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बापू मेरी नज़र में

बापू मेरी नजर में (जवाहरलाल नेहरू)

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DIPAK CHITNIS(dchitnis3@gmail.com)

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सन 1916 : मैंने पहले पहल बापू (महात्मा गांधीजी)कोजब देखा था. तब से एक जमाना बीत गया. मुड़ करदेखता हूं, तो यादों के बादल उभरते हैं. भारत के इतिहासकी यह अवधि, इस समय के उतार-चढ़ाव की कहानी पुरानेजमाने की किसी चारणगाथा की तरह अद्भुत है.

भारत की इस अवधि के बारे में, ताज्जुब की बातसिर्फ यह नहीं है कि तमाम मुल्कने एक ऊंचाई से कामकिया, बल्कि यह भी है कि उस ऊंचाईसे काफी लंबे अरसेतक काम किया.

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हम बापू के लिए आंसू बहाते हैं और महसूस करते हैंकि हम अनाथ हो गए. लेकिन अगर हम उनकी शानदारजिंदगी को मुड़कर देखे तो हमें उसमें दुखी होने की कोईबात दिखाई नहीं देती . सच पूछो तो इतिहासमें ऐसे बहुतही कम लोग हुए हैं जिन्हें अपने जीवनकालमें ऐसी सफलतापाने का सौभाग्य मिला हो. उन्होंने जिस भी चीज को दिया, उसी को कीमती बना दिया. उन्होंने जो कुछ कियाउसी के नतीजे से ठोस निकले- भले ही वे नतीजे इतनेजबरदस्त ना निकले हो, जितना भी सोचते थे.

उनकी मृत्युमें भी एक दिव्यता, और परिपूर्ण कला थी. उन्होंने जो जीवन जिया उसकी सबसे महान घटनाकी तरह, हर तरह उनके योग्य यह मृत्यु हुई. इसमें उनके जीवन कीसीख को और भी ऊंचा उठा दिया l जैसी मौत हर आदमीचाहता है, वैसी मौत उन्हें है मिली l उनका शरीर धीरे-धीरे गर्ल कर नहीं गया, ना उम्र के कारण उनका दिमाग कमजोरपड़ा l शरीर और मन की कोई भी कमजोरी उनकी याद केसाथ नहीं जुड़ती l वह अपनी समूची ताकतके साथ जिए, और वैसी ही हालत में उनकी मृत्यु हुई l उन्होंने हमारे मनपर एक ऐसी छाप छोड़ दी है, जो कभी थी थी फिक्र नहींपड़ सकती l

वह हमारी आत्मा के कण-कण में प्रवेश कर गए थे, और इस तरह उन्होंने हमारे आत्मा को बदल दिया है, ठीकहूं समय जब हम अपनी आत्माकी ताकत खो रहे थे, बापूहमें बलवान करनेके लिए आए ; और उन्होंने हमें जो ताकत दी वह एक दो साल रहने वाली ताकत नहीं है, वह तोहमारी परंपरा का अंग बनकर रोज आने वाली चीज है l

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इस कमजोर शरीर वाले छोटे से आदमी की आत्मामें चट्टानों जैसी मजबूती पड़ी हुई थी, जो बड़ी से बड़ी शक्तिके सामने झुकती नहीं थी l यद्यपि उनकी शक्ल अत्यंतसाधारण थी, फिर भी एक तरह की बादशाही की शानउनकी थी, जिसके सब लोग खुशी-खुशी उनके सामने झुकजाते थे l वह सोच समझकर विनम्र और रहते थे, किंतुफिर भी सत्ता से भरे हुए थे l और कभी-कभी शहंशाहकी ऐसे हुकुम फरमाते थे कि जिन्हें बाजार लाना हर एक कोफरज हो जाता था l उनकी शांत, गहरी नजर आदमी कोपकड़ लेती थी l उनकी पानी की तरह तरल आवाज कलकल करती ह्रदय तक पहुंच जाती थी, और आदमी भावनासे भरकर उसके इशारे पर चल पड़ता था

महात्मा गांधीजी अपने विरोधियों को आसानी से जीतलेते थे l विनम्र थे, किंतु साथ ही हीरे की तरह सख्त थे, वह मीठा बोलते थे और हंसमुख थे, किंतु साथ ही अपने बात के बारे में बहुत दृढ़ थे l उनकी आंखों में कोमलताथी, किंतु उनमें से संकल्प की ज्वाला निकलती रहती थी l उनकी आवाज शांति थी, किंतु जान पड़ता था जैसे उसकीतहमें कहीं लोहा पड़ा है l वह सूजनता से भरी हुई थी, किंतु फिर भी उसमें एक सखती थी , भेजो शब्द काम मेंलाते थे, वह अर्थ से भरा हुआ होता था l उनकी शांत वाणीके पीछे सदा शक्ति और कर्मठता की छाया लरजती रहतीथी l और किसी गलत बात के सामने ना झुकने का निर्णयस्पष्ट दिखाई देता था l वे किसी अजीब-गरीब धातुसे डोलेहुए थे, और अक्सर उनकी आंखों से हमें गरीब जहां काहुआ दिखाई देता था l

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भारत के लिए महात्मा गांधीजीने जो कुछ किया, कितना जबरदस्त है उसका फैलाव ! उसने इस देश केलोगोंमें हिम्मत, जवामरदी, अनुशासन, सहनशीलता, किसीउद्देश्य के लिए हंसते-हंसते मरने की शक्ति- और इनसबसे बड़ी बात, विनम्रता और आत्माअभिमान जैसे गुणोंकाभार भर दिया l उन्होंने कहा कि साहस चरित्र की नीव है; बिना साहस के ना सदाचार संभव है, ना धार्मिकता, नाप्रेम l

यह देखकर आश्चर्य होता है कि रेप भारत के कितनेबड़े प्रतिनिधि थे ! वेद करीब-करीब स्वयं भारत ही थे, उनकी जो कमियां थी वह भी भारतीय थी, वे भारत केकिसानों को सच्चे प्रतिनिधि थे, वे इस देश के करोड़ों लोगोंकी जानी और अनजानी इच्छा वो की तस्वीर थे l कहसकते हैं कि वे प्रतिनिधि से भी कुछ बहुत ज्यादा थे- वे इन लाखों आदमियोंके आदर्शों के अवतार थे l यह तो ठीकवह हर तरहसे वैसे नहीं थे जैसा कोई औसत किसानों होताहै l उनकी बुद्धि बहुत पाईनी थी l उनकी भावना सूक्ष्माथी, रुचि संस्कृतरीत थी और दृष्टिकोण विशाल था l इससब के बावजूद वे बड़े-बड़े से किसान थे, हर मामले परउनका दृष्टिकोण किसान जैसा था l भारत किसानों का भारतहै इसलिए वे अपने देशको खूब जानते थे, उसकी हल्की सेहल्की हरकत उन्हें हिलाती थी, वे परिस्थितिको बिल्कुल सहीरूप में समझ लेते थे l

उन्होंने देश का चेहरा बदल दिया, उन्होंने एक टूटी हुईहिन जनता को आत्माअभिमान दीया और उसका चरित्र बदलदिया, लोगों में चेतना जागृत की l उन्होंने भारत को जैसाहिलाया, वैसा कभी कोई क्रांतिकारी नहीं हिला सका l

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यद्यपि महात्मा गांधीजी कुछ सिद्धांतों के मामले मेंचट्टान की तरह अडिग थे, लेकिन फिर भी अधिक परजनता की ताकत या कमजोरी का विचार करके बदलती हुईपरिस्थितियों के मुताबिक समझौता करनेकी उनमें जबरदस्तसामर्थ्य थी l वे हमेशा इस बात का विचार करते थे किलोग किस हद तक, जीस सत्य को उन्होंने देखा समझा उसेअपनाने के लायक है l

देश के लाखों लोगों के निकट वे भारत के स्वतंत्र होनेके दृढ़ संकल्प और शक्ति के सामने झुकने केनिश्चयकी मूर्ति थे l भले ही बहुत से लोग सैकड़ों बातों मेंउनसे मतभेद रखें l उनकी आलोचना करें l किंतु संघर्ष कीघड़ी में सब उनके आसपास धीर जाते थे और उनके इशारेका रास्ता देखते थे l आज या बीते जमानेमें हिंदुस्तानकीजनता को और किसी ने उतना नहीं जाना-समझा जितनामहात्मा गांधीजी ने समझा था l

महात्मा गांधीजीने जो शक्तिशाली आंदोलन चलाए, भारत की जनताको वे महात्मा गांधीजीकी मुख्य देन है l देशव्यापी आंदोलन के द्वारा उन्होंने लाखों लोगों को नएढांचे में डालने की कोशिश की l एक गिरी हुई, डरपोकऔर लाचार जनता को- जो हर ताकतवर स्वार्थ और सताईगई थी और कूचली गई थी और किसी भी तरह काप्रतिकार करने के योग्य नहीं बची थी- उन्होंने एक बड़ेउद्देश्य के लिए आत्म-त्याग करके संगठित प्रयत्नों के योग्यबनाया, उसे अत्याचार का मुकाबला करना सिखाया औरउसमें आत्मनिर्भरता की भावना भरी l

महात्मा गांधीजी एक किरण समूह की तरह थे जिसनेअंधेरे को चीर कर हमारी आंखों पर छाई हुई धुंध को हटादिया था l वे एक तूफान की तरह थी जिसने बहुत सीचीजों को, और सबसे ज्यादा लोगों के सोचने के ढंग कोउलट-पुलट कर दिया था l महात्मा गांधीजी अजीब सेशांतिवादी थे l वीर शांतिप्रियता और संघर्षशीलताके अनोखेसमन्वय थे, कर्मठता के वे विराट थे l मैं किसी दूसरे सेआदमी को नहीं जानता जिसने निष्क्रियतासे ऐसी लड़ाईलड़ी हो और भारतीय जनताको उसमेंसे इतना अधिक बाहरखींचा हो l 50 वर्ष से भी अधिक समय तक महात्मागांधीजी हिमालयसे पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत तक और ब्रह्मपुत्रसे सुदूर दक्षिणमें कन्याकुमारी तक हमारे विचार देशमें घूमतेरहे, भारत के लोगों को समझने और उनकी सेवा करने केलिए l शायद अब कोई दूसरा भारतीय ऐसा नहीं मिलेगा, जिसने भारतमें इतना अधिक भ्रमण किया हो और देश कीजनता की ऐसी सेवा की हो l

उनके संदेशों के मुताबिक चलकर हिंदुस्तान की उन्नतिहो सकती है और उसका सिर ऊंचा हो सकता है l मैंजानता हूं कि मैं कमजोर हूं l मैंने भारत की सेवा करने कीबार-बार प्रतिज्ञा की, और अयोग्य सिद्ध हुआ, लेकिन हमचाहे जितने, कमजोर हो, फिर भी हम में वे जो शक्ति देगए उसका कुछ उस बचा है l

आज संसार में भारत का बड़ा नाम हो गया है इनमेंसबसे महत्वपूर्ण कारण इस देश में महात्मा गांधीजीका होनाहै l इसलिए लोग भारत के बारे में नैतिक दृष्टि से ऊंचाख्याल रखने लगे l भले ही हम लोग में ज्यादातर लोग शुद्रहै, और गांधी के पीछे चलने की भी लायक नहीं है l

गांधीजी में आश्चर्यजनक गुण थे, उनमें से एक गुण यहथा कि वे सामने वाले की अच्छाई को उपहार देते थे, वहव्यक्ति बुराई का पुतला ही क्यों ना हो- महात्मा गांधीजी उसके भीतरकी अच्छाई को खोज निकालते थे और उसीअच्छाई पर जोर देते थे l नतीजा यह होता था कि उसबेचारे को अच्छा बनने की कोशिश करनी पड़ती थी l सिवाय इसके कोई चारा नहीं बचता था l अगर वह कुछबुरी बात करता, तो कुछ ना कुछ शर्मआता था l

थोड़े में यह कहा सकते हैं कि भारत की धरती परएक परमात्मा का बंदा उतरा, और उसने अपनी तपस्या सेइस धरती को पवित्र बनाया l उसने सिर्फ हिंदुस्तान कीधरती को नहीं, यहां के लोगों के हृदय को भी पवित्रबनाया l लोगों में भी जो अपने को चतुर समझते थे उनसेज्यादा उन लोगों के मान ज्यादा पवित्र हुए जो नम्र, दरिद्रऔर दुखी थे l

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गीत तुम्हारे गाते गाते हम तुम को ही भूल गए !

याद हमें जय नाथ तुम्हारा, पर हम तुमकोभूल गए,

शपथ तुम्हारी खाते-खाते हम तुम को ही भूल गए l

पूजाका पाषाण बनाकर हमने तुमको रखछोड़ा,

मंदिर में अगणित पत्थर थे, एक अधिक उनमें जोड़ा

मंदिर में ठहराया तुमको, हम पापों में झूलगए ;

सात तुम्हारे सत्य अहिंसा के दो जीवन मूल गए l

गीत तुम्हारे गाते गाते हम तुम को ही भूलगए l