Dusari Aurat - 2 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

दूसरी औरत... सीजन - 2 - अंतिम भाग

चलो ले चलें तुम्हें तारों के शहर में ,
धरती पर ये दुनिया हमें प्यार न करने देगी !

होटल में चेकइन करने के बाद सुमित नें होटल के रूम में दाखिल होते ही अपने मोबाइल पर गानें लगा दिये और इधर स्वेतलाना उस आलीशान कमरे के आलीशान बिस्तर पर अपने बालों को क्लचर की कैद से आजाद कर लेट चुकी थी । सुमित नें अपने जूते उतारे और फिर वो भी वहीं बिस्तर पर स्वेतलाना के करीब आकर बैठ गया और लेटी हुई स्वेतलाना के खुले हुए बालों में अपनी अंगुलियों को फंसाकर खेलने लगा ।

स्वेतलाना और सुमित अब एक-दूसरे की आँखों के समंदर में पूरी तरह से डूब चुके थे तभी मोबाइल पर बज उठे गीत नें उन दोनों के उस समंदर से उबरने की सारी संभावनाएं भी खत्म कर दीं और वो गीत था......

कतरा-कतरा मैं गिरूँ, जिस्म पर तेरे ठहरूँ
दरिया तू खाली कर दे, मुझमें सारा तू भर दे
तुझको आ मैं पी जाऊँ , प्यास बुझा दो
लाना कुछ बादल लाना,उनको मुझपे बरसाना
बूंदें तेरी हों जिनमें , उनसे भिगा दो
ना याद तेरी तुझको , ना याद मुझे हूँ मैं
आ मुझको पहन ले तू , आ तुझको ओढ़ लूँ मैं
कतरा-कतरा मैं गिरूँ , तुझमें ही कहीं रह लूँ
कतरा-कतरा.......................................................

इस मादक गीत के हर एक बोल पर मचलते और पिघलते वो दोनों बस उन जज़्बातों की रौ में कतरा-कतरा बहते चले जा रहे थे । शर्म की हर एक हद को पार करके बेशर्मी के समंदर में गोते लगाते हुए सुमित को एक बार भी अपनी धर्मपत्नी,अपनी अर्धांगिनी और अपनी जीवनसंगिनी का झूठे को भी ख्याल नहीं आया ! उस पर तो आज बस स्वेतलाना के रूप में अपने अधूरे ख्वाब के पूरे होने का ही ख्याल छाया हुआ था जो उसकी बाहों में कसमसाते हुए उसे एक जीत का एहसास करवा रहा था जो उसके पुरूष होने के दंभ को पूर्ण कर रहा था और आज वो स्वेतलाना के रूप में अपनी बरसों पहले की सपना नाम की जिद्द को पूरा करने का रास्ता बना चुका था । न जाने अगले कितने दिनों तक सुमित की ये खुमारी नहीं उतरने वाली थी !!!!

बीतते दिनों के साथ-साथ सुमित के ऊपर चढ़ी हुई खुमारी अब उसकी स्वेतलाना के साथ अगली मुलाकात होने की बेचैनी में बदलती जा रही थी और इस बीच उन दोनों की इस बेबाक मोहब्बत की खबर ऑफिस के स्टाफ के कानों से होती हुई सुमित साहब के बॉस के कानों तक भी पहुँच चुकी थी जिसका परिणाम एक अलग ही रंग लेकर सामने आया !

आज सुमित ऑफिस जाने के लिए रोज की तरह ही सुबह जल्दी ही निकल पड़ा लेकिन एक बात जो आज रोज से अलग हुई और वो ये कि आज सुमित की पत्नी पल्लवी नें जब सुमित के ऑफिस जाने के कुछ देर बाद उसके कपड़ें धोने के लिए वॉशिंगमशीन में डालने से पहले उसकी पैंट की पॉकेट चैक की तो उसके हाथ में एक फीडबैक फॉर्म लग गया जो कि नई दिल्ली के किसी होटल का था और जब पल्लवी नें अपनी शंका के चलते उसपर इन्क्वायरी की तो उसे वो पता चला जो कि शायद सुमित कभी भी नहीं चाहेगा कि उसे पता चले ।

पल्लवी नें कपड़ों को, वॉशिंगमशीन को और घर के बाकी सारे कामों को जस का तस छोड़ दिया । इसके बाद उसनें अपने नाइटसूट को बदलकर अपनी शादी वाली लाल सितारों की साड़ी पहनी, पूरा श्रंगार किया और फिर वो तेज कदमों से चलती हुई अपने फ्लैट से निकलकर नीचे सड़क पर आ गई ! उसकी आँखों में आज एक फैसले की चमक साफ देखी जा सकती थी और उसके माथे की चिंताओं व शंकाओं के स्थान पर आज भरपूर आत्मविश्वास अपनी जगह बना चुका था । हाथ के इशारे से उसनें एक ऑटो-रिक्शा को रोका और अब वो अपने जीवन के आर या पार वाले फैसले की सोच के साथ उस ऑटो में बैठकर आगे बढ़ चुकी थी ।

नई दिल्ली के सुबह-सुबह होने वाले सघन ट्रैफिक को चीरता हुआ वो ऑटो पल्लवी के जरा जल्दी चलिए के आदेश पर खरा उतरता हुआ अब सुमित के ऑफिस की बिल्डिंग के ठीक नीचे खड़ा था ।

ऑटो वाले को उसका पेमेंट कर, धन्यवाद कहती हुई पल्लवी भागती हुई सी उस बिल्डिंग की लिफ्ट में प्रवेश कर गयी । सुमित के द्वारा कई बार ऑफिस के किस्से-कहानियाँ सुने जाने के कारण आज पल्लवी को सुमित का ऑफिस पहचानने में कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी और अब वो सकुशल सुमित के ऑफिस में अपना दाखिला दर्ज करा चुकी थी बाकी अब बारी थी सुमित को जाँचने की !!!!

पल्लवी वहाँ इधरउधर अपनी नज़रें दौड़ा ही रही थी कि तभी सुमित के एक सहकर्मी परेश नें उसे देख लिया और वो बिजली की गति से दौड़ता हुआ उसके पास पहुँच गया.....

अरे भाभी जी, आप !! बहुत अच्छा हुआ जो आप यहाँ आ गयीं वरना मैं तो बस इसी उधेड़बुन में फंसा था कि आपको कॉल करूँ या न करुँ !!

"क्यों ? ऐसा क्या हुआ ? मैं कुछ समझी नहीं भाई साहब , आखिर आप कहना क्या चाहते हैं ??? प्लीज़ ज़रा खुल के बताइए न !", पल्लवी नें घबराहट भरे स्वर में पूछा !

"अरे, भाभीजी अब क्या खुला और क्या बंद ? अब तो सबकुछ खुला ही खुला है !", खींसे निपोरते हुए वो बोला और फिर इधरउधर अपनी नज़रें दौड़ाने के बाद परेश नें एक बार पुनः बोलना शुरू किया....."मैंने तो पहले भी कई बार सोचा कि सुमित सर को समझाऊँ मगर क्या बताऊँ भाभीजी, वही न कि छोटा मुँह बड़ी बात",........... परेश को तो जैसे आज अपनी मुँह माँगी मुराद ही मिल गई हो । वो बस निरंतर हमारे समाज के जहरीले जानवरों वाली भूमिका बाखूबी निभाता जा रहा था, उसमें न तो अपने सामने परेशान खड़ी हुई पल्लवी के लिए कोई सच्ची संवेदना थी और न ही कोई कर्तव्य की भावना !

हालाँकि पल्लवी ये सबकुछ भलीभांति समझ रही थी मगर इस समय परेश की आशंकित करने वाली बातों नें उसे इतनी अनगिनत आशंकाओं से भर दिया था कि अब पल्लवी के पास परेश की पूरी बात सुनने के अलावा कोई और रास्ता भी तो नहीं बचा था ।

भाई साहब , प्लीज़ आप ये पहेलियाँ फिर कभी बुझा लीजिएगा। अभी तो फिलहाल आप मुझे ये बतायें कि आखिर आज यहाँ हुआ क्या है ???

इस बार रुआंसी हुई पल्लवी को देखकर न जाने मिस्टर परेश कुछ सहम गए या पिघल गए, ये तो पता नहीं पर बहरहाल उन्होंने अपनी कूटनीति और राजनीति का रास्ता छोड़कर अब पल्लवी को सीधे-साधे शब्दों में आज घटित हुई पूरी घटना बता दी !

परेश की बात सुनने के बाद पल्लवी उल्टे पाँव वहाँ से भागी । वो धड़धड़ाते हुए पहले तो ऑफिस की तीन मंजिला सीढ़ियाँ उतर गई और फिर उसनें बड़ी ही बेचैनी और हड़बड़ी के साथ ऑटोरिक्शा तलाशना शुरू किया ! कड़ी धूप में लगभग दस मिनट के इंतज़ार के बाद उसे एक ऑटोरिक्शा मिला और वो उसे नोएडा (जहाँ कि सुमित का एक और फ्लैट है) के एड्रेस पर चलने की हिदायत देकर उस ऑटो में सुलझी-उलझी हुई सी बैठ गई ! इस बीच वो लगातार सुमित को कॉल भी कर रही थी लेकिन सुमित नें उसकी कॉल पिक नहीं की जिससे पल्लवी का आशंकित मन और भी बैठा जा रहा था !

दो घंटे बाद.....

फोर्टिस अस्पताल के आईसीयू वॉर्ड के बाहर बैठी हुई पल्लवी सिर्फ और सिर्फ सुमित की सलामती की दुआएं ईश्वर से माँग रही थी । ऐसा लग रहा था कि मानो कुछ हुआ ही न हो और वो बस अब अपने सुमित को स्वस्थ्य देखना चाहती थी । सुमित के जीवन के आगे आज वो खुद पर की गई सुमित की सारी ज्यादतियों को मानो बिल्कुल ही बिसरा चुकी थी । लगातार तीन रातें और चार दिन आँखों ही आँखों में काटने के बाद आज शाम सात बजे राउंड पर आये हुए डॉक्टर के के अग्रवाल नें जब पल्लवी को सुमित के आईसीयू वॉर्ड से नॉर्मल वॉर्ड में शिफ्ट किये जाने की खुशखबरी सुनाई तो वो आँसुओं से खुद को भिगोती हुई डॉक्टर साहब के कदमों में झुक गयी और उनके पैरों को छूकर बार-बार उन्हें धन्यवाद देने लगी जिसपर डॉक्टर साहब 'गॉड ब्लैस यू' कहकर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए !

खुशी से दीवानी हो उठी पल्लवी नें जैसे ही वॉर्ड के अंदर कदम बढ़ाया तो सुमित को अपने सामने लेटा हुआ पाया और फिर वो धीरे से सुमित के सिरहाने पड़े हुए स्टूल पर बैठ गई । पल्लवी नें सुमित के माथे पर बड़े ही स्नेह के साथ हाथ रखा जिसपर सुमित नें बरबस ही अपनी आँखें खोल दीं ।

"कैसे हैं ?" , सुमित की आँखों में पल्लवी नें अपनी डबडबायी हुई आँखों से देखते हुए पूछा ।

"घर पर तो किसी को नहीं बताया न ?" , पल्लवी के प्रश्न को नजरअंदाज करते हुए सुमित नें पल्लवी से पूछा जिसपर पल्लवी नें न में सिर हिला दिया ।

सुमित नें एक बार फिर अपनी आँखें बंद कर लीं तब तक उस अस्पताल की एक नर्स भी वहाँ आ गई और उसनें पल्लवी को कम बात करने की हिदायत दी फिर वो नर्स कुछ रूटीन फॉलो कर वहाँ से चली गई ।

अगले दस दिन तक सुमित अस्पताल में ही रहा और इस बीच उसकी पत्नी पल्लवी उसकी परछाईं बनकर हर पल उसके साथ ही रही ।

"कल सुबह दस बजे आप इस हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो जायेंगे", पल्लवी नें सुमित के सिर को सहलाते हुए कहा जिसपर सुमित नें एक फीकी सी मुस्कान अपने होठों पर बिखेरते हुए अपना चेहरा दूसरी तरफ़ घुमा लिया !

कुछ देर बाद जब सुमित गहरी नींद में सो गया तो पल्लवी वहाँ से बड़े ही आहिस्ता से उठकर चल दी । आज वो एक लम्बे अंतराल के बाद अपने घर जा रही थी ।

सुबह डॉक्टर साहब के आने के बाद लगभग साढ़े ग्यारह बजे सुमित हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो चुका था। पल्लवी नें जब डॉक्टर से घर जाने के लिए साधन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि अब सुमित पूरी तरह से ठीक है तो अगर आप चाहें तो हॉस्पिटल से आपको एम्बुलेंस भी प्रोवाइड की जा सकती है अथवा आप अपनी कार से भी उन्हें घर ले जा सकती है....इट्स टोटली सेफ!!

सुमित अपनी कार में पिछली सीट पर आराम से अधलेटी पोजीशन में बैठ चुका था और पल्लवी नें आज ड्राइविंग सीट की कमान संभाल रखी थी ।

"ओह्ह! तो तुम ड्राइव कर लेती हो मगर तुमनें तो ये मुझे कभी बताया ही नहीं !", सुमित नें चौंक कर गाड़ी चलाती हुई पल्लवी को देखकर पूछा ।

आपनें भी कभी कहाँ पूछा...इतना कहकर पल्लवी बड़ी ही कुशलता से ड्राइव करने लगी !

घर का दरवाज़ा खुलते ही सुमित एक बार फिर से चौंक गया ! अरे, ये सब !! ये किसने किया ?

"किसने ? मैंने और किसनें ?", हंसती हुई पल्लवी बोली ।

दरअसल उनका पूरा घर रंग-बिरंगे गुब्बारों और चमकीली पट्टियों से सजा हुआ था और ज़मीन पर गुलाब के लाल फूलों से वैलकम लिखा हुआ था ।

"इसका मतलब कि तुम कल रात, घर आयी थी ?", सुमित नें पल्लवी की तरफ़ देखते हुए कहा जिसके जवाब में पल्लवी एक बार फिर मुस्कुरा दी !

इस बार काफी समय से एक लम्बी चुप्पी साधा हुआ सुमित अचानक ही चीख पड़ा.....आखिर क्यों ? क्यों पल्लवी ? क्यों ? मैं तुम्हारी इस वफ़ा और प्यार के काबिल नहीं हूँ...कहकर फफक पड़ा सुमित और पल्लवी नें दौड़कर उसे सम्भालते हुए खुद से लगा लिया।

सुमित आपको कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं है। कुछ भी नहीं...... मैं सब जानती हूँ और जितना भी मैं जानती हूँ, काफी है मेरे लिए ! सुमित इससे ज्यादा मैं जानना भी नहीं चाहती.... इस बार पल्लवी की आँखें भी बरस पड़ीं !

"नहीं पल्लवी तुम कुछ भी नहीं जानती",.... रोते हुए सुमित नें अपना हाथ सामने पड़ी हुई मेज़ पर मारते हुए कहा ।

"मुझे पता है कि आप अपने ऑफिस की स्वेतलाना",...... कहते-कहते पल्लवी की जुबान लड़खड़ा गई !

सुमित नें आश्चर्य और ग्लानि के मिश्रित भाव से पल्लवी की ओर देखा ।

पल्लवी नें खुद को बड़ी मुश्किल से सम्भालते हुए बोलना शुरू किया....................

सुमित आपको क्या लगा कि मुझे कुछ पता नहीं है। नहीं सुमित आपको बिल्कुल गलत लगा । दरअसल मैं तो पिछले काफी समय से सबकुछ समझ रही थी लेकिन सोचा कि शायद खुद ब खुद ही किसी को समझ आ जाये लेकिन मैं भी एक इंसान हूँ सुमित और मेरे सहने की भी एक सीमा है और मेरी वो सीमा उस दिन आपकी जेब से मिले उस होटल के फ़ीडबैक फॉर्म नें बहुत ही बुरी तरह से तोड़ दी ! सुमित उस दिन मैं अपने मन में न जाने कितने संकल्पों को लेकर निकली थी लेकिन जब मैं आपके ऑफिस पहुँची और मुझे आपके उस जूनियर परेश नें सबकुछ बताया तो मुझे लगा कि आपको जो धोखा मिला है उसमें मुझे आपके साथ खड़े रहना चाहिए, भले ही सात वचनों के नाते नहीं तो इंसानियत के नाते ही सही और बस इसी इंसानियत के नाते ही मैं अब तक आपके साथ रही,आपकी देखभाल करती रही मगर अब !!!

"मगर अब क्या पल्लवी ???", सुमित नें पल्लवी की बात को बीच में ही रोकते हुए पूछा.... तुम नहीं जानती पल्लवी कि मेरे साथ कितना बड़ा फ्रॉड हुआ है! उस दिन जब मैं ऑफिस पहुँचा तो मैंने उस कमीनी स्वेतलाना को अपने बॉस के साथ....छी....और इससे पहले कि मैं उससे कुछ पूछ पाता या कह पाता तो मुझे पता चला कि वो इस्तीफ़ा दे चुकी है और पल्लवी तुम्हें पता है, उसनें न सिर्फ मुझे बल्कि मेरे बॉस को भी बेवकूफ बनाया । वो तो मुझे परेश नें बताया कि उसकी बॉस के साथ हाथापाई भी हुई.....सो मीन !

पल्लवी नें सुमित को घूरकर देखा और बेहद घृणा भरे स्वर में कहा .......... "मीन" !!! ..... खैर !! कुछ देर बिल्कुल चुप रही पल्लवी और फिर एक गहरी साँस छोड़ते हुए वो एक बार फिर किसी घायल शेरनी सी दहाड़ उठी........

हाँ...मुझे ये सब पता है, सुमित और इस सबके बाद आप ऑफिस से निकलकर कहाँ गये मुझे ये भी पता है । आपका स्वेतलाना की हकीकत से सामना होने के बाद आपको सबसे पहला ख्याल अपने नोएडा वाले फ्लैट का आया, जिसे कि आप स्वेतलाना के नाम ट्रांसफर कर चुके थे और फिर आप आननफानन में वहाँ के लिए निकल गए और वहाँ जाकर जब आपको पता चला कि वो फ्लैट तो स्वेतलाना मैडम बहुत पहले ही किसी और को सेल कर चुकी हैं तो आप अनगिनत उलझनों के चक्रव्यूह में फंसे वहाँ से निकलकर अपनी कार ड्राइव करते हुए गिरते-सम्भलते चल पड़े और फिर जब मेरा फोन नंबर आपके फोन के स्क्रीन पर बार-बार फ्लैश होता हुआ आपनें देखा तो आपकी उलझनों के बादल शायद और भी घनेरे हो गए जिसके बाद वो अनहोनी !!

आप अस्पताल पहुँच गए और मैं किसी भी नतीजे पर पहुँचते-पहुँचते रह गई.... एक लम्बी साँस छोड़ते हुए पल्लवी नें कहा ।

इसके बाद पल्लवी नें फुर्ती से उठकर सुमित को सहारा देते हुए बिस्तर पर लिटा दिया और खुद उसके लिए खाना बनाने किचेन में चली गई ।

पल्लवी की दिन-रात एक करके की गई सेवा जल्दी ही रंग लायी और अब सुमित पूरी तरह से स्वस्थ्य हो चुका था । कल सवेरे उसे ऑफिस भी ज्वाइन करना था तो बस वो अपना लैपटॉप खोलकर बैठा ही था कि तभी उसके सामने पल्लवी आकर खड़ी हो गई ।

"तुम कहाँ जा रही हो ?", पल्लवी के कैरीबैग को देखकर सुमित नें उससे हैरान होते हुए पूछा ।

"देखिए, मैंने उस दिन भी आपसे कहा था कि मैं बस इंसानियत के नाते अब तक आपके साथ थी मगर अब आप अपना ख्याल खुद रख सकते हैं और हाँ मैं ये भी नहीं चाहती थी कि उस स्थिति में आप किसी भी तरह का कोई तनाव लें !", पल्लवी नें अपनी नज़रें दूसरी तरफ़ घुमाते हुए कहा !

"जब इतना ख्याल करती हो तो फिर क्यों जा रही हो पल्लवी ?खैर मुझे तुमसे कुछ कहने का अब अधिकार तो नहीं है मगर फिर भी बस एक बार मैं तुमसे अपने दिल की बात ज़रूर कहना चाहूँगा...... पल्लवी मैं मानता हूँ कि मैं अभी तक अपने अतीत की परछाइयों को पकड़ने की नाकाम कोशिशें करता रहा लेकिन पल्लवी मैं अब औरत और दूसरी औरत के बीच का फर्क बहुत अच्छी तरह से समझ चुका हूँ और इसका सबसे बड़ा साक्षी मेरे हिसाब से तुमसे बेहतर और कौन हो सकता है ! ", कहते हुए सुमित नें अपनी आँखों से छलकते हुए आँसुओं को पोंछा ! सुमित की आँखों में अपराधबोध साफ-साफ नज़र आ रहा था लेकिन पल्लवी आज शायद उसे देखकर भी अनदेखा कर देना चाहती थी ।

"अभी तक मेरी हमसफ़र बने रहने और हर कदम पर मेरा साथ देने के लिए थैंक्यू सो मच , पल्लवी....चलो मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ", कहते हुए सुमित नें पल्लवी का बैग उठा लिया और कमरे से बाहर निकल गया । पल्लवी भी उसके पीछे-पीछे हो ली । वो दोनों लिफ्ट में घुसने ही वाले थे कि पल्लवी की तबियत कुछ बिगड़ने लगी । उसे चक्कर आने लगे और वो भागती हुई सी अपने फ्लैट की ओर मुड़ गई । सुमित भी परेशान होकर तेजी से उसके पीछे भागा !

दो घंटे बाद....

पल्लवी बिस्तर पर लेटी हुई थी और सुमित उसके पास ही उसके सिरहाने पड़ी हुई कुर्सी पर बैठा हुआ था । उन दोनों की खामोशीयाँ एक-दूसरे से न जाने कितनी बातें,कितने सवाल-जवाब और न जाने कितने वादे कर रही थीं । उन दोनों की आँखों में नमी थी जिसमें गम, दर्द ,पश्चाताप,संतोष और उन दोनों को मिली हुई आज की अपार खुशी के निशान थे ।

पल्लवी कुछ कहने ही वाली थी कि सुमित नें उसके होठों पर अपनी उंगली रख दी और बोला कि......पल्लवी प्लीज़ कुछ मत कहो ! देखो न शायद ईश्वर भी हम दोनों को एक नई शुरुआत का इशारा कर रहा है । पल्लवी हम अपने आने वाले बच्चे को कभी भी हमारे बीच आयी इस दरार का एहसास नहीं होने देंगे और पल्लवी मैं पूरी कोशिश करूँगा कि आने वाले समय में मैं इस दरार को अपनी मोहब्बत और वफ़ा से भर सकूँ....... इतना कहकर सुमित नें पल्लवी के हाथों को अपने हाथों में ले लिया और पल्लवी नें भी अपने हाथों की पकड़ सुमित के हाथों पर कस दी शायद ये एक माँ के द्वारा अपने बच्चे के भविष्य को ध्यान में रखकर उसके लिए की गई एक नई शुरुआत थी या एक स्त्री के कोमल हृदय द्वारा किसी के सच्चे पश्चाताप पर उसे दी गई माफ़ी या फिर सात फेरों के सात वचनों को निभाने की विवशता !!!

समाप्त !!

मिलती हूँ फिर समाज की किसी समस्या से जूझती हुई किसी कहानी के साथ तब तक अपना ख्याल रखें और खुश रहें!

लेखिका....
💐निशा शर्मा💐