Vishal Chhaya - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

विशाल छाया - 6

(6)

“मेरी समझ में नहीं आता कि जब हम दोनों एक दुसरे को चैलेंज कर चुके है तो फिर तुम इस प्रकार की बातें क्यों कर रहे हो !”

“तो तुम नहीं मानोगे ?”

“नहीं । ” विनोद ने गरज कर कहा । 

“अच्छा यह बताओ कि तुमने अब तक मेरा चेहरा देखने की कोशिश क्यों नहीं की, जब की, जब कि तुम्हारा पहला काम यही होना चाहिये था ?”

“तुमने यह प्रश्न पूछ कर फिर अपनी पराजय स्वीकार कर ली दोस्त !” विनोद ने हँस कर कहा । 

“वह कैसे ?” नारेन सिटपिटा गया । 

“वह इस प्रकार कि अगर तुम सचमुच ही मुझे मारना चाहते तो अब तक तुमने फायर कर दिया होता, परिणाम चाहे जो भी होता, मगर किसी कारण वश तुमने ऐसा नहीं किया और न अब कर सकते हो, क्योंकि इस समय तो मैं तुम्हारे सामने हूँ और पूरी तरह से सावधान और चौकन्ना भी हूँ । ”

“अगर मैं तुम्हारी यह बात सच भी मान लूं तो मेरी पराजय का प्रश्न कहां से पैदा होता है ?”

“इसका उत्तर देने से पहले मैं तुमसे एक प्रश्न करना चाहता हूँ । ” विनोद ने कहा । 

“पूछो !”

“अगर कोई आदमी अपनी स्कीम में असफल हो तो वह उसकी हार कही जायेगी या जीत ?”

“हार । ” नारेन ने कहा । 

“ठीक है । ” विनोद फिर हँसा”अब सुनो ! वास्तवमे तुम्हारी स्कीम यह थी कि जब तुम रिवाल्वर की नाल मेरी गर्दन से लगाओगे तो मैं तुमसे रिवाल्वर छिनने की अवश्य कोशिश करूँगा । इस कोशिश में तुम किसी तरह मेरे शरीर से अपने सीने की टच कर दोगे और इस प्रकार तुम्हारे शरीर पर लगी हुई लोहे की पट्टियों में जो सिरिंज लगी हाउ है वह मेरे शरीर में गड जायेगी । और में पागल हो जाऊँगा, मगर मैंने तुम्हें इसका अवसर नहीं दिया । क्योंकि मैं पागल नहीं होना चाहता था । अब बताओ यह तुम्हारी हार है या जीत ?”

नारेन कुछ नहीं बोला । वह दोनों इस समय सड़क के किनारे आमने सामने इस प्रकार खड़े थे, जैसे दो पहलवान अखाड़े में उतरने से पहले अपने विपक्षी की शक्ति का अनुमान लगाना चाहते है । 

“तुमने हमीद को फ़्लैट पर किस लिये भेजा था ?”

“केवल इसलिये कि मैं तुम्हारा नाम भी जान गया था और तुम्हारा काम भी । ”

“मेरे प्रश्न का उत्तर यह नहीं है । ” नारेन गरजा । 

“मछली फँसाने के लिये चारे की आवश्यकता होती है, दोस्त !” विनोद ने कहा”मैंने हमीद को चारा बना कर भेजा था, समझ गये या फिर समझाऊं ?”

“तुम मेरे ऊपर तो आरोप लगा रहे हो वह झूठे है । ”

“अगर झूठ होता तो रमेश जिन्दा बच कर वापस न आया होता । ”

“मगर वह पागल हो चुका है । ”

“संसार में इससे बड़ा झूठ आज तक नहीं बोला गया । ” विनोद ने कड़क कर कहा”रमेश पागल नहीं हुआ है । ”

“फिर ?”

“फिर यह कि मैंने जिस काम के लिये उसे भेजा था, उसमें वह सफल होकर लौटा है, बस इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं । ”

नारेन इस प्रकार चौंका जैसे अब तक वह सो रहा हो, फिर उसने कहा”मुझे दुख है विनोद कि अब तुम जीवित न बच सकोगे । ”

और विनोद के उत्तर देने से पहले ही उसने विनोद पर छलांग लगा दी। विनोद एक ओर हट गया, जिसका फल यह हुआ कि नारेन अपने ही झोंक में मुंह के बल गिर पड़ा। 

विनोद ने आगे बढ़ कर उसकी पीठ पर अपना पाँव रख दिया और बोला

“कहो दोस्त नारेन अब तुम्हें यह स्वीकार कर लेने में किसी प्रकार की बाधा नहीं होनी चाहिये कि तुम्हारी जिन्दगी मेरे हाथ में है, मगर घबड़ाओ नहीं, मैं तुम्हें मारूंगा नहीं, क्योंकि मैं यह कह चुका हूं कि तुम्हें हाथ नहीं लगाऊंगा और तुम्हें आत्म ह्त्या करने पर विवश कर दूंगा। मेरी हाथ न लगाने वाली बात तो इसी समय सत्य हो गई, रही आत्म हत्या वाली बात—तो समय आने पर वह भी सच ही हो जाएगी। ”

और फिर अचानक विनोद इस प्रकार उछला जैसे किसी ने गेंद पर हिट मारा हो। हुआ यह था कि नारेन ने न जाने किस प्रकार उल्टीटांग चला दी थी कि विनोद को गेंद के समान उछल जाना पड़ा था। अगर उसके स्थान पर कोई दूसरा होता तो कई गज दूर जा गिरा होता, मगर वह विनोद था, केवल लड़खड़ा कर रह गया। 

ठीक उसी समय दोनों ओर से आने वाली दो कारों की हेड लाइट का प्रकाश उस पर पड़ा और वह रोशनी में नहा गया। साथ ही किसी की आवाज उसके कानों में पड़ी। 

“बड़ा अनर्थ हो गया—फायर करो। ”

आवाज के साथ ही दोनों ओर से फायर हुये। नारेन ने छलांग लगाईं और एक कार की ओर बढ़ता हुआ बोला

“अगर तुम आज बच भी गये कर्नल तो याद रखना कि नारेन इस हार का बदला तुमसे अवश्य लेगा। ”

विनोद कुछ नहीं बोला। वह फायर होते ही लेट गया था। 

दूसरी बार फिर फायर हुए इस बार विनोद बालबाल बचा, उसने लेटे ही लेटे छलांग लगाईं और ढलान की ओर लुढ़कता चला गया। ढलान में अरहर के खेत थे। फसल तैयार खाड़ी थी, इसलिये विनोद को छिपने में आसानी हुई। उसने अपना रिवाल्वर निकाला। पूरे राउंड थे। उसने जैसे ही एक कार की पहिये का निशाना लेकर ट्रेगर दबाना चाहा, वैसे ही उसे खतरे का एहसास हुआ। वह फायर का इरादा छोड़ कर तेजी से भागा। 

कुछ ही क्षण के बाद दो धमाके हुए। 

विनोद घायल सिंह के समान मुडा और प्रथम इसके किकुछ निश्चय कर सके तीसरा धमाका हुआ। वह फिर तेजी से उसी ओर भागा जिधर भाग रहा था। थोड़ी देर बाद वह चक्कर काट कर पीछे की ओर से सड़क पर आया। 

बहुत दूर उसे दो कारें नजर आयी। अचानक उसमे गति पैदा हुई और फिर दोनों एक ही ओर चल पड़ीं। 

विनोद आधा घंटा तक वहीँ खडा रहा, फिर उसने जेब से टार्च निकाली, टार्च का प्रकाश आगे की ओर बढ़ता रहा। विनोद जल्द से जल्द अपनी गाड़ी तक पहुंचना चाहता था, मगर चूँकि उसके मष्तिस्क में नाना प्रकार के संदेह भी उत्पन्न हो रहे थे इसलिये वह बड़ी सावधानी से क़दम बढ़ा रहा था। 

लिंकन अब दिखाई देने लगी थी। विनोद बड़ी सावधानी से उसके समीप पहुंचा और एक क्षण के लिये झुका। सड़क के ऊपर कार के दरवाजे के पास एक छोटी हीरे की अन्घुथी जगमगा रही थी। ऐसा लगता था जैसे आज ही वह अंगूठी खरीदी गई हो। , क्योंकि अंगूठी में तागा बंधा हुआ था और उस तागे में छोटी सी एक स्लिप लगी हुई थी, जिस पर अंगूठी का मूल्य लिखा हुआ था “मिस रोबी वालचन के लिये उपहार। ”

विनोद ने आश्चर्य से अंगूठी तथा स्लिप को देखा। क्षण भर के लिये उसके ललाट पर आश्चर्य और हर्ष की मिली जुली रेखाएं उभरी और फिर उसने अंगूठी उठा कर जेब में रख ली। फिर सीधा खड़ा हो कर टार्च के प्रकाश में कार का भीतरी भाग देखने लगा। हैन्डिल पर एक कार्ड लगा हुआ था, जिस पर लिखा हुआ था”मेरे नन्हे बच्चे विनोद के लिये मामूली सा तुहफा। ”

विनोद ने द्वार खोलने से पहले इस प्रकार कार से कान लगा दिए जैसे कोई बहुत ही मंद प्रकार की आवाज सुनने कि कोशिश कर रहा हो। 

और अन्त में उसका संदेह सच निकला। मंद सी टिक टिक आवाज उसके कानों से टकरा रही थी। 

विनोद चोंक कर पीछे हटा और बड़ी तेजी से दौड़ने लगा। दौड़ते हुए डेढ़ मिनट भी न बीता होगा कि एक ज़ोरदार धमाके के साथ वायु मंडल गूंज उठा। लिंकन चीथड़ेचीथड़े हो गई थी, मगर इतनी ही देर में विनोद लगभग डेढ़ फर्लांग दौड़ गया था। उसने रुक कर उन शोलों को देखा जो पिट्रोल की टंकी से उठ रहे थे। 

***

रात जवान थी

सिंगसिंग बार के सामने एक नया रेस्टुरा खुला था। यह रेस्टुरा या होटल बिलकुल आधुनिक ढंग का था, जिसका अर्थ यही होता था कि परियों के रहने का स्थान। इसमें संदेह नहीं होता कि यह परियों के रहने ही की जगह मालूम होती थी। यहाँ लान पर आस्ट्रेलिया से माँगा कर घास लगाई गई थी। किनारे पर नारियल और इलाइची के वृक्ष थे, जिनके मध्य युकिलिप्ट्स के वृक्ष थे जो आकाश से बातें करते हुए जान पड़ते थे। लान से लगी हुई एक नकली पहाड़ी थी,जिससे एक झरना जहर रहा था और यहाँ का टेम्परेचर बिजली से इस प्रकार कंट्रोल किया जाता था की सर्दी में गर्मी और गर्मी में सर्दी का एहसास होता था। झरने के पास वृक्ष थे। जिनमें बिजली के बल्ब इस प्रकार लटकाए जाते थे मानों जुगनू चमक रहे हो। वृक्षों के कारण दिन में वहां धूप का नामो निशान तक नहीं रहता था और खुले स्थान की अपेक्षा यहाँ अंधकार भी रहता था। सवेरे लोग इस झरने में स्नान करते थे और संध्या समय वहां पार्टियां होती थी यह पार्टियाँ अधिकतर काकटेल पार्टियां होती थी और मदिरा निषेद के बावजूद इस रेस्टुरा को लाइसेंस मिला हुआ था। 

यहाँ आने वालों के लिए वस्त्रों के प्रति एक प्रतिबंध था। अर्थात पुरुष बंद गले का सफ़ेद कोट और काला पतलून पहन कर आते थे और नारियां स्कर्ट पहन कर। स्कर्ट काले रंग का होता था जिस पर सुनहरा काम होता था। इस प्रतिबंध के सिलसिले में यह बातें समझ में नहीं थी किबाहर से आने वाली नारियां इस प्रकार के वस्त्र की व्यवस्था कैसे करती थी। 

सरला को इन प्रतिबंध का पता था। वह सिंगसिंग बार के सामने खाड़ी रेखा की प्रतीक्षा कर रही थी। विनोद ने उसे केवल इतना ही बताया था कि उसे लेडी इन्स्पेक्टर रेखा के साथ एक प्रोग्राम में भाग लेना है। मगर यह नहीं बताया था कि वह प्रोग्राम क्या है। 

क्रासिंग पर लाल हरी रोशनी जल बुझ रही थी। कारें क्षण भर के लिए रुकती और फिर आगे बढ़ जाती। फुटपाथ पर ऐसा लगता था जैसे सारे संसार की रंगीनियाँ यहाँ जमा हो गई हो। आने वाला हर व्यक्ति अपने पीछे तीव्र प्रकार की संध छोड़ जाता था। स्कर्ट और सारियां पहने एक से एक सुंदर औरतें और लड़कियाँ कहलाहे लगाती इस प्रकार गुजर जाती जैसे किसी मंदिर की घंटियाँ बजकर अचानक मौन हो गई हो। 

सरला को घर छोड़े हुए चार घंटे से अधिक बीत चुके थे। जब चली थी तो रमेश बेहोश था। दो घंटे उसने नगर की सड़कों पर व्यतीत किए थेऔर अब दो घंटे से यहाँ ख़डी रेखा की प्रतीक्षा कर रही थी। 

अचानक पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और वह मुड़ी, उसके पास ही एक सुंदर सी लड़की खडी थी। जिसके नेत्रों में गुलाबी डोरे तैर रहे थे। बालों की एक लट ललाट पर झूल रही थी। काले रंग के सुनहरे काम किए स्कर्ट में वह ऐसी सुंदर लग रही थी किउसे देख कर न जाने कितनी अंगडाइयां बेचैन हो उठती थी। 

“तुम्हें मेरे साथ चलना है” लड़की ने धीरे से कहा। 

“मगर तुम हो कौन?” सरला ने आश्चर्य से पूछा। 

“रेखा” लड़की ने कहा। 

“ओह!” सरला ने कहा और चकित द्रष्टि से उसे देखने लगी। 

“कर्नल ने इसी लिबास में आने के लिए आदेश दिया था। तुम्हारे कपडे मेरी कार में है। ”

सरला चुपचाप उसके साथ चल दी। फेरियो के सामने गाड़ी खड़ी थी। रेखा ने दरवाजा खोला और एक बण्डल निकाल कर सरला की ओर बढ़ाती हुई बोली। 

“क्लोक रूम में जा कर कपडे बदल लो। ”

सरला एक ओर चकित भी थी और दूसरी ओर से संदेह भी हो रहा था। क्योंकि रेखा के मुख से मदिरा की दुर्गन्ध निकल रही थी। वह जानती थी कि विनोद को मदिरा से हार्दिक घृणा है। फिर रेखा ने मदिरा कैसे पी रखी है। पहले तो वह संदेह में पड़ गई थी कि हो सकता है रेखा के मेकअप में कोई दूसरी लड़की हो, मगर फिर रेखा की आवाज और विनोद के आदेश ने उसका संदेह दूर कर दिया था।