Insaaniyat - EK dharm - 24 books and stories free download online pdf in Hindi इंसानियत - एक धर्म - 24 (4) 1.5k 3.7k थोड़ी देर बाद चरमराहट की आवाज के साथ ही मुनीर के घर का दो पल्लों वाला दरवाजा खुल गया । सामने ही शबनम खड़ी थी । हाथों में पकड़ी लालटेन ऊंची करते हुए आगंतुक को देखने का प्रयास कर रही थी जो साये की शक्ल में उसके सामने खड़ा था । उसकी परेशानी को भांप कर मुनीर बोल उठा ” अरे बेगम ! ये मैं हूँ ! मुनीर ! ”उसकी आवाज पहचानकर शबनम ने राहत की सांस ली फिर भी उलाहना देते हुए बोली ” हाय रब्बा ! शुक्र है तुम हो ! रात के इस समय भला कौन कुंडी खटखटा रहा है यह सोच सोचकर तो मेरी जान ही निकल रही थी । लेकिन यूं अचानक कैसे आना हुआ ? न कोई फोन न संदेश ! ”उसे कंधे से पकड़ते हुए परे हटाकर मुनीर कमरे में दाखिल होते हुए बोला ” अरे बेगम ! मुझे घर में आने भी दोगी या सब यहीं पुछ लोगी ? ”शबनम के परे हटते ही मुनीर ने कमरे में प्रवेश किया । दरवाजा बंद करके उसने लालटेन की मद्धिम रोशनी में शबनम की तरफ देखा । शबनम अब तक वहीं खड़ी थी जहां मुनीर ने उसे धकेल कर खड़ा किया था । कमरे में एक तरफ बिछी लकड़ी के बेंच पर बैठते हुएमुनीर ने शबनम की तरफ देखा जो अब अंदर दुसरे कमरे की तरफ बढ़ रही थी , शायद मुनीर के लिए पानी लेने गयी थी । मुनीर ने गौर से उसके चेहरे की तरफ देखा था । हल्की रोशनी में भी उससे शबनम के चेहरे के भाव पढ़ने में कोई गलती नहीं हुई ।शायद उसे मुनीर का उसे परे धकेलना या फिर उसकी बात का जवाब ना देना पसंद नहीं आया था । उसकी बेरुखी को महसूस कर मुनीर तड़प उठा । ‘ अब वह क्या करे ? कैसे बताए वह शबनम को कि वह यहां रात के अंधेरे में अचानक कैसे आ गया है ? कैसे बताए वह कि उसने क्या कारनामा कर दिया है ? और उसके क्या नतीजे आने वाले हैं ? ‘ यही सब सवाल उसके जेहन में सरगोशियां कर रही थीं कि अचानक कमरा एक झटके से रोशन हो उठा । शायद बिजली आ गयी थी और उत्तर भारत के आम ग्रामीणों की तरह उसके घर में भी बिजली का कोई स्विच नहीं था । घर के रोशन होने या ना होने का मामला पूरी तरह से बिजली की उपलब्धता पर निर्भर था । पसीने से सराबोर मुनीर को अचानक छत से टंगे पंखे की याद आ गयी जिसके तार कहीं से निकाले गए थे इसीलिए बिजली आने के बाद भी पंखा बेजान से ही लटका हुआ था । भारत के देहातों में देहाती इन सब कामों में बड़े होशियार होते हैं । शहरों में पंखा लगाना हो या कहीं घर में कोई बिजली से संबंधित परेशानी हो तुरंत किसी इलेक्ट्रिशियन की सेवा लेना पसंद करते हैं क्योंकि अधिकांश लोग बिजली से या तो डरते हैं या फिर अनभिज्ञ रहते हैं वहीं कुछ ही लोग समय की कमी के कारण खुद कुछ नहीं करते । मुनीर भी ऐसे ही देहातियों में से ही था । बल्ब की चकाचौंध में पंखे के लटक रहे तार को ऊपर एक जगह कटे हुए तार से जोड़ने में कोई दिक्कत नहीं हुई और एक विशेष आवाज निकलता हुआ पंखा तीव्र गति से चल पड़ा । पंखा चलते ही मुनीर ने चैन की सांस ली और बेंच पर बैठ गया । तभी उसके मस्तिष्क ने सरगोशी की ‘ क्यों ? परेशान हो गया न थोड़ी सी गर्मी से ? सोच अगर तू कहीं गिरफ्तार हो गया तो कैसे रहेगा उस बन्द कमरे में जहां न पंखा होगा और न होगी जरूरत की कोई चीज ? अगर कहीं तुझे काल कोठरी में डाल दिये तो ? ……शबनम के कदमों की आहट ने उसे विचारों की दुनिया से वापस लाकर हकीकत से रूबरू करा दिया था ।शबनम सामने ही खड़ी थी । हाथ में पानी भरा हुआ गिलास थामे वह उसी की तरफ देखते हुए कुछ सोच रही थी मानो उसके चेहरे को देखकर उसके दिल की उथलपुथल को समझना चाह रही हो । उससे नजरें मिलाने की हिम्मत मुनीर नहीं जुटा पाया और शबनम के हाथों से गिलास थाम कर मुंह से लगा लिया और एक ही झटके में खाली कर दिया । खाली गिलास शबनम को थमाते हुए भी मुनीर की नजरें झुकी हुई ही थीं । उसका अपराध बोध अब उसपर हावी हो रहा था । उधर शबनम भी मुनीर के इस बदले हुए व्यवहार और उसके अचानक आ जाने की वजह न समझ पाने के कारण मन ही मन कुछ कयास लगा रही थी । कुछ सोच रही थी लेकिन मुनीर से सीधे पुछने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी । वजह थी उसका सामाजिक दायित्व , उसके संस्कार और उसकी आदतें । वह मुनीर से उसकी परेशानी का सबब जानना चाहती थी लेकिन उसे बचपन से ही सिखाया गया था ‘ जब तेरा निकाह हो जाएगा ,तेरा शौहर ही तेरा खुदा होगा । वह तुझे जिस हाल में रखे ,जैसे भी रखे खुश रहना है । उससे कोई जवाबतलब नहीं करना है । हर तरह से उसकी खिदमत करनी है ……….’मुनीर की खामोशी और उसका उससे यूं नजरें चुराना उसे अखर रहा था । आखिर उससे नहीं रहा गया और उसके करीब बैठती हुई बोली ” क्या बात है ? आज आप कुछ परेशान लग रहे हैं । अचानक कैसे आना हुआ यह भी हम नहीं समझ पाए । ”शबनम की आवाज सुनकर मुनीर ने एक पल के लिए उसकी तरफ देखा लेकिन अगले ही पल पलकें झुकाते हुए धीमे स्वर में बोल उठा ” हम तुम्हें बताने ही वाले थे बेगम ! ”” हाय दैय्या ! क्या हुआ बताओगे भी ! मेरा तो दिल बैठा जा रहा है । ” शबनम ने अधीरता ,से पूछ लिया था । अब वह अपने सभी संस्कार ,डर ,और लिहाज भूल चुकी थी और भय की आशंका उसके दिमाग पर हावी हो गया था । कहते हैं भय और क्रोध की अधिकता में इंसान अपने सोचने समझने की शक्ति खो देता है । यही शबनम के साथ भी हो रहा था । बारह वर्षों के वैवाहिक जीवन में उसने पलट कर कभी मुनीर से सवाल नहीं किया था ।मुनीर ने भी मौके की नजाकत कोसमझते हुए उसकी हरकतों को नजर अंदाज कर दिया और आगे कहना जारी रखा ” तुम सही समझ रही हो बेगम ! हम थोड़े परेशान जरूर हैं । लेकिन गलती हमारी नहीं है । ”अभी वह और आगे कुछ कहता कि शबनम बीच में ही टपक पड़ी ” लेकिन हुआ क्या है ? ”आगे कुछ बोलने की कोशिश करता हुआ मुनीर सोच रहा था ‘ क्या करे ? क्या शबनम को सब कुछ सही सही बताना ठीक रहेगा ? क्या वह उसकी हरकतों को बरदाश्त कर पायेगी ? माना कि वह जुबान से अपना विरोध दर्ज नहीं करा पाएगी लेकिन सब कुछ खुलासा हो जाने के बाद क्या वह खुद उसका सामना कर पायेगा ? ‘ ‹ Previous Chapterइंसानियत - एक धर्म - 23 › Next Chapterइंसानियत - एक धर्म - 25 Download Our App More Interesting Options Hindi Short Stories Hindi Spiritual Stories Hindi Fiction Stories Hindi Motivational Stories Hindi Classic Stories Hindi Children Stories Hindi Comedy stories Hindi Magazine Hindi Poems Hindi Travel stories Hindi Women Focused Hindi Drama Hindi Love Stories Hindi Detective stories Hindi Moral Stories Hindi Adventure Stories Hindi Human Science Hindi Philosophy Hindi Health Hindi Biography Hindi Cooking Recipe Hindi Letter Hindi Horror Stories Hindi Film Reviews Hindi Mythological Stories Hindi Book Reviews Hindi Thriller Hindi Science-Fiction Hindi Business Hindi Sports Hindi Animals Hindi Astrology Hindi Science Hindi Anything राज कुमार कांदु Follow Novel by राज कुमार कांदु in Hindi Fiction Stories Total Episodes : 49 Share NEW REALESED Anything ઉડાન... એક સકારાત્મક વિચારોની - 6 Mausam Classic Stories શોધ પ્રતિશોધ.. - ભાગ 1 જાગૃતિ ઝંખના 'મીરાં'.. 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