Insaaniyat - EK dharm - 22 books and stories free download online pdf in Hindi

इंसानियत - एक धर्म - 22

थाने के बाहर पत्रकारों की भीड़ जुट चुकी थी औऱ इसी वजह से मुफ्त के तमाशबीनों की भीड़ भी बड़ी संख्या में जमा हो गयी थी ।
राखी की बात का जवाब देने की कोशिश कर रहा असलम अंदर घुस रही पत्रकारों की टीम से खुद को बचाता बाहर बढ़ा लेकिन बाहर लोगों और मीडिया की भीड़ देखकर घबरा कर फिर से अंदर आ गया । अंदर आये हुए पत्रकार ने कमरे से दरवाजे से ही लाइव रिपोर्टिंग शुरू कर दी ‘ अभी अभी खबर मिली है कि आलम हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त हवलदार असलम को जमानत मिल गयी है औऱ अब उसकी थाने से रिहाई की प्रक्रिया शुरू हो गयी है । थाने के कर्मियों के हवाले से यह खबर भी आ रही है कि अब किसी भी पल अभियुक्त असलम की रिहाई संभव है । हम आपको हवलदार असलम की रिहाई का लाइव वीडियो दिखाने की कोशिश करेंगे । हम आपको इस समाचार के बारे में पल पल की खबर दे रहे हैं । समाचार जगत में ऐसे दुर्दांत अभियुक्त की जमानत और रिहाई एक चर्चा का विषय बन गया है । सब तरफ अटकलों का बाजार गर्म है कि एक अदना से हवलदार आखिर इतने बड़े वकील राजन पंडित की सेवाएं लेने में कामयाब कैसे हो गया ? उनकी इतनी महंगी फीस का जुगाड़ असलम कैसे कर सकेगा ? अब देखिए असलम को हवालात से बाहर निकाला जा चुका है और अब वह किसी भी पल थाने से बाहर निकलेंगे । हम आपको पल पल की खबर सीधे लाइव दिखा रहे हैं । अभी लेते हैं एक छोटा सा ब्रेक ,कहीं जाइयेगा नहीं . जल्द लौटते हैं तब तक देखते रहिये न्यूज़ …….”
इस अप्रत्याशित स्थिति से राखी और असलम के साथ ही रजिया भी असहज हो गयी थी । लेकिन असलम इस थाने की इमारत से भली भांति परिचित था । कमरे में घुस आए पत्रकारों से बचते हुए तीनों थाने के भूतल पर आ गए और पुनः अंदर के कमरे से होते हुए थाने के पिछवाड़े आ गए और फिर बड़ी आसानी से मैदान पार करके पीछे के रास्ते बाहर निकल आये थे । कुछ देर पैदल चलने के बाद राखी ने असलम से विदा लेते हुए कहा ” असलम भाई ! अब मुझे इजाजत दो । मैं बड़ी देर से बाहर हूँ । अब न जाने रमेश जी की हालत कैसी होगी । मुझे उनकी चिंता हो रही है और फिर उन्हें तुम्हारे रिहाई की खुशखबरी भी तो सुनानी है । कल ग्यारह बजे यहां आकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना नहीं भुलना । और हां ! रजिया भाभी ! किसी बात की चिंता नहीं करना । ऊपर वाला चाहेगा तो सब कुछ ठीक ही होगा । अब देखो ! मैं भी कितनी भुलक्कड़ हूँ जाने के लिए तैयार हो गयी और तुम्हारा फोन नम्बर लिया ही नहीं । अच्छा अब फटाक से अपना नंबर बता भी दो । “
अपने अपने नंबरों का आदान प्रदान करके राखी उनसे विदा लेकर एक ऑटो में बैठ अस्पताल पहुंच गयी ।
अस्पताल के सामान्य कक्ष के बाहर बरामदे में ही सुषमा जी बेचैनी से टहल रही थीं ।
हमेशा सुषमा जी को देखकर उनके प्रति अपार श्रद्धा और आदर से भर उठानेवाला राखी का मन आज उन्हें देखकर पता नहीं क्यों संशकित सा हो उठा था । उनसे मिलना लाजिमी ही था । नजदीक पहुंच कर उनका अभिवादन करती हुई राखी बोली ” माँ जी ! आप कब आईं ? और यहाँ क्यों टहल रही हैं ? सब ठीक तो है न ? “
कहर भरी नजर उसकी तरफ डालती हुई सुषमा जी अपनी बारीक सी आवाज में भी बिफर पड़ीं ” मैं आ तो उसी समय गयी थी जब तुम यहाँ से कचहरी के लिए निकली थीं । वो तो अच्छा हुआ जो मैं समय पर आ गयी और डॉक्टर की लिखी हुई दवाइयां ले आयी । लेकिन तुम्हें तो जैसे कोई फिक्र ही नहीं है रमेश की । उसे दवाइयां मिले चाहे न मिले तुम्हें क्या ? तुम्हें तो देवी बनने का शौक चढ़ा हुआ है उस मलेच्छ के लिए ………”
अभी सुषमाजी की बड़बड़ाहट थमी भी नहीं थी कि उनके मुंह से असलम के लिए निकले अपमानजनक शब्द राखी से बरदाश्त नहीं हुए और बड़े ही सम्मानपूर्वक लेकिन अपनी ठोस आवाज में राखी ने उनकी बात को बीच में ही काटते हुए अपना विरोध दर्ज करा दिया ” बस ! माँ जी ! बस ! आप बड़ी हैं सम्माननीय हैं , और आपको मुझसे शिकायत है यह बात मेरे समझ में आ रही है । आप मुझे जो चाहे कह लें शिकायत कर लें या जो भी सजा देना चाहें उफ न करूंगी लेकिन माँ जी ! ईश्वर के लिए कृपा करके उस देवता को गाली मत दीजिये । आप चाहे उसे जो भी मानें लेकिन मेरे लिए वह किसी देवता से कम भी नहीं है । उसने अपनी जिंदगी , अपना भविष्य , अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया । जानती हो किसलिए ? इसलिए कि इंसानियत सलामत रहे । इंसानियत की खातिर उसने अपने धर्म और बिरादरी का भी लिहाज नहीं किया । आज मैं यहां सही सलामत खड़ी हूँ तो बस उस देवता की मेहरबानी की ही बदौलत जिसे आप मलेच्छ कह कर रही हैं । अगर मुझे कुछ हो जाता तब क्या आप समाज का सामना ऐसे ही सिर उठाकर कर पातीं ? उस इंसान का तो मुझे ही नहीं आपको भी अहसानमंद होना चाहिए और आप हैं कि उसे भला बुरा कहे जा रही हैं । अभी कल की ही तो बात है जब आप मेरी तारीफ करते हुए उसका मदद करने की सलाह दे रही थीं और आज आपका यह रवैया है । अविश्वसनीय ! ” कहने के बाद सुषमा जी को वहीं छोड़ राखी तेजी से कक्ष में रमेश के बेड की तरफ बढ़ गयी ।
रमेश आंखें बंद किये बेड पर लेटा ही था । उसकी आंखें आराम की मुद्रा में बंद थीं लेकिन वह सोया नहीं था । राखी की आहट पाते ही उसने धीमे से अपनी आंखें खोलते हुए मुस्कुराकर राखी का स्वागत किया । उसकी मुस्कुराहट देखकर राखी अपनी सारी थकान भूल सी गयी । उसके बालों में हाथ फिराते हुए बड़े ही प्यार से बोली ” अब कैसी है आपकी तबियत ? “
रमेश हौले से मुस्कुराते हुए ही बोला ” अब तुम्हारे होते हुए मुझे क्या हो सकता है ? एक दम भला चंगा हूँ । अपनी बताओ । क्या हुआ अदालत में ? “
प्रसन्नता के आवेग को संभालते हुए राखी ने अदालत का पूरा विवरण संक्षेप में रमेश को सुना दिया । आखिर में असलम की रिहाई और उसके अपने घर रवाना होने की खबर से रमेश के चेहरे पर छाई चिंता की लकीरें प्रसन्नता में बदल गयी थी ।
बाद में रमेश ने राखी को बताया कि थाने से कोई हवलदार आया था । और उसका बयान लिख कर ले गया है । राखी तुरंत ही पुछ बैठी ” तो क्या बताया आपने ? “
उसकी परेशानी को भांप कर रमेश बोल पड़ा ” अरे ! तुम क्यों परेशान हो रही हो ? मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है जिससे असलम को कोई दिक्कत हो । मैंने तुमसे पहले ही कहा है कि इंसानियत का समर्थन करने की तुम्हारी इस जंग में मैं भी तुम्हारे साथ हूँ ।क्या तुम्हेँ मुझ पर यकीन नहीं है ? “
” क्यों नहीं ? मैं तो बस यूं ही जानना चाहती थी कि तुमने क्या बयान दिया ? ” राखी उस पर विश्वास जताते हुए बोली ।
रमेश मुस्कुराया और बोला ” मैंने सारा दोष आलम पर ही डाल दिया है और ज्यादा न बताना पड़े इसलिए उसके बाद अपने होश खो देने की बात बताई है । स्पष्ट बयान नहीं होने की वजह से हम अदालत में उसका उपयोग आवश्यकता पड़ने पर असलम को बचाने के लिए अपने बयान में बदलाव के लिए कर सकते हैं । कहो ! मैंने ठीक किया न ?”
राखी ने जल्दी जल्दी स्वीकारने वाले अंदाज में अपना सिर हिला दिया ।