Prem Nibandh - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

प्रेम निबंध - भाग 8

इतना कहकर मैंने फोन का पिछला भाग उनको देकर और निकल गया। और छत की दहलीज पर जाकर कपड़े डालने लगा। फिर उन्होंने काफी देर तक बात की उनसे और बाद में दादी जी ने आवाज लगाई और वो चली गई। फिर उस दिन से मैंने कभी चाची को फोन नही दिया और जब भी आता मैं फोन उठा लेता और शुरू होता बात करने के लिए बस बात करते करते एकान्त की ओर चला जाता था।घर से निकल कर कब फुलवाड़ी की ओर चला गया पता ही नही। कब खेत का रुख हो जाए पता ही नही कब मैं उनसे बातो में खो जाता पता ही नही चलता था। लेकिन उनकी एक जिद जिस पर मुझे आज भी शर्मिंदगी होती है। उनका कहना होता था की आप गांव आए लेकिन मेरे गांव नही आए। इसलिए वो बहुत दुखी थी। जब भी उनसे गांव की बात करता तभी रूठ जाती थी। मैं कैसे समझता की हा क्या समस्या है किस लिए नही आ पा रहा हू। दादी जी के देहांत के बाद घर में कोई भी चीज मुझे भाटी नही थी। बस उनकी काल का आना ही थोड़ा मुझे शुकून देता था। स्त्री हठ बहुत बुरा होता है। ये मुझे पता चला क्योंकि वो जिद्दी बहुत थी जिद्दी कही की। उनको मनाए बिना मैं खाना। भी नही खा पाता था। रोज बात होती थी अब मैंने उनसे कहा कि अगर मैं आपके गांव न आ पाऊं तो कुछ गलत तो नहीं उन्होंने कहा की मुझ जैसी के लिए क्यों आओगे। मैने समझा। और उनको अपनी बात बताई की क्या है कैसा है माहोल घर का। उनको लगता था। की मैं जी चुरा रहा हूं लेकिन उनको शायद परिस्थिति नही पता थी। की किस दौड़े गुजर रहा हू मैं। लेकिन मैं उनको अपने दुलार से पुचकार से मना लेता था। वो मेरे लिए एक छोटी बच्ची की तरह से थी। उनको समझाओ और उनको समझो। क्या लगता है वाली ऐसी गर्लफ्रेंड किसी की होगी। जैसी मेरी है। वो किसी भी छोटी और बड़ी बात पर गुस्सा होती थी जो की मेरे जैसा ही उनको समझ सकता है। लेकिन एक साइड और है जहा मैं उनको सही भी कहता हू की वो मुझ पर भरोसा करती थी। और उनका प्रेम आम नही अमर था है रहेगा। उनके जैस प्रेमी कही नही है। वो केयर टेकर जैसे किसी बच्चे की तरह। प्रत्येक क्षण उनको मैं और मैं ही दिखाई देता था। जीवन में कभी भी अगर होती तुम तो मुझे इतनी चिंता नहीं करनी पड़ती।एक बार मैं उनसे मिलने पहुंचा तो उन्होंने मेरा फोन ही गिरा दिया था। और गुस्से से कहा पहुंच गए। कहा थे मत ही आते। किसी ने कहा था की आप आओ। मैने कहा की अजीब बात है आओ तो समस्या नहीं आए तो फिर समस्या। लेकिन करे तो करे क्या हम। मुझे अभी भी याद है की सहर में मैने उनसे कहा पर बात नही की है।
गली के कोने पे घंटो खड़ा रहता था। घर से झूठ बोलकर उनसे बात करने के लिए जाता था। पार्क में चला जाता था। रात में मेडिकल पर प्रैक्टिस
के लिए जाता था करेक्ट 8 बजे वो मुझे अपने गैलरी में मिलती थी अपने दीदी की मोबाइल के साथ और अगर मैं उन्हें देखे बिना चला जाऊं तो फिर मैं गया। मेडिकल पर उनसे बात ही करता था। और दवाई तो दूर ही थी।
मुझसे। मैं उनसे बात करने के लिए अगर इस दुकान पर जाना है तो 100 कदम और आगे जाता था। अगर मैं सच कहूं तो मैंने कितने झूट और बहाने उनके लिए बनाए है मुझे भी आभाष ही नहीं है। लेकिन इसको ही प्रेम कहता है। आज कल तो मात्र प्रेम एक खेल ही है इसकी संज्ञा बदल दी गई है। जीवन में इसका क्या महत्व है। यह कितना महत्वपूर्ण है। इसकी परिभाषा भी बड़ी कठिनकर दी। सच्ची बातो। में विश्वास नही होता आज कल तो मात्र प्रेम एक जुआ बा गया है बस कुछ दिन बात और अंत जिस्म की गहराइयों में शामिल हो जाता है। क्या कही किसको कही कैस कहूं।
चरित्र निर्माण करने में हमने चित्र ही को दिया। प्रेम में बाधा है तो वह प्रेम नही है। प्रेम अगर शक में है। तो वह प्रेम नही है। प्रेम अगर निंदा हैं तो वह प्रेम नही है। समस्या यह है की आज अगर कोई सच्चा प्रेम भी करता है तो वह भी गेहूं के साथ घुन की तरह पीसा दिया जाता हैवहएक लड़का और एक लड़की प्रेम नही करेंगे तो कौन बैल और सांड करेंगे। नही ना तो फिर क्यों है ऐसा भेद भाव जैसे कोई भयानक बीमारी की वजह हो प्रेम। प्रेम कृष्ण ने किया तो वो वरदान हो गया और मनुष्य ने किया तो कूड़ा दान हो गया। हमारी समझ विकसित नही है जो प्रेम करता है उसकी समझ विकसित नही है। ऐसा घर के लोगो का कहना है। मुझे जब पता चला की मुझे प्रेम रोग हुआ है। तब मुझे अहसास भी नही था की मैं क्या कर रहा हू।
लेकिन जब उन्होंने मेरी केयर करना शुरू किया तो मुझे अहसास हुआ। की कुछ तो है जिसमे दुनिया फेल है। इसके आगे। उनके आने से दिल में छन छन कर आती हुई उनकी पैरो की थाप सुनाई देती थी। जिस दिन मैं गांव से चला उस दिन इनकी बीमारी बढ़ गई और मैं भी सुखा सा हो गया। जीवन में प्रेमी मिले तो फिर क्या ही बात है। संबंध ऊंचा हो जाए तो भी क्या बात है लेकिन मैं आपके लिए एक बार ये खट्टा हो जाए तो फिर बहुत मुश्किल है संभालना। ये बहुत बड़ी समस्या है। हम और आप मिले और जीवन की कलात्मक को आगे बढ़ाए तो वह एक अलग सहज भाव है। प्रेम में नियम नहीं होता है। जिंदगी की डोर में अगर दो मन एक हो जाए। तो फिर उनकी स्थिति को वही समझ सकता है जिसने उस वक्त को अपने ऊपर गुजार है। जिसने उन जख्मों को या उनकी बातो को समझा है। आपस में मिलकर एक दूसरे को समझकर अपना व्यवहार बनाना चाहिए और फिर मैंने प्रेम को जिंदगी समझा है। इसलिए वो मेरे लिए वरदान है।