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पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 7


अध्याय चार

ज्ञान-संन्यास-मार्ग

अनुभव— गीता में युद्ध क्षेत्र में बोले हुए कथन का विवरण है ।पर दादी जी , गीता को किसने लिखा था ?

दादी जी— गीता की शिक्षाएँ बहुत पुरानी है । सबसे पहले वे सृष्टि के आरंभ में भगवान श्री कृष्ण ने सूर्य देवता को दी थीं ।बाद में वे खो गईं।वर्तमान में जो गीता का स्वरूप है,वह लगभग 5,100 वर्ष पहले भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दी गई शिक्षा है ।

अनुभव— तो क्या भगवान श्री कृष्ण ही गीता के लेखक हैं ?

दादी जी— हॉं भगवान श्री कृष्ण गीता को बोलने वाले हैं ।लेकिन ऋषि व्यास ने इसे इकट्ठा किया है । उन्होंने ही वेदों को इकट्ठा किया ।ऋषि व्यास में भूतकाल और भविष्य काल की घटनाओं को याद करने की शक्ति थी ।किंतु वे एक साथ ही भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को युद्ध क्षेत्र में कही गई गीता को फिर से याद कर के नहीं लिख सकते थे।
उन्हें गीता को लिखने के लिये एक सहायक की ज़रूरत थी।
ज्ञान-विवेक के देवता श्री गणेश जी ने गीता को लिखा ।

आदि गुरु शंकराचार्य ने 800 ईसा संवत् में गीता को संस्कृत में पूरी तरह से समझाया ।

अनुभव— श्री कृष्ण इतने महत्वपूर्ण क्यों है ?

दादी जी— भगवान श्री कृष्ण परमात्मा के आठवें अवतार माने जाते हैं ।परमात्मा इस धरती पर समय-समय पर विभिन्न रूपों में अवतरित होते हैं ।जब अधर्म और पाप की शक्तियाँ विश्व शांति को भंग करके विनाश का प्रयत्न करती हैं ।भगवान तब सभी चीजों को ठीक करने के लिए
अवतार लेते हैं ।वे मानव जाति की मदद के लिए महानुभावों और शिक्षकों को भी भेजते हैं । भगवान का जन्म और कर्म
दैवी होते हैं ।और हर अवतार का एक उद्देश्य होता है ।श्रीमद् भागवतम् ( अथवा भागवत महापुराण) में भगवान के सभी दस अवतारों का विवरण है । ऋषि संत भी भगवान के छोटे-मोटे अवतार माने जाते हैं ।
कलियुग के नाम से जाने जाने वाले वर्तमान समय के अंत में कल्कि का अवतार होगा ।

अनुभव— क्या भगवान श्री कृष्ण हमें वह सब देंगे,जो हम प्रार्थना या पूजा में चाहेंगे ?

दादी जी— हॉं , भगवान श्री कृष्ण वह देंगे, जो तुम चाहोगे, जैसे तुम्हारे अध्ययन में सफलता, यदि तुम निष्ठा और विश्वास के साथ उनकी पूजा करोगे । लोग भगवान की पूजा और प्रार्थना भगवान के किसी भी रूप और नाम का प्रयोग करते हुए कर सकते हैं। भगवान के रूप को देवमूर्ति कहा गया है । लोग बिना देवमूर्ति की सहायता के भी भगवान की पूजा कर सकते हैं।

अनुभव— पर क्या हमें तब भी पढ़ाई करनी पड़ेगी, यदि हम परीक्षाओं में अच्छी सफलता चाहते हैं ।

दादी जी— हॉं तुम्हें परिश्रम तो करना ही चाहिए ।
शक्ति भर काम करो और फिर प्रार्थना ।भगवान तुम्हारे लिए परिश्रम नहीं करेंगे ।तुम्हें अपना काम स्वयं ही करना पड़ेगा।
तुम्हारा काम स्वार्थ पूर्ण इच्छाओं से मुक्त होना चाहिए और तुम्हें किसी को हानि नहीं पहुँचानी चाहिए । तब तुम्हें कर्म का कोई बंधन नहीं होगा ।

अनुभव— कर्म क्या है, दादी जी ?

दादी जी— कर्म संस्कृत का शब्द है,इसका अर्थ है काम या क्रिया । इसका अर्थ काम का फल या परिणाम भी है ।हर काम का एक फल होता है,उसे भी कर्म कहते हैं।वह अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी ।यदि हम फलों को केवल स्वयं भोगने के लिए ही अपना काम करते हैं,तो हम उन फलों के लिए ज़िम्मेदार हैं ।यदि हमारे काम से किसी को हानि पहुँचती है , तो हम बुरे कर्म कमाते हैं । उसे पाप कहा जाता है,उसके लिए हमें नरक का दुख भोगना पड़ेगा ।
यदि हम दूसरों का भला करते हैं,तो हम अच्छे कर्म कमाते हैं और उसका पुरस्कार हमें स्वर्ग की यात्रा के रूप में मिलता है।

हमारे अपने कर्मों के परिणामों के कारण सुख या दुख भोगने के लिए हमारा पुनर्जन्म होता है ।कर्म अच्छे या बुरे कामों के रूप में बैंक में धन जमा करने की तरह है। जब हमारे कर्म पूरे समाप्त हो जाते है, तो हम पुनर्जन्म नहीं लेते।
जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पाने को ही मोक्ष कहा गया है ।उसी को निर्वाण या मुक्ति भी कहते है । मुक्ति में हम भगवान के साथ एक हो जाते हैं ।

अनुभव— समाज में रहकर काम करते हुए हम कर्म से कैसे बच सकते है ?

दादी जी— कर्म न कमाने का सबसे अच्छा रास्ता है—केवल अपने लिए ही कुछ नहीं करना, जो करना समाज की भलाई के लिए करना । इस बात का सदा ध्यान रखो कि प्रकृति मॉं ही सब कुछ करती है । हम किसी भी काम के वास्तविक कर्ता नहीं है ।यदि हमें इस बात में दृढ़ विश्वास है और हम भगवान के सेवक के रूप में काम करते हैं, तो हम कोई नये कर्म नहीं कमायेंगे और आत्म -ज्ञान से हमारे सब पुराने कर्म मिट जायेंगे। कर्म के समाप्त हो जाने पर हम मुक्त हो जाते है । भगवान के साथ मिल जाने का यह ढंग निष्काम कर्म या कर्म योग का मार्ग कहलाता है ।

अनुभव— अपने पिछले जन्मों के कर्म से हमें कैसे छुटकारा मिलता है ?

दादी जी— बहुत अच्छा प्रश्न पूछा तुमने । आत्मा का सच्चा ज्ञान आग की तरह काम करता है । हमारे पिछले जन्मों के सभी कर्म को जला देता है ।निष्काम ( नि: स्वार्थ सेवा ) या कर्म योग आत्मज्ञान पाने के लिए व्यक्ति को तैयार करता है । समय आने पर कर्म योगी स्वयं ही आत्मज्ञान पा लेता है जिसे आत्मा का ज्ञान सही रूप में मिल जाता है वह आत्मज्ञानी कहलाता है ।

अनुभव— दादी जी, क्या मोक्ष पाने के लिए और भी मार्ग है ?

दादी जी— हॉं अनुभव, प्रभु तक पहुँचने के अनेक मार्ग है । उन मार्गों को साधना कहा जाता है । समाज के लिए लाभकारी कोई भी कर्म यज्ञ कहा जाता है ।
अलग-अलग तरह की साधना ये है—-
(1) अच्छे काम के लिए दिया गया दान,
(2) ध्यान,पूजा-पाठ,
(3) योगाभ्यास,
(4) धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन,( स्वाध्याय)
(5) मन तथा पॉंच इंद्रियों पर नियंत्रण ।

जो भी व्यक्ति इनमें से कोई साधना निष्ठा से (श्रद्धापूर्वक)
करते हैं, प्रभु उनसे प्रसन्न होते हैं और उसे परमात्मा तक पहुँचने के लिए आत्मज्ञान का दान देते हैं ।ऐसा व्यक्ति सुखी और शांत होता है ।

अनुभव— उनके बारे में आपका क्या विचार है जो रोज़ किसी दैवी मूर्ति की उपासना (पूजा)करते हैं ? क्या उन्हें भी परमात्मा की प्राप्ति होती है ?

दादी जी— हॉं जो पूरे विश्वास से दैवी मूर्ति की उपासना करते हैं,उन्हें भी मन वांछित फल प्राप्त होता है ।
अधिकांश हिन्दू अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए परमात्मा की पूजा अपनी चुनी हुई एक दैवी मूर्ति के रूप में करते हैं ।
यह मार्ग पूजा या प्रार्थना का मार्ग कहलाता है ।महाभारत में एक निष्ठ कर्म योगी और आदर्श विद्यार्थी की कथा है,जिसने अपने गुरु की पूजा करके मन चाहा फल प्राप्त किया ।

अनुभव आज इतना ही ,कल मैं तुम्हें उसकी कहानी बताउँगी।


क्रमशः ✍️