Unfinished First Love (3rd installment) books and stories free download online pdf in Hindi

अधूरा पहला प्यार (तीसरी क़िस्त)

यह मकान मीरा का था।उसे समझते देर नही लगी।अंधेरे में जो आकृति वह देख रहा था,वो मीरा की थी।
"रुको मैं अभी आयी।"मनोहर वहीं खड़ा रह गया था।मीरा दरवाजा खोलते हुए बोली,"जल्दी से अंदर आ जाओ।"
मनोहर के अंदर जाते ही मीरा ने दरवाजा बंद कर लिया था।तभी कोई आदमी लाठी टेकता हुआ अंधेरी गली से गुज़र गया था।
"देख कोई जा रहा है।हमे देख लेता तो"मनोहर ने पूछा था,"लेकिन तूने मुझे अंधेरे में पहचाना कैसे?"
"मैं रोज देख रही थी।तू या ही टेम पर घर लौटे है।आज मोको देखकर तोहे रोक लियो।"
"तेरी दादी कहाँ है?"
"तू वा की चिंता मत कर।वाहे न ढंग से दिखे है,ना ही सुनाई पड़े है।वो तो अपने कमरे में सो रही होगी,"मीरा,मनोहर से बोली ,"चल ऊपर चले।"
मीरा,मनोहर को ऊपर छत पर ले गई।अंधेरी रात।आसमान में असंख्य तारे झिलमिला रहे थे।
"तेने गीत लिखो।?"
"ऐसो कर।मैं बोलूं।तू लिख ले।"
"ठीक है।"मीरा लालटेन पेन और कॉपी ले आयी थी।मीरा के कहने पर उसने कई बृज भाषा के गाने लिखवाए थे।जब वह लिख चुकी तब बोली थी,"अब वा दिन वालो गानों सुना दे।"
मीरा के कहने पर मनोहर ने एक के बाद एक कई गाने गाए थे।मनोहर गाते हुए थक गया तब बोला,"अब तू गा"।
"मैं?"मीरा बोली,"मोकू गानों गावो नाये आये।"
"ठीक है मत गा।नाचवो तो आवे।चल नाच दे।"
कुछ देर मचलने,ना नुकुर करने के बाद मीरा नाची थी।नाचने के बाद नीचे से मीरा थाली ले आयी।उसमे रबड़ी और पेड़े रखे थे।
",ले खा।मैं तेरे लिए खुद लायी हूँ।"
"मेरी इच्छा बिल्कुल नाये।"
"तोये खानों पडेगो।"और मीरा ने ज़बरदस्ती एक पेड़ा मनोहर के मुंह मे डाल दिया।और इस तरह वे एक दूसरे को खिलाने लगे।धीरे धीरे रात सरक रही थी।
"अब मैं चलूं?"
"का करैगो जाकर।यहीं रुक जा।"
"मीरा बहुत देर हो चुकी है।घर पर मैया बाट जो रही होगी।घर नही पहुंचो तो दिन निकल वे से पहले ही मैया मोये ढूंढ वो शुरू कर देगी।"
"मतलब मेरी इत्ती सी बात नाय मान सके।"
"मान लुंगो।पर घर जाकर मैया को बोलकर आनो पडेगो।"
"तो चलो जा।पर देख धोको मत दियो।"उसने मनोहर की तरफ ऐसे देखा मानो मनोहर के लौटने का उसे विश्वास न हो।"
मनोहर के साथ वह नीचे तक आयी थी।
"मैं दरवाजा खुला छोड़ रही हूँ।तू सिधो ऊपर चलो आइयो।"
"दरवाजा खुलो छोड़ेगी।कोई चोर आ गयो तो?"
"कोई न आवे।"
मनोहर अपने घर पहुंचा था।उसके पिता को दमे की बीमारी थी।वह दवा लेकर जल्दी सो जाते थे।माँ जगकर उसकी बाट जोहती रहती थी।माँ उसे देखते ही बोली"बेटा इतनी रात गए आयो है।तू इतनी देर से आवे है।लोग का सोचेंगे?"
"माँ तोये मो पे विश्वास नाही।"
"तो पे विश्वास है बेटा।पर देर रात तक बाहर घुमावों सही नाये।"
"कहीं भी जा पर कल से शाम होते ही घर लौट आइयो।"
"ठीक है।पर आज तो जाने दे।"
"तो क्या आज फिर जावेगों?"माँ बेटे की बात सुनकर चोंकी थी।
"माँ रिहर्सल चल रही है।बाजे वाले भी बुला लिए है।अगर मैं नही पहुंचो तो बहुत नुकसान हो जायेगो।बाजे वालो को तो पैसे देने ही पड़ेंगे।"मनोहर ने अपनी माँ से झूंठ बोला था।
"आज तो तू चलो जा।पर कल से तेरी एक नही सुनूँगी।"
और मनोहर चला गया था।मीरा उसे नीचे ही मिक गई थी।वह ऊपर न जाकर नीचे ही उसका इन्तजार कर रही थी।वे उसे फिर छत पर के गई
(शेष अगले अंक में)