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गुरू की सीख


गुरु रामदास विद्यालय में हिंदी शिक्षक के रूप में कार्य करते थे। गुरु रामदास बड़े दिनों बाद आज शाम को घर लौटते वक़्त अपने दोस्त गोपाल जी से मिलने उसकी दुकान पर गए। गोपाल जी शहर में कपड़े का व्यापार करते थे। इतने दिनों बाद मिल रहे दोस्तों का उत्साह देखने लायक था। दोनों ने एक दुसरे को गले लगाया और दुकान पर ही बैठ कर गप्पें मारने लगे।
चाय पीने के कुछ देर बाद गुरु जी बोले, “भाई एक बात बता, पहले मैं जब भी आता था तो तेरी दुकान में खरीदारों की भीड़ लगी रहती थी और हम बड़ी मुश्किल से बात कर पाते थे। लेकिन आज स्थिति बदली हुई लग रही है, बस इक्का-दुक्का खरीदार ही दुकान में दिख रहे हैं और तेरा स्टाफ भी पहले से काफी कम हो गया है।”
दोस्त बड़े ही मजाकिया लहजे में बोला, “अरे कुछ नहीं गुरु जी, हम इस मार्केट के पुराने खिलाड़ी हैं। आज धंधा ढीला है तो कोई बात नहीं। कल फिर जोर पकड़ लेगा और पुरानी रौनक वापस आ जाएगी।”
इस पर गुरु जी कुछ गंभीर होते हुए बोले, “देख भाई, व्यापार में चीजों को इतना हलके में मत ले। मैं देख रहा हूँ कि इसी रोड पर कपड़ों की तीन-चार और बड़ी दुकाने खुल गयी हैं, प्रतियोगिता बहुत बढ़ गयी है…और ऊपर से…”
गुरु जी अपनी बात पूरी करते उससे पहले ही, दोस्त उनकी बात काटते हुए बोला, “अरे ऐसी दुकानें तो बाजार में आती-जाती रहती हैं, इनसे अपने व्यापार में कुछ फर्क नहीं पड़ता।”
गुरु जी विद्यालय के समय से ही, अपने दोस्त के हट को जानते थे और वो भली प्रकार समझ गए कि ऐसे समझाने पर वो उनकी बात नहीं समझेगा।
कुछ समय बाद उन्होंने दुकान बंदी के दिन; दोस्त को अपने घर चाय पर बुलाया। दोस्त, निर्धारित समय पर उनके घर पहुँच गया। कुछ देर बातचीत के बाद गुरु जी उसे अपने घर में बनी एक व्यक्तिगत प्रयोगशाला में ले गए और बोले, “देख यार, आज मैं तुझे एक बड़ा ही रोचक प्रयोग दिखता हूँ।”
गुरु जी ने कांच के एक बड़े से जार में गरम पानी लिया और उसमे एक जिंदा मेंढक डाल दिया। गरम पानी से सम्पर्क में आते ही मेंढक खतरा भांप गया और कूद कर जार से बाहर भाग गया।
इसके बाद गुरु जी ने जार को खाली कर उसमें ठंडा पानी भर दिया, और एक बार फिर मेंढक को उसमे डाल दिया। इस बार मेंढक आराम से ठंडे पानी मे तैरने लगा। तभी गुरु जी ने एक विचित्र कार्य किया, उन्होंने जार में भरे ठंडे पानी को बर्नर की सहायता से धीरे-धीरे गरम करना प्रारंभ कर दिया।
कुछ ही देर में पानी का तापमान बढ़ने लगा। मेंढक को ये बात कुछ अजीब लगी पर उसने खुद को इस तापमान के हिसाब से व्यवस्थित कर लिया। इस बीच बर्नर जलता रहा और पानी और भी गरम होता गया। पर हर बार मेढक पानी के तापमान के हिसाब से खुद को व्यवस्थित कर लेता और आराम से पड़ा रहता। लेकिन उसकी भी गर्म पानी सहने की एक क्षमता थी। जब पानी का तापमान काफी अधिक हो गया और खौलने को आया। तब मेंढक को अपनी जान पर मंडराते खतरे का आभास हुआ। और उसने पूरी ताकत से जार के बाहर छलांग लगाने की कोशिश की। पर बार-बार खुद को बदलते तापमान में ढालने में उसकी काफी उर्जा खर्च हो चुकी थी और अब खुद को बचाने के लिए न ही उसके पास शक्ति थी और न ही समय। देखते ही देखते पानी उबलने लगा और मेंढक की जार के भीतर ही मौत हो गयी।
प्रयोग देखने के बाद दोस्त बोला- गुरु जी आपने तो मेंढक की जान ही ले ली। परंतु आप ये सब मुझ को क्यों दिखा रहे हैं?
गुरु जी बोले, “मेंढक की जान मैंने नहीं ली। मेंढक ने खुद अपनी जान ली है। अगर वो बिगड़ते हुए माहौल में बार-बार खुद को व्यवस्थित नहीं करता बल्कि उससे बचने का कुछ उपाय ढूंढता तो वो आसानी से अपनी जान बचा सकता था। और ये सब मैं तुझे इसलिए दिखा रहा हूँ क्योंकि कहीं न कहीं तू भी इस मेढक की तरह व्यवहार कर रहा है।
तेरा अच्छा-ख़ासा व्यापार है, पर तू बाजार की बदल रही परिस्थितियों के अनुसार कार्य नहीं कर रहा है, और बस ये सोच कर बैठ जाता है कि आगे सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा। पर याद रख अगर तू आज ही हो रहे बदलाव के अनुसार खुद को नहीं बदलेगा तो हो सकता है इस मेंढक की तरह कल को संभलने के लिए तेरे पास भी न ऊर्जा हो, न सामर्थ्य हो और न ही समय हो।”
गुरु जी की सीख ने दोस्त की आँखें खोल दीं, उसने गुरु जी को गले लगा लिया और वादा किया कि एक बार फिर वो परिवर्तन को अपनाएगा और अपने व्यापार को पुनः पूर्व की भांति स्थापित करेगा।
सार - अपने सामाजिक व व्यापारिक जीवन में हो रहे बदलावों के प्रति सतर्क रहिये, ताकि बदलाव की बड़ी से बड़ी आंधी भी आपकी जड़ों को हिला न पाएं।

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