Insaaniyat - EK dharm - 29 books and stories free download online pdf in Hindi इंसानियत - एक धर्म - 29 (3) 1.4k 4.3k तरह तरह के कयास लगाते रामु काका पांडेय जी के साथ पेड़ के नीचे छांव में खड़े थे । चंद समय में पांडेयजी ने पूरी हकीकत ज्यों की त्यों रामु काका के सामने बयान कर दी थी । पूरी कहानी सुनने के बाद रामु काका ने निराशा भरे स्वर में कहा ” वैसे साहब ! आप कह रहे हैं तो ठीक ही होगा लेकिन हमारा मन यह कभी नहीं मान पायेगा कि मुनिरवा ने ऐसा करने का कोशिश किया होगा जैसा आप बता रहे हैं । अब हकीकत तो वही बता पायेगा । …… ”अपनी बात को समर्थन मिलता नहीं देखकर पांडेय जी तिलमिला उठे थे ” तो तुमको हमारी बात का भरोसा नहीं है ? ”” काहें नहीं साहब ! आप कह रहे हैं तो बात ठीक ही होगी लेकिन हम उसके बारे में कैसे यकीन कर लें जिसको हम छोटे से लेकर आज तक देखते आये हैं और हमको उसकी एक भी गलती नहीं दिखी । किसी से कभी ऊंची आवाज में बात नहीं की ,किसी लड़की की तरफ नजर उठा कर नहीं देखा । यह तो हुई उसके चरित्र की बात । अब आप यह जो धरम करम की बात कह रहे हैं न इसके पीछे वजह होने की तो यह भी सरासर गलत है क्योंकि मुनीर हम लोगों के साथ इसी गांव में पला बढ़ा है और पूरे गांव में उसका सम्मान है । वह भी सभी का आदर करता है । हमारे घर में तो जब कभी पूजा का आयोजन होता है वह नौकरी से छुट्टी लेकर घर आ जाता है और पूजा की तैयारी में हमारे घर के सदस्य जैसे ही हाथ बंटाता है । अब बताइये ! मैं आपकी बात कैसे मान लूं ? ” रामु काका ने पांडेय जी को समझाना चाहा था ।” तो मैं गलत बोल रहा हूँ ? ” अब पांडेय जी का स्वर कठोर हो रहा था ।” अजी नहीं साहब ! मैंने कब कहा कि आप गलत कह रहे हैं । मैं तो अपनी आशंका जाहिर कर रहा हूँ कि जरूर आपसे कहीं न कहीं समझने में कुछ गलती हो रही है लेकिन ई मुनीर गया कहाँ ? ” रामु काका भी अब किसी जासूस की तरह कुछ सोचने के अंदाज में बोले ।” वही तो हम भी कह रहे हैं कि जब वो बेगुनाह है तो आखिर गायब क्यों है ? उसको खुद ही सामने आकर पूरी बात बतानी चाहिए । जब तक वह मिलकर सारी बात बता नहीं देता हम तो वही सही मानेंगे जो घटना के समय मौजूद लोग बताएंगे । ” पांडेय जी ने लोहा गरम देख एक और चोट कर दिया था ।रामु ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा ” कह तो आप ठीक रहे हैं साहब ! लेकिन जब बहु को ही नहीं पता कि वह कहाँ गया है तो फिर कैसे पता चलेगा कि वह कहां गया है । ”मुस्कुराते हुए पांडेयजी बोले ” वो तो हम पता लगा ही लेंगे कि वह कहां छिपा है । तुम बस उसकी बहु को इतना समझा दो कि हमसे झूठ न बोले और हम जो पुछ रहे हैं सही सही बताये । बस ! हमारी उससे पूरी सहानुभूति है । लेकिन अगर उसने कुछ चालाकी करने की कोशिश की तो …उसको समझा दो । अब जाओ ! हम अभी आते हैं । पांच मिनट में । ” कहकर पांडेयजी ने सिपाहियों को कुछ ईशारा किया । सिपाही तुरंत ही उसके पास आ गए । उनको साथ चलने का इशारा करते हुए पांडेयजी मुनीर के घर से विपरीत दिशा में चल पड़े ।गांव काफी बड़ा लग रहा था । पांडेय जी ने चलते चलते सिपाहियों को कुछ समझाया और फिर उन्हें जाने के लिए कहकर वापस मुनीर के घर वापस आ गए ।रामु काका ने शबनम को सिर्फ इतना ही बताया था कि रोड पर हुए एक हादसे में पुलिस को मुनीर के गवाही की आवश्यकता है बस इसीलिए मुनीर को पुलिस खोज रही है ताकि जांच में आसानी हो । अब कुछ भी छिपाने से कोई फायदा नहीं है ,साहब जो भी पूछें सही सही बता देना । अब शबनम रामु की बात को भला कैसे टाल सकती थी । वह उन्हें अपने पिता समान मानती थी और उनका सम्मान करती थी । वैसे भी उसके पास छिपाने को था ही क्या ?पांडेय जी को देखते ही लोगों की खुसर फुसर शांत हो गयी । कुर्सी पर बैठ कर अपना स्थान ग्रहण करते हुए पांडेय जी बोले ” मैं आपसे एक बार और निवेदन करता हूँ कि आप मुनीर के बारे में जो भी जानती हैं बता दीजिए ! ”” साहब ! आप मेरा यकीन क्यों नहीं कर रहे ? मुझे जो भी पता था सब आपको पहले ही बता चुकी हूं । ” शबनम रुआंसी हो गयी थी ।” ठीक है ! तो हमें ये बता दो कि यहां से जाकर वह कहां गया होगा ? कोई परिचित या रिश्तेदार ? ”” अब यह सब मैं कैसे बता सकती हूं साहब ! उनके मन में क्या चल रहा है मुझसे कुछ बताया भी तो नहीं ! ”” चलो ! तुम्हारी बात मान लिया ! अब अपने सारे रिश्तेदारों के नाम पता व फोन नंबर लिखा दो । परिचितों के भी । ” कहते हुए पांडेय जी डायरी खोलकर शबनम के शब्दों का इंतजार करने लगे ।अपने आंसू पोंछते हुए शबनम ने कहना शुरू किया ” रिश्तेदारों के नाम पर तो साहब उनका कोई सगा नहीं है । जो भी हैं यही रामु काका हैं । …”” क्या मतलब तुम्हारा ? अब तुम रिश्तेदारों का नाम बताने से भी बचने की कोशिश करने में झूठ बोल रही हो । ” पांडेय जी झल्ला उठे थे । ” लगता है शराफत की भाषा तुम्हें समझ में नहीं आ रही है । ”” लेकिन मैं तो शराफत से ही आपको सब सही सही बता रही हूं । ” अब तक शबनम भी सहज हो गयी थी और उसके शब्दों में भी ढिठाई आ गयी थी ” यकीन न हो तो यहीं खड़े हैं रामु काका पुछ लो । ”पांडेय जी को कुछ पुछने की जरूरत नहीं पड़ी । रामु खुद ही आगे बढ़कर कहने लगा ” बहु सही कह रही है साहब ! मुनीर का इस दुनिया में कोई नहीं है सिवा इस बहु और इसके परिवारवालों के । वह अनाथ है साहब ! बहुत छोटा सा था वह यही कोई लगभग सात या आठ साल का , जब कहीं से भटकते हुए इस गांव तक आ पहुंचा था । और फिर इसी गांव का होकर रह गया । जाने दीजिए साहब ! बहुत लंबी कहानी है । आप नहीं सुन पाएंगे । आप बस इतना समझ लीजिए यह गांव ही उसका सब कुछ है । वह धर्म से भले ही मुस्लिम है लेकिन वह हमारा बेटा है , पुरे गांव वालों का बेटा है । अब वह अनाथ नहीं है साहब ! ”उन्हें शांत कराते हुए पांडेयजी बीच में ही बोल पड़े ” ठीक है ठीक है ! चलो ! उसकी ससुराल का ही पता बता दो । फोन नंबर भी हो तो और अच्छा ! ”शबनम झपटकर घर में से फोन उठा लायी और पांडेय जी को देते हुए बोली ” ये लीजिये साहब ! इसमें मेरे अब्बू का फोन नंबर है । आप अभी बात कर लीजिए । मुझे भी तो पता चले कि जनाब वहां क्या कर रहे हैं । ”अचानक डपटते हुए पांडेय जी चीख पड़े ” बस ! अब और बकवास नहीं ! तुमसे जितना पुछा जाए उतना ही बताओ । अभी तुरंत हम क्या बात कर लें ? हमें बेवकूफ समझी हो क्या ? अभी इतना जल्दी वह वहां थोड़े ही न पहुंच जाएगा । ”पांडेय जी की चीख रामु काका के साथ ही गांववालों को भी नागवार गुजरी थी । सर्द स्वर में रामु काका ने शब्दों को चबाते हुए कहा ” हम गांव वाले सीधे सादे लोग हैं साहब । वर्दी और अपने संस्कार के नाते तुम्हारी इज्जत कर रहे हैं । इसका ये मतलब नहीं कि हमारी कोई इज्जत नहीं । तुम हमारे सामने ही हमारी बहु को डपट दो । ये हम कभी बरदाश्त नहीं करेंगे । ” फिर मुड़कर शबनम को हुक्म सा देते हुए बोले ” बहू ! तुम अंदर जाओ । हम देखते हैं इन साहब जी को । देखते हैं ये क्या करते हैं हमारा । लगता है ये साहब खुद ही शराफत की भाषा भुल गए हैं । अब इनको भी कानून की भाषा में समझाना पड़ेगा । जाओ अंदर ! और चिंता ना करो । अभी तुम्हारा रामु काका और ई गांव वाले जिंदा हैं । ”अचानक रामु काका के साथ ही गांव वालों के बदले हुए तेवर देखकर पांडेय जी का सारा पुलिसिया जोश ठंडा पड़ गया । अब क्या करें ? मुनीर के ससुराल और रिश्तेदारों का कैसे पता करें ? इस सवाल पर पांडेय जी अभी माथापच्ची कर ही रहे थे कि अपने दोनों सिपाहियों को वापस आता देखकर पांडेय जी के जान में जान आयी । ‹ Previous Chapterइंसानियत - एक धर्म - 28 › Next Chapterइंसानियत - एक धर्म - 30 Download Our App More Interesting Options Hindi Short Stories Hindi Spiritual Stories Hindi Fiction Stories Hindi Motivational Stories Hindi Classic Stories Hindi Children Stories Hindi Comedy stories Hindi Magazine Hindi Poems Hindi Travel stories Hindi Women Focused Hindi Drama Hindi Love Stories Hindi Detective stories Hindi Moral Stories Hindi Adventure Stories Hindi Human Science Hindi Philosophy Hindi Health Hindi Biography Hindi Cooking Recipe Hindi Letter Hindi Horror Stories Hindi Film Reviews Hindi Mythological Stories Hindi Book Reviews Hindi Thriller Hindi Science-Fiction Hindi Business Hindi Sports Hindi Animals Hindi Astrology Hindi Science Hindi Anything राज कुमार कांदु Follow Novel by राज कुमार कांदु in Hindi Fiction Stories Total Episodes : 49 Share NEW REALESED Fiction Stories ફરેબ - ભાગ 16 (છેલ્લો ભાગ) H N Golibar Love Stories તારી સંગાથે - ભાગ 1 Mallika Mukherjee Classic Stories દરિયા નું મીઠું પાણી - 23 - એકલી માતા Binal Jay Thumbar Fiction Stories શાપુળજી નો બંગલો - 1 anita bashal Film Reviews SALAAR - PART 1 CEASEFIRE મારી નજરે ? 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