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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 68

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

68

पेरिस और रोम में प्रदर्शनों के बाद हम लंदन लौट आये और वहां पर कई सप्ताह तक टिके रहे। मुझे अभी तक अपने परिवार के लिए कोई मकान नहीं मिला था। मेरे एक मित्र ने स्विट्ज़रलैंड का सुझाव दिया। बेशक मुझे लंदन में बसना अच्छा लगता लेकिन हमें इस बात का शक था कि वहां की आबोहवा बच्चों को माफिक आयेगी या नहीं और उस समय सच कहूं तो हमारी चिंता उस धन को लेकर थी जो स्टेट्स में अटका हुआ था।

इसलिए उदासी की हल्की सी भावना लिये हमने अपना सामान समेटा और चारों बच्चों के साथ स्विट्ज़रलैंड पहुंच गये। हम अस्थायी रूप से बीउ रिवेज होटल, लाउसेन में टिके। होटल के ठीक सामने झील थी। पतझड़ के दिन थे, मौसम थोड़ा शुष्क था लेकिन पहाड़ सुंदर दिखते थे।

हमें ढंग का मकान खोजने में चार महीने लग गये थे। ऊना अपने पांचवें बच्चे को जन्म देने वाली थी। उसने साफ तौर पर कह दिया कि वह अस्पताल के बाद होटल नहीं लौटना चाहती। यही एमर्जेन्सी थी कि मुझे घर ढूंढने में जल्दी मचानी पड़ी और अंतत: हमें वेवेय से थोड़ा ऊपर कोर्सियर गांव में मनोइर दे बान में घर मिल गया। हमारी हैरानी की सीमा नहीं रही जब हमें पता चला कि ये सैंतीस एकड़ का है और इसमें बड़ी वाली ब्लैक चेरी, स्वादिष्ट ग्रीन प्लम, सेब और आड़ुओं के अलावा बहुत सारे फलों के दरख्त हैं। वहां पर सब्जियों के खेत भी थे और वहां खूब सब्जियां उगतीं। फलों और सब्जियों के मौसम में हम कहीं भी गये होते, इनका आनंद लेने के लिए खास तौर पर वापिस आते। ये लौटना तीर्थ यात्रा की तरह होता। टैरेस के सामने पांच एकड़ का लॉन था जिसमें ऊंचे शानदार दरख्त थे और वहां से दूर पहाड़ों और झील का नज़ारा नज़र आता।

मैंने बहुत सक्षम स्टाफ रखा। मिस राशल फोर्ड जो हमारा घर बार संभालती थीं और बाद में मेरी बिजनेस मैनेजर बनीं और मैडम बर्नीयर, मेरी स्विस इंग्लिश सचिव जिन्होंने इस किताब को कई बार टाइप किया।

हम जगह के फैलाव को लेकर थोड़ा सोच में थे और हैरान थे कि क्या ये हमारी आमदनी के भीतर संभाली जा सकेगी लेकिन मकान मालिक ने जो बताया, उससे हमें लगा कि हम इसे अपने बजट के भीतर संभाल सकते हैं। इस तरह से हम कोर्सियर के गांव में रहने आ गये। यहां की कुल आबादी 1350 थी।

हमें वहां के हिसाब से ढलने में एक बरस लग गया। कुछ अरसे तक बच्चे कोर्सियर के गांव वाले स्कूल में जाते रहे। उनके लिये एक समस्या खड़ी हो गयी कि अचानक सब कुछ फ्रेंच में पढ़ाया जा रहा था और हमें उस मनोवैज्ञानिक असर का भी डर था जो इससे उन पर हो सकता था। लेकिन जल्दी ही वे धड़ल्ले से फ्रेंच बोलने लगे। हम देख कर हैरान हो गये कि उन्होंने कितनी जल्दी जीवन की स्विस शैली के अनुरूप अपने आप को ढाल लिया था। यहां तक कि बच्चों की नर्सें मिस के के और मिस पिन्नी भी फ्रेंच में मुश्किल महसूस करने लगीं।

और अब हमने युनाइटेड स्टेट्स से सारे संबंध तोड़ने शुरू कर दिये। इसमें काफी समय लग गया। मैं अमेरिकी काउंसुल में गया और उन्हें बताते हुए अपना री-एंंट्री परमिट सौंपा कि मैंने युनाइटेड स्टेट्स में अपना घर छोड़ दिया है।

'आप वापिस नहीं जा रहे हैं चार्ली?'

'नहीं,' मैंने एक तरह से क्षमायाचना करते हुए कहा,'मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूं और अब ये सब बदतमीजियां सहन नहीं कर सकता।'

अधिकारी ने कोई टिप्पणी नहीं की लेकिन कहा,'अच्छी बात है। आप कभी भी साधारण वीज़ा लेकर वहां जा सकते हैं।'

मैं मुस्कुराया और सिर हिलाया,'मैंने स्विट्ज़रलैंड में बसने का फैसला कर लिया है।' हमने हाथ मिलाये और बात वहीं खत्म हो गयी।

अब ऊना ने अपनी अमेरिकी नागरिकता छोड़ने का फैसला किया। इसलिए लंदन की यात्रा के दौरान उसने अमेरिकी दूतावास को सूचित किया। अलबत्ता, उन्होंने कहा कि सारी औपचारिकताओं को पूरा करने में कम से कम पौना घंटा लगेगा। 'क्या बकवास है?' मैंने ऊना से कहा,'ये अजीब बात है कि इसमें इतना समय लगना चाहिये। मैं तुम्हारे साथ चलता हूं।'

जब हम दूतावास में पहुंचे तो अतीत के सारे अपमान और गालियां मेरे भीतर गुब्बारे की तरह फूल गये। ये गुब्बारा किसी भी पल फट सकता था। मैंने ऊंची आवाज़ में आप्रवास विभाग के अधिकारी को बुलाने के लिए कहा। ऊना परेशानी में पड़ गयी। एक दफ्तर के दरवाजे खुले और एक आदमी बाहर आया और बोला,'हैलो चार्ली, क्या आप अपनी पत्नी के साथ ऑफिस के भीतर नहीं आयेंगे?'

उसने ज़रूर मेरे मन की बात पढ़ ली होगी क्योंकि उसने छूटते ही कहा,'कोई अमेरिकी जब अपनी नागरिकता छोड़ता है तो उसे मालूम होना चाहिये कि वह क्या कर रहा है और उसकी दिमागी हालत सही होनी चाहिये। यही वजह है कि हमने प्रश्न पूछने की यह प्रणाली रखी है। यह नागरिक के हितों की रक्षा के लिये है।'

स्वाभाविक है कि इस सब का मेरे लिये कोई मतलब नहीं था।

वह पचास की उम्र के आस पास का शख्स था। 'मैंने आपको 1911 में डेनवर में ओल्ड एम्प्रेस थिएटर में देखा था।' उसने मेरी तरफ निराशा से देखते हुए कहा।

बेशक मैं पिघल गया और हम पुराने सुनहरे दिनों की बात करने लगे।

जब काम निपट गया और अंतिम कागज़ पर हस्ताक्षर कर दिये गये और हम एक दूसरे से विदा के सुकून भरे शब्द कह चुके तो मैं इस मामले में भावनाओं की अपनी कमी के कारण थोड़ा सा उदास हो गया।

लंदन में हम अक्सर मित्रों से मिल लेते। इनमें सिडनी बर्नस्टेन, इवोर मोंटागू, सर एडवर्ड, बेडिंगटनबेहरेंस, डोनाल्ड ओल्डन स्टीवर्ट, एला विंटर, ग्राहम ग्रीन, जे बी प्रिस्टले, मैक्स रेनहार्ट और डगलस फेयरबैंक्स जूनियर आदि थे। हालांकि कुछ मित्रों से हम बहुत कम मिल पाते फिर भी उनका ख्याल राहत देता था जैसे यह जानना सुख देता है कि कहीं कोई तट है और कभी हम उस पोर्ट पर जहाज से गए तो वहां जायेंगे।

लंदन में एक बार जाने पर हमें यह संदेश मिला कि ख्रुश्चेव और बुल्गानिन क्लेरिज होटल में रूसी दूतावास द्वारा आयोजित स्वागत समारोह में हमसे मिलना चाहेंगे। जब हम वहां पहुंचे तो लॉबी में इतनी भीड़ थी कि तिल धरने की जगह नहीं थी। रूसी दूतावास के एक सदस्य की मदद से हम किसी तरह जगह बनाते हुए उनकी तरफ बढ़े। अचानक सामने की दिशा से हमने ख्रुश्चेव और बुल्गानिन को आते हुए देखा। वे भी हमारी तरह रास्ता बनाते हुए आ रहे थे। और उनके चेहरे के भाव से लगता था कि वे भीड़ से तंग आ चुके हैं और वापिस लौट रहे हैं।

यह साफ देखा जा सकता था कि हताश होने के बावजूद हास्यबोध ने ख्रुश्चेव का साथ नहीं छोड़ा था। जब वे बाहर दरवाजे की तरफ जाने के लिए धक्का मुक्की कर रहे थे तो हमारे एस्कोर्ट ने उन्हें पुकारा,'ख्रुश्चेव!' लेकिन उन्होंने हाथ हिलाकर मना कर दिया। वे तंग आ चुके थे। 'ख्रुश्चेव! चार्ली चैप्लिन!!' हमारे एस्कोर्ट ने चिल्लाकर कहा। बुल्गानिन और ख्रुश्चेव दोनों ही रुके और मुड़े। उनके चेहरे खुशी से दमकने लगे। मैं बहुत खुश हुआ। कुचलती पीसती भीड़ में हमारा परिचय कराया गया। एक दुभाषिए के जरिये ख्रुश्चेव ने बताया कि रूसी लोग मेरी फिल्में कितनी अधिक पसंद करते हैं। इसके बाद हमें थोड़ी सी वोदका पेश की गयी। मुझे लगता है कि काली मिर्च की पुड़िया उसी में गिर गयी थी, लेकिन ऊना को वोदका अच्छी लगी।

हम एक छोटा सा घेरा बनाने में सफल हो गये ताकि हम सबकी फोटो खींची जा सके। शोर की वज़ह से मैं कुछ भी नहीं कह पाया। 'आइये चलें, दूसरे कमरे में चलते हैं।' ख्रुश्चेव ने कहा। भीड़ को हमारे इरादे के बारे में पता चल गया और वहां भयंकर मारा मारी शुरू हो गयी।

चार आदमियों की मदद से हमें एक निजी कक्ष में पहुंचाया गया। वहां अकेले होने पर ख्रुश्चेव और हम सब ने राहत की सांस लीं। अब मेरे पास अपने हास्य बोध को जुटा कर बात करने का मौका था। लंदन में पहुंचने के बाद ख्रुश्चेव ने हाल ही में सद्भावना पर बहुत अच्छा भाषण दिया था। यह भाषण सूर्य की किरण की तरह था और मैंने उन्हें यह बात बतायी और कहा कि इससे दुनिया भर में करोड़ों लोगों में शांति के लिए आशा का संचार हुआ है।

हमें एक अमेरिकी रिपोर्टर ने बीच में टोका,'मैं समझता हूं मिस्टर ख्रुश्चेव कि आपका बेटा कल रात शहर में मज़े कर रहा था?'

ख्रुश्चेव मुस्कुराये और मज़े लेने के लिए बोले,"मेरा बेटा गंभीर युवक है और वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बहुत मेहनत कर रहा है। लेकिन कभी-कभार वह मौज मज़ा कर लेता है। मेरा तो यही ख्याल है।'

कुछ ही पलों बाद एक संदेश आया कि मिस्टर हैरोल्ड स्टासेन बाहर खड़े हैं और मिस्टर ख्रुश्चेव से मिलना चाहेंगे। ख्रुश्चेव मेरी तरफ देख कर मज़ाक में बोले,'आपको बुरा तो नहीं लगेगा? वे अमेरिकी हैं!'

मैं हँसा,'मुझे कत्तई बुरा नहीं लगेगा।' बाद में मिस्टर और मिसेज स्टासेन और मिस्टर और मिसेज ग्रोमिको को भीतर लाया गया। ख्रुश्चेव ने तब क्षमा मांगते हुए कहा कि कुछ ही मिनटों में वे उनसे फुरसत पा लेंगे और कमरे के दूसरे कोने में स्टासेन और ग्रोमिको से बात करने के लिए चले गये।

बातचीत करने के हिसाब से मैंने मिसेज ग्रोमिको से पूछा कि क्या वे रूस वापिस जायेंगी। उन्होंने जवाब दिया कि वे अमेरिका वापिस आ रही हैं। मैंने कहा कि वे और उनके पति बहुत लम्बे अरसे तक अमेरिका में रहे हैं। वे हँसी और थोड़ा परेशान भी हुईं। उन्होंने कहा कि मुझे बुरा नहीं लगा,'मुझे वहां अच्छा लगता है।'

मैंने कहा,'मुझे नहीं लगता कि असली अमेरिका न्यू यार्क में प्रशांत के तटों पर है। व्यक्तिगत रूप से मुझे मिडल वेस्ट ज्यादा अच्छा लगता है। वहां उत्तरी और दक्षिणी डेकोटा, मिनीपोलिस और सेंट पॉल जगहें अच्छी लगती हैं। मुझे लगता है कि वही लोग सच्चे अमेरिकी हैं।'

मिसेज स्टासेन अचानक हैरान हो गयीं,'ओह, मैं कितनी खुश हूं कि आपने ये कहा। मेरे पति और मैं मिनेसोटा से ही आये हैं।' वे नर्वस हो कर हँसी और अपनी बात दोहराया,'मुझे कितना अच्छा लगा कि आपने यह बात कही।' मेरा ख्याल है कि वे यह सोच कर चल रही थीं कि मैं अमेरिका के खिलाफ ढेर सारा ज़हर उगलूंगा और उस देश से मुझे जो घाव मिले हैं, उनसे मुझमें कड़ुवाहट भर गयी है। ऐसी बात नहीं थी और अगर ऐसा होता भी तो भी मैं मिसेज स्टासेन जैसी आकर्षक महिला के सामने अपना दुखड़ा तो नहीं ही रोता।

मैं देख रहा था कि ख्रुश्चेव और उनके साथ के लोगों को बहुत देर लग रही हैं इसलिए ऊना और मैं उठे। जब ख्रुश्चेव ने हलचल देखी तो वे स्टासेन को छोड़ कर हमें गुडबाय कहने आये। जब हमने हाथ मिला लिये तो मैंने स्टासेन की एक झलक देखी। उन्होंने दीवार से पीठ सटा रखी थी और सामने की तरफ शून्य में देख रहे थे। मैंने स्टासेन की तरफ न देखते हुए सबसे विदाई ली। मुझे लगा कि इन परिस्थितियों में कूटनीति की यही मांग थी लेकिन उन्हें एक झलक भर देखने से ही मुझे वे पसंद आये।

अगली शाम ऊना और मैंने सेवाय होटल में ग्रिल में अकेले खाना खाया। जिस समय हम स्वीट डिश खा रह थे तो सर विन्स्टन चर्चिल और लेडी चर्चिल भीतर आये और हमारी मेज़ के पास खड़े हो गये। मैंने 1913 के बाद न तो सर विन्स्टन को देखा था और न ही उनसे मेरी बात ही हुई थी। लेकिन लंदन में लाइमलाइट के प्रदर्शन के बाद मुझे युनाइटेड आर्टिस्ट्स, हमारे वितरक से यह संदेश मिला था कि वे सर विन्स्टन को यह फिल्म उनके घर पर दिखाये जाने की अनुमति चाहते हैं।

बेशक, मुझे बहुत अधिक खुशी हुई थी। कुछ ही दिन बाद आभार देते हुए उनका बहुत ही प्यारा पत्र आया था जिसमें उन्होंने लिखा था कि फिल्म उन्हें कितनी अच्छी लगी है। अब सर विन्स्टन हमारी म़ेज के सामने खड़े थे और हमसे कह रहे थे,'कहो, कैसे हो?' उस 'कहो, कैसे हो' में नाराज़गी का पुट था। मैं तुरंत खड़ा हो गया और मुस्कुराते हुए ऊना का परिचय कराया। उस समय ऊना खाना खाने के बाद सोने जा ही रही थी।

ऊना के चले जाने के बाद मैंने उनसे पूछा कि क्या मैंने कॉफी पीने के लिए उनकी मेज पर आ सकता हूं और मैं उनकी मेज़ पर चला आया। लेडी चर्चिल ने बताया कि उन्होंने ख्रुश्चेव के साथ मेरी मुलाकात के बारे में अखबारों में पढ़ा था।

'मेरी ख्रुश्चेव के साथ हमेशा बहुत अच्छी पटती है।' सर विन्स्टन ने कहा।

लेकिन मैं लगातार महसूस करता रहा कि सर विन्स्टन कोई घाव सहला रहे थे। बेशक 1913 के बाद बहुत कुछ घट चुका था। उन्होंने अपने असीम उत्साह और प्रेरणास्पद मार्गदर्शन से इंगलैंड को उबारा था। लेकिन मैंने सोचा कि उनकी 'आयरन कर्टन' फुल्टन स्पीच ने शीत युद्ध को बढ़ाने के अलावा और कोई काम नहीं किया था।

बातचीत मेरी फिल्म लाइमलाइट की तरफ मुड़ गयी। आखिर उन्होंने कहा,'दो बरस पहले मैंने आपको फिल्म की बधाई देते हुए एक खत भेजा था। मिला था आपको?'

'ओह, हां,' मैंने उत्साह से कहा।

'तो आपने उसका उत्तर क्यों नहीं दिया?'

'मुझे नहीं लगा कि उसका उत्तर देने की ज़रूरत थी।' मैंने क्षमायाचना करते हुए कहा।

लेकिन वे खुश नहीं हुए। वे नाराजगी से बोले,'मुझे लगा कि ये एक तरह की नाराज़गी है।'

'नहीं, नहीं बिल्कुल नहीं।' मैंने जवाब दिया।

'अलबत्ता,' उन्होंने मेरी बात को काटते हुए जोड़ा,'मुझे आपकी फिल्में हमेशा बहुत अच्छी लगती हैं।'

मैं इतने महान व्यक्ति की विनम्रता को देखकर अभिभूत था कि उन्हें दो बरस पहले के जवाब न मिले खत की भी याद थी। लेकिन मैंने कभी उनकी राजनीति में दखल नहीं दिया। चर्चिल ने कहा था कि मैं यहां पर ब्रिटिश साम्राज्य को भंग करने के लिए अध्यक्षता नहीं कर रहा हूं। ये बात भाषण कला की शैली हो सकती है लेकिन आधुनिक तथ्यों को देखते हुए ये एक निरर्थक बयान था।

ये भंग करने की कार्रवाई राजनीति, क्रांतिकारी सेनाओं, कम्युनिस्ट प्रचार, भड़काऊ भीड़ जुटाने या सड़क के किनारे दिये गये भाषणों का नतीजा नहीं है। ये तो षडयंत्रकारियों के छल कपट का नतीजा है। ये अंतर्राष्ट्रीय विज्ञापनदाता - रेडियो, टेलिविजन और मोशन फिल्में, कारें और ट्रैक्टर, साइंस के नये नये अविष्कार और गति बढ़ाये जाने और संचार की वज़ह से हुई है। यही वे क्रांतिकारी कदम रहे हैं जो साम्राज्यों के ढहने की वज़हें रही हैं।

स्विटज़रलैंड लौटने के तुरंत बाद मुझे नेहरू से एक पत्र मिला। उसके साथ उन्होंने लेडी माउंटबेटन से परिचय का नोट भेजा था। लेडी को विश्वास था कि हम दोनों में बहुत कुछ एक समान होगा। नेहरू कार्सियर के पास से गुज़रने वाले थे और शायद हम मुलाकात कर सकें। लुकेर्ने में उनके राजदूतों की वार्षिक बैठक होने वाली थी। उन्होंने लिखा था कि उन्हें अच्छा लगेगा अगर मैं वहां आऊं और वहां रात गुजारूं। अगले दिन वे मुझे मनोइर दे बान में छोड़ देंगे। इसलिए मैं लुकेर्ने चला गया।

मुझे यह देख कर हैरानी हुई कि वे भी मेरी तरह छोटे कद के आदमी थे। उनकी पुत्री मिसेज गांधी भी मौजूद थीं। वे प्यारी सी शांत महिला थीं। नेहरू मुझे व्यवहार और संवेदनशीलता के हिसाब से बहुत अच्छे व्यक्ति लगे। वे बेहद सतर्क और तारीफ करने वाले व्यक्ति थे। शुरू शुरू में वे संकोचशील लगे। हम एक साथ लुकेर्ने से चले और गाड़ी में मनोइर दे बान के लिए रवाना हुए जहां मैंने उन्हें लंच के लिए आमंत्रित किया था। उनकी पुत्री दूसरी कार में पीछे पीछे आ रही थी क्योंकि उन्हें जिनेवा जाना था। रास्ते में हम दोनों में बहुत मज़ेदार बातें हुईं। उन्होंने लॉर्ड लुईस माउंटबेटन की बहुत तारीफ की जिन्होंने भारत के वाइसराय के रूप में वहां पर इंगलैंड के हित समाप्त करने में बहुत शानदार भूमिका निभायी थी।

मैंने उनसे पूछा कि भारत किस विचारधारा की दिशा की तरफ बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि दिशा चाहे कोई भी हो, ये भारतवासियों की बेहतरी के लिए है। उन्होंने बताया कि वे पहले ही पंचवर्षीय योजना शुरू कर चुके हैं। नेहरू रास्ते भर बहुत समझदारी से बात करते रहे जबकि उनका ड्राइवर कम से कम सत्तर मील प्रति घंटा या उससे ज्यादा की स्पीड से तंग सड़कों और तीखे मोड़ों पर होशियारी से गाड़ी चला रहा था। नेहरू भारत की राजनीति के बारे में समझाने में व्यस्त थे और मुझे ये बात स्वीकार करनी ही होगी, मैं कार की गति को देखता, पीछे की सीट पर बैठा इतना सहमा हुआ था कि उनकी आधी बातें सुन ही नहीं पाया। कार के ब्रेक लगते, हम आगे की तरफ लुढ़क जाते लेकिन नेहरू बिना रुके बोलते जाते। भगवान का शुक्र है कि कार आखिरकार एक चौराहे पर एक पल के लिए रुकी जहां उनकी पुत्री को हमसे विदा होना था। तभी मैंने देखा कि वे बेहद प्यारे और ख्याल रखने वाले पिता बन गये। उन्होंने अपनी बेटी को गले से लगाया और प्यार से कहा,'अपना ख्याल रखना।' मुझे लगता है कि ये शब्द पुत्री की तरफ से पिता को कहे जाते तो ज्यादा अच्छा लगता।

कोरियाई संकट के दौरान जब पूरी दुनिया एक खतरनाक मोड़ पर सांस रोके खड़ी थी, चीनी दूतावास ने फोन करके पूछा कि क्या मैं जिनेवा में चाउ एन लाइ के सामने सिटीलाइट्स के प्रदर्शन की अनुमति दूंगा? चाउ एन लाइ यह निर्णय लेने वालों की धुरी में थे कि युद्ध होगा या शांति स्थापित की जायेगी।

अगले दिन प्रधानमंत्री ने जिनेवा में हमें अपने साथ खाना खाने के लिए आमंत्रित किया। हम जिनेवा के लिए चलने वाले ही थे कि प्रधानमंत्री के सचिव ने फोन करके बताया कि महामहिम को सम्मेलन में देर हो सकती है और कि हम उनके लिए इंतज़ार न करें। वे बाद में आकर लंच में शामिल हो जायेंगे।

जब हम वहां पहुंचे तो हमारी हैरानी की सीमा न रही जब हमने चाउ एन लाइ को हमारे स्वागत में अपने घर की सीढ़ियों पर इंतज़ार करते हुए देखा। पूरी दुनिया की तरह मैं भी यह जानने के लिए बेचैन था कि सम्मेलन में क्या हुआ। इसलिए मैं उनसे पूछ बैठा। उन्होंने विश्वास के साथ मेरा कंधा थपथपाया,'सब कुछ अच्छी तरह से तय हो गया है।' कहा उन्होंने,'बस पांच मिनट पहले।'

मैंने इस बारे में कई रोचक किस्से सुने थे कि किस तरह से कम्यूनिस्टों को तीसरे दशक में भीतरी चीन में काफी अंदर तक धकेल दिया गया था और किस तरह से माओ त्से तुंग के नेतृत्व में बिखरे हुए कम्यूनिस्ट एक साथ जुटे थे और जैसे जैसे वे पीकिंग की तरफ बढ़ते गए, कारवां बढ़ता गया। उन्होंने साठ करोड़ चीनी जनता का विश्वास वापिस जीता।

चाउ एन लाइ ने उस रात हमें माओ त्‍से तुंग की पीकिंग में जीत की मर्मस्पर्शी कहानी सुनायी। वहां पर दस लाख चीनी लोग उनके स्वागत में खड़े थे। एक बहुत बड़े मैदान के एक सिरे पर पंद्रह फुट ऊंचा एक बड़ा सा प्लेटफार्म बनाया गया था। जब वे पीछे से सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर आये तो सबसे पहले उनका सिर नज़र आया। लाखों लोगों ने पूरे गले से चिल्ला कर उनका स्वागत किया और जैसे जैसे वे पूरे नज़र आते गये, ये शोर बढ़ता ही गया। जब चीन के विजेता माओ त्से तुंग ने विशाल जन समूह देखा तो एक पल के लिए खड़े रह गये तब उन्होंने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढका और फूट फूट कर रोये।

चाउ एन लाइ ने चीन की प्रसिद्ध मार्च के दौरान उनके साथ कठिनाइयों और दिल तोड़ने वाली कई घटनाओं में सांझेदारी की और जब मैं उनके मेहनती खूबसूरत चेहरे की तरफ देख रहा था तो हैरान हो रहा था कि वे कितने शांत और ऊर्जावान दिखते होंगे।

मैंने उन्हें बताया कि पिछली बार मैं 1936 में शंघाई गया था।

'ओह, हां।' उन्होंने सोचते हुए कहा,'ये हमारे कूच पर निकलने से पहले की बात है।'

'हां, अब तो आपको इतनी दूर नहीं जाना,' मैंने मज़ाक में कहा।

डिनर के समय हमने चीनी शैंपेन पी (खास बुरी नहीं थी) और रूसी लोगों की तरह कई बार जाम टकराये। मैंने चीन के भविष्य के लिए जाम उठाया और कहा कि हालांकि मैं कम्यूनिस्ट नहीं हूं, मैं चीनी जनता और सब लोगों के लिए बेहतर ज़िंदगी के लिए उनकी आशाओं और इच्छाओं में पूरे दिल से उनके साथ हूं।

वेवेय ने हमारे नये दोस्त बने। इनमें से मिस्टर एमेल रोजियर और मिस्टर मिशेल रोजियर और उनके परिवार थे और सब के सब संगीत प्रेमी थे। मैं एमेल के ज़रिये कन्सर्ट पियानोवादक क्लारा हास्किल से मिला। वे वेवेय में रहती थीं और वे जब भी शहर में होतीं क्लारा और दोनों रोजियर परिवार डिनर पर हमारे घर आते और बाद में क्लारा हमारे लिए पियानो बजातीं। हालांकि वे साठ बरस की उम्र पार कर चुकी थीं, वे अपने कैरियर के शिखर पर थीं और उन्होंने यूरोप और अमेरिका दोनों जगह धूम मचा रखी थी। लेकिन 1960 में बेल्जियम में वे एक ट्रेन के पायदान से फिसल गयीं और उन्हें असप्ताल ले जाया गया जहां पर उनकी मृत्यु हो गयी।

कई बार मैं उनके रिकार्ड बजाता हूं। उनकी मृत्यु से पहले बनाये गये रिकार्ड। इस पांडुलिपि को छठी बार लिखने का काम शुरू करने से पहले मैं बिथोवन के पियानो कन्सर्टो नम्बर 3 को लगा देता हूं। इसमें क्लारा पियानो पर हैं और मार्केविच कन्डक्ट कर रहे हैं - ये मेरे लिए सत्य की पराकाष्ठा के इतने ही निकट होते हैं जितना कला का कोई अन्य महान कार्य हो सकता है और जो इस पुस्तक को पूरा करने के लिए मेरे लिए उत्साह का स्रोत रहा है।

अगर हम अपने परिवार के साथ ही इतने व्यस्त न होते तो स्विटज़रलैंड में हमारा बहुत अच्छा सामाजिक जीवन होता। हम स्पेन की रानी और काउन्ट और काउन्टेस्ट शेवरीउ द' आंतरेगुई के काफी नजदीक रहते थे और वे लोग हमारे प्रति बहुत अच्छी तरह से पेश आते थे। इनके अलावा, पड़ोस में बहुत सारे फिल्मी सितारें और लेखक रहा करते थे। हम अक्सर जॉर्ज और बेनिटा सैंडर्स से मुलाकात कर लेते हैं और नोएल कॉवर्ड भी हमारे पड़ोसी हैं। वसंत के दिनों में हमारे कई अमेरिकी और अंग्रेज़ दोस्त हमसे मिलने आते हैं। ट्रूमैन कपोते, जो कभी कभार स्विटज़रलैंड में काम करते हैं, अक्सर आ जाते हैं। ईस्टर की छुट्टिओं के दौरान हम बच्चों को दक्षिणी आयरलैंड ले जाते हैं। ये एक ऐसी यात्रा होती है जिसकी पूरा परिवार हर वर्ष राह देखता है।

गर्मियों में हम शॉर्ट्स पहने टैरेस पर खाना खाते हैं और रात दस बजे तक संध्या वेला की रोशनी देखते बाहर बैठे रहते हैं। अचानक ही हम लंदन और पेरिस और कई बार दो घंटों की आसान यात्रा की दूरी पर वेनिस या रोम जाने का फैसला कर लेते हैं।

पेरिस में पॉल लुईस वेलर अक्सर हमारी मेहमाननवाजी करते हैं। वे हमारे खास दोस्त हैं और वे अगस्त में हमारे पूरे परिवार को एक महीने के लिए मेडेटेरियन में अपनी खूबसूरत स्टेट ला रिने जेने में आमंत्रित करते हैं। वहां बच्चों के लिए तैराकी और वॉटर स्कीइंग के भरपूर मौके होते हैं।