face on face (final part) books and stories free download online pdf in Hindi

चेहरे पर चेहरा (अंतिम भाग)

"रात को ही आया हूँ।
डॉॉॉक्ट साहिब हमे अंदर ले गए।जगदीश बोला,"क्या हुआ रिशते का? कीसन परेशान है।"
"घर पर फ़ोटो दिखाया था।सबको लड़की पसंद आ गयी।"
"तो फिर देर किस बात की है?"
"हां।मैं इस बात को जल्दी फाइनल करता हूँ।,
"आपकी कोई मांग हो तो वो भी बता देना।"
"कुछ नही।मेरी कोई मांग नही है।मैने बताया न जो आपका संकल्प हो वैसे ही करना शादी।बस हम बताये खर्च वैसे ही कर देना।"
"आप जैसा कहेंगे।वैसा ही कर देंगे।"
मैं और जगदीश लौट आये थे।रास्ते मे जगदीश बोला।जैसा तुम चाह रहे हो उतने मे ही काम हो जाएगा।"
मैने घर आकर पत्नी को सब बातें बताई थी।पत्नी मेरी बातें सुनकर आश्वस्त हुई।उसे भी लगा।यहाँ रिश्ता पक्का हो जाएगा।कई जगह बात चली थी।बेटी के रिश्ते के लिए।लेकिन मांग इतनी ज्यादा थी कि बात आगे नही बढ़ पायी थी।लेकिन यहां डॉक्टर साहिब की बाते सुनकर पूरी उम्मीद हो गई थी।
दिन गुज़रने लगे।जगदीश छुट्टी लेकर आगरा आया था।डाक्टर साहिब का फोन उसके पास आया,"किसन अपनी बेटी का रिश्ता करना चाहते है तो आकर मिल ले।"
फोन मिलते ही जगदीश मेरे पास आया।हम दोनों डॉक्टर साहिब के पास जा पहुंचे।एक कोई और सज्जन उनके पास बैठे थे।ऐसा लग रहा था,आज डॉक्टर साहिब तैयार बैठे थे।शायद कहीं जा रहे थे।
"कहीं जा रहे हो?"जगदीश बोला था।
"मेरे रिश्तेदार की तेरहवीं है।सारी जिम्मेदारी मुझे दे रखी है।"
"जल्दी में हो तो हम कल आ जाते है।"जगदीश बोला।
"कुछ देर बैठ लेता हूँ।"
डॉक्टर साहिब के बैठते ही जगदीश बोला,"आदेश कीजिए।"
"जन्मपत्री,गुण आदि मिला ले।लड़का लड़की एक दूसरे को देख ले।"
"कर लेते है।लेकिन ये भी बता दे आप शादी कैसी चाहते है?"मैं बोला था।
"क्या बताऊँ?"
"मैं नही चाहता रिश्ता होने के बाद बात बिगड़े इसलिए सब कुछ पहले ही तय हो जाना चाहिए","मैं बोला,"आप बताये।"
"मेरे तीनो लड़को की शादी में पांच लाख रु नगद आये थे।"
"डॉक्टर साहिब फिर तो शादी दस लाख से ऊपर पड़ेगी।"
"किसन चार पांच लाख की शादी करने की सिथति में है"
"लेकिन तुम्हारे मौसाजी ने तो सात आठ लाख की शादी करने को कहा था"
"नहीं।ऐसा नही कहा।मौसाजी से मैने बात की थी,"जगदीश बोला,"शादी आप चाहेंगे वैसी हो जायेगी।सामान भी दिला दूंगा।लेकिन नगद इतना नही दे पाएगा।"
"जगदीश।मेरा साला भी एक रिश्ता लाया है।वह इतना नगद देने के लिए तैयार है।"
"डॉक्टर साहिब।नगद देने वाले बहुत मिल जाएंगे।किसन की बेटी सूंदर सुशील और पढ़ी होने के साथ हर काम मे निपुण है।आप खूब पूछताछ कर ले"।पैसा ही सब कुछ नही होता।आपको पैसे का क्या करना है।अच्छी पगार मिलती है।किताबो की रॉयल्टी आती है।"जगदीश ने कहा था।
"पैसे की चाहना मुझे नही है।तुम्हारे मौसाजी से मेरा याराना है।वह रोज मुझसे कहता है।इसीलिए तो तुम्हे आज बुलाया है।मेरे साले के दोस्त से ज्यादा तुम्हारे मौसाजी का महत्त्व है।लेकिन पहले जो आ चुका है उतना तो मिलना चाहिए।"
जगदीश ने डॉक्टर साहिब पर ज़ोर डाला।समझाया पैसा ही सब कुछ नही होता।लड़की वाला तो जिंदगी भर देता है रहता है।तब डॉक्टर साहिब बोले,"ऐसा करो कल आ जा आओ।आज मुझे कही जाना है।कल आराम से बात कर लेंगे।"
और हम घर लौट आये थे।हमे कतई उम्मीद नही थी कि सरल स्वभाव के आदर्शवादी डॉक्टर साहिब जो ब्राह्मण समाज के साथ दहेज विरोधी संस्था के अध्यक्ष होने के साथ अनेक संस्थाओं से जुड़े थे।इतनी ज्यादा मांग रख देंगे।
घर आकर पत्नी को सारी बात बताई थी।हमने 1एक लाख तक नगद व सभी सामान देने की सोच रखी थी।।मेरा इरादा चार पांच लाख की शादी का था।लेकिन डॉक्टर साहिब?पत्नी चाहती थी लड़का अच्छा है।वह चाहती थी रिश्ता हो जाये।
अगके दिन मैं और जगदीश फिर डॉक्टर साहिब के पास जा पहुंचे।जगदीश तय करके गया था कि आज साफ साफ बात करेगा।कल वाली बातें ही फिर दोहराई गयी।काफी देर तक बहस करने के बाद डॉक्टर साहिब बोले,"लड़की की जन्मपत्री भेज देना।"
हम लौट आये।सारी बाते पत्नी को बताई थी।पत्नी की रस्य थी अगर लाख दो लाख कर्ज लेना पड़े तोभी रिश्ता कर लेना चाहिए।
बेटी की जन्मपत्री भिजवा दी थी।एक सप्ताह तक हम इन्तजार करते रहे।एक सप्ताह बाद डॉक्टर साहिब ने जन्मपत्री लौटा दी थी।
डॉक्टर साहिब का असली चेहरा सामने आ गया था।बिना मोटा दहेज लिए वह रिश्ते को तैयार नही थे