रकार तरह तरह के उल जलूल सवालों के साथ ही कुछ अच्छे सवाल भी पुछ रहे थे । पत्रकारों की भीड़ से बचने की कोशिश कर रहे पंडित जी से एक पत्रकार ने सवाल किया ” इस हारे हुए मुकदमे को जीत कर आपको कैसा लग रहा है ? “
एक दूसरे पत्रकार ने पुछा ” क्या आपको ऐसा लगता है कि आप इस मुकदमे में सिपाही असलम को बेदाग बचाने में कामयाब हो पाएंगे ? “
एक और पत्रकार ने पुछा ” पंडित जी ! इतने बड़े जघन्य हत्याकांड के पीछे क्या कोई सोची समझी योजना थी ? और इस कांड में घायल हुए उस युवक का क्या रोल है ? “
एक और पत्रकार ने सवाल किया ” सुना है उस घायल युवक की पत्नी उस सिपाही की दिलोजान से मदद कर रही है । क्या आपने भी मुकदमा उसके कहने से ही लिया है ? “
तमाम तरह के सवालों की बौछार का सामना करते पंडित जी आगे निकल जाना चाहते थे लेकिन वह लोगों और पत्रकारों की भीड़ में फंस कर रह गए थे । लिहाजा बाहर खुले में आकर वह थोड़ी देर के लिए रुके और फिर कहना शुरू किया ” मीडिया के मेरे साथियों ! जिस तरह से न्यायपालिका हमारे लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ है आप लोग भी इसी लोकतंत्र के एक मजबूत स्तंभ हो । और आप लोगों का उत्साह देखकर मैं समझ सकता हूँ हमारे देश में लोकतंत्र की जड़ें कितनी गहरी हैं । हर अच्छी बुरी घटना दुर्घटना की सही खबर लोगों तक पहुंचाने का पवित्र कार्य आप लोग करते हो । आज जिस हत्याकांड की चर्चा आम हो गयी है और अभी जिसकी सुनवाई भी शुरू नहीं हुई है उस मुकदमे के बारे में मैं कानूनी अड़चनों की वजह से खुलकर कुछ नहीं कह पाऊंगा लेकिन इतना अवश्य कहूंगा कि ज्यूँ ज्यूँ यह मुकदमा आगे बढ़ेगा आप लोगों को हैरत का सामना करना पड़ेगा । इस मुकदमे में वादी और प्रतिवादी के रूप में सरकार और अभियुक्त का मुकाबला नहीं बल्कि कानून बनाम इंसानियत का मुकाबला होने जा रहा है और मुझे पूरा यकीन है कि इंसानियत जिंदा रहेगी । इंसानियत विजयी होगी । धन्यवाद । “
तभी रामपुर थाने की जीप सभी कैदियों को लिए शोर मचाती हुई अदालत परिसर से बाहर निकल गयी । जीप की वजह से पंडितजी को रास्ता खाली मिल गया और वो लपक कर बाहर की तरफ अपने दफ्तर की ओर बढ़ गए ।
कहने के साथ ही पंडित जी एक झटके से मुड़े और अदालत परिसर से बाहर जानेवाले मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ गए ।