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मैं तो ओढ चुनरिया - 18

मैं तो ओढ चुनरिया
अध्याय 18


कई दिन तक केसरादेई और उसकी कहानी मेरे दिमाग पर हावी रही । कैसे एक माँ अपने स्वार्थ के चलते किसी दूसरे की बेटी की जिंदगी बर्बाद कर सकती है । और एक तेरह साल की लङकी ने माँ बाप की इज्जत और धर्म के नाम पर अपनी पूरी जिंदगी लुटा दी बिना शिकवा शिकायत किये । कितना सहना पङा होगा उस तेरह साल की बच्ची को । फिर आदि होती चली गयी होगी इस जिंदगी की । एक दम गोरी चिट्टी रंगत में जैसे गुलाब और केसर का चूर्ण मिलाकर विधाता ने गढा होगा केसर को और शाहजी कद में केसर के कंधे तक आते थे । रंग रूप में भी भगवान कंजूसी कर गया था और दाढी मूँछ तो बनानी भूल ही गय़ा था ।
फिर धीरे धीरे मैं यह सब भूल गयी । इस बीच माँ मंझले मामा को साथ लेकर पंडित के पास गयी और पूजा का मुहुर्त निकलवा आई । मुहुर्त सात दिन बाद का निकला था । अब सामान का जुगाङ करना था । पिताजी रोज सुबह दिन निकलने से पहले उठते और घर से चले जाते । सात साढे सात बजे लौटकर नहाते फिर पूजा करते और दो रोटी खाकर काम पर निकल जाते । दोपहर तक घोङागाङी पर कभी ईंट , कभी रेत जैसा कोई सामान आता । माँ या मामा प्लाट में जाकर सामान उतरवाते । धीरे धीरे प्लाट में सामान बढने लगा था ।
फिर वह दिन आ गया जिस दिन भूमि पूजन होना था । सही समय पर पंडितजी आए । ईंट और धरती की पूजा की गयी । जमीन में फावङा चलाकर खुदाई की गयी । माँ और पिताजी ने उस खोदी हुई भूमि में चावल , गुङ , फूल ,कुछ सिक्के और चाँदी से बना हुआ नाग नागिन का जोङा रखा । हाथ जोङकर प्रणाम किया । उसके बाद सबको लड्डू बाँटे गये । उसके बाद नींव खोदने का काम शुरु हो गया ।
जहाँ यह प्लाट था वहाँ कभी बाग हुआ करता था आम और लीची का बाग । मुख्य सङक के साथ साथ एक रजबाहा बहता था जिसमें नहर से पानी आता था । यह रजबाहा उस बाग और खेतों को पानी लगाने के काम आता था । उसी रजबाहे से एक छोटी कूल निकलती थी जो हमारे प्लाट को छूती हुई आगे बढ जाती थी । उस कूल के सामने राधास्वामी सतसंगघर था जो पूरा सप्ताह बेरौनक रहता पर इतवार को सुबह चार बजे ही लोग आने शुरु हो जाते । पहले सेवादार आते जो झाङू लगाते , पानी का छिङकाव करते , दरियाँ बिछाते , लाउडस्पीकर सैट करते । इस सबमें आठ बज जाते । तब तक संगत आनी शुरु हो जाती । साढे आठ बजे माईक टैस्ट होता – हैलो हैलो , मी टैस्टिंग हैलो । नौ बजे सतसंग शुरु हो जाता जो बारह सवा बारह तक चलता । फिर लोग घरों को चल पङते । एक बजे तक पूरा सतसंगघर खाली हो जाता और तभी से अगले रविवार की चहलपहल का इंतजार शुरु कर देता ।
दूसरी तरफ खाली मैदान था । थोङी दूरी पर कुछ रिफ्यूजी अरोरा लोगों के घर थे । ये सब पाकिस्तान से उजङ कर आये हुए लोग थे जो मेहनत करके अपने अस्तित्व की लङाई लङ रहे थे । इनमें से एक हलवाई थे जो दूध , दही खोआ और बरफी बेचा करते ।इनके तीन बेटे और एक बेटी थी । बेटे अक्सर पढने न जाकर दूध ओटाने में अपने पिता की मदद करते नजर आते । बेटी ने छ कक्षा पास कर ली थी और आजकल घर पर रह कर सुयोग्य वर के आने का इंतजार कर रही थी । दूसरे थे चायवाले चाचा जिनकी चौक में चाय की दुकान थी । वे सुबह चार बजे घर से निकलते और दुकान पर बैठ चाय छाना करते । इन्हें सब चायवाला ही कहकर पुकारते थे । इनके पाँच बेटे थे । अक्सर इनके घर से इनकी पत्नि के चीखने चिल्लाने की आवाजें आती और पूरे मौहल्ले का चैन हराम किये रहती । टोके जाने पर आँखों में आँसू भर लाती और कहती – तुम तो नसीब वाली हो बहन । बेटी की माँ जो हो । सौ कामों में हाथ बँटाती हैं बेटियाँ । मेरे ये मुंडे तो काम के न काज के दुशमन अनाज के । ऊपर से सारा दिन आपस में हाथापाई करते रहते हैं । इनके पिताजी तो सुबह के निकले रात को दस बजे से पहले घर आते नहीं । मैं अकेली जान इनसे उलझती रहती हूँ ।
तीसरे घर में बनारसी ताऊ रहते थे जिनकी चौक मं प्रचून राशन की छोटी सी दुकान थी इनके दो बेटे और दो बेटियाँ थी । ताई पूरी फैशनबाज और बातों की शौकीन । एक बार बातें शुरु कर दे तो सब काम भूल जाए । उनकी बातों की दीवानगी की एक मिसाल अक्सर कही सुनी जाती थी । ताई की सबसे छोटी बेटी बङी प्यारी सी थी नाम रखा गया रजनी । एक दिन ताई ने उसे नहलाया । दूध पिलाकर घर के बाहर खटोले पर सुला दिया और खुद हलवाईन से बतियाने लगी । बातें चल पङी । घर गृहस्थी की बातों से शुरु हुई बातें बाजार हाट फिर गली मौहल्ले की चर्चा तक जा पहुँची । अचानक चमरटोले के बच्चे शोर मचाते हुए भागते गिरते पङते आए और उन्होंने ताई को झिंझोङकर बताया कि उनकी रजनी को सुअर उठाकर ले गया है । अब ताई की नजर खटोले पर गयी ।बच्ची वहाँ नहीं थी । वे रोती हुई हलवाईन के साथ बच्चों की बताई दिशा में गयीं । गनीमत यह रही कि चमारो ने उनके पहुँचने से पहले ही बच्ची को सुअर से छुङवा लिया था । पर रजनी की एक बाँ ह बुरी तरह से जख्मी हो गयी थी । सुअर ने अपने दाँतों में कस कर पकङी थी न इसलिए पूरा माँस उधङ गया था और खून टपक रहा था । जगह जगह सङक पर घसीटे जाने से रगङे भी लगी हुई थी । बच्ची टट्टी से लिथङी हुई थी । हुआ यूँ कि बच्ची एक गंटा सोकर उठी । उसने रोकर माँ को पुकारा होगा पर माँ तो बातों के रस में खोयी ही थी । बच्ची ने पाखाना कर दिया । कोई सूअर उधर से जा रहा था । पाखाने और दूध की मिली जुली गंध ने उसे आकर्षित किया और वह बच्ची को लेकर फरार हो गया । ताई रोये जाए और बच्ची को धोए जाए । घर लाकर ताई खुद बी गंगाजल से नहाई और रजनी को भी नहलाया । फिर डाक्टर के पास लेकर गयी । पूरे दो महीने लगे थे रजनी का जक्म ठीक होने में पर बांह पर माँस नहीं आ सका । सारी जिंदगी के लिए रजनी को देख देख वे रोती पर बातें , उनका चस्का ताई से न छूटा ।

शेष अगली कङी में ...