Dusari Aurat - 2 - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

दूसरी औरत... सीजन - 2 - भाग - 3

तेरे खुशबू में बसे खत मैं जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुए खत मैं जलाता कैसे
तेरे खत आज मैं गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

जगजीत सिंह साहब की ये गज़ल मानों आज सुमित का कलेजा चीर देने को आतुर थी । वो अपने कमरे में बैठा सपना के दिये खतों को आज बार-बार, हजार बार पढ़ रहा था । पढ़ते-पढ़ते वो कभी मुस्कुराने तो कभी हंसने तो कभी रोने लगता । वो कई-कई बार उन सारे खतों को उलट-पलटकर देखता ।

"यार सुमित कम से कम आज तो मत पी यार । आज रात की तेरी ट्रेन है भाई वैसे तेरी ये हालत देखकर मेरा तुझे यूं अकेले भेजने का बिल्कुल भी मन नहीं है मगर क्या करुँ मेरे यार मजबूरी है मेरी ! कल मेरा एसएससी का इम्तिहान है , यहाँ और इस इम्तिहान के लिए मैंने पूरे साल तैयारी की है ।" एक लम्बी साँस छोड़ते हुए सुरेश नें कहा ।

सुमित अभी भी बिल्कुल चुप था जैसे कि उसनें कुछ सुना ही न हो । वो बस खुद को शराब के ज़हर में डुबाने में व्यस्त था जिसके गवाह थे उसके गालों पर लगातार ढ़ुलकते गर्म आँसू !

शाम हो चुकी थी और अगले दो घंटे में सुमित की ट्रेन भी थी मगर सुरेश इस समय न जाने कहाँ नदारद था और वो उससे फोन पर भी सम्पर्क नहीं कर सकता था क्योंकि सुरेश अपना फोन घर पर ही भूल गया था तभी सुरेश के फोन की घंटी बजी ! पहले तो एक बार सुमित नें उसका फोन पिक ही नहीं किया मगर फिर जब उसका फोन दूसरी बार बजा तो सुमित नें बड़े ही बेमन से फोन उठाया ।

दूसरी तरफ़ सुरेश की गर्लफेंड पारुल थी । कुछ औपचारिक बातचीत के बाद फोन रख दिया गया था ।

आज सुमित को गाँव आये पूरे पन्द्रह दिन बीत चुके थे । वो जब से यहाँ आया था बहुतही गुमसुम,उदास और अपने में खोया-खोया रहता था । इस बीच उसकी मौसी की बेटी के पति यानि कि सुमित के जीजा जी, जो कि दिल्ली में रहते थे और वहाँ मिनिस्ट्री ऑफ ट्रांसपोर्ट में एक उच्च पद पर कार्यरत थे आये और न जाने कैसे वो सुमित की हालत और उसके हालात को एक नज़र में ही भाँप गए । अब न जाने ये उनके किसी निजी तजुर्बे का नतीजा था या उनकी दुनियादारी की समझ की पारखी नजर.... ये तो बस जीजा जी स्वयं ही जान सकते हैं । बहरहाल उन्होंने सुमित को साम-दाम और दंड-भेद के सूत्र को अपनाते हुए सुमित को दिल्ली आने के लिए राजी कर लिया और वहीं उसके सामने ही बैठे-बैठे उन्होंने एक कंपनी में उसकी जॉब की बात भी कर ली !

जिंदगी कहाँ रुकती है किसी के लिए ??? फिर सुमित के लिए भी कहाँ रूकने वाली थी । सुमित दिल्ली आ चुका था और यहाँ कंपनी में जॉब करते हुए उसे लगभग सात महीने का समय भी गुजर चुका था । इस बीच धूल-मिट्टी , फूल-पत्ती से लेकर आँधी-तूफान व बहती हुई हवाओं और बरसती हुई बारिश में से किसी का कुछ लेशमात्र भी नहीं बदला था,बदला था तो बस सुमित ....जो सुमित दूसरों को हर तरह के नशे से दूर रहने की हिदायतें दिया करता था उस सुमित नें आज खुद को नशे में इस कदर डुबो रखा था कि दम निकले तो सुकून मिले....उफ्फ़... जो पान सुपारी तक चबाने से घिन करता था वो आज देशी दारू से लेकर हर एक बड़े से बड़े ब्रांड की शराब बेझिझक अपने गले से उतार रहा था ।

एक रात जब वो नशा करके बेसुध पड़ा था तब उसके फोन की घंटी बजी और जब उस मदहोशी के आलम में उसने फोन रिसीव किया तो दूसरी तरफ़ एक फीमेल वॉयज़ पाकर मानो वो बिखर सा गया । उसनें उस फोन कॉल पर आज अपने बुझे हुए दिल की हर एक तह एक-एक करके बड़े ही इत्मीनान से खोल दी । वो कहता जा रहा था और रोता जा रहा था ।

मेरी गलती थी...सब मेरी ही गलती थी...अरे स्वार्थी हो गया था मैं...भला इतना स्वार्थी कैसे हो गया था मैं...कैसे ???? खो दिया...मैंने हमेशा के लिए...हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया अपनी सपना को ...अपनी जान को ...सब मेरी ही गलती है और ...और मैं इस गलती की सजा भी दूंगा खुद को ...छोड़ूँगा नहीं मैं...सपना तुम बिल्कुल चिंता मत करना मैं बिल्कुल भी नहीं छोड़ूँगा खुद को...दे भी रहा हूँ और आगे भी दूँगा मैं खुद को सजा....समझी तुम...तुम समझ रही हो न पारूल ...बता देना मेरी सपना को ये बात...बता देना....सपनननननननाआआआआआ.....एक वीभत्स चीख!!!

अब तो ये लगभग रोज का ही सिलसिला बन गया था । कभी सुमित पारूल को तो कभी पारूल सुमित को फोन करती और फिर वो इसे समझाने की भी बहुत कोशिश करती कि वो खुद को इस तरह से दोष देकर अपनी जिंदगी बर्बाद न करें !

देखिए आप एक बहुत अच्छे इंसान हैं और आपकी मोहब्बत भी सच्ची है । सपना वाकई बहुत खुशकिस्मत थी कि जिसे आप जैसा सच्चा प्यार करनेवाला मिला लेकिन अगर आप दोनों किसी वजह से एक नहीं हो पाये तो इसमें सारा दोष आपका बिल्कुल भी नहीं है । देखिए सुमित जी कुछ चीज़ें हम इंसानों के हाथ में नहीं होती हैं तो बस हमें उन चीज़ों को उस ऊपर वाले पर ही छोड़ देना चाहिए और होनी को उस ऊपर वाले की मर्जी मानकर स्वीकार करना चाहिए ।

इस तरह न जाने कितनी बातें वो उसे घंटों-घंटों समझाती मगर ये सब भी ज्यादा दिन तक टिका न रह सका । एक दिन सुमित के पास उसके दोस्त सुरेश का फोन आया और सुरेश नें सुमित से जिस लहज़े में और जो बातें कहीं वो बातें तो कोई शरीफ़ इंसान अपने दोस्त से नशे में भी नहीं कह सकता ।

सुमित चुपचाप सबकुछ सुनता रहा और फिर उस दिन के बाद सुमित नें न तो खुद ही पारूल को कोई कॉल की और न ही पारूल की ही कोई कॉल सुमित के पास आयी ! ! हाँ इस प्रकरण से एक बदलाव तो ज़रूर आया । बदलाव कहें या चमत्कार कि जो सुमित हर रात खुद को नशे में डुबोया करता था अब वो सिलसिला रोज रात से किसी-किसी रात में तब्दील हो गया !

सुमित अब अपनी जॉब में पूरी तरह से सैटल हो चुका था और शायद इसी कारण अब उसपर उसकी माता जी द्वारा शादी करने का दबाव भी कुछ ज्यादा ही डाला जा रहा था । वैसे अनुराधा जी को तो वो इस संदर्भ में काफी लम्बे समय से टालता आ रहा था लेकिन आज जब हैड ऑफ द फैमिली यानि कि सुमित के पिता जी नें स्वयं सुमित से बिना कुछ जाने-पूछे अपना फरमान सुना दिया तो वो जी पिताजी के आगे कोई एक अतिरिक्त शब्द भी अपने मुँह से नहीं निकाल पाया ।

माताजी से बात करके उसनें बस उनसे इतना तो ज़रूर कह दिया कि वो लड़की देखने का कतई इच्छुक नहीं है और उसके माता-पिता जहाँ मंडप सजायेंगे वो वहाँ आकर चुपचाप फेरे डाल लेगा ।

अब इसे आप उस बेचारे की जिद्द समझें , अंतिम फैसला समझें या फिर उसकी शर्त या दीवानापन.....फैसला मैं आपके विवेक पर छोड़ती हूँ !

जिंदगी तो हमारी हमने
अपनी जिद्द पर कुर्बान कर दी
चलो अब दुनिया की जिद्द पर फिर से
जिंदगी जीने का शौक फरमाया जाये

अगले भाग में आगे का सफरनामा.... क्रमशः

लेखिका... 💐निशा शर्मा💐