Vivek you tolerated a lot! - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

विवेक तुमने बहुत सहन किया बस! - 8

अध्याय 8

डॉ. अमरदीप, अपने सामने आंखों में आंसू लिए खड़े बुजुर्ग और उसकी पत्नी, उनके साथ उनकी तीन सुंदर युवा बेटियां एक क्षण उनके ऊपर नजर डाली |

"आप ही पोरको के पिता है क्या ?"

"हां डॉक्टर !"

"आपका नाम क्या है ?"

"तिरुचिरंमंपलम। दो साल पहले ही मैं तमिल के अध्यापक से रिटायर हुआ हूं। हमारे परिवार के लिए पोरको सब कुछ है ! उसको कुछ हो गया तो...…हम में से कोई भी जिंदा नहीं बचेगा।"

आपका बेटा कई दिनों से सर दर्द से परेशान था । वह आपको पता है?"

"नहीं मालूम डॉक्टर !"

डॉक्टर की नजर पोरको के मां पर गई। "क्यों मां आपको पता है?"

'नहीं मालूम' जैसे सिर हिलाई - घबराई हुई सी, पोरको की अम्मा - वडीवु।

"बड़े भाई को ऐसी एक समस्या है ऐसा आप तीनों बहनों में किसी को पता है क्या ?"

"नहीं मालूम डॉक्टर !" तीनों लड़कियों के आंखों में आंसू चमकते हुए.... होंठ को बाहर की तरफ किया।

अमरदीप आश्चर्य से अपने माथे को ऊंचा किया।

"घर में पांच लोग रहते थे.... किसी को भी पोरको की स्थिति के बारे में नहीं मालूम है बोल रहे हो। वह कैसे मालूम नहीं होगा ?"

तिरुचिरंमंपलम की आवाज रूंध गई.... किसी को भी उसकी स्थिति मालूम नहीं है आप कह रहे हो ठीक है पर पोरको को कोई भी कष्ट या तकलीफ होती वह किसी को बताता नहीं। उसे बुखार आए तो भी किसी को नहीं बताता। गोली ले कर चुपचाप सो जाता। उसे भी हमें स्वयं ही मालूम करना पड़ता था....."

उनके बोलते समय ही स्टाफ नर्स पुष्पम अंदर आई। उसके हाथ में कुछ कंप्यूटर के कागज थे।

"क्या है पुष्पम ?"

"डॉक्टर...! पोरको के स्कैन पेपर्स।"

डॉ. अमरदीप उन्हें लेकर देखा। सावधानी से पढ़ा और उनका चेहरा बदला।

"डॉक्टर! स्कैन रिपोर्ट में कुछ डरने लायक तो नहीं है?"

अमरदीप ने दीर्घ श्वास लिया। अपने कंधों को उचकाते हुए बोले।

"एक समस्या है.... और दो दिन में ही उस समस्या को ठीक नहीं किया तो पोरको को जीवित नहीं देख सकते "

पूरा परिवार सदमें में आ गया।

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