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फाँसी के बाद - 13

(13)

“यह भी एक दिलचस्प और रहस्यपूर्ण कहानी है । जब उसके दोनों रिश्तेदार उसकी लाश लेकर चले थे तो हमारे दो आदमी उनके पीछे लग गये थे । देखना यह था कि वास्तव में वह दोनों कौन है और लाश कहां ले जा रहे हैं । मगर देखने में दिहाती लगने वाले वह दोनों हमारे आदमियों को डाज दे गये । हमारे दोनों आदमी अपनी मूर्खता और अयोग्यता का समर्थन कर रहे हैं । उनका बयान है कि देखने में वह दोनों दिहाती मालूम होते थे मगर इतने चालाक फुर्तीले थे कि देखते ही देखते इस प्रकार न जाने किस प्रकार और कहां गायब हो गये कि काफी तलाश करने के बाद भी उनका सुराग न मिल सका ।”

इसके साथ ही संबंध भी कट गया और अमर सिंह रिसीवर रखकर जगदीश की ओर देखने लगा जिसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं । फिर उसने जगदीश से कहा ।

“एक साधारण से अपराधी के सामने हम कितने विवश हैं ।”

“तुम उसे साधारण अपराधी कह रहे हो ?” – जगदीश ने कहा – “वह आदमी नहीं वरन भूत है । पहले जेल से फरार होता था और अब फांसी पा चुकने के बाद भी जीवित है और हमारे लिये मुसीबत बना हुआ है ।”

“ऐसे ही अवसरों पर कर्नल विनोद की याद आती है और उनका महत्त्व मालूम होता है ।” – अमर सिंह ने कहा – “पता नहीं क्यों लंदन चले गये ।”

“उनकी बातें वही जानें ।”

“तो फिर अब का करना है ?”

“झक मारना है !”

अचानक उसी समय मोटर साइकल की घडघडाहट सुनाई दी और फिर सरला नजर आई । वह मोटर साइकल से उतरकर बड़ी तेजी से उन दोनों की ओर बढ़ी । वह दोनों ही उसे भलीभांति जानते पहचानते थे । दोनों ने उसे देखकर यही समझा था कि वह रमेश के बारे में सुचना देने आई होगी, इस लिये वह जैसे ही उनके निकट आई वैसे ही जगदीश ने कहा ।

“मुझे सूचना मिल चुकी है ।”

“और फिर भी आप इतने इत्मीनान से बैठे हुए हैं ?” – सरला ने कहा ।

“तो क्या करूँ ?” जगदीश ने बेबसी के साथ कहा ।

“आंय !” – सरला ने विस्मय भरे स्वर में कहा । फिर पूछा – “आपको क्या सूचना मिली थी ?”

“रमेश के अपहरण की ।”

“वह तो पुरानी खबर है । इस समय वह पार्क अविन्यु के बारह नंबर वाले फ्लैट में है । वही नहीं, बल्कि बहुत सारे लोग हैं ।”

“अरे !” – कहता हुआ जगदीश उठा । फिर अमर सिंह से बोला – “तुम चले जाओ । मुझे तो एस.पी. साहब की प्रतीक्षा करनी है । वह आ ही रहे होंगे ।”

“आपको यह बात कैसे मालूम हुई ?” – अमर सिंह ने सरला से पूछा ।

“समय कम है, जल्दी कीजिये । मैं मार्ग में बता दूँगी । अगर देर हुई तो वह इमारत भी उड़ा दी जायेगी और वहां मौजूद लोगों में से कोई न बच सकेगा ।”

फिर अमर सिंह ने देर नहीं की । कुछ सिपाहियों को साथ लिया और जीप में बैठकर रवाना हो गया । सरला भी साथ थी । उसने अपनी मोटर साइकल कोतवाली ही में छोड़ दी थी ।

“कल बारह बजे रात में रनधा ने हाथों मैं अपने ही फ्लैट के कमरे में बंद कर दी गई थी ।”

सरला ने अमर सिंह को बताना आरंभ किया – “सवेरे छः बजे मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे हाथ-पाँव आजाद है । मैं मसहरी पर उठकर बैठ गई । फिर मेरी नजर उस कार्ड पर पड़ी जो सिरहाने रखा हुआ था । मैंने उसे उठाकर देखा । उस पर केवल इतनी ही इबादत लिखी हुई थी : पार्क अविन्यु, फ्लैट नंबर बारह । मेरी समझ में आ ही नहीं रहा था कि वह कार्ड किसने रखा था और रखने वाले का ध्येय क्या था । कुछ देर तक मैं यह सोचती रही कि मुझे का करना चाहिये । फिर मैंने गैराज से मोटर साइकल निकाली और पार्क अविन्यु पहुंच गई । वहां मैंने कुछ ऐसे लोगों को देखा जो मुझे बहुत खतरनाक किस्म के आदमी मालूम हुए थे । मैं सोचने लगी कि अब मुझे क्या करना चाहिये । क्या मैं बारह नंबर के फ्लैट में दाखिल हो जाऊं ? – कुछ निर्णय ही नहीं कर पा रही थी कि मैंने एक बूढ़े आदमी को अपनी ओर आते हुए देखा । वह मेरे निकट आकर खड़ा हो गया । जब मैंने उससे पूछा कि वह कौन है और मुझसे क्या चाहता है तो वह कहने लगा कि वह यहां का चौकीदार है । उसके बाद बताने लगा कि कल रात उसने थोड़ी थोड़ी देर के बाद एक कार को चार बाद यहां आते, रुकते और जाते हुए देखा था । पहलीबार कार से केवल एक आदमी उतरा । दूसरी बार दो आए थे । तीसरी बार एक लड़की उतरी थी और चौथी बार चार आदमी उतरे थे । इसका यह अर्थ न समझ लेना बीबी जी कि वह ख़ुद से उतरे थे, बल्कि उतारे गए थे । और सब के सब बारह नंबर वाले फ्लैट में ले जाए गये थे । मगर अब तक मैंने उनमें से किसी को भी फ्लैट से बाहर निकलते हुए नहीं देखा । बस फिर मैं सीधे कोतवाली पहुंच ही गई थी ताकि इन्स्पेक्टर जगदीश साहब तक यह सूचना पहुंचा दूं ।”

“सवाल यह है कि उस बूढ़े आदमी ने आपको यह सब क्यों बताया था ?” – अमर सिंह ने पूछा ।

“उस समय तो मुझे होश नहीं था मगर अब उससे अवश्य पूछूंगी कि उसने यह सारी बातें मुझे क्यों बताई थीं ।” – सरला ने व्यंग भरे स्वर में कहा ।

अमर सिंह ने फिर कुछ नहीं पूछा । सरला भी मौन ही रही ।

बारह नंबर फ्लैट के सामने पहुंचकर अमर सिंह ने जीप रोकी और अपने आदमियों के साथ धड़धड़ाता हुआ ऊपर पहुंच गया । दरवाजा भिड़ा हुआ था । उसने दरवाजे को धक्का दिया और अंदर दाखिल हो गया । वहां कोई नहीं था । बस कागजात और पुस्तकें बिखरी पड़ी थीं । अमर सिंह सरला की ओर मुड़कर कुछ कहना ही चाह रहा था कि उसे किसी पुरुष के कराहने की आवाज सुनाई पड़ी । आवाज चेम्बर से आई थी । वह दौड़ता हुआ चेम्बर में घुस गया और इस परेशानी की दशा में भी उसके होठों पर मुस्कराहट दौड़ गई । दृश्य ही कुछ ऐसा था ।

इन्स्पेक्टर आसिफ़ सोफे पर पीठ के बल लेटा हुआ था और सिर छोड़ कर उसके पूरे शरीर पर पुस्तकें लदी हुई थीं । वह हिल डोल भी नहीं सकता था ।

***

हमीद की आंख खुली तो सवेरा हो चुका था । उसने नजरें इधर उधर दौड़ाई तो उसे कानून की पुस्तकों से भरी हुई शीशे की अलमारियां दिखाई दीं । इधर उधर भी पुस्तकें बिखरी पड़ी थीं । एक ओर आसिफ़, रमेश और सीमा दिखाई दिये । दूसरी ओर नगर के वह चार पूंजीपति नजर आये जिनके धन के बारे में कहानियां कही जातीं थीं और जो कई बार रनधा के शिकार हो चुके थे । सब आजाद थे मगर सीमा को छोड़कर सब के चेहरों पर भय के लक्षण अंकित थे ।

हमीद उनसे कुछ पूछना ही चाहता था कि दरवाजा खुला और दो नकाबपोश अंदर दाखिल हुए जिनमें एक लम्बे कद का था और दूसरा नाटे कद का था । लम्बे कद वाले के हाथ में टामीगन थी । उसने अत्यंत कोमल स्वर में कहा ।

“आप लोगों को इसका अनुमान हो गया होगा कि आप लोग रनधा के सामने कितने विवश और तुच्छ हैं । बहरहाल अब आप लोगों को रिहा किया जा रहा है । आज का दिन और आज की रात आपकी अपनी है – कदाचित कल सवेरे आप सब लोगों को मौत का निमंत्रणपत्र मिल जायेगा ।”

हमीद कुछ कहने ही जा रहा था कि टामीगन वाले ने अपने साथी से कहा ।

“शोटे ! तुम कैप्टन हमीद और सीमा को यहां से ले जाओ मगर दोनों को एक जगह नहीं बल्कि अलग अलग जगहों पर उतारना । शेष लोग दूसरी गाड़ी से ले जाये जायेंगे ।”

शोटे ने दोनों को संकेत किया और जब वह कमरे से बाहर निकले तो हमीद चौंक पड़ा और उसने सीमा से कहा ।

“अरे ! यह तो पार्क अविन्यु का बारह नंबर वाला फ्लैट है ।”

सीमा ने कुछ नहीं कहा । केवल सिर हिलाकर रह गई ।

“यार शोटे साहब !” – हमीद ने उस नाटे कद वाले से कहा – “तुम क्यों कष्ट उठा रहे हो ? हम लोग चले जायेंगे ।”

“ऐसा न हो कि दूसरों के कंधो पर सवार होकर तुम्हें जाना पड़े ।” – शोटे ने कहा ।

“वह तो एक दिन सबको जाना है । मगर मैं आज ही जाने के लिये तैयार हूं । पर शर्त यह है कि कंधे कोमल और सुंदर हो ।”

कदाचित बातों का क्रम कुछ देर ओर चलता मगर पीछे से टामीगन वाले की गर्जना सुनकर हमीद का साहस छूट गया और वह जल्दी से आगे बढ़ गया ।

नीचे आते ही कार खड़ी नजर आई और शोटे ने सीमा तथा हमीद को कार में बैठने के लिये कहा । टामीगन वाला भी कार तक आया था । हमीद ने उससे पूछा ।

“तुम रनधा ही हो ना ?”

“हां !”

“और आज चार बजे सवेरे तुम्हें फांसी भी हो गई थी – क्यों ?”

“हां ।“

“और अब यह सब फांसी पाने के बाद के तुम्हारे चमत्कार हैं – क्यों ?”

“हां कैप्टन !” – टामीगन वाले ने हंसकर कहा – “तुमने अभी रनधा को देखा कहां है । तुमने यह समझा था कि उसे घेरकर पकड़ लिया है । खुले में उससे मुक़ाबला करते तो आटे दाल का भाव मालूम होता ।”

“क्या बताऊँ दोस्त ! बेचारे रनधा को फांसी हो गई वर्ना मैं तुम्हारी यह इच्छा भी पूरी कर देता ।”

“तो क्या मैं रनधा नहीं हूं ?”

“नहीं कहने पर तो रात तुमने मेरा जबड़ा तोड़ डाला था फिर इस समय कैसे कह सकता हूं कि तुम रनधा नहीं हो ।”

“एक ओर का जबड़ा तो अभी सही सलामत है । कह दो कि मैं रनधा नहीं हूं ।”

“दूसरा जबड़ा भी तुड़वा लेता मगर कुछ मसहलत के कारण विवश हूं ।”

टामीगन वाले ने संकेत किया और शोटे ने बारी बारी दोनों को पिछली सीट पर ढकेल दिया जिस पर रनधा का एक आदमी पहले से बैठा हुआ था । फिर कार चल पड़ी । शोटे भी पिछली ही सीट पर बैठा था ।

“तुम कैसे फंसी ?” – हमीद ने सीमा से पूछा ।

सीमा कुछ कहने ही वाली थी कि शोटे ने रिवाल्वर की नाल उसकी ओर करते हुए कहा ।

“क्या तुम अपना वचन भूल गई ? तुम्हें अपना मुख बंद ही रखना है ।” – फिर उसने हमीद से कहा – “अगर अपमानित न होना चाहो तो तुम भी मौन रहो ।”

हमीद मौन हो गया और कार दौड़ती रही । फिर एक जगह रुक गई और शोटे ने हमीद से उतरने के लिये कहा ।

“और यह ?” – हमीद ने सीमा की ओर संकेत करके पूछा ।

“तुम दुनियाभर के ठेकेदार नहीं हो, उतरो ।” – शोटे ने कहा और पहले ख़ुद नीचे उतरकर हमीद का हाथ पकड़कर नीचे घसीट लिया और फिर ख़ुद कार में बैठ गया । कार चल पड़ी । हमीद ने कार का नंबर देखा और चौंक पड़ा । क्योंकि प्लेट पर वही नंबर पड़ा हुआ था जो उसकी गाड़ी का नंबर था ।

हमीद चलता हुआ उस चौराहे पर आया जहां शहर की ओर जाने के लिये टैक्सी मिल सकती थी । मगर संयोगवश इस समय वहां कोई टेक्सी नहीं थी । वह खड़ा होकर टैक्सी की प्रतीक्षा करने लगा । दिमाग में विनोद की कही हुई वह बात गूंज रही थी कि ‘बेटे हमीद, रनधा की फांसी के बाद भी तुम्हारा काम बाकी रहेगा’ और यही बात आज सच्चाई का रूप धारण करके उसके सामने खड़ी थी । वह सोच रहा था कि आखिर वे सब उस फ्लैट में कैसे और क्यों ले जाये गये थे जो ए.के. राय एडवोकेट का आफिस है – फिर उन्हें छोड़ क्यों दिया गया और मौत के निमंत्रणपत्र की धमकी क्यों दी गई थी ? क्या वह केवल डराने के लिये थी या सचमुच वह सब क़त्ल कर दिये जायेंगे ।