Insaaniyat - EK dharm - 49 books and stories free download online pdf in Hindi

इंसानियत - एक धर्म - 49

बाहर नारों की आवाज शांत होते ही वह लीडर जैसी दिखनेवाली संभ्रांत महिला नंदिनी के करीब पहुंची और उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे दिलासा देती हुई बोली ” बेटी ! ईश्वर की इच्छा के आगे किसकी चलती है ? तुम्हारा और अमर का साथ बस इतने ही दिनों का था । अब धीरज रखने के सिवा और किया भी क्या जा सकता है ? चलो ..उठो अब हमारे साथ चलो ! कुछ रीति रिवाज हैं जिन्हें हमें पूरा करना है । “
पता नहीं नंदिनी ने उसकी बात सुनी या नहीं लेकिन अगले ही पल वह रोती बिलखती भाग खड़ी हुई मैदान की तरफ जहां उसके ससुर और पति चिर निद्रा में लीन थे । कर्नल साहब का पार्थिव शरीर पूरे सम्मान के साथ अंतिम यात्रा के लिए विशेष रूप से सजाए गए वाहन पर रख दिया गया था । शहीद अमर सिंह का पार्थिव शरीर तिरंगे व पुष्प चक्रों से ढंका हुआ था । उसके बगल में ही पुरोहित उसकी आत्मा की शांति के लिए मंत्रोच्चार कर रहे थे । नंदिनी के पीछे पीछे ही महिलाओं का वह समूह भी आ गया था और सभी के सम्मिलित रुदन से वातावरण एक बार फिर गमगीन हो गया । किसी तरह नंदिनी को समझा बुझाकर बुजुर्ग महिलाओं ने धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रस्में पूरी कराई । महिलाओं का ईशारा होते ही सेना के जवान मुस्तैदी से आगे बढ़े । अब शहीद अमर के पार्थिव शरीर को भी वाहन पर रखा जाना था । महिलाओं की भीड़ में फंसी नंदिनी बदस्तूर रोये जा रही थी । सेना के जवानों ने जैसे ही शव पेटी को वाहन पर रखने के लिए उठाया पूरा वातावरण गगनभेदी नारों से गूंज उठा । नंदिनी की तड़प और रुलाई और तेज हो गयी लेकिन कई मजबूत हाथों के बंधन में वह कसमसा कर रह गयी । कुछ देर के बाद वह वाहन बिल्कुल धीमी गति से निकल पड़ा कर्नल साहब और लेफ्टिनेंट कर्नल शहीद अमर सिंह को साथ लिए हुए उनकी अंतिम यात्रा पर ।
एक पिता और पुत्र की अंतिम विदाई एक साथ । बड़ा ही करुण दृश्य था । लोग गमगीन और उदास होने के साथ ही आक्रोशित भी थे । रहकर रहकर पाकिस्तान विरोधी नारे उनके अंदर धधक रही ज्वाला की उपस्थिति का एहसास भी करा रही थी ।
रोती बिलखती नंदिनी महिलाओं के झुंड में घिरी बड़ी देर तक पड़ी रही । लोगों का सैलाव उस वाहन के साथ ही वहां से जा चुका था ।
दूर पश्चिम में सूर्य अपनी मंजिल के करीब था । सूर्य की संभावित जुदाई से धरती माता भी अनजान नहीं थी । गमगीन विरहिणी सी धरती भी अंधेरे का आवरण ओढ़ने को तैयार हो गयी थी । वातावरण में अजीब सी खामोशी छा गईं थी । एक एक कर सभी महिलाएं भी वहां से रुखसत हो गयी थीं । पूरी कोठी सन्नाटे में डूबी हुई थी । रामु भी अब वापस आ चुका था जो शायद उस सैलाव के साथ ही चला गया था जो कर्नल साहब और अमर सिंह के पार्थिव शरीर के साथ खींचता चला गया था ।
नंदिनी की पलकें सूजी हुई थीं । वह रो तो रही थी लेकिन अब उसकी आंखें सूख चुकी थीं । अब उसकी आंखें नहीं उसकी आत्मा रो रही थी । अचानक जैसे उसे कुछ याद आया हो । वह हड़बड़ा कर उठी और अंदर कमरे की तरफ दौड़ पड़ी । दौड़ते हुए उसके मुंह से चीख निकली .”….परी ….!”
और फिर अगले ही पल अंधेरे में ठोकर खाकर गिर पड़ी । फुर्ती से उठकर खुद को संभालते हुए वह फिर एक झटके से उस कमरे की तरफ दौड़ पड़ी जहां वह बेहोशी की हालत में खुद पड़ी हुई थी ।
अंदर एक बेड पर नन्हीं परी सोई हुई थी । शायद रोते रोते ही सो गई थी । गनीमत थी कि वह अकेली नहीं थी । बेड के सिरहाने ही फौजी अस्पताल की एक नर्स बैठी हुई मोबाइल पर कुछ देख रही थी । नंदिनी के आने की आहट सुनते ही वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई । नंदिनी सोई हुई परी को अपनी बाहों में समेटकर बेतहाशा चूमने लगी । और कुछ देर बाद अपनी भावनाओं पर काबू पाकर वह परी को बेड पर लिटाकर उसे धीरे धीरे थपकने लगी । यूँ ही उसे थपकते थपकते वह कब निढाल हो कर परी के बगल में सो गई थी उसे पता ही नहीं चला ।
परी के कुनमुनाहट की आवाज से उसकी नींद खुल गयी थी । ‘ नंदिनी अपनी कहानी सुनाते हुए एक पल को रुकी और साड़ी का पल्लू लेकर भीगी पलकें पोंछने का प्रयास कर ही रही थी कि तभी अंदर के कमरे से बाहर आती हुई परी की आवाज ने सभी को चौंका दिया था । आते ही वह नंदिनी से शिकायती लहजे में बोली ” ये क्या मम्मा ! आप यहां बैठी हैं अब तक और मैं वहां अकेले बैठी आपका इंतजार करते बोर हो रही थी । “
” कोई बात नहीं बेटा ! आप दस मिनट इंतजार कर लो अपने कमरे में । टीवी देख लो तब तक । हम बिरजू अंकल से जरूरी बात कर रहे हैं । ” नंदिनी ने प्यार से उसे समझाना चाहा था ।
” अच्छा ! हम समझ गए ! पापा इतने दिनों बाद आये हैं न ! लगता है आप पापा से मेरी शिकायत कर रही हैं मुझसे छूप कर । ” परी ने नाराज होते हुए मुंह फूला लिया था ।
नंदिनी के कुछ जवाब देने से पहले ही मुनीर ने आगे बढ़कर परी को गोद में उठा लिया और उसे पुचकारते हुए प्यार से बोला ” नहीं बेटा ! मम्मा से ऐसे बात नहीं करते । मम्मा तो आपकी बड़ी तारीफ कर रही थीं । अभी अभी एग्जाम में आपका नंबर भी कितना अच्छा आया है । और फिर तुम तो हमारी जान हो नन्हीं सी परी ! फिर मम्मा तुम्हारी शिकायत क्यों करेंगी ? “
” बात तो आपकी ठीक है पापा ! मम्मा बहुत अच्छी हैं और हमें बहुत सारा प्यार भी करती हैं । लेकिन जब हम किसी चीज की जिद्द करते हैं तो आपका नाम लेकर धमकाती भी हैं । कहती हैं ‘ अबकि आने दो पापा को । उनसे ही तुम्हारी शिकायत करूंगी । ‘ इसीलिए मैंने समझा शायद मम्मा आपसे मेरी ही शिकायत कर रही हैं । ” और फिर दोनों हाथों से अपने दोनों कानों को पकड़कर नंदिनी की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए परी बोल पड़ी ” सॉरी मम्मा ! “
उसकी मासूमियत से भरी हंसी देखकर ऐसे माहौल में भी सब हंस पड़े ।
मुनीर की गोदी से फिसलकर परी नीचे उतर गई थी और फिर ” बाय मम्मा ! मैं इंतजार कर रही हूं । ” कहकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी ।
उसके जाने के बाद नंदिनी ने गहरी सांस ली । मुनीर और बिरजू के चेहरे भी गमगीन थे । उनके सीने के दर्द उनके चेहरों पर स्पष्ट झलक रहे थे ।
उनके चेहरे पर उभर रहे भावों को पढ़ने की कोशिश करती हुई नंदिनी ने आगे कहना जारी रखा ” उस दिन मेरी दुनिया ही नहीं उजड़ गयी थी बल्कि मैं अनाथ भी हो गयी थी । पिता समान ससुर की छत्रछाया भी भगवान ने मुझसे छीन ली थी । इस भरीपूरी दुनिया में मैं अकेली रह गयी थी । मैं बिल्कुल बेसहारा और अंदर से टूट चुकी थी । कभी कभी दिल दिमाग पर हावी हो जाता और मैं तय कर लेती कि ‘ नहीं ! अब जीकर क्या करना है ? अब मुझे खुदकुशी कर लेनी चाहिए । और मैं इसके लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार भी कर लेती कि तभी नजरों के सामने नन्हीं परी का चेहरा आ जाता और एक बार फिर दिल भी दिमाग का साथ देने लगता । दिल मुझे ईतना खुदगर्ज बनने से हर बार बचा लेता । हाँ ! अगर मैं आत्महत्या कर लेती तो यह मेरी खुदगर्जी ही होती । अपनी मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या तो मेरे लिए सबसे आसान और कारगर उपाय होता । लेकिन ऐसी हालत में परी का क्या होता ? क्या होता उसका मेरे बिन इसका निश्चित जवाब मेरे पास नहीं था । और फिर खुद के मुश्किलों के हल के लिए मैं उस मासूम की जान को मुश्किल में नहीं डाल सकती थी । और फिर धीरे धीरे मुझमें परिस्थितियों से मुकाबला करने की हिम्मत आती गयी और मैंने खुद को परी के सहारे जिंदगी बिताने के लिए तैयार कर लिया ।
क्रमशः