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निडर - 4



कहानी अब तक

राजा राज दरबार के बाहर आकर गट्टू भाई के द्वारा अपने सैनिकों की दुर्दशा को देखते है।
अब आगे

राजा थोड़ी देर तक मैदान में फैले हुए घायल सैनिकों को देखते रहे, फिर उन्होंने एक सभासद को गट्टू भाई के पास जाकर युद्ध बंद करने तथा राजा के पास लाने का निर्देश दिया । इसके बाद उन्होंने महामात्य को सैनिकों की चिकित्सा की उचित व्यवस्था करवाने का भी निर्देश दिया ।

महामात्य अपने कुछ सभासदों एवं अमात्यों के साथ मिल कर सैनिकों की चिकित्सा व्यवस्था करवाने में लग गए। उन्हें चिकित्सा हेतु राज्य के प्रधान चिकित्सक के पास भेजने एवं चिकित्सा के लिए उचित निर्देश देकर वे पुनः राजा के पास आये।

सभासद ने जाकर गट्टू भाई से कहा—

“क्यों लड़के यह सब तुमने किया?”

गट्टू भाई— “यहाँ और कोई नहीं है सिर्फ़ मैं ही हूँ तो मैंने ही किया होगा ।”

सभासद— “किंतु तुम ने ऐसा क्यों किया, इन सबने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था ?”

गट्टू भाई— “इन्होंने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा था, मैं इनसे लड़ना भी नहीं चाहता था, मैं तो सिर्फ़ राजा से लड़ना चाहता था; लेकिन इन्होंने मेरी बात नहीं सुनी और राजा को नहीं बुलाया । यह सब मुझसे लड़ने को तत्पर हो गये तो मैं क्या करता, मुझे इनसे लड़ना पड़ा ।”

सभासद— “तुम राजा से क्यों लड़ना चाहते थे, यह बताओ गट्टू भाई?”

गट्टू भाई—

“सरकंडा काटकर गाड़ी बनाया,
चूहा जोता जाता है ।
राजा मेरा हल बैल ले आया,
उससे लड़ने जाता है ।”

सभासद— “तुमने सिर्फ़ अपने हल बैल के लिए इतना विनाश किया ।”

गट्टू भाई— “कहा न मैं इनमें से किसी से भी लड़ना नहीं चाहता था । मैंने बार-बार कहा राजा को बुलाने के लिए, परंतु यह लोग नहीं माने । मैं अभी भी वही कह रहा हूँ, राजा यदि आकर मेरे हल बैल वापस कर दें तो मैं चला जाऊँगा; या फिर मुझ से युद्ध करें । मैं राजा से युद्ध करने के लिए तैयार हूँ ।”

सभासद— “परंतु राजा तो तुम्हारे हल बैल नहीं लेकर आये।”

गट्टू भाई— “राजा के कर्मचारी लेकर आये, राजा के आदेश से तो गये होंगे कर्मचारी; इसलिए मैं सिर्फ़ राजा से ही लड़ना चाहता हूँ ।”

सभासद—“ राजा तुम्हें अपने पास बुला रहे हैं , तुम जाओगे या राजा से डरते हो ।”

गट्टू भाई— “मैं राजा से क्यों डरूँगा? यदि मैं राजा से डरता तो लड़ने मैं आता ही नहीं ।”

सभासद— “ठीक है तो फिर चलो राजा तुम्हें बुला रहे
हैं ।”

गट्टू भाई सभासद के साथ राजा के पास आया । उसने राजा को झुककर प्रणाम किया । राजा ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा—

“बालक तुम इतने सुसंस्कृत और शालीन हो , फिर तुमने युद्ध क्यों किया । देखो कितने सैनिक घायल हुए तुम्हारे बालहठ में ?”

गट्टू भाई— महाराज! मैं युद्ध करना नहीं चाहता था, उनमें से किसी से भी । मुझे तो सिर्फ़ आपसे युद्ध करना था, परंतु आपके दरबान और सैनिकों ने किसी ने भी मेरी बात नहीं सुनी। मुझसे लड़ने को तत्पर रहे, तो मुझे युद्ध करना पड़ा ।”

राजा— “ठीक है चलो हम दरबार में बैठ कर सुनना चाहते हैं तुम्हारी हर बात ।”

राजा अपने सभासदों, अमात्य, और महामात्य के साथ दरबार में आये ।

राज दरबार में सभी अपने-अपने स्थान पर बैठ गए ।
गट्टू भाई को बैठने के लिए एक आसन दिया ।

क्रमशः ✍️

आशा सारस्वत