Sholagarh @ 34 Kilometer - 22 books and stories free download online pdf in Hindi

शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 22

शूटिंग कैंसिल

 

सुबह छह बजे कैप्टन किशन ने रिसेप्शन पर हार्ड काफी का आर्डर दिया और फिर फ्रेश होने के लिए वाशरूम में चला गया। जब वह निकला तो टेबल पर गर्म काफी उसका इंतजार कर रही थी। उसने कपड़े पहने और फिर हार्ड काफी का मजा लेने लगा। काफी खत्म करते ही वह होटल से निकल पड़ा। उसकी कार का रुख कोठी की तरफ था। उसके साथ उसका सेक्रेटरी भी था। वह होटल में उसके बगल के कमरे में ठहरा हुआ था।

कुछ देर बाद उनकी कार कोठी के कंपाउंड में दाखिल हो गई। कोठी में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ था। कैप्टन किशन आकर लॉन में पड़ी कुर्सियों पर बैठ गया। उसने फोन करके फिल्म के राइटर-डायरेक्टर शैलेष जी अंलकार को भी आने को कहा। इसके बाद कैप्टन किशन ऊपर की मंजिल पर चला गया। वह अकेला ही था। सेक्रेटरी को उसने वहीं लॉन में छोड़ दिया था। उसने सार्जेंट सलीम के कमरे के दरवाजे को हलका सा धक्का दिया तो वह खुल गया। अंदर झांक कर देखा तो कमरा पूरी तरह से खाली था। उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। उसे अंदाजा था कि सलीम और श्रेया अभी सोए हुए होंगे।

कैप्टन किशन ऊपर के हिस्से में बने गार्डन की तरफ निकल गया। सार्जेंट सलीम और श्रेया उसे वहां भी नजर नहीं आए। इसके बाद वह सीढ़ियों से नीचे उतर आया। एक राउंड उसने नीचे के हिस्से का भी लगाया, लेकिन उसे कहीं भी सलीम और श्रेया नजर नहीं आए। कैप्टन किशन बाहर आकर लॉन में बैठ गया। उसने गार्ड को तलब किया। गार्ड ने कहा कि उसने बाहर किसी को जाते नहीं देखा है। दरअसल जब सोहराब, सलीम और श्रेया बाहर निकले थे तो गार्ड सो रहा था। यही वजह थी कि उसने उन्हें बाहर जाते हुए नहीं देखा था।

“ताज्जुब है!” इतना कह कर कैप्टन किशन खामोश रह गया।

कुछ देर बाद वह उठा और कोठी के पिछले हिस्से की तरफ चला गया। उधर का गेट अभी भी खुला हुआ था। उसे आश्चर्य हुआ कि इस गेट में ताला क्यों नहीं लगा हुआ है। वह गेट से बाहर निकल कर जंगल में कुछ दूर तक टहल आया। वह अकेला ही था। लौट कर उसने गेट बंद किया और फिर आकर लॉन में कुर्सी पर बैठ गया। सार्जेंट सलीम का इस तरह से अचानक गायब हो जाने से वह उलझन में पड़ गया था।

कुछ देर बाद ही रसोईया नाश्ता ले आया। अभी वह नाश्ता कर ही रहा था कि शैलेष जी अलंकार कि कार आकर रुकी। उसमें से बड़ी हड़बड़ी के साथ शैलेष उतर कर सीधे कैप्टन किशन के पास आया और उसके पैर छूकर पास की कुर्सी पर बैठ गया।

शैलेष अलंकार अजीब पर्सनाल्टी का आदमी था। हर मौके पर उसका बिहैवियर अलग होता था। सोहराब की कोठी पर वह जब भी गया था तो उसका व्यवहार कटखने बंदर जैसा था। रात में सोहराब से वह बड़ी मिलनसारी से मिला था। उसके इस सुलूक से सोहराब भी एक बार चौंका जरूर था। और अभी उसका व्यवहार एक आज्ञाकारी छात्र जैसा था।

शैलेष चुपचाप बैठा रहा और कैप्टन किशन ने भी उसे कोई तवज्जो नहीं दी। वह आराम से आमलेट और पराठे खा रहा था। नाश्ता कर चुकने के बाद कैप्टन किशन ने नैपकिन से हाथ साफ किए और फिर कॉफी उंडेल कर पीने लगा।

दो-तीन सिप लेने के बाद वह शैलेष से मुखातिब हुआ। “शूटिंग कैंसिल कर दो।”

“ओके सर!” शैलेष ने एक आज्ञाकारी छात्र की तरह कहा।

“मुझे अभी जरूरी काम याद आ गया है। मैं शहर वापस जा रहा हूं। तुम सब भी दोपहर तक यहां से निकल पड़ो। शूटिंग शेड्यूल बाद में डिसाइड करेंगे।” कैप्टन किशन ने उसे समझाते हुए कहा और उठ कर चला गया। उसके पीछे-पीछे सेक्रेटरी भी जा रहा था। शैलेष, कैप्टन किशन को जाते हुए देखता रहा।

कार के पास पहुंचकर कैप्टन किशन ने सेक्रेटरी से कहा, “आप शैलेष के साथ ही वापस आईएगा।” इसके साथ ही कैप्टन किशन कार की पिछली सीट पर बैठ गया और कार रवाना हो गई।

शैलेष उलझन में पड़ गया था। उसने जेब से सुर्ती का बटुवा निकाला उसमें से कुछ तंबाखू हाथ पर रखी। प्लास्टिक की शीशी से चूना निकाला और सुर्ती मलने लगा।

“क्या डायरेक्टर साहब! सुर्ती खाते रहते हैं।” कैप्टन किशन के सेक्रेटरी ने हंसते हुए कहा।

शलैष ने कोई जवाब नहीं दिया। सुर्ती मलने के बाद उसने हाथों को सेक्रेटरी की तरफ ले जाकर चार बार सुर्ती को पीटकर चुना झाड़ा। नतीजे में सेक्रेटरी का छींक-छींक कर बुरा हाल हो गया। शैलेष खी-खी करते हुए वहां से उठ गया। शैलेष का यह एक और रूप था, जो सोहराब की कोठी से एकदम अलग था। बहुत ही अजीब आदमी था।

 

जंगली बिल्ली

दरअसल उन चिड़ियों पर एक जंगली बिल्ली ने हमला कर दिया था। यह देखते ही सार्जेंट सलीम का गुस्सा भड़क गया और वह तेजी से चिड़ियों के झुंड की तरफ दौड़ पड़ा।

सलीम के वहां पहुंचने से पहले ही बिल्ली ने एक चिड़िया को दबोच लिया था और रफूचक्कर हो गई। सलीम ने बिल्ली का कुछ दूर पीछा भी किया, लेकिन वह कब उसके हाथ आने वाली थी।

चिड़ियों का झुंड पास के एक पेड़ पर शोर मचाकर अपनी साथी के लिए सोग मना रहा था। सोग मनाने के लिए तो खैर सलीम के पास भी बहुत सारी वजहें थीं। कुछ देर तक वह बिल्ली के भाग जाने वाले रास्ते को खड़ा निहारता रहा और उसके बाद निराशा भरे कदमों के साथ लौट आया। सुबह के वक्त पहाड़ी इलाकों में सर्दी बढ़ जाती है, लेकिन इस भागदौड़ से उसके माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं थीं।

लौट कर जब वह श्रेया के पास पहुंचा तो वह जगी हुई उसका इंतजार कर रही थी। “कहां चले गए थे?”

“बिल्लियों ने जीना हराम कर दिया है।” सलीम ने श्रेया की आंखों में देखते हुए कहा।

“और बिल्लों ने भी।” श्रेया ने उसकी बात का भाव पकड़ लिया था और उसने यह बात उसे चिढ़ाने के लिए कही थी। कुछ देर बाद उसने पूछा, “एक बात बताओ... तुम्हारा वह साथी कौन है? बड़ा दिलेर आदमी है, लेकिन उसकी आंखों में गजब का पॉवर है। आंखों की तरफ देख नहीं सकते ज्यादा देर।”

“कौन सा आदमी?” सार्जेंट सलीम ने अनजान बनते हुए पूछा।

“वही जो हमें यहां तक ले कर आया है।” श्रेया ने कहा।

“अच्छा वो... वो मेरा कार मैकेनिक है।” सलीम ने जवाब दिया।

“कार मैकेनिक…!” श्रेया ने आश्चर्य से दोहराया, “.... लेकिन वह तो तुमसे ऐसे बातें कर रहा था, जैसे तुम्हारा बॉस हो।”

“वह ऐसे ही बातें करता है। बीस साल से हमारी कारें ठीक कर रहा है न इसलिए बड़े भाई जैसा है। कमाल का मैकेनिक है।” सलीम ने बात बनाते हुए कहा।

“मुझे यकीन नहीं हो रहा है! बाई द वे आपका वह कार मैकेनिक कहां चला गया अब... और हमें यहां क्यों ले आया है।” श्रेया ने पूछा।

“कह रहा था कार को रेल की पटरियों पर चलाकर हमें शहर ले जाएगा।”

“बहुत झूठे हो!” श्रेया ने कहा, “मुझे वाशरूम जाना है।”

“तो जाइये न... किसने मना किया है।” सलीम ने खीझे हुए अंदाज में कहा।

“मुझसे चला नहीं जा रहा। तुम साथ ले चलो न प्लीज!” श्रेया ने दर्द भरे लहजे मं  कहा।

“ऐसा करो मुझे गुलाम बना लो।” सलीम ने आंखें निकालते हुए कहा।

“सोचूंगी!” श्रेया ने कहा और उठकर उसके कांधे को पकड़ लिया।

मजबूरन सलीम उसे वाशरूम की तरफ लेकर चला गया। श्रेया वाशरूम के अंदर चली गई और वह बाहर खड़ा झल्लाता रहा। उसे पाइप की जबरदस्त तलब लग रही थी। इन सब उलझनों में उसने कई दिनों से पाइप नहीं पिया था। अजीब बात यह थी कि उसे इसका खयाल भी नहीं आया था। वैसे भी जब जान पर बनी हो तो बाकी सारी ख्वाहिशें पीछे छूट जाती हैं।

कुछ देर बाद वह श्रेया को लेकर लौट आया। इंस्पेक्टर सोहराब वहां उनका इंतजार कर रहा था।

“कहां चले गए थे?”

“यही मैं आपसे पूछना चाहता हूं।” सार्जेंट सलीम ने गुस्से से कहा।

“आपके लिए सवारी का इंतजाम करने।” सोहराब ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

“टैक्सियां क्या रेलवे स्टेशन पर मिलने लगीं हैं?” सलीम ने तल्ख लहजे में पूछा।

“टैक्सी से चलने के मेरे पास पैसे नहीं हैं बर्खुर्दार!” सोहराब का भाव चिढ़ाने वाला था।

“ट्रेन का यह फायदा तो है कि बिना टिकट भी चल सकते हैं।” सलीम ने तंजिया लहजे में जवाब दिया।

“नहीं मैं आपको मालगाड़ी से ले चलूंगा। उसमें टिकट का भी झंझट नहीं है।” सोहराब का लहजा इस बार गंभीर था।

सोहराब की इस बात पर सलीम का चेहरा गुस्से से तमतमा आया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि सोहराब यह सब क्यों कर रहा है। बेहतर था कि एक टैक्सी बुक की जाती और वह उससे आराम से शहर पहुंच जाते। उसे बेइंतेहा थकान थी और वह सो जाना चाहता था। उसे भूख का भी एहसास हो रहा था।

सोहराब ने सलीम के चेहरे पर गुस्से के भाव पढ़ लिए थे। वह सलीम के करीब चला गया और धीमी आवाज में कहा, “गुस्सा मत हो प्यारे... तुम्हारे हर सवाल का जवाब मिलेगा। बस थोड़ा धैर्य रखो। श्रेया का ख्याल रखो। उसकी जान को खतरा है।”

उसकी बात सुन कर सलीम शांत हो गया। कुछ देर बाद उसने पूछा, “क्या हमें वाकई मालगाड़ी से जाना है?”

“जी बर्खुर्दार! दरअसल इस स्टेशन से अब अगली ट्रेन शाम चार बजे ही मिलेगी।” सोहराब ने उसे समझाते हुए कहा, “मैं स्टेशन मास्टर से बात करने गया था। उन्होंने बताया कि कुछ देर बाद इधर से मालगाड़ी गुजरने वाली है। उसका यहां स्टॉप तो नहीं है, लेकिन वह कुछ देर रोक कर हमें सवार करा देंगे।”

सलीम को एक बात समझ में नहीं आई कि सोहराब इस वक्त एक आम नौजवान के भेस में है। उसने स्टेशन मास्टर को कैसे इस स्टेशन पर ट्रेन रोकने के लिए राजी किया होगा! 

अभी वह बात कर ही रहे थे कि उन्हें ट्रेन की सीटी की आवाज सुनाई दी। कुछ देर बाद एक मालगाड़ी आकर रुक गई। स्टेशन मास्टर ने मालगाड़ी के गार्ड से कुछ देर बात की और फिर तेज कदमों से चलता हुआ सोहराब के पास आया और चलने के लिए कहा।

स्टेशन मास्टर के इस तरह के सपोर्ट से सार्जेंट सलीम और हैरान हुआ। सलीम ने सहारा देकर श्रेया को उठाया और तीनों ही तेजी से गार्ड के डिब्बे की तरफ चल दिए। सलीम ने श्रेया को डिब्बे पर चढ़ा दिया और खुद भी सवार हो गया। सोहराब ने स्टेशन मास्टर का शुक्रिया अदा किया और वह भी ऊपर आ गया।

गार्ड ने हरी झंडी दिखाई और ट्रेन दो सीटियों के बाद रेंगने लगी। गार्ड अपने काम से फारिग होने के बाद उनकी तरफ देखकर मुस्कुराया। जवाबन सोहराब भी मुस्कुरा दिया। मालगाड़ी का गार्ड एक खूबसूरत नौजवान था। काफी खुशपोश और मिलनसार मालूम होता था।

नियमों के मुताबिक गार्ड को दोनों ही झंडे साथ ले जाने होते हैं। भले ही उसे हरी झंडी ही क्यों न दिखानी हो।

गार्ड के डिब्बे के तीन हिस्से होते हैं। एक छोटा सा कमरा और उसके आगे बरामदा और फिर एक ओपेन स्पेस। देखने में यह पूरा हिस्सा काफी सुंदर होता है। ऐसा लगता है कि एक छोटा सा पहाड़ी मकान पहियों पर चल रहा है।

गार्ड ने अंदर जा कर अपने लाल और हरे झंडे एहितयात से रख दिए। उसके बाद वह एक दरी लेकर बाहर आ गया। “लीजिए सर! इसे बिछा लीजिए। हमारे पास कुर्सी नहीं है।”

“यह हमारे लिए काफी है। शुक्रिया आपका।” सोहराब ने गार्ड से कहा, “हमारी इन साथी की तबियत ठीक नहीं है। अगर कोई हर्ज न हो तो आप इन्हें अंदर लेटने को जगह दे दें।”

“व्हाई नॉट!” गार्ड नौजवान ने श्रेया की तरफ देखते हुए अंग्रेजी में कहा। श्रेया के खुले बाल हवा में लहरा रहे थे। एक शहरी बाला को लहंगे-चोली में देख कर शायद उसे आश्चर्य हुआ था। “मैं बिस्तर लगा दूं।”

“मेहरबानी आपकी।” सोहराब ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

सार्जेंट सलीम ने गार्ड के हाथ से दरी ले ली और बरामदे में बिछा दी।

“बैठ जाओ नहीं तो दरी उड़ जाएगी।” सोहराब ने सार्जेंट सलीम से कहा। सार्जेंट सलीम वहीं बैठ गया, जबकि श्रेया और सोहराब बरामदे के लोहे के खंभों को पकड़े खड़े थे।

कुछ देर बाद गार्ड कागज के तीन कप और केतली में चाय ले आया। “देखिए शायद अभी गर्म हो। पिछले स्टेशन पर  ही भरवाई थी।”

गार्ड ने सभी के हाथों में कप पकड़ा दिए और फिर उनमें चाय उंडेल दी। चाय में सिर्फ गुनगुनाहट बची थी। सार्जेंट सलीम को चाय एक दम अच्छी नहीं लगी, लेकिन उसे एहतरामन चाय पीनी पड़ी, क्योंकि गार्ड वहीं पर खड़ा था।

चाय खत्म करने के बाद सोहराब श्रेया को लेकर अंदर रूम में चला गया। गार्ड ने सीट पर बिस्तर लगा दिया था। श्रेया उस पर लेट गई और उसने सर से पांव तक चादर ओढ़ ली। उसके बाद सोहराब बाहर निकल आया। गार्ड, रूम में ही बैठ कर लिखापढ़ी का काम करने लगा।

बाहर आ कर सोहराब ने दरी को बरामदे से हटा कर ओपेन स्पेस में बिछाने को कहा। दरअसल इंस्पेक्टर सोहराब सार्जेंट सलीम से बात करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि उनकी बातें गार्ड के कानों तक पहुंचे। श्रेया तो खैर लेटते ही सो गई थी।

दोनों दरी पर बैठ गए। सोहराब ने शर्ट की ऊपर वाली जेब से बीड़ी का बंडल निकाला और एक बीड़ी निकालकर जला ली।

“मुझे भी चाहिए।” सलीम ने कहा।

सोहराब ने उसकी तरफ बीड़ी का बंडल बढ़ा दिया।
*** * ***

सोहराब और सार्जेंट सलीम का मालगाड़ी का सफर किस मुकाम तक पहुंचा?
शूटिंग क्यों कैंसिल कर दी गई थी?
स्टूडियो में घुसने वाले चारों कौन थे और उन्हें किस चीज की तलाश थी?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर का अगला भाग...