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गरीबी सम्मेलन ( व्यंग्य )

गरीबी सम्मेलन


शहर के एक आलीशान होटल में गरीबी सम्मेलन का आयोजन किया गया है । देश-विदेश से इस क्षेत्र के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया । अधिकांश विशेषज्ञों ने गरीबों को केवल तस्वीरों में देखा और आंकड़ों में समझा था । उन्हें यह मालूम है कि गरीब राशन की दुकानों से सामान खरीदते हैं । उन्हें आधुनिक लोगों की तरह अधिक कपड़ों की जरूरत नहीं होती । उन्हें मालूम है कि देश में लगभग चालीस करोड़ गरीब रहते हैं । उन्हें यह भी मालूम है कि शहरों में प्रतिदिन बत्तीस रूपये और गांव में छब्बीस रूपये खर्च करने वाले लोग गरीब होते हैं । इस सम्मेलन में कुछ गरीबों को भी बुलाया गया है । उनकी गरीबी के लिए उन्हें सम्मानित जो करना है ‌
शहर को इस आयोजन के लिए पिछले कई दिनों से तैयार किया जा रहा था ‌ शहर से भिखारियों को पकड़ कर दूर कहीं भेजा जा रहा था । सभी रास्तों पर बंदनवार सजाए गए थे ‌ देश-विदेश के अतिथियों की सुरक्षा के लिए पुलिस व्यवस्था चाक-चौबंद थी । शहर को साफ-सुथरा दिखाने के लिए फुटपाथ पर दुकान लगा कर रोजी कमाने वालों को भी हटा दिया गया था । विशेषज्ञों की विशेष फरमाईश पर उन्हें एक गरीब बस्ती में भ्रमण के लिए ले जाना था । इस बस्ती में भी रातों-रात बिजली, पानी और सड़क की व्यवस्था की जा रही है हालांकि इस बस्ती में भी चार-पांच परिवार ही वास्तविक रुप से गरीब हैं ।
आखिर समारोह प्रारंभ हो गया । गरीबी सम्मान पाने के लिए सेठ करोड़ीमल के सुपुत्र विशेष रुप से गरीबों की वेशभूषा में समारोह स्थल पर पहुंचे । उनका नाम गरीबों की सूची में जो शामिल है । गरीबों पर होने वाले इस कार्यक्रम में अधिकांश वक्ताओं ने अंग्रेजी में ही भाषण दिए सब सभ्रांत समझे जाने वाले भीड़ नुमा लोगों ने जहां समझ में आया वहां भी और जहां नहीं समझ में आया वहां भी तालियां बजाई । सेठ करोड़ीमल के पुत्र को समारोह में अमीर पिता के गरीब पुत्र होने के कारण सम्मानित किया गया ‌। उन्होंने बताया कि आलीशान हवेली में रहते हुए भी गरीब कैसे हैं । सभी भाषणों से उक्ताए हुए थे, उन्हें तो बस भाषणों के बाद होने वाले डिनर का इंतजार था । आखिर वह समय भी आ गया डिनर के लिए विशेष रुप से झोपड़ी का सेट बनाया गया था । सभी सभ्य दिखने वाले लोग लाखों की झोपड़ी में दाखिल होकर ,गरीब हो गए । आब सबके हाथों में प्लेटें थी और वे स्टॉल-स्टॉल घूम कर खाना खोज रहे थे । लिपस्टिक पुते होठों को बचा कर खाना खाती महिलाएं बीच-बीच में पुअर-पुअर कहती जा रही थी । वह अब गरीबों के बारे में नहीं, खाने के विषय में बोल रही थी । लकदक सूट में घूमते युवा ही नहीं बुजुर्गों का भी पूरा ध्यान उन्हीं की ओर था ।
समारोह के बाद सभी लोगों को गरीबों से मिलने उनकी बस्ती में जाना था ‌‌। कुछ को तो इस विचार से ही मितली आने लगी । कुछ ने बहाने बनाकर इस कार्यक्रम से किनारा कर लिया लेकिन अनेकों के लिए उनकी गरीब नवाज की छवि महत्वपूर्ण थी । उन्होंने ढेर सा परफ्यूम अपने रुमाल पर डाला और गाड़ियों में सवार हो गए । गाड़ियों का एक बड़ा सा काफिला गरीब बस्ती में रुका। हैंड पंप पर नहाते लोग , घरों के सामने बर्तन धोती महिलाएं , शौच के लिए बैठे हुए बच्चों सहित बस्ती के सभी लोग उन्हें देखने के लिए जमा होने लगे । नाक पर रुमाल रखे लोग गाड़ियों से उतरे तो लगा दो भारत आमने-सामने हैं ‌। एक विशेषज्ञ को बीड़ी फूंकता बेफिक्र बुड्ढा अच्छा लगा तो दूसरे को ओपन एयर बाथरूम में नहाती हुई महिला । वे कैमरे को जूम कर के फोटो लेने का प्रयास करने लगे । भद्र सी दिखने वाली महिलाएं शौच के लिए बैठे बच्चों को देखकर शेम-शेम कहने कहने लगी । बच्चे टुकुर-टुकुर ताकते अपने काम में लगे रहे ।बस्ती वालों को लगा की गाड़ी वाले कुछ देंगे । सब लोगों ने गरीबों के साथ फोटो खिंचाई और अपने लिए कुछ ले ही लिया ।
समारोह समाप्त हुआ सब कुछ पहले जैसा है । भिखारी फिर शहर में हैं ,वह दो सौ से ढाई सौ रुपया कमा लेते हैं । उन्हें मालूम है वे गरीब नहीं है । फुटपाथ पर दुकान लगाने वाले अब अपनी रोजी - रोटी कमा पा रहे हैं । गरीबी देखने के लिए होटल के पीछे चलना होगा । यहां बचा हुआ खाना फेका गया है । सूअर और कुत्ते के साथ साथ कुछ बच्चे अपना हिस्सा प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं ‌। बच्चों को भूख लगी है । वे नहीं जानते कि वह गरीब हैं या नहीं ।
आलोक मिश्रा "मनमौजी"