Insaaniyat - EK dharm - 38 books and stories free download online pdf in Hindi इंसानियत - एक धर्म - 38 (3) 1.3k 4k मुनीर बड़ी देर तक उस उद्यान की मखमली घास पर बैठा पुलिस की गिरफ्त में आने से बचने के उपाय सोचता रहा । वह कई योजनाओं पर विचार कर चुका था लेकिन उसे अपनी हर योजना में कोई न कोई खामी नजर आ रही थी । अंततः उसने काफी देर की सोच विचार के बाद यह तय किया कि सबसे पहले इस शहर से सही सलामत निकल लिया जाए ।उद्यान से निकलकर वह एक बार फिर सड़क पर आ गया और अनायास ही उसके कदम एक तरफ मुड़ गए । दिन के ग्यारह ही बजे होंगे लेकिन सूरज एकदम सिर पर आया हुआ प्रतीत हो रहा था । भरी दुपहरिया जैसा वातावरण तप रहा था । सड़क के किनारे लगे पेड़ों की छांव में चलते हुए भी मुनीर की कमीज पसीने से तरबतर हो गयी थी । और ऐसी ही भीषण गर्मी के माहौल में चलते चलते मुनीर वापस बस अड्डे पर ही पहुंच गया था । बस अड्डे से लगे हुए ढाबे पर छोटा सा टेलीविजन चालू था । समाचार की आवाज सुनकर मुनीर ठिठक कर रुक गया और खबरों की तरफ ध्यान देकर सुनने लगा । अपने उच्चतम आवाज में एक स्थानीय समाचार चैनल के एंकर की आवाज गूंज रही थी ‘ अभी आपने देखा प्रतापगढ़ रामपुर हाईवे पर हुए नृशंष हत्याकांड का आंखों देखा हाल ‘ । सूत्रों के हवाले से खबर है कि इस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त को गिरफ्तार कर लिया गया है और आज ही दोपहर बाद उसे अदालत में हाजिर किया जाएगा । इस खबर से संबंधित पल पल की खबर हम आपको देते रहेंगे । आप देखते रहिये ..…ताजा न्यूज़ ! ‘ समाचार सुनकर मुनीर को पुरी तरह से यकीन हो गया कि मुख्य अभियुक्त असलम ही होगा जिसे गिरफ्तार कर लिया होगा । उसे अदालत में पेश करके रिमांड पर लेने के बाद पुलिस हाथ धोकर उसके पीछे लग जायेगी । उसके लिए यही सुनहरा मौका है जब वह यहां से किसी अनजान जगह के लिए फरार हो सकता है और शायद बचा भी रह सकता है । इस विचार के आते ही मुनीर नजदीक ही स्थित बस अड्डे में घुस पड़ा । एक सरकारी बस रवाना होने की तैयारी में ही थी । मुनीर वहां से कहीं भी जल्द से जल्द निकल जाना चाहता था सो उसने यह भी देखने की जहमत नहीं उठाई कि आखिर वह बस कहाँ जाएगी । उसके बैठने के साथ ही कंडक्टर भी बस में सवार हो गया । चालक पहले ही अपनी कुर्सी संभाल चुका था । उसके ईशारा करते ही चालक ने बस आगे बढ़ा दिया । पुरानी कबाड़ा बस चलते ही जाड़े में कांप रहे किसी बुड्ढे के दांत की तरह बजने लगी । बस अड्डे से बाहर निकलते ही मानो बस चालक को कहीं जाने की बहुत जल्दी हो उसी अंदाज में बस को अंधाधुंध दौड़ाने लगा । सभी सवारी शायद इसके अभ्यस्त रहे हों बड़ी धीरज से अपनी अपनी कुर्सी को थामे हुए बैठे रहे । कुछ ही देर में बस शहर की सीमा से बाहर आ गयी । तभी बस का कंडक्टर मुनीर के सामने पहुंच गया ।” कहाँ जाना है ? ” कंडक्टर का सीधा सा सवाल भी मुनीर को परेशान कर गया क्योंकि उसने तो जल्दबाजी में यह भी नहीं देखा था कि जिस बस में वह बैठ गया है वह कहां तक जाएगी । तभी खिड़की से बाहर झांकते हुए सामने ही एक रेलवे स्टेशन दिखाई पड़ गया । देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी । ठेठ देहाती अंदाज में बोला ” अब कहाँ जाना है साहब ! जहां जाना था अब वहां तो हम पहुंच ही गए हैं । बस अपनी गाड़ी थोड़ी देर के लिए रोक ले और हमें यहीं उतर जाने दे । इस रेलवे टेशन पर । ”” ठीक है ठीक है । चल दस रुपये निकाल , टिकट के । ” कंडक्टर ने उससे पैसे मांगते हुए बस रोकने के लिए सीटी बजा दी थी ।” अब हम टिकट लेकर क्या करेंगे ? ये ले पांच रुपये ! बहुत होते हैं इत्ती दूर के लिए । रख ले चाय वाय पी लेना । ” तब तक बस रुक चुकी थी । बस के रुकते ही मुनीर नीचे उतर गया ।उसके उतरते ही बस आगे बढ़ गयी और मुनीर बढ़ गया रेलवे स्टेशन की तरफ जो मुख्य सड़क से हटकर थोड़ी दूर था । मुख्य सड़क से एक छोटी सी सड़क स्टेशन की तरफ जा रही थी । मुनीर उसी सड़क पर चलने लगा । दरअसल यह प्रतापगढ़ रेल्वे स्टेशन था जो शहर की सीमा से थोड़ा हटकर शहर से बाहर था । दिन भर में गिनती की गाड़ियों की आवाजाही की वजह से इस स्टेशन के आसपास का क्षेत्र भी काफी सुनसान व निर्जन जैसा ही था ।जिस समय मुनीर वहां पहुंचा कोई पैसेंजर ट्रेन आनेवाली थी । उसने पता किया । यह ट्रेन विलासपुर जानेवाली थी जो कि वहां से लगभग दो सौ किलोमीटर दूर था । चूंकि ट्रेन का समय हो चुका था व लाइन क्लियर हो चुकी थी नियमों के अनुसार टिकट खिड़की बंद हो चुकी थी ।मुनीर के लिए यह भारी परेशानी का कारण था । टिकट न होने की वजह से यदि वह यह ट्रेन छोड़ देता तो अगली ट्रेन उसे लगभग छह घंटे बाद मिलनी थी । अभी वह सही या गलत कुछ सोच भी नहीं सका था कि तेज सिटी मारती ट्रेन उस स्टेशन के एकमात्र प्लेटफॉर्म पर आकर रुक गयी ।प्लेटफॉर्म पर तो गिने चुने लोग ही नजर आ रहे थे लेकिन ट्रेन में भीड़ काफी नजर आ रही थी ।‘ जो होगा देखा जाएगा ‘ सोचकर मुनीर बिना टिकट ही ट्रेन में सवार हो गया । वर्दी की धौंस दिखाकर बस वगैरह में बिना टिकट के सफर करना तो उसके लिए आसान था लेकिन पहली बार ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करने के अहसास ने ही उसके हृदय की धड़कन बढ़ा दी थी ।किसी तरह डिब्बे में प्रवेश कर चुके मुनीर ने डिब्बे का एक जायजा लिया जो बेतरतीब ठूंसे हुए लोगों से भरा हुआ था । मुनीर खुद भी अपने आपको चारों ओर से दबा हुआ महसूस कर रहा था । इस दबाव की स्थिति से बचने के लिए मुनीर बलपूर्वक एक तरफ बढ़ने की कोशिश करने लगा । आगे बढ़ते हुए मुनीर डिब्बे के एक तरफ बने दोनों शौचालयों के बीच की जगह में आ गया । यहां अपेक्षाकृत राहत थी । मुनीर बड़ी देर तक वहीं खड़ा रहा । ट्रेन अपनी सधी हुई गति से भागती रही और समय भी अपने प्रवास पर निरंतर आगे बढ़ रहा था । चलते चलते ट्रेन अचानक कहीं रुक जाती । बगल की पटरी पर से कोई तेज गाड़ी धड़धड़ाती हुई गुजर जाती । कुछ देर बाद यह ट्रेन भी पटरी पर रेंगने लगती । इसी तरह तीन छोटे स्टेशन गुजर चुके थे लेकिन मुनीर सहित शौचालय के गलियारे में खड़े किसी भी यात्री को ट्रेन की सही स्थिति का पता नहीं चल रहा था । ट्रेन में चढ़ने वाले यात्रियों की शोरगुल व नोकझोक से उन्हें अंदाजा लग जाता कि शायद कोई स्टेशन आया है ।लघुशंका की आवश्यकता महसूस होने पर मुनीर ने एक शौचालय का दरवाजा खटखटाया । लेकिन वह शायद अंदर से बंद था । कुछ देर की प्रतीक्षा के बाद उसने बेतरतीब शौचालय के दरवाजे को पीटना शुरू किया । थोड़े से प्रयास के बाद ही शौचालय का दरवाजा खुलने की आवाज आई । अंदर का दृश्य देखकर मुनीर का कलेजा मुंह को आ गया । ‹ Previous Chapterइंसानियत - एक धर्म - 37 › Next Chapterइंसानियत - एक धर्म - 39 Download Our App More Interesting Options Hindi Short Stories Hindi Spiritual Stories Hindi Fiction Stories Hindi Motivational Stories Hindi Classic Stories Hindi Children Stories Hindi Comedy stories Hindi Magazine Hindi Poems Hindi Travel stories Hindi Women Focused Hindi Drama Hindi Love Stories Hindi Detective stories Hindi Moral Stories Hindi Adventure Stories Hindi Human Science Hindi Philosophy Hindi Health Hindi Biography Hindi Cooking Recipe Hindi Letter Hindi Horror Stories Hindi Film Reviews Hindi Mythological Stories Hindi Book Reviews Hindi Thriller Hindi Science-Fiction Hindi Business Hindi Sports Hindi Animals Hindi Astrology Hindi Science Hindi Anything राज कुमार कांदु Follow Novel by राज कुमार कांदु in Hindi Fiction Stories Total Episodes : 49 Share NEW REALESED Fiction Stories PATH OF THE WARRIOR - PART 1 Kumar Venkat Thriller A Gambling Man - Chapter 4 Utopian Mirror Fiction Stories New Start of Lovestory - Episode 50 Anjali Lingayat Love Stories Without you - 8 TOXIC Horror Stories The Bloody Queen anita bashal Fiction Stories Wings Of Friendship - Part 3 Tapan Oza Thriller One Good Deed - Chapter 3 Utopian Mirror Fiction Stories My Blind Date Was My Boss - 2 jiaqing yang Thriller A Gambling Man - Chapter 3 Utopian Mirror Short Stories True Timelines of World History Khandaker Sakib Farhad