Insaaniyat - EK dharm - 43 books and stories free download online pdf in Hindi इंसानियत - एक धर्म - 43 (3) 1.2k 4.3k 1 मुनीर के इतना कहते ही परी ने खुलकर अपनी नाराजगी का इजहार किया और मुंह फुलाकर बिसूरते हुए बोली ” ना मतलब ना ! अब आप हमें छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे । अब अगर आपने जाने की बात भी कही तो हम रोने लगेंगे । ”” बेटा ! हमारा यकीन करो ! आप बिरजू अंकल के साथ घर चलो । हम बस पांच मिनट में ही घर पर आ जाएंगे । ” मुनीर किसी तरह उससे पीछा छुड़ाना चाह रहा था । लेकिन उसके मन का चोर उसका समर्थन नहीं कर पा रहा था जो अच्छी तरह जानता था कि वह झूठ बोल रहा है । झूठ बोलते हुए उसकी आंखें झुकी हुई थी । उसके चेहरे पर आत्मविश्वास का नितांत अभाव झलक रहा था ।सचमुच झूठ बोलना बड़े जीवट और बहादुरी का काम है इस बात का अहसास अब मुनीर को हो रहा था ।उस अबोध नन्हीं बालिका की पीड़ा भी उसके अंतर्मन को द्रवित किये जा रही थी । लेकिन वह उस झूठ का समर्थन कैसे कर देता जिसे वह मासूम सच समझ बैठी थी । बच्ची को कोई गलतफहमी हो सकती है यह समझा जा सकता है लेकिन उसे देखते ही डॉक्टर रस्तोगी का हड़बड़ाना ..? डॉक्टर का हड़बड़ाना तो अकारण नहीं रहा होगा । जरूर उनके चेहरे के भाव बदलने के पीछे इस बच्ची या मुझसे जुड़ा कोई राज है , कोई रहस्य है । लेकिन क्या …?चाहे जो हो कोई भी राज हो या न हो उसका इस सबसे क्या लेना देना ? उसे तो बस अपना ध्यान रखना है । कहीं ऐसा न हो भावुकता में बहकर किसी की मदद उसका अहित न कर दे । ‘ हर पहलू पर सोचविचार कर उसने एक बार फिर परी को प्यार से गोद में उठाया और क्लिनिक के नजदीक ही एक दुकान से कैडबरी की बड़ी सी चॉकलेट दिलाते हुए बोला ” बेटा ! अब तुम अंकल के साथ जाओ और हमें हमारा काम करने दो । ठीक है । ”” क्या पापा ? आप इतने दिनों बाद आये हो इसलिए आप यह तो भूल ही गए कि मैं यह चॉकलेट नहीं खाती । कहीं ऐसा न हो कि आप मुझे ही भूल जाओ ! नहीं ! नहीं ! मैं आपको कहीं नहीं जाने दूंगी । ” एक बार फिर उस मासूम सी गुड़िया ने अपना फैसला सुना दिया था । मुनीर एक बार फिर हार गया था ।सारा वाकया ध्यान से देख रहा बिरजू अब हरकत में आया । मुनीर को कंधे से ईशारे से एक तरफ बुलाकर उसने फुसफुसाते हुए बारीक आवाज में उसे सलाह दी ” मैं नहीं जानता तुम कौन हो ? मैं भी अभी कुछ महीनों से ही यहां नौकरी कर रहा हूँ । मैंने परी के पिताजी को तो नहीं देखा लेकिन उनकी एक बड़ी सी तस्वीर घर के दीवानखाने में बीचोंबीच लगी हुई है । ऐसा लगता है वह तस्वीर तुम्हारी ही हो । परी तो अभी नादान है छोटी है ,नासमझ है सो तुमको अपना पापा समझ रही है इसमें कोई आश्चर्य नहीं । कोई बड़ा और अमर साहब को जाननेवाला भी तुमको देखेगा तो जरूर धोखा खा जाएगा । परी बिटिया बड़ी ही नेक लड़की हैं । उस मासूम का दिल रखने के लिए ही सही आप थोड़ी देर के लिए उसके साथ उसके घर तक चले चलो और फिर मौका पाते ही अपने रास्ते चले जाना । ” कहते कहते बिरजू ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए थे । अब तो मुनीर के लिए न कहना और भी मुश्किल हो गया था ।बिना किसी हुज्जत के वह खामोशी से गर्दन झुकाये बिरजू के पीछे चलते हुए आकर परी के साथ रिक्शे में बैठ गया । उसके बैठते ही बिरजू भी रिक्शा धकेल कर अपनी सीट पर सवार हो गया और तेजी से पैडल मारने लगा । अब रिक्शा शहर से बाहर की तरफ तेजी से बढ़ने लगा था ।लगभग पंद्रह मिनट की सवारी के बाद रिक्शा शहर की भीड़भाड़ व मकानों की कतारों से दूर कुदरती खूबसूरती के बीच आ गया था । सड़क के दोनों तरफ हरियाली की चादर फैली हुई थी । मानो धरती माँ ने हरी साड़ी लपेट रखी हो । एक तरफ दूर दिखाई दे रही पहाड़ों की चोटियां भी बड़ी आकर्षक लग रही थीं । उन्हीं पहाड़ियों की तरफ जानेवाले एक कच्चे रास्ते पर बिरजू ने रिक्शे को मोड़ दिया था । सड़क से लगभग एक फर्लांग की दूरी पर ही एक छोटी सी खूबसूरत कोठी दिखाई दे रही थी । उस कोठी से थोड़ी दूर अगल बगल और भी कई कोठियां दिखाई दे रही थी ।कोठी जैसे जैसे नजदीक आती जा रही थी मुनीर के हृदय की धड़कन तेजी से बढ़ती जा रही थी । अब कोठी बिल्कुल साफ साफ दिखाई दे रही थी । और साफ साफ दिखाई दे रही थी सफेद साड़ी पहने कोई औरत जो बेचैनी की आलम में कोठी के बाहर चहलकदमी कर रही थी । बेचैनी उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी । बेचैनी से अपनी साड़ी के पल्लू का कोना अपनी उंगली पर लपेटती और फिर खोलती । यही क्रम अनवरत चल रहा था उसका चहलकदमी करते हुए । बिरजू को समझते देर नहीं लगी ‘ ,,शायद यही परी की मम्मी नंदिनी है । तभी बिरजू ने कोठी के सामने लॉन में बने गेट के सामने रिक्शा खड़ी की और हमेशा की तरह रिक्शे की घंटी बजा दी ।रिक्शे की घंटी बजते ही नंदिनी चौंकी और व्यग्रता से आगे बढ़ी परी की तरफ लेकिन परी के साथ बैठे मुनीर को देखकर एक पल को थम गई लेकिन अगले ही पल परी को गोद में लेकर प्यार करने लगी ” कितनी देर लगा दी बिरजू तुमने आज ? “और फिर दो पल बाद ही परी के घावों की तरफ नजर जाते ही वह चिंतित हो उठी और बिरजू से पूछ बैठी ” और ये क्या है ? गुड़िया को चोट कैसे लग गयी ? ये साथ में कौन है ? ”इससे पहले की बिरजू कुछ जवाब देता परी उसकी गोद से फिसल कर मुनीर की तरफ दौड़ पड़ी और फिर उसका हाथ थाम कर नंदिनी से बोली ” मम्मा ! मैं तो आपको बताना ही भूल गयी थी । देखो ! मैं पापा को मनाकर ले आयी हूं और पापा ने हमसे वादा भी किया है अब वो हमसे कभी नहीं रूठेंगे । आप भी पापा से कभी नहीं रूठना ” और फिर मुनीर की तरफ देखते हुए बोली ” देखो पापा ! मम्मा आपकी राह देख रही हैं । ”मुनीर की तरफ कठोर नजरों से देखते हुए नंदिनी ने परी को पुचकारते हुए कहा ” आप तो राजा बेटे हो न ? मम्मा की बात मानते हो न ? तो फिर आप अंदर अपने कमरे में जाओ और चेंज करके आराम करो । हमें आपके पापा से थोड़ी बात करनी है । ”फिर उसने कड़े स्वर में बिरजू से कहा ” गुड़िया को उसके कमरे में छोड़ कर आओ । हमें तुमसे भी कुछ बात करनी है । ”” जी ठीक है ! ” कहकर बिरजू परी को साथ लेकर बंगले में अंदर की तरफ बढ़ गया । ‹ Previous Chapterइंसानियत - एक धर्म - 42 › Next Chapterइंसानियत - एक धर्म - 44 Download Our App More Interesting Options Hindi Short Stories Hindi Spiritual Stories Hindi Fiction Stories Hindi Motivational Stories Hindi Classic Stories Hindi Children Stories Hindi Comedy stories Hindi Magazine Hindi Poems Hindi Travel stories Hindi Women Focused Hindi Drama Hindi Love Stories Hindi Detective stories Hindi Moral Stories Hindi Adventure Stories Hindi Human Science Hindi Philosophy Hindi Health Hindi Biography Hindi Cooking Recipe Hindi Letter Hindi Horror Stories Hindi Film Reviews Hindi Mythological Stories Hindi Book Reviews Hindi Thriller Hindi Science-Fiction Hindi Business Hindi Sports Hindi Animals Hindi Astrology Hindi Science Hindi Anything राज कुमार कांदु Follow Novel by राज कुमार कांदु in Hindi Fiction Stories Total Episodes : 49 Share NEW REALESED Love Stories Without you - 8 TOXIC Horror Stories The Bloody Queen anita bashal Fiction Stories Wings Of Friendship - Part 3 Tapan Oza Thriller One Good Deed - Chapter 3 Utopian Mirror Fiction Stories My Blind Date Was My Boss - 2 jiaqing yang Thriller A Gambling Man - Chapter 3 Utopian Mirror Short Stories True Timelines of World History Khandaker Sakib Farhad Fiction Stories My Blind Date Was My Boss - 1 jiaqing yang Love Stories Crazy Love - 9 Harsha meghnathi Children Stories A STORY OF AN UNDEFINED GIRL JAHNAVI KATTI