tantrik rudrnath aghori - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

तांत्रिक रुद्रनाथ अघोरी - 5

गुरु दर्शन - 1



" यह बात आज से लगभग 20 - 25 साल पहले की है I पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिला के एक श्मशान में मैं बैठा हुआ था I जहां पर बैठा हूं उसके कुछ ही दूर आगे से एक बड़ी नहर बहती चली गई है I नहर का जल बहुत ही साफ था और उसके बहने की आवाज को सुनकर ऐसा लग रहा था की बहाव की गति धीमी नहीं है I उस समय दोपहर था , पूरे दिन चलते रहने के कारण थक गया था और इस श्मशान के बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर आराम कर रहा था I
अचानक मैंने देखा नहर के दूसरी तरफ वाले छोटे मिट्टी के रास्ते से एक आदमी बढ़ता चला आ रहा है I मैं एकटक उधर ही देख रहा था , और कुछ आगे आते ही देखा पहनावे में एक मैली धोती और बदन पर पीले रंग कपड़ा लपेटा हुआ और कंधे पर एक थैला व हाथ में लाठी , उस लाठी के सहारे ही वह आदमी चल रहा था I उसका चेहरा एकदम सूखा व दुर्बल था , अचानक देखने से ऐसा लगता मानो किसी ने सूखे बांस को कपड़ा पहना दिया है I और कुछ आगे आते ही समझा कि वह आदमी वृद्ध है I उम्र लगभग यही कोई 80 -
85 साल के आसपास होगा I मैं नहर से जितनी दूरी पर बैठा था , नहर के उस पार वह बूढ़ा आदमी भी उतनी ही दूरी पर था लेकिन वह मुझे नहीं देख पाया I और मुझे ना देख पाना ही स्वाभाविक है क्योंकि उनका जो उम्र था उसमें दृष्टिशक्ति कम हो जाता है , यहां मैं तो बैठा था बरगद के पेड़ पर टेंक लगाकर और मेरे सामने ही बहुत सारे बड़े-बड़े घास थे I जिससे मेरा आधा शरीर नहर के उस पार से शायद ना ही दिखे I अचानक मैंने देखा वह बूढा आदमी जल्दी से नहर के
पास आया और नहर के पानी में अपने लाठी को डाल दिया I कुछ भी न समझने के कारण मैं उधर ही ध्यान से देखता रहा और थोड़ा झुककर बैठा जिससे वह बूढ़ा आदमी मुझे देख ना पाए I थोड़ी देर बाद मुझे दिखा नहर के पानी में एक लाश बहता हुआ चला आ रहा है और वह लाश बूढ़े आदमी के लाठी से टकराते ही , उस लाश के कपड़े को अपने लाठी में
लपेट किसी तरह उसे पानी से बाहर निकाला I और फिर उसके बाद उस लाश को नहर के किनारे ले जाकर लेटा दिया I फिर इधर उधर देखकर वह बूढ़ा आदमी भी उस लाश के ऊपर लेट गया I मैं तो कुछ भी नहीं समझ पा रहा था कि आखिर वह बूढ़ा आदमी कर क्या रहा है ? कुछ देर बाद मैंने देखा बूढ़े के नीचे वाला मृत आदमी हिलने लगा I तुम विश्वास नहीं करोगे उस गर्मी के दिन मानो डर की एक ठंडी हवा मेरे पूरे शरीर में घूमने लगा I सुनसान दोपहर को गांव के उस श्मशान में देखा हुआ वह दृश्य मैं आज भी नहीं भूल पाया I उसके बाद मैंने देखा कि वह मृत आदमी खड़ा होकर उस बूढ़े के पास जो कुछ भी था उसे लेकर , बूढ़े के प्राणहीन शरीर को नहर में डाल दिया I मैंने अपनी आंखों से देखा कि एक जिंदा मनुष्य मर गया और एक लाश फिर से जिंदा हो गया I बूढ़े के शरीर को नहर में प्रवाहित करके , इधर उधर देखा और फिर उसी मिट्टी के रास्ते से चला गया I जो लाश जिन्दा हो गया था उसका उम्र यही 25 से 28 के बीच होगा I
मैं तो यह सब देखकर डर के मारे ईश्वर का नाम जप करने लगा था I और ज्यादा देर प्रतीक्षा ना करके मैं वहां से उठकर अपने रास्ते चला गया I "

जयदत्त मिश्रा , तांत्रिक रूद्रनाथ अघोरी के झोपड़ी में बैठकर ध्यान से इन बातों को सुन रहे थे I
इसके बाद वह बोले - " लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है ? और क्यों हुआ ? "
तांत्रिक रुद्रनाथ बोले - " इसका मतलब मैंने बहुत बाद में जाना था I जब तंत्र साधना में और उच्च साधना को करने गया तब मुझे समझ में आया I असल में होता यह है कि कई साधक एक ही जन्म में अपने सभी साधनाओं को पूर्ण नहीं कर पाता है I जिस साधना में वह व्यस्त है उस साधना में अगर गुरु दर्शन नहीं मिला तब तक साधना संपन्न नहीं होता I साधना करते करते अगर उसे अंत करें बिना ही साधक की मृत्यु हो जाए तो साधना का संकल्प व्यर्थ हो जाएगा I लेकिन शरीर क्यों यह सुनेगा I शरीर तो एक न एक दिन नष्ट जरूर होगा लेकिन आत्मा कभी खत्म नहीं होता I असल में शरीर है एक पुराने कपड़े की तरह , जैसे हम अपने पुराने खराब कपड़ों को फेंककर नए कपड़े पहनते हैं I लेकिन क्या पुराने कपड़े को फेंकने से हम मर जाते हैं , ठीक उसी तरह है आत्मा I आत्मा के लिए शरीर है एक कपड़े की तरह , जो एक समय नष्ट हो जाता है लेकिन आत्मा को कुछ भी नहीं होता I बाद में मुझे समझ में आया था कि उस दिन का वह
बूढ़ा आदमी कोई उच्चकोटि का साधक था I किसी बड़े साधना में जुड़ने के कारण , उस साधना को समाप्त करने के लिए अपने शरीर को नहर में बहते उस मृत युवक के शरीर से बदल लिया I जिससे वह अपने साधना को निरंतर कर सकें I साधना करने से ऐसी शक्तियां भी मिलती है I साधना व योग शक्ति से अपने आत्मा को वश में किया जा सकता है I "
इतना बोलकर तांत्रिक रुद्रनाथ शांत हुए I
जयदत्त बोले - " सचमुच कितने सारे विचित्र बातें हैं इस जगत में , जिसके बारे में हम सोच भी नहीं सकते I "
तांत्रिक बोले - " हां , इस पृथ्वी पर ऐसा बहुत कुछ है जो साधारण मनुष्य के सोच से परे हैं I मनुष्य सोचता है कि वह अपने आंखों से देखता है उसके बाहर और कुछ भी नहीं है I ऐसा बहुत कुछ है जो केवल अनुभव किया जा सकता है लेकिन आंखों से नहीं दिखाई देता I जैसे हवा , अनुभव कर सकते हो लेकिन क्या इसे आंखो द्वारा देख सकते हो I असल में मनुष्य भूल जाता है कि उसके पूरे मस्तिष्क से यह जगत बहुत ही बड़ा है I आज बहुत सारे वैज्ञानिक है जो हृदय को काटकर उसके एक - एक भाग की वर्णना कर सकते हैं लेकिन उस हृदय के अंदर प्राण कहां से आया , क्या उसके बारे में बता सकते हैं ? इसी वक्त आत्मा के बारे में जिक्र होता है I जहां से विज्ञान समाप्त होता है वहीं से अलौकिक जगत की शुरुआत होती है I या फिर कह सकते हो अलौकिक सभी जगह विद्यमान है केवल उसके बीच में
विज्ञान ने थोड़ा सा आविष्कार करके खुद को सर्वशक्तिमान सोच रहा है I अब भी बहुत बार होता है और भविष्य में भी होगा , जब कोई मरता हुआ रोगी अस्पताल के बिस्तर पर लेटकर मृत्यु के साथ लड़ रहा होगा उस समय डॉक्टर अपने सभी प्रयासों से नाकाम होकर रोगी के घरवालों से बोलता है भगवान से प्रार्थना कीजिए I इस बात को कहने का मतलब है विज्ञान ने हार मान लिया , अब जो कुछ भी होगा वह सब भगवान के हाथों में है I इसके बाद अगर रोगी बच गया तो कोई भगवान को धन्यवाद देते हैं और कोई विज्ञान का
गुणगान करता है I और अगर मर जाता है तो कहतें हैं भगवान माने कुछ नही होता I डॉक्टर भी कितना कर सकते हैं I डॉक्टर होने के बावजूद वह भी तो एक मनुष्य है I जन्म व मृत्यु दोनों पर समय भगवान ऊपर बैठकर हंसते रहते हैं क्योंकि कहते हैं न कि जन्म , मृत्यु और शादी यह तीन वस्तु
विधाता के हाथ में है I "
यही सब कुछ बताकर तांत्रिक रुद्रनाथ चुप हुए I
जयदत्त बोले - " आपने तो अपने जीवन में बहुत कुछ अलौकिक घटना देखा है I कुछ भयानक घटना के बारे में बताइए I "
तांत्रिक रूद्रनाथ बोले - " कितना अलौकिक है यह नहीं बता सकता लेकिन जो घटना याद आ रहा है एक समय वह मेरे लिए बहुत ही डरावना था I सचमुच डर किसे कहते हैं इस घटना की विभत्सता में मैंने समझा था I "

यही बोलकर तांत्रिक रुद्रनाथ में बताना शुरू
किया I

" उस समय पश्चिम बंगाल के अट्टहास शक्तिपीठ मंदिर में रहता था I वहां पर रहकर साधना में सिद्धि प्राप्त करना ही मेरा एकमात्र उद्देश्य था I लेकिन किसी अच्छे साधु का साथ ना होने के कारण मेरा गुरु दीक्षा भी नहीं हुआ था I उस
समय तक मैंने श्री कृष्णानंद आगमवागीश का दर्शन नहीं किया था I सुबह से शाम तक देवी के मंदिर में बैठा रहता था और रात को मंदिर बंद होने के बाद मंदिर से बाहर कुछ दूरी पर एक नीम के पेड़ के नीचे ध्यान करने बैठता I वहां पर आने वाले श्रद्धालुओं के दिए हुए प्रसाद को खाकर न जाने कितने रात बिताया I ऐसे ही एक रात को लेटा हुआ था, अचानक कुछ आवाजों को सुनकर मेरी नींद खुल गई I आँखे खुलते ही पहला दृश्य जो मैंने देखा , वह था कुछ ही दूरी पर जलता एक धूनी , उस रात की घटना मुझे हमेशा याद रहेगा I दिन था अमावस्या का इसीलिए शायद कोई साधक आग जलाकर साधना करने बैठा था I उसी आग
के धुंधले प्रकाश में मैंने एक आदमी को देखा, लाल धोती पहना हुआ , इसके अलावा शरीर पर कोई कपड़ा नहीं I वह आदमी कुछ घसीटते हुए ले जा रहा था I मैं जहां पर लेटा हुआ था वहां बहुत ही अंधेरा था, इसीलिए वह आदमी मुझे नहीं देख पाया लेकिन मैंने उसे देख लिया था I देखकर लगा कि वह जिस वस्तु को जमीन पर घसीटते हुए ले जा रहा है, और कुछ हद तक 5 - 6 साल के बच्चे जैसा था लेकिन उस बच्चे के धड़ पर सिर नहीं था I यह देख मेरा पूरा शरीर ठंडा हो गया, हृदय गति और तेज हो गई I मैंने अनुभव किया कि मेरा पूरा शरीर कांप रहा है I मैंने मन ही मन बोला ' हत्या ' ,
तभी मुझे एक और बात याद आई कि उस समय बहुत सारे कापालिक अपने साधना की पूर्ति के लिए छुपकर नरबलि भी देते थे I यही बात मेरे दिमाग में बार बार घूमता रहा I वह आदमी कुछ दूर जाकर पास के जंगल में ही उस धड़हीन शरीर को फेंककर , जिधर से आया था उधर ही लौट गया I
मैं कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद , वहां से उठकर पास ही पड़े एक कपड़े को फाड़कर लाठी में लपेट एक मशाल जैसा बनाकर उसे जलाया और धीरे-धीरे पीछे के जंगल की ओर मैं चल पड़ा I जमीन पर लाल खून के धब्बे ने मेरा पथ प्रदर्शित किया I मैं सच बताऊं तो डर के कारण मेरा हाथ पैर कांप रहा था लेकिन मन में एक यही कौतुहल था कि मुझे जानना ही होगा कि आखिर असली बात क्या है ? यही सब सोचते हुए मैंने जंगल के अंदर प्रवेश किया I कुछ दूर अंदर जाते ही मुझे वह वस्तु दिखा I सच बताऊ तो उस समय ऐसा लगा था कि अगर मैं किसी बच्चे का सिर कटा शरीर देखता तो इतना डर नहीं लगता जितना असल वस्तु को देखकर लगा था I जो देखा उसका पूरा शरीर भूरे रंग के बालों से ढका और पैर के पंजे काले ,वह एक सिर कटा हुआ
बंदर था I उसके कटे सिर के जगह से उस समय भी ताजा खून निकल रहा था I यह वीभत्स दृश्य देख , मैं वहां ज्यादा देर खड़ा नहीं रह सका और वहां से कुछ दूर दौड़ते हुए भागा I भागते हुए न जाने किस वस्तु से टकराकर गिरने के कारण मैं वही बेहोश हो गया I सुबह की रोशनी चेहरे पर पड़ते ही मेरा नींद खुल गया I चटाई से उठ पास ही नदी से नहाकर, देवी मंदिर की ओर चल पड़ा I लेकिन आज मन सही नहीं था कल रात की घटना ने मुझे कितना हताहत किया है वह मैं जानता था I उस समय भी नहीं समझ पाया कि यह घटना एक ऐसा मोड़ लेगा I जो भी हो उस दिन पूरे दिन देवी मां के सामने उनका ध्यान करने में ही बीत गया I लेकिन आज बार-बार मन कहीं और भटक रहा था I आंख बंद करके देवी नाम जप करते ही कल की घटना आंखों के सामने आ जाती I इसी तरह रात हुआ , नीम के पेड़ के नीचे चटाई बिछाकर मैं लेटा हुआ हूँ लेकिन आज आंखों में नींद नहीं है I लेट कर आसमान को देख रहा हूँ, चारों तरफ अंधेरा , कृष्ण पक्ष के कारण धरती ने मानो प्रकाश को त्याग दिया है I केवल बीच-बीच में उल्लू और सियार की आवाज सुनाई दे रहा है I तारों से भरा आसमान कितना नजदीक लग रहा है मानो हाथ उठाते ही पकड़ लूंगा I अचानक सूखे पत्तों के ऊपर पैरों की आवाज सुनकर अपने दाहिने तरफ देखा I मैंने देखा कि एक
अँधेरी काया उसी जंगल की ओर चलते हुए जा रहा है I उसे देखकर मैं समझ गया कि यही वो आदमी है जो कल ठीक इसी समय पर आया था I आज भी जमीन से घसीटते हुए कुछ ले जा रहा है उसी जंगल की ओर , मैं जल्दी से उठकर नीम के पेड़ के पीछे छुपकर इंतजार करता रहा I कुछ देर बाद उस आदमी के जाते ही ,मैंने जल्दी से फटे - चिटे कपड़ों को इकट्ठा कर एक मशाल बनाया और जंगल की ओर बढ़ता गया I आज भी ताजा खून के छीटों ने मुझे रास्ता दिखाया I कुछ दूर आगे जाते हैं एक बदबूदार गंध मेरे नाक में आने लगा I मैं समझ गया कि कल फेंके गए बंदर का शरीर सड़ना शुरू हो गया है I नाक को एक हाथ से दबाकर मैं वहां पर पहुंचा और देखा कि बंदर के शरीर से कुछ ही दूरी पर एक और रोयेंदार शरीर पड़ा हुआ है I कल की तरह आज डर नहीं लग रहा था बल्कि उसके जगह पर एक कौतुहल था I मशाल को थोड़ा ऊँचा करते ही दिखाई दिया , चार हाथ पैर फैलाकर जमीन पर पड़ा हुआ है एक सिर कटा सियार और मिट्टी में चारों तरफ उसका खून फ़ैल रहा है I मैं जंगल से निकल आया और मैंने सोच लिया कि मुझे क्या करना है I कल अगर वह आदमी फिर आया तो मैं उसका पीछा करूंगा I प्रतिदिन ऐसी पशु हत्या और सहन नहीं कर सकता था I कुछ ना कुछ तो करना ही होगा चाहे जो हो जाए I उस समय उम्र कम था और शरीर का खून गर्म , मन के अंदर से डर हटकर उसकी जगह पर बहुत सारा गुस्सा भर गया था I

अगले दिन रात को मैं पूरी तरह तैयार होकर बैठा था I उत्तेजना के कारण बार-बार गला सूख रहा था I जब मनुष्य किसी का एकटक प्रतीक्षा करता है तो उसके देर करते ही मन छटपटाने लगता है I ठीक है वैसा ही हुआ आज , समय निकलता जा रहा है लेकिन वह आदमी आज नहीं आ रहा I आज पहले से ही मशाल बनाकर और हाथ में माचिस लेकर तैयार था I बैठा हूं तो बैठा ही हूं उस आदमी का आज कहीं अता - पता नहीं I मैंने मन ही मन कहा कि आज वह आदमी आए या ना आए मैं प्रतीक्षा तो करूंगा क्योंकि इस रहस्य का अंत न देखने तक मैं शांत नहीं रह सकता I " ....



अगला भाग क्रमशः .....