Akshmya Apradh - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

अक्षम्य अपराध - 1

प्रस्तर मूर्ति के समान स्थिर बैठी दिव्या निर्निमेष,सूनी अश्रुविहीन नेत्रों से सामने की दीवार देखे जा रही थी।सफेद चेहरे पर ठहरी हुई पुतलियां इंगित कर रही थीं कि वह जीवित तो है, परन्तु संज्ञाशून्य हो चुकी है, अपने जीवन में विधाता या शायद निष्ठुर लोगों के कपट भरे आघात से।भले ही इसे बदकिस्मती का नाम दे दिया जाय लेकिन उसकी तकदीर की लकीरों में बर्बादी लिखने वाले लोग क्षमा के योग्य तो कदापि नहीं।ये अलग बात है कि उनकी सजा सिर्फ़ ऊपरवाले के हाथ में है।
आह!कितने क्रूर होते हैं वे लोग जो अपने निहित स्वार्थ के लिए किसी मासूम के जीवन, उसके सपनों की बलि चढ़ा देते हैं।कौन समझेगा उस मासूम की अंतर्व्यथा।
राधेश्याम पांडे जी विद्युत पावर हाउस में जूनियर इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे, पत्नी लक्ष्मी देवी, बड़ी बेटी दिव्या एवं उससे छोटे बेटे शिवम के साथ सुखपूर्वक रह रहे थे।सीधा-साधा परिवार था, दुनियावी छल कपट से दूर, आस पड़ोस, परिचितों, रिश्तेदारों सभी के सुख-दुःख में शरीक होने वाले लोग थे।
विवाह के 10-12 वर्ष पश्चात बड़ी पूजा-मन्नतों के बाद बेटी दिव्या पैदा हुई थी, उसके दो साल बाद ही ईश्वर की असीम अनुकम्पा से शिवम आ गया था।वे बेहद खुश थे अपने परिवार के साथ।दिव्या में तो जैसे उनके प्राण ही बसते थे।यदि कभी वह बीमार पड़ जाती तो पांडे जी पूरी -पूरी रात जगते थे उसके सिरहाने बैठकर।लक्ष्मी जी कभी- कभी मजाक में कह देतीं कि तुम दोनों बाप-बेटी के बीच तो मैं बाहरवाली सी हो जाती हूं।बचपन से ही स्कूल से आते ही दिव्या पिताजी को खोजती, उनके ऑफिस से आते ही पूरे दिन का ब्यौरा पिता को सुनाकर ही चैन की सांस लेती।किशोरावस्था में प्रवेश करने पर अवश्य उन समस्याओं पर माँ से बात कर लेती, जिनपर पिता से बात नहीं कर सकती थी।शिवम जब छोटा था तब दिव्या से लड़ता कि पापा आपको ज्यादा प्यार करते हैं।समझदार होने पर दिव्या शिवम को कहती कि तुम्हें तो हम तीनों ही प्यार करते हैं।
युवावस्था में प्रवेश करते- करते वह सभी गृहकार्यों में दक्ष हो गई,क्योंकि अवकाश के समय प्रारंभ से ही माँ का हाथ बंटाया करती थी।बीए करते समय भी रात के खाने में माँ के साथ बराबर लगी रहती थी।
एमए में प्रवेश लेते ही माता-पिता को अपनी प्यारी बेटी के विवाह की चिंता हर भारतीय मां-बाप की तरह सताने लगी।बेटी के लिए योग्य घर-वर ढूढ़ना कभी भी सरल कार्य नहीं होता था।कोई जल्दबाजी तो थी नहीं, फिर उन्हें पूर्ण विश्वास था कि उनकी सर्वगुण संपन्न बेटी के लिए सुयोग्य वर मिलने में विशेष कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा।पांडे जी ने अपने रिश्तेदारों एवं परिचितों से रिश्ते बताने के लिए कह दिया था।रिश्ते तो सभी ने बताए भी अत्यधिक, जो उचित लगता वहां जाते भी।कहीं जन्मपत्री नहीं मिलती, कहीं जमीन-जायदाद नगण्य होती, कहीं लड़का कमतर होता।समय व्यतीत हो रहा था, इसी मध्य दिव्या का एमए प्रथम वर्ष पूर्ण हो गया।
तभी उनके बड़े भाई ने जो वाराणसी में लेक्चरर थे,अपने किसी मित्र के परिचित के बेटे का रिश्ता बताया।वे भाई साहब के साथ लड़के वालों के यहां गए।विशाल बंगलेनुमा आधुनिक साज सज्जा से युक्त घर था, रवि द्विवेदी उनका इकलौता बेटा था जो उनके कथनानुसार लखनऊ में कार्यरत था, रवि के पिता का अपना व्यापार था, घर में नौकर-चाकर, गाड़ी इत्यादि सभी ऐश्वर्य के साधन उपलब्ध थे।रवि के माता-पिता के प्रेमपूर्ण भव्य स्वागत से पांडे जी एवं उनके भाई साहब बेहद प्रभावित हुए।लड़के की फ़ोटो लेकर वे वापस आ गए, जन्मपत्री मांगने पर उन्होंने लड़की की जन्मपत्री देने को कहा,क्योंकि उनका कहना था कि उनका इकलौता पुत्र है, अतः वे अपने पंडित जी से जन्मपत्री का मिलान करवाना चाहते हैं।कुछ दिनों पश्चात ही उनका जबाब आ गया कि पूरे 30 गुण मिलें हैं एवं बेटा भी आजकल आया हुआ है अतः आपलोग आगे के वार्तालाप के लिए आ जाएं।इसी मध्य भाई साहब ने अपने मित्र तथा द्विवेदी जी के घर के आसपास से थोड़ी जानकारी परिवार के बारे में प्राप्त कर लिया।
इस बार पांडेजी रवि से मिले,दुबला-पतला,अल्पभाषी,सुंदर युवक प्रतीत हुआ रवि उन्हें।अधिकतर वार्तालाप रवि के माता-पिता ही कर रहे थे।फिर अगले सप्ताह ही लड़की देखने का प्रोग्राम निर्धारित हो गया।द्विवेदी परिवार ने संकट मोचन मंदिर परिसर में ही इस कार्यक्रम को रखा, उनकी इच्छानुसार पांडेजी सपरिवार बड़े भाई साहब के यहाँ एक दिन पूर्व आ गए।नियत समय पर सभी लोग मंदिर में एकत्रित हुए।देखने-दिखाने के प्रोग्राम के बाद द्विवेदी परिवार ने कहा कि हमें तो दिव्या पसंद है, यदि आप लोग भी राजी हों,तो अभी ही सगाई कर देते हैं।लेन देन के बारे में उन्होंने पूर्व ही स्पष्ट कर दिया था कि हमारे पास ईश्वर की कृपा से धन-धान्य की अधिकता है, अतः आपका जो भी संकल्प हो,उसे आप अपनी बेटी के नाम जमा कर दें।
पांडे परिवार उनकी सज्जनता से इतने अभिभूत हो चुके थे कि रवि के कार्यस्थल पर जाकर जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता ही नहीं समझी,बस यहीं धोखा खा गए।एक बार शिवम ने कहा भी था कि जॉब पर जाकर भी जांच-पड़ताल करनी चाहिए, परन्तु ताऊजी ने झिड़क दिया, बड़ों के बीच बोलने की आवश्यकता नहीं है।
एक माह पश्चात ही द्विवेदी जी ने विवाह की तिथि निकलवा दी।इतनी शीघ्रता के लिए उनकी दलील थी कि यह तिथि अत्यंत शुभ एवं उत्तम है, उसके पश्चात कई माह बाद ऐसी तिथि निकलेगी।अब हमारे समाज में लड़के वालों की बात टालने का साहस तो ज्यादातर लड़की वालों में नहीं होती,वर पक्ष के आदेश ब्रह्मवाक्य के समान होते हैं।
द्विवेदी जी के इच्छानुसार विवाह का कार्यक्रम वाराणसी से ही होना तय हुआ।यह भी कुछ असामान्य नहीं था क्योंकि आजकल ज्यादातर लड़के वाले यही कर रहे हैं, इसमें उनका फायदा होता है, एक तो बारात ले जाने के झंझट से बच जाते हैं, साथ ही ज्यादा से ज्यादा परिचित, रिश्तेदारों की दावत कन्या पक्ष के खर्चे पर निबट जाता है।कन्या पक्ष भी सोचता है कि वर के शहर में यदि तैयारियों में कोई कमी रह भी गई तो वे अधिक शोर नहीं मचाएंगे।एक अच्छे बैंक्वेट हॉल में समस्त कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।सारी तैयारी द्विवेदी जी के निर्देशानुसार हो रही थी।पांडे परिवार अपने समस्त परिजनों समेत एक दिन पूर्व ही मैरिज हाउस में आ गए थे।
क्रमशः ……
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