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प्रेत-लोक - 14

प्रेत-लोक 14

राजकुमार अचिंतन की आत्मा तांत्रिक योगीनाथ को प्रणाम करते हुए बोली “हे महात्मा आपने जो कुछ भी कहा वो बिलकुल सही है, शायद में उससे कुछ ज्यादा ही डर गया था और जहाँ आप जैसे महान तांत्रिक और महात्मा हैं वहां किसी को डरने की क्या जरूरत है, अब मेरे पास कुछ खोने को तो बचा नहीं है इसलिए में अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को आपको अर्पित करता हूँ, अब आप जैसा चाहें मेरे उपयोग कीजिये, मुझे अब किसी भी प्रकार से कोई शंका या परेशानी नहीं हैं, कृपया अपनी योजना और उसमें मेरे कार्य को मुझसे कहें, जिससे में आपके किसी काम आ सकूं”।

अब आगे: तांत्रिक योगीनाथ जी उसकी बातों से संतुष्ट नजर आये और वो बोले “राजकुमार अचिंतन तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद, मुझे ख़ुशी हुई की तुम एक अच्छे काम के लिए तैयार हो गए, अब में तुम्हें बताता हूँ की हम किस तरह से संघतारा प्रेत से लड़ाई करेंगे, पर उसके पहले मैं तुमसे कुछ बातें और जानना चाहता हूँ जैसे की जो तरीका हमने संघतारा से मुक्ति पाने का सोचा है उस तरीके से तुम्हें भी उसके साथ ही प्रेत-लोक में जाना होगा, और फिर कभी भी तुम मुक्ति नहीं पा सकते, तुम्हें हमेशा-हमेशा के लिए प्रेत-लोक में ही रहना पड़ेगा, अगर तुम इसके लिए तैयार हो तो में तुम्हें अपनी योजना बताता हूँ”?

“नहीं-नहीं ये आप क्या कह रहे हैं आखिर कौन चाहेगा की वो हमेशा के लिए भूत योनि में ही रहे, मैंने कभी किसी को परेशान नहीं किया, कभी भी ऐसा कोई काम नहीं किया जिस वजह से मुझे मुक्ति न मिले मैं सिर्फ अपनी अकाल मौत की वजह से ही इस योनि में हूँ, अपनी उम्र पूरी होने के बाद मुझे मुक्ति मिल ही जाएगी पर अगर में एक बार प्रेत-लोक में चला गया तो वहां से मुक्त होना तो असंभव है, कृपया मुझ पर दया करें और कुछ ऐसा साधन करें की में आप के काम भी आ सकूँ और मेरी मुक्ति में भी कोई समस्या न हो”। तांत्रिक योगीनाथ जी की बात को सुन कर राजकुमार अचिंतन बेचैन हो कर बोला।

तांत्रिक योगीनाथ जी राजकुमार अचिंतन की बातों को सुनकर अपना आसन छोड़ देते हैं और कमरे में ही टहलने लगते हैं, उनके चेहरे के भाव हल पल बदल रहें हैं, वो दोनों हाथों को पीछे बांध कर लगातार कमरे के चक्कर काट रहे हैं, कुछ सोचने वाली मुद्रा में वो कभी राजकुमार अचिंतन को तो कभी रुद्र और बाकी सभी दोस्तों को देख लेते हैं, अचानक उनके चेहरे पर एक चमक सी आ जाती है और वो बहुत ही खुश होकर सभी को देखते हैं जैसे उन्हें इस समस्या का कोई समाधान मिल गया हो, वो तुरंत ही अपने आसन पर बैठते हैं और फिर बोलते हैं।

“तुमने सही कहा राजकुमार अचिंतन कोई भी जीवित या मृत व्यक्ति कभी सपने में भी नहीं चाहेगा की वो हमेशा इस संसार में भटकता रहे बिना मुक्ति के, इस संसार में सिर्फ मरने के बाद ही नहीं बल्कि जीवित रहते हुए भी अधिक समय तक भटकना एक अभिशाप ही है, इसका एक जीवित उदाहरण अश्वत्थामा है, महाभारत युद्ध के अंत समय में जब अश्वत्थामा ने धोखे से पाण्डव पुत्रों का वध कर दिया, तब सभी पाण्डव, भगवान श्रीकृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा करते हुए महर्षि वेदव्यास के आश्रम तक पहुंच गए। तब अश्वत्थामा ने पाण्डवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया। ये देख अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा”।

“महर्षि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया और अश्वत्थामा और अर्जुन से अपने-अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा। तब अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ये विद्या नहीं जानता था। इसलिए उसने अपने अस्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी। यह देख भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम तीन हजार वर्ष तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगे और किसी भी जगह, किसी पुरुष के साथ तुम्हारी बातचीत नहीं हो सकेगी। तुम्हारे शरीर से पीब और लहू की गंध निकलेगी। इसलिए तुम मनुष्यों के बीच नहीं रह सकोगे। दुर्गम वन में ही पड़े रहोगे।“

“आज भी वो शायद इस धरती पर ही कहीं भटक रहा होगा, ईश्वर ऐसी सजा किसी दुश्मन को भी न दे, और इसलिए में भी नहीं चाहता की तुम हमेशा के लिए प्रेत-लोक में रह जाओ, मैंने एक नई योजना का विचार किया है पर वो योजना पहले से भी ज्यादा खतरनाक और मुश्किल है अब सभी ध्यान से सुनो”।

“जैसा की हम सभी को पहले से पता है की संघतारा की मृत्यु के बाद उसकी लाश को वहीं बने तालाब में डाल दिया गया था और किसी भी आत्मा का अपने शरीर से बहुत गहरा नाता होता है, वो अपने शरीर का मोह मरने के बाद भी नहीं छोड़ पाते, हमें अपना सारा काम उसी तालाब पर ही करना होगा, इसमें एक बाधा तो खुद संघतारा है और दूसरी सबसे बड़ी बाधा उस तालाब की वो सैकड़ों आत्माएं हैं जो न जाने कितने समय से वहां रह रहीं हैं”।

“हमें इस काम को अमावस्या की मध्य रात्रि में अंजाम देना होगा क्योंकि में तंत्र की अधिष्ठात्री देवी पार्वती माता का तांत्रिक रूप माँ त्रिपुरसुन्दरी की श्री विधा साधना की शक्ति का प्रयोग करूँगा, वही एक मात्र देवी हैं जो मोक्ष की अधिष्ठात्री भी हैं उन्हीं के प्रताप से हम उस प्रेत को उसके सही धाम तक पहुंचा सकते हैं, एक बार माँ पार्वती ने भगवान शिव से कहा की ‘हे प्रभु आप के द्वारा बताये गए तंत्र-मंत्र से शास्त्र-शस्त्र, रोग-व्याधि, शोक-संताप, दीनता-हीनता तो दूर हो जाएगी पर गर्भाशय की पीड़ा, मरण का दुःख और मोक्ष की प्राप्ति के लिए क्या उपाय किया जाये तब आदि देव महादेव ने त्रिपुरसुन्दरी श्री विधा साधना के बारे में बताया जिसकी सिद्धि मुझे मेरे गुरुदेव के आशीर्वाद से बहुत पहले हो गई थी आज उसके सही प्रयोग का समय आ गया है”।

“हम तंत्र और मंत्र की शक्ति से संघतारा प्रेत को बुलाएंगे और फिर राजकुमार अचिंतन के माध्यम से उसे अष्ट चक्र में प्रवेश कराएंगे, फिर में अपने द्वारा बंधक प्रेतों की सहायता से उस तालाब से संघतारा के शरीर के अवशेष को निकाल लूंगा, तब रुद्र और उसके साथियों की मदद से बनाई हुई चिता पर उसका अंतिम संस्कार करना होगा, ठीक उसी समय माँ त्रिपुरसुन्दरी का आवाहन कर वहां उपस्थित सभी आत्माओं और संघतारा की आत्मा को भी मोक्ष प्रदान करवाएंगे, पर अगर इसमें जरा सी चुक हुई तो हमारा वहां से वापस आना नामुमकिन होगा”।

तांत्रिक योगीनाथ एक ही सांस में सारी योजना बताकर शांत हो गए और सभी को ध्यान से देखने लगे, उन्हें लगा की शायद कोई कुछ प्रश्न करेगा या उनकी इस योजना को फिर से समझाने के लिए कहेगा पर वहां तो जैसे सभी सांप सूंघ गया हो, कोई कुछ बोलने या बात करने की स्थिति में दिखाई नहीं दे रहा है, सभी सिर्फ एक दूसरे का चेहरा ही देख रहे हैं, लगता है उन्हें या तो ये योजना समझ ही नहीं आई है या फिर इस योजना में खतरों को देखते हुए कोई कुछ कह नहीं पा रहा है।

तांत्रिक योगीनाथ जी एक बार फिर सभी की ओर देख कर इशारे से हाँ या न पूछते हैं पर सभी हाँ में सर हिला कर उनके साथ होने का आश्वासन दे देते हैं, तब योगीनाथ जी कहते हैं “कल अमावस्या की रात है हमें किसी भी तरह इस काम को कल ही अंजाम देना होगा” और वो सभी को अपना-अपना काम बता कर खुद दूसरे कमरे में जा कर ध्यान की मुद्रा में बैठ जाते हैं।

अगला भाग क्रमशः : प्रेत-लोक 15

सतीश ठाकुर