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आप हमारे हिस्से में नहीं

आप हमारे हिस्से में नहीं


मैं गणेश प्रसाद उम्र लगभग 65 या 70 के आसपास होगा। घर...., छोड़िए क्या फायदा बता कर पर चलो बता ही देता हूँ लहेरियासराय दरभंगा बिहार..... गली मुहल्ला बता कर कोई फायदा नहीं क्योंकि अब वो मेरा घर नहीं रहा, पता है क्यों? क्योंकि बहू बेटों ने घर से निकाल दिया यह कह कि "आप हमारे हिस्से में नहीं...." एक साल पहले मेरी धर्मपत्नी शांति का स्वर्गवास हो गया वो मुझे अकेले छोड़ कर चली गई। जिन्दगी भर का साथ देने का वादा की थी वो पर झूठी ने अपना वादा तोड़ दिया...खैर... वैसे एक तरह से अच्छा ही हुआ अपने संतानों को खुद के प्रति ऐसा व्यवहार देखकर वो जीते जी घुट-घुटकर ही मर जाती उससे अच्छा यही हुआ कि खुशी-खुशी वो चली गई। लेकिन, एक शिकायत हमेशा उससे रहेगी....काश! वो मुझे अपने साथ ले जाती। उसने मुझ पर बच्चों की जिम्मेदारियां सौंप दी यह बोल कि अभी बच्चे ना समझ हैं लेकिन शायद उस पगली को नहीं पता था कि आजकल के बच्चे कुछ ज्यादा ही समझदार होते हैं।
मेरे तीन बेटे हैं तीनों की शादी हो चूकी है तीनों अपनी-अपनी जिन्दगी में काफी खुश हैं इसलिए मैं भी खुश हूँ। तीनों की अच्छी नौकरी भी लग चूकी है बड़ा बेटा गाँव के ही थाने में सिपाही के रूप में तैनात है, बीच वाला बेटा बैंक में मैनेजर है, और छोटे बेटे को अभी-अभी शहर के किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिली है तीनों अच्छा खासा पैसा कमा लेता है। एक मेरी बेटी भी है वो अपने ससुराल में है अपने पति के साथ उसकी शादी सोलह वर्ष में ही गई क्योंकि तीनों भाईयों ने उसकी जिम्मेदारी अपने उपर लेने से मना कर दिया था और हम माँ-बाप बुढ़ापे के कारण मजबूर थे, उसकी शादी शांति के मौजूदगी में ही हुई थी। मेरी बेटी सबसे छोटी है घर में, लेकिन सिर्फ उम्र में, वो हमेशा पूरे घर को चलाया करती थी। घर के सारे काम वो अकेले ही कर लेती, बहुत गर्व है मुझे अपनी बेटी पर..., जब तक वो घर में थी तब तक मेरी दुनिया ही अलग थी उसके ससुराल जाने के बाद लगा जैसे सबकुछ छिन गया हो मुझसे, तीन भाई होने के बावजूद भी उसके लिए कोई अच्छा कमाउ घर नहीं देखा। बस उससे दुगुनी उम्र के लड़के से उसकी शादी करवा दी। लेकिन, अपने समझबूझ के कारण आज वो खुश है इसलिए तस्सली है मुझे,
पहले हमारे पास उतना पैसा नहीं हुआ करता था मैं बहुत गरीब था। चार बच्चों को पालना बहुत मुश्किल था उस समय मेरे लिए। खेतों में मजदूरी करने के बाद दो वक़्त की रोटी खाने को मिला करती थी। मुझे आज भी याद है वो दिन जब मैं खेतों से काम करके घर लौटता था और जैसे ही आंगन में खाट पर बैठता था वैसे ही मेरे तीनों बेटे दौड़कर मेरे पास आते थे कोई बेटा पैर दबाता, तो कोई हाथ , तो कोई प्यार से सिर पर हाथ फेरता, बेटी उस वक़्त बहुत छोटी थी। शांति दौड़कर मेरे लिए पानी लाया करती थी चारों इतना प्यार करते थे कि क्या बताऊँ दुनिया का सबसे खुदकिस्मत इंसान मैं खुद को समझता था। तभी तो खुद की नजर खुद को ही लग गई। या फिर यूँ कह लें कि सबकुछ भ्रम मात्र था आज पता चला समय के साथ सब बदल जाता है ।
मेरी पत्नी कहा करती थी भविष्य के लिए कुछ पैसे जोड़कर रख लो कोई काम ना आने वाला है पर मैं उससे हमेशा कहता था अरे! बावली जब मेरे तीन-तीन बेटे हैं तो मैं क्यों करूँ कल की चिंता.... पर आज बहुत ही ज्यादा पश्चाताप हो रहा उस बात पर कि मैं क्यों नहीं अपनी पत्नी की बात सुना। शायद मेरे पास कुछ पैसे होते तो आज मैं भी अपने घर में होता। आज शांति मेरे साथ नहीं है खुद को बहुत कमजोर महसूस कर रहा हूँ ऐसा लग रहा जैसे कोई दानवरूपी आकृति मुझे निगलने को आतूर हो।
मेरे बेटो ने मुझे घर से निकाल दिया यह कह कर कि मेरी जिम्मेदारी उनसे ना संभलेगी मेरा खर्च वो नहीं उठा पाएंगे। अरे! कितना खर्च होता होगा मुझ पर बस दो वक़्त की रोटी वो भी जो मिला करता था चुपचाप खा लेता था मैं, और थोड़ा बहुत दवाइयों का खर्च आता होगा, पता नहीं भगवान किस जन्म की सजा दे रहा है मुझे, बारिश के मौसम में भी मैं घर के बाहर दरवाजे पर ही सोया करता था, बारिश की बूदें आकर कई सवाल दागा करती थी मन में, वो पुछती थी कि, अब बता बुड्ढे तेरा क्या होगा जिस बेटे को तू मुझसे बचाने के लिए अपने सिने से लगाकर अपनी धोती में छुपा लेता था आज उसी ने तुझे मेरे पास छोड़ दिया, कभी कभार मेरी कुछ बूंदें तेरे बेटे को भींगा देती थी तू तुरंत घबडा जाया करता था और मुझे सौ गालियां मारता था कि कहीं तेरा बेटा बीमार ना पड़ जाए। आज उसी बेटे ने तुझे सौ गालियाँ मार कर घर के बाहर छोड़ दिया, अब बता कौन है तेरा सहारा, तुझे कौन बचाएगा मेरे कहर से, तो कभी तपती धूप मुझसे सवाल करती तो कभी कड़कती ठंड....., मैं खामोश होकर निरउत्तर बस उसके सवालों को सुनता जाता, पता नहीं क्यों जवाब देने की हिम्मत ही ना होती।
आज मैं आठ सालो से लहेरियासराय के वृध्दावस्था में अपनी अंतिम साँसें गिन रहा हूँ। शायद इस इंतजार में कि मेरे बेटे मेरे अंतिम छन मेरे साथ होगें। मैं बेबस चारों तरफ अपनी नजरें दौड़कर उसे खोज रहा हूँ लेकिन यहाँ पर वृध्द माँ-बाप के सिवाय कोई ओर ना दिख रहा है पर चलो एक बात कि तसल्ली है मेरी शांति वहाँ मेरा इंतजार कर रही है जो मुझसे बेहद प्यार करती है। मरने का गम नहीं है मुझे पर हाँ इस बात गम जरूर है कि ऐसी कौन सी भूल हुई मुझसे जो मेरे बेटों ने मुझे घर से निकाल दिया, जिस को मैं अपने खून-पसीने से जोड़ा था आज उसी घर से बेदखल हो गया मैं, शांति मैं आ रहा हूँ सुकून से तुम्हारी गोद में सोने यह धरती हम बुड्ढे माँ-बाप के लिए नहीं है। यहाँ तब हमारा कोई वजूद नहीं, हमारे बच्चों को अब हमारी जरूरत नहीं...., शांति मैं आ रहा हूँ शांति...मैं आ रहा हूँ शांति.......शांति, शांति.........

Swati