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कोरोना प्यार है - 16

(16)‌‌‌‌‌

"मां आपने देखा! पिताजी और वो नौकरानी••।" कक्ष के पास खड़े विराज को पीठ पिछे से आती हुई सुमित्रा ने चौंकाया। विराज गुस्से में था।

"शांत रहो विराज। ठाकुर परिवार में यह सब चलता है।" सुमित्रा ने विराज के कन्धे पर हाथ रखते हुये कहा।

"लेकिन मां वो दो टके की नौकरानी के साथ•••। नहीं मैं उसे जान से मार दूंगा।" विराज ने कहा।

सुमित्रा उसे हाथ पकड़कर अन्य कक्ष में ले गयी।

"बेवकूफ मत बन विराज। जब ठाकुर साहब की दवा दारू घर में ही हो रही है तो हमारे लिए इससे अच्छी बात क्या है?" सुमित्रा ने समझाया।

"देख! तु तो जानता है कि हमारे कितने दुश्मन है। ठाकुर साहब आये दिन घर से बाहर जाकर कोठों पर आते-जाते है। शराब और शबाब के नशे में वे सबकुछ भूल जाते है। किसी दिन कोई शत्रु ने उनकी इस कमजोरी का फायदा उठा लिया तब? नहीं मैं यह रिस्क नहीं ले सकती।" सुमित्रा बोली।

"लेकिन मां वो आपके पति है और आप यह सब कैसे•••?" विराज की नज़रे नीचे झुक गई।

"हां यह सब मेरी सहमती से ही हो रहा है। मैंने ही अनुराधा को ठाकुर साहब के कक्ष में भेजा है।" सुमित्रा बोली।

विराज हतप्रद था।

"यहां ठाकुर साहब जो भी करते है वह मेरी जानकरी में रहता। यदि घर के बाहर वो कुछ करे तो किसे क्या खबर लगे? मुझे उनक प्राण की अधिक चिंता है।" सुमित्रा के ये वचन विराज को मौन करने के लिए बहुत थे।

विराज के मन में हलचल उत्पन्न हो गयी थी। असंख्य  विचारों के आवागमन से उसे विचलित कर दिया था।

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विराज के सिर पर शैतान संवार हो चूका था। उस रात उसे नींद नहीं आ रही थी। अपने पिता के ही समान वह भी आनंद लुटना चाहता था। किन्तु अर्ध रात्रि के समय घर से बाहर जाना उसके लिए प्रतिबंधित था। घुमा-फिराकर उसकी सोच अनुराधा पर आकर टीक गई जो अभी-अभी नारायण सिंह के शयनकक्ष से बाहर निकली थी। अनुराधा बाथरूम में स्नान हेतु गई। विराज अपनी अभिलाषा को जल्द से जल्द पुरी करना चाहता था। रात्रि के दो जब चूके थे। अनुराधा स्नान कर भीगे बदन से बाहर निकली। वह अतिथि गृह में थी। सुमित्रा पुनः अपने पति के कक्ष में जाकर सो गई। सारे नौकर-चाकर भी विश्राम कर रहे थे। साड़ी पहनकर अनुराधा अब सोने के लिए किचन की ओर बढ़ी ही थी कि अतिथि कक्ष के द्वार पर शराब के नशे में विराज आ खड़ा हुआ।

"छोटे मालिक आप! कुछ चाहिये आपको?" अनुराधा विराज को देखकर चौंक गयी।

"हां, चाहिये।" विराज ने अतिथि गृह का द्वार बंद करते हुए कहा।

"मगर आप ये दरवाजा क्यों बंद कर रहे है?" अनुराधा ने चौंकते हुये कहा।

"चुप रहो। जैसा मैं चाहता हूं मुझे करने दो।" कहते हुये विराज अनुराधा पर भूखे भेड़िये समान झपट पड़ा।

"छोडिये छोटे मालिक! ये आप क्या कर रहे है?" अनुराधा विराज की मजबूत बाहों में छटपटा रही थी। विराज ने अनुराधा को ले जाकर बिस्तर पर पटक दिया। तभी द्वार पर दामिनी ने आवाज लगाई-

"मांsss मांsss। दरवाजा खोलो।"

विराज को धक्का मारकर अनुराधा दरवाजे की ओर दौड़ी। विराज भी दौड़कर दरवाजे के पीछे छिप गया।

"क्या हुआ बेटी?" अनुराधा ने दरवाजा खोलते हुये पुछा। सामने दामिनी खड़ी थी। वह अंदर आने की कोशिश कर रही थी। उसे संदेह हुआ की मां के साथ कोई अन्य भी कक्ष में उपस्थित है।

"मां टीना जाग उठी है। चलिए। वो आपके बिना नहीं सोयेगी। इतनी रात कोई आप यहां क्या कर रही है?" दामिनी बोली।

"अरे ! काम पुरा कर नहाने आई थी। चल। नहीं तो टीना के रोने की आवाज से सभी जाग जायेंगे।" कहते हुये अनुराधा उसे द्वार से ही किचन की तरफ ले चली। उसने दामिनी का हाथ पकड़ रखा था। द्वार के पीछे ही विराज छिपकर खड़ा था। उसे दामिनी के खलल ने बहुत पीड़ा पहुंचायी थी। मन-मसोज कर वह अपने कमरे में सोने के लिए चल पड़ी।

अनुराधा की आंखों से नींद गायब हो चूकी थी। उसे यह यकीन हो चला था कि आज नहीं तो कल विराज उसके साथ फिर से जबरदस्ती करेगा। हो सकता वह इसमें कामयाब भी हो जाये? वह जवान है। उस पर नया खून! और ठाकुर परिवार का लाडला। अब उसे रोका नहीं जा सकता। किन्तु यदि वह (अनुराधा) यह सब ठकुराईन को बता दे तब शायद वह विराज के यौन शौषण से बच सकती थी। किन्तु इस बात के फंलीभूत होने पर भी उसे संदेह था। यह भी हो सकता है कि जिस प्रकार नारायण सिंह के साथ यौन संबंध बनाने में सुमित्रा को कोई आपत्ति नहीं थी, उसी प्रकार विराज भी यदि उसके साथ अपनी शारीरिक भूख मिटाये तो इसमें उन्हें कोई बुराई नज़र नही आये? 'क्या करू? क्या ठाकुर साहब को बता दूं? मगर ठाकुर साहब से कहूंगी क्या•••?' उसके चेहरे पर फिर से उदासी छा गई। 'कह दूंगी की वे छोटे मालिक की जल्दी शादी करवा देवे। इससे वे समझ जायेंगे। न समझे तो खुलकर सब कुछ बता दूंगी। आज यदि मैंने विरोध नहीं किया तो यकीनन इसके भावि परिणाम बहुत ही भंयकर हो सकते है।' विचारों में मग्न अनुराधा क्या करे ? क्या न करे? वाली परिस्थिति में बुरी तरह उलझ चूकी थी। उसे यह डर था कि हो सकता है कि यह सच सामने आने पर सारी गलती उसी की मानी जाये। और ठाकुर परिवार उसे काम से निकाल दे। तब पिता-पुत्र के साथ अनैतिक संबंध होने का कलंक लेकर तीन-तीन बेटीयों के साथ वह आगे का जीवन कैसे जी सकेगी? समाज उसे जीने नहीं देगा। वह स्वयं तो सबकुछ सहने का सामर्थ्य रखती थी किन्तु यदि उसकी बेटीयों को भी यदि उसके भूतपूर्व कदाचार के आरोपों का कष्ट झेलना पड़े तब यह भीषण दुख वह सह नहीं पायेगी। उसे यह भी पश्चाताप हो रहा था कि यदि उसने उस रात नारायण सिंह का पुरजोर विरोध किया होता और उसके बाद ही ठाकुर निवास पर काम करना छोड़ दिया होता तो आज नौबत यहां तक नहीं आती। भीगी पलकों से सुबकते हुये वह नींद के आगोश में चली गई। सात वर्ष की टीना उससे चिपक कर सो रही थी। नौ वर्षीय दिव्या और दिव्या से दो साल बड़ी दामिनी अपनी मां की पीठ की ओर सौ रही थी।

अगली सुबह अनुराधा की नींद देर से खुली। ठकुराईन के द्वार पर दस्तक देते ही उसकी तीनों बेटीयां जाग उठी। सुबह के आठ बज चूके थे। संगीता झाडू पोछा करने किचन में घुस आई। अनुराधा ने फर्श पर से अपना बिस्तर समेटा और अतिथि कक्ष चली गई। पीछे-पीछे उसकी बेटीयां शेष बिस्तर उठाकर ले आई।

"क्या बात है अनुराधा! बीमार लग रही है?" झाड़ू लगाना छोड़कर संगीता ने अनुराधा से पुछा।

"कुछ नहीं रे! काम काज की थकान है।" अनुराधा ने बात को टालते हुये कहा।

"लेकिन मां आपका बदन तो बुखार से तप रहा है।" दामिनी ने अनुराधा का हाथ पकड़ते हुये कहा।

"क्या? अनुराधा की तबीयत खराब है?" तब ही वहां सुमित्रा आकर बोली।

"हां जी ठाकुरईन जी। देखीये इसे कितना बुखार है?"  संगीता ने अनुराधा का हाथ छुकर कहा।

"रूको मैं डाॅक्टर को बुलाती हूं।" सुमित्रा बोली।

"मां आराम कर लेगी तो ठीक हो जायेगी।" दामिनी बोली।

"हां हां पहले डॉक्टर को दिखा देते है फिर ड्राइवर तुम लोगों को तुम्हारे घर छोड़ आयेगा। ठीक है।" सुमित्रा बोली। डाॅक्टर साहब ने सिंह हाऊस पर आकर अनुराधा का उपचार किया। तदउपरांत बंगले पर कार्यरत ड्राइवर सुभाष उन्हें घर छोड़ने चला गया। घर पहूंचकर अनुराधा ने अपने बगल में दबाये प्याज ब्लाउज से निकाल बाहर फेंक दिये। दामिनी को यह देखकर तुरंत अंदाजा हो गया कि उसकी मां ने बुखार आने का बहाना बनाकर अपने काम से छुट्टी ली थी।

"मां आपने ये क्यों किया?" दामिनी ने पुछा।

"कुछ नहीं। ऐसे ही कुछ दिनों से आराम करने का मन कर रहा था। काम से छुट्टी मिलना इतना सरल नहीं था। बस•••।" अनुराधा ने कहा।

"इसका मतलब यह है कि आपने झुठ बोला।"

दिव्या जो टीना के साथ खेलने में व्यस्त थी, बीच में पलटकर बोल पड़ी।

"लेकिन झुठ बोलना तो बुरी बात है न?" टीना बोली।

"हां बेटा। झुठ बोलना बुरी बात है। आगे से मैं कभी झुठ नहीं बोलूंगी। ठीक है।" अनुराधा ने टीना को बाहों में उठाते हुए कहा।

दामिनी को आश्चर्य के साथ खुशी भी थी कि दिन-रात मजदूर के समान कार्य करने वाली उसकी मां अनुराधा को कुछ दिन तो काम से आराम मिलेगा। उसके मन में संदेह का बीज अंकुरित हो चूका था। पिछली रात ठाकुर निवास पर अतिथि कक्ष वाली घटना और युं अचानक अनुराधा का झूठ बोलकर काम से छुट्टी लेना उसे अटपटा लग रहा थ। अनुराधा दिव्या और टीना को स्नान कराने ले गयी। तीनों को आज स्कूल जाना था। दामिनी भी सबकुछ भुलकर तैयार होने चली गई।

इधर कूछ दिनों से अनुराधा नारायण सिंह को दिखाई नहीं दी। स्वभाव अनुसार वे विचलित हो गये। राजनीतिक कार्यों में भी उनका मन नहीं लग रहा था। उन्होंने सुमित्रा से अनुराधा के विषय में पुछताछ की तब पता चला की वह अस्वस्थता के चलते काम पर नहीं आ रही थी। सुमित्रा के लिए यह कठिन समय था। अनुराधा की कमी अब उसे ही पुरी करनी पड़ रही थी। प्रौढ़ावस्था के कारण सुमित्रा की काम ईच्छा का शनै: शनै: अंत होते जा रहा था। मगर नारायण सिंह थे कि इस आयु में भी युवाओं के समान कामोत्तेजक थे। कुछ ही दिनों में शारीरिक पीड़ा से सुमित्रा क्षुब्ध हो उठी। अंततः उसने अनुराधा को पुनः काम पर लौटने की जुगत भिड़ाई। अनुराधा भी अधिक समय तक काम से अवकाश पर नहीं रह सकती थी सो उसने जल्द ही अपना काम नारायण सिंह के निवास पर आकर संभाल लिया। सुमित्रा ने अनुराधा का काम का बोझ कम कर दिया। उसे सिर्फ ठाकुर साहब को प्रसन्न करने की जिम्मेदारी अप्रत्यक्ष रूप से दी गई। अनुराधा अप्रसन्नचित होकर यह कार्य करने में व्यस्त हो गयी। उसका पुरा ध्यान तेजी से आयु में वृद्धि कर रही अपनी बेटीयों पर था। अनुराधा किसी तरह अपनी बेटीयों की शिक्षा-दीक्षा सम्पन्न कर यथास्थिति अनुसार उन्हें उनके पैरों पर खड़े करना चाहती थी। विराज अपनी उस दिन की असफलता पर खिन्न था। हालांकि वह अन्यत्र अपनी शारीरिक क्षुधा शांत कर चूका था किन्तु अनुराधा का मोह वह छोड़ नहीं पा रहा था। एक दिन विराज के मामा सुन्दर अपने बहनोई के घर आये। सुन्दर और विराज की आपस में बहुत पटती थी। दोनों खुले विचारों के थे और एक-दूसरे से प्रत्येक बात सांझा किया करते थे। विराज ने आते ही सुन्दर को अपने दिल की बात बता दी। पहले-पहल सुन्दर घर की नौकरानी के साथ संबंध स्थापित करने के विरूद्ध थे। किन्तु विराज की अत्यधिक मांग पर उन्होंने अपनी इस योजना पर काम आरंभ किया। तथा विराज से यह भी कहा की वो यह सब किसी से न कहे। अगले ही दिन नारायण सिंह और सुमित्रा अपनी बेटी के ससुराल उससे मिलने चले गये। विराज और सुन्दर अपनी योजनान्तर्गत अनुराधा की प्रतिक्षा कर रहे थे। अनुराधा का घर से निकलना के मन नहीं था। उसे आभास हो चूका था कि आज का दिन उस पर बहुत भारी था। क्योंकि ठाकुर और ठकुराईन दोनों ही बंगले पर नहीं थे। निश्चित ही घायल विराज उसकी बाट जोह रहा होगा। उस पर उसके अय्याश सुन्दर मामा की ठाकुर निवास पर उपस्थिति किसी विनाश से कम न थी। अनुराधा का मन कर रहा था कि वह फोन पर अपने न आने की सुचना पहूंचा देवे। क्योंकि अब वह पहले की तरह बंगले पर कोई काम-काज तो करती नहीं थी। वहां उसकी उपस्थिति ठाकुर साहब की अघोषित रखेल की भांति ही थी। उसके फोन लगाने से पुर्व ही बंगले के व्यवस्थापक अरविंद जी का फोन उसके पास आ गया। जिनसे उसे पता चला कि भोजन पकाने वाले श्यामलाल महाराज आज छुट्टी पर था। अतएव अनुराधा को काम पर आना होगा। विराज और सुन्दर का भोजन जो बनाना था। अनुराधा को संदेह था कि हो न हो, विराज ने ही जानबूझकर महाराज की छुट्टी कर दी थी। जिसके परिणामस्वरूप विवश होकर अनुराधा को बंगले पर भोजन बनाने के लिए बुलाया जायेगा और अनुराधा को जाना पड़ेगा। उसके वहां जाते ही विराज उसके साथ अपनी असंतुष्ट काया को सरलता से संतुष्ट कर सकेगा। क्योंकि ठाकुर और ठकुराईन घर पर नहीं थे। अनुराधा भयांकित होकर बोझिल मन से ठाकुर निवास पर जाने के लिए तैयार हुई। दामिनी अपनी मां को अधिक समझती थी। आज उसे अपनी मां के चेहरे पर प्रतिदिन वाली भागमभाग और हड़बड़ी दिखाई नहीं दे रही थी।