Mrityu Bhog - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

मृत्यु भोग - 1

मूर्ति को दुकान में एक ही बार देखकर प्रताप को बहुत पसंद आया । पर जब उसे ध्यान से देखा ….


पार्क स्ट्रीट के इस क्युरिओ के दुकान पर प्रताप अक्सर आता है , दुकान के मालिक मुकेश अग्रवाल के साथ कुछ देर बात चीत करता और कुछ चीजें देखता , अगर पसंद होता तो घर ले जाता । मुकेश के साथ इन कुछ सालों में अच्छी दोस्ती हो गयी है प्रताप को , दोनों बैचलर भी हैं । मुकेश का उम्र 32 का और प्रताप का 30 ।

मुकेश अग्रवाल केवल नाम से ही मारवाड़ी है , पांच पुरखों का वास इसी कोलकाता शहर में ही है । तुरंत एक बार बात करने और देखने पर लगता है कि मनिकतला की गली से पान खाते खाते , बगल में बैग दबाए किरानागिरी करने जाते एक बंगालीबाबू ।
प्रताप और मुकेश के बीच का ये संबंध दुकानदार और
ग्राहक के साधारण बातचीत से बहुत ज्यादा बढ़कर है ।
उधारी तो है ही समय देखकर बार में बैठकर शराब पीना , शनिवार को कभी - कभी रेसकोर्स में घोड़ों की रेस देखना , सब ही चलता है । मुकेश के और दो सदगुण हैं । पहला पैसा के लिए प्रताप को कभी भी परेशान नही करना और दूसरा चार पैग के बाद यह आदमी बहुत उदार हो जाता है और कुछ भी हो प्रताप को बार का पैसा नही देने देता ।
आज अक्टूबर का अंतिम शनिवार है ऑफिस से घर लौटते समय आज भी आया था प्रताप , कुछ देर बातचीत कर मेट्रो से नेताजीनगर अपने घर लौट जाएगा यही प्लान था । वैसे भी प्रताप अकेला ही है , जवानी में कदम रखते ही मां बाप चल बसे इसीलिए घर जाने की कोई जल्दी नही रहती । बूढ़ी काम करने वाली पुष्पा दीदी के अलावा प्रताप के तीन कुल में कोई नही है । पुष्पा रानी इस घर में काम करने तब आयी
थी जब प्रताप का जन्म हुआ था , तब से रह गईं है यह अच्छी औरत पुष्पा दीदी होकर । इसीलिए कभी भी किसी भी समय घर लौटने की इस स्वाधीनता को अच्छे से स्वीकार किया है प्रताप ने । मां और पिताजी दोतल्ला घर और अच्छा खासा बैंक बैलेंस रख कर ही स्वर्ग सिधारे , पैसे की कोई ज्यादा समस्या प्रताप को नही है । वह खुद भी कंज्यूमर गुड्स कंपनी के ट्रेड मार्केटिंग के पद पर काम करता है , महीने की सैलरी भी खराब नही है । और वह इंसेंटिव तो है ही , उसका स्वभाव चरित्र अच्छा है , आसपास के पड़ोसी उसे प्यार करतें हैं , रास्ते में मिलने पर उसका हाल चाल
पूछतें हैं । बार्सिलोना , पॉलिटिक्स , ईस्टबंगाल फुटबॉल
, सिनेमा यह सब लेकर प्रताप सुखी ही है । प्रताप का शौक केवल एक ही है एंटीक क्युरिओ को खरीदना ।
उसका मासिक पैसा ही इन कुछ पुराने चीजों को खरीदने में चला जाता है । वैसे बहुत ज्यादा मंहगा कुछ नही यही कोई पुराना टेबल घड़ी या पुराना अफ्रीकन मुखौटा , और आजकल मन झुका है एंटीक मूर्ति खरीदने के ऊपर । घर का एक कोना खाली है इसीलिए सोच रहा है बढ़िया सा अगर एक मूर्ति मिला तो उसे खरीदकर टेबल पर सजा के रखेगा ।
तभी मूर्ति को दुकान में देखते ही बहुत पसंद आ गया
प्रताप को , एक हाथ लम्बा पीतल की बनी देवी मूर्ति ।
पूरी मूर्ति का शरीर नीले रंग का , मुकट पर अलग अलग
तरह की डिजाइन देखकर लग रहा है कोई तिब्बती बौद्ध देवी मूर्ति है । और ठीक से देखने के लिए , मूर्ति के पास जाकर मोबाइल का फ्लैश जला उसे ध्यान से देखा । देवी मूर्ति ही है , कमल के ऊपर बैठी हुई हैं देवी , दाहिना पैर नीचे की तरफ बायां पैर मुड़कर दाहिने घुटने के अंदर डाली गई । देवी के चार हाथ हैं । नीचे के बाएं हाथ में वीणा पकड़े हुए हैं , दाएं हाथ अभय या आशीर्वाद मुद्रा में है । बौद्ध धर्म में सरस्वती की पूजा भी होती थी क्या ? प्रताप सोच में पड़ गया । धीरे धीरे आंख को ऊपर लाया , और ऊपर के
दोनों हाथ देखते ही हिल सा गया प्रताप ।
ऊपर के दाहिने हाथ में खड्ग और बाएं हाथ में नर खोपड़ी । प्रताप ने आजतक ऐसे अद्भुत कॉम्बिनेशन की मूर्ति एक भी नही देखी है ।
एक ही साथ खड्ग , खोपड़ी और वीणा । देवी के चेहरे पर शांत सी मुस्कान , नशापूर्ण नयन और अत्यंत आवेदनमयी शरीर , एक सुगंधित हवा पूरे मूर्ति में समाया हुआ । प्रताप ने ऐसी शांत सृंगार रस की बेहतरीन प्रकाश आज तक नही देखी ।
तृप्त होकर उठा प्रताप , मुख को देखकर ही लग रहा
था कि उसे यह मूर्ति बहुत पसंद आयी है ।
मोबाइल को जेब में रखकर बोला प्रताप – " ह्म्म्म ,
भाई मुकेश कैसा दाम रखा है इसका , भाई जेब मत
काटना ।"
मुकेश खींझकर बोला – " हाँ साले तेरा जेब काटके जैसे मैं राजा बन जाऊंगा , फोकटिये लेगा तो एक टूटी हुई घड़ी कहीं कुछ सुई सा फिर भी किस बात की कमाकमी । देख भाई साफ बोल रहा हूँ अच्छा समान होने पर कोई छोड़ नही है । "
बोलते बोलते इधर ही आ रहा था मुकेश , और मूर्ति
को देखते ही रुक गया और बोला – " क्या यही
पसंद आया तुझे ?"
प्रताप बोला – " हां यही पसंद आया , कोई परेशानी
है तुझे ।"
यह बात प्रताप हँस कर बोला था पर मुकेश के मुख
को देखकर गंभीर हो गया । और बोला – " क्या हुआ ?
इतना गंभीर क्यों हो गए । कोई गड़बड़ी है इस मूर्ति में ।"
जेब से मुकेश दो सिगरेट निकाल एक प्रताप को देकर और एक जलाते हुए प्रताप को पूरा नाप लिया । बहुत ही प्रैक्टिकल चालू आदमी है मुकेश ये सब नाटक करके कहीं दाम तो नही बढ़ा रहा ।
" मूर्ति को तू ऐसे ही ले जा , ठीक है । बात ये है मैंने इसे खरीदा नही है ।एक आदमी ने दे दिया मुझे ऐसे ही कोई पैसा नही लिया । पता नही किसकी मूर्ति है मुझे भी नही पता । सोचा एक बार प्रोफेसर जगदीश भट्टाचार्य के पास ले जाऊं उन्हें तो तिब्बती मूर्ति के बारे में अच्छी जानकारी है पर जब वहां पहुँचा तो पता चला वो बहुत दिन पहले ही रिटायर्ड हो गए । अब सोच रहा हूँ कहाँ दिखाऊँ , ठीक से न जानते हुए कैसे दाम बताऊं ।"

प्रताप बोला – " क्या इधर उधर बोल रहा है , ये बता
ये मूर्ति कहाँ से मिला ।"
फिर मुकेश बताया – " लास्ट वीक मैं बमनगछिया गया
था , खबर यह थी कि एक पुराना जमींदार का घर तोड़ा
जा रहा है । पुराना मतलब यही कोई छह सौ वर्ष पुराना
स्ट्रक्चर , प्रति सौ - सौ वर्षों में घर को रिमॉडलिंग और
ठीक करके जमींदार परिवार वहीं हैं छह सौ वर्ष से । तो प्रजेंट जो उस घर का मालिक है नारायण चक्रवर्ती उनका एक लड़का और एक लड़की हैं । लड़की रहती है U.S.A में और लड़का एक सॉफ्टवेयर कंपनी में खूब ऊंचे पोस्ट पर है और वैसी ही महीने की सैलरी ।
साउथ सिटी में पंद्रह सौ स्क्वायर फीट की फ्लैट समझे ।
कुछ दिन पहले ही नारायण चक्रवर्ती स्वर्ग सिधार गए U.S.A से लड़की और दामाद , कोलकाता से लड़का
और बहू और उनके लड़के लड़कियां सब आकर यहां
एकजुट हुए । तेरही पर पास के दस गांवों को भोजन करा कर चक्रवर्ती परिवार का मान बढ़ाया ।
अब बात ये आयी कि इतने बड़े जायदाद को कौन संभाले तो इसीलिए लड़का और दामाद ने फैसला किया कि इसे बेंच दिया जाए और एक दलाल को लगा दिया । कुछ ही दिन में खरीददार हाजिर कई करोड़ो का डील भाई । वो जो दलाल था वो था मेरा रिश्तेदार भाई वही मुझे उस जमींदार के घर ले गया । तुम्हें तो पता ही है बंगाल के ये सब पुराने जमींदारों
के घर एंटीक और क्युरिओ से भरे रहतें हैं ।
तो मैं दलाल के भाई होने के दिखावे से खूब सारा समान कम दाम में ही पा गया मैं जब पैसा देकर आ रहा हूँ उसी समय उनके जो पूजा करने वाले ब्राह्मण उन्होंने आकर मेरे सामने इस मूर्ति को रखा ।और बोले इसको ले जाओ पैसा देने की कोई जरूरत नही ।"
इतना सब कुछ बोल मुकेश रुका प्रताप बोला – " क्या
कहते हो? उनका सामान ब्राह्मण महाजन ने आकर ऐसे ही दे दिया । वो लोग कुछ नही बोले ।"
कुछ देर सोच कर मुकेश बोला – " मैंने जितना समझा ये पुजारी ब्राह्मण बहुत पहले से ही इस घर से जुड़े हुए हैं । इनके पूर्वज भी इसी घर में ही शायद पूजा करते चलें आ रहें हैं तो उनका सम्मान तो करेंगे ही ।
दामाद ने एक बार कहा था कि इतनी एंटीक मूर्ति फ्री में देना ठीक है क्या ? पर लड़की ने उन्हें शांत करा दिया और कहा बड़ेपिताजी जो करेंगे वो ठीक है । मैं समझ गया कि इस ब्राह्मण महाजन को वो लोग खूब रेस्पेक्ट करतें हैं । "
फिर रुका मुकेश …
प्रताप बोला – " अच्छा ठीक है तुम्हें यह फ्री में मिला।
अब बात ये है कि जरूर इसकी पूजा नही होती थी क्योंकि पूजा की जाने वाली मूर्ति कोई बेचता नही और किसी को ऐसे ही देता भी नही । देने पर या तो मंदिर में देते हैं या किसी के घर में , क्योंकि जिससे पूजा चालू रहे ।पर इस एंटीक मूर्ति को तुमको फ्री में देने का कारण उनसे नही पूछा । "
कुछ देर सोचकर मुकेश बोला – " एक बात क्या है पता
है , या मेरा भूल ही होगा । वहां के बाकी सभी काम करने
वाले मूर्ति को अनदेखा कर रहे थे बल्कि घर के लोगों के
चेहरे पर भी एक भय उस मूर्ति के प्रति था वो उसे दूर
करना चाहते थे । ब्राह्मण के अलावा उस मूर्ति को किसी ने नही छुआ । वो रख दिये और मैं लेकर चला आया ।
जब मैं उस मूर्ति को ला रहा था तब मैंने देखा कि ब्राह्मण
ठाकुर कुछ धीरे धीरे मंत्र पढ़ रहें हैं । लाते वक्त मुझे कुछ अच्छा नही लगा , समझे ।"
कुछ देर सोचकर प्रताप बोला – " बात ये है कि कुछ
भयंकर है यह मूर्ति , तभी वो ऐसा कर रहे थे । ग्रामीण लोग तो कुछ ज्यादा ही अंधविश्वास से भरे होते है , मैं इस मूर्ति को ले जाता हूँ , रुपया पैसा जो है वो तुम जो कहोगे मैं दे दूंगा ठीक ।"
हँसकर मुकेश बोला – " तुम लेकर जाओ , तुम्हारे साथ
पैसा का संबंध थोड़ी न है मेरा जब जो मन करे दे देना ।पर सावधानी से रखना भाई , मुझे न जाने कैसा लगता है इस मूर्ति को देखकर । "
प्रताप खूब जोर से हंसा और बोला – " इस उम्र में भी
डरते हो यार , दिस इज जस्ट ए स्टेच्यू माई फ्रेंड । "
मुकेश बोला – " फिर भी किसी पुजारी को दिखा देना ।
देखो इसी में मुझे एक बात याद आ गयी , उनके घर वो जो पुजारी थे वो कोई मामूली ऐसे वैसे पुजारी ब्राह्मण नही हैं । वहां से आते वक्त मुझे मेरे रिश्तेदार भाई ने बताया था कि वो एक विशिष्ट वो हैं । समझे वहीं नही उनके पिता , दादा सब विशिष्ट अनुयायी प्रसिध्द वों थे ।"
प्रताप मुँह टेढ़ा करके बोला – " वों मतलब "
मुकेश धीरे से फिसफिसकर बोला – " तांत्रिक , वो सब
वहां के बहुत प्रसिद्ध तांत्रिक , समझे ।"...


अगला भाग क्रमशः ।।


@rahul