Vishal Chhaya - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

विशाल छाया - 13

(13)

“कितने ट्रेनिंग सेंटर है?”विनोद ने बात काट कर पूछा। 

“तीन...” रोबी ने कहा –”और तीनों नगर की बाहरी सीमा पर है। मैं उनकी प्रेसिडेंट हूं। मेरा यह काम है कि मैं जवान और सुंदर लड़कियों की उनमें भारती कराऊँ। ”

“और मेरा विचार है वह लड़कियाँ गरीब घराने की ही होती होगी। ”

“यह मैं नहीं जानती कि उनमें कितनी गरीब है और कितनी अमीर। मुझे तो बस सुंदर और जवान लड़कियों के लिये आदेश मिला था। अमीरी गरीबी का कोई प्रतिबंध नहीं था। प्रकट में तो उन्हें दस्तकारी की शिक्षा दी जाती है, मगर साथ ही साथ उन्हें नाच गाना भी सिखाया जाता है और लोगों को धोखा देने वाला आर्ट भी सिखाया जाता है। नारेन को जब किसी लड़की पर विशवास हो जाता है तो वह सेंटर से निकाल कर कहीं और भेज दी जाती है । ”

“कहाँ भेजी जाती है?”

“यह मैं नहीं जानती –”

“परछाइयों की कहानी क्या है?”

“इतना तो अवश्य जानती हूं कि परछाईयाँ भी नारेन द्वारा दिखाई जाती है, मगर उसका ध्येय क्या है और कुछ खास लोग ही क्यों उसके कारण अपना मानसिक संतुलन कहो बैठते है, मैं यह नहीं जानती । ”

“और हारिस ?”

“हारिस फोरियो का डायरेकटर था और नारेन का साथी था। पता नहीं किस बात पर नारेन उससे नाराज हो गया...। ”

“नाराज नहीं हुआ, बल्कि उसे हरिस पर संदेह हो गया था। ”

“जो भी कारण रहा हो –” रोबी ने कहा –”वैसे प्रोग्राम यह था कि हरिस किसी मिस जीवन नाम की लड़की को मुझसे मिलवायेगा और फिर मिस जीवन को मैं ट्रेनिंग सेंटर भिजवा दूँगी वैसे इतना और बता दूं कि जो लड़कियाँ ट्रेनिंग सेंटर में भिजवाई जाती है उन्हें स्कालरीशिप भी मिलता है। ”

“कासीम बीच में कहाँ से आ गया?”

“क्जर्च के लिये कभी कभी ऐसे लोगों की आवश्यकता पड़ती है, जिनसे रुपये ऐंठे जा सके। कासिम को भी इसी ध्येय के लिये फंसाया गया था। ”

“अच्छा मिस रोबी! तुमने जो कुछ भी कहा है वह सब रेकार्ड कर लिया गया है ताकि समय पड़ने पर तुम यह न कह सको की यह मेरा बयान नहीं है। अब अगर तुम्हारी आत्मा सच्चाई के मार्ग पर चलने के लिये तैयार है तो तुम्हें सरकारी गवाह बना कर अदालत में पेश करूँगाऔर फिर तुम्हें इज्ज़त के साथ रिहा भी करा दूंगा वर्ना तुम्हारा क्या परिणाम होगा, इसे तुम भी समज सकती हो। ”

“मगर आप मुकद्दमा किस पर चलाएंगे ?” रोबी ने पूछा—”क्योंकि न तो आप यही जानते है कि नारेन कौन है और न उसे आप गिरफ़्तार ही कर सकते है। ”

“मैं नारेन को जानता हूं---” विनोद ने मुस्कुरा कर कहा “मेरा एक आदमी रमेश नारेन की कैद में रह चुका है। नारेन ने बहुत चाहा कि रमेश उसके कैद खाने की सारी बातें भूल जाये, मगर उसे सफलता नहीं मिली। मेरा दूसरा आदमी हारिस भी नारेन के साथ काम कर चुका है और वह भी पागल नहीं हुआ है। मेरा तीसरा आदमी टेबी भी नरेन् के साथ रह चुका है और मैं तुम्हारे तीनों ट्रेनिंग सेंटरों का पता भी जानता हूं। ”

“यह सब ठीक है, मगर नारेन को आप नहीं जानते कि वह कौन है, फिर मुकद्दमा किस पर चलेगा?”

“देखा जायेगा—” विनोद ने हंस कर कहा और उठ कर कमरे से निकल गया। कमरे का द्वार अपने आप बंद हो गया। 

*****

सरला की आंख खुली तो वह चोंक उठी। 

किसी ने उसकी आंखों की पट्टी हटा दी थी और पट्टी हटते ही तीव्र प्रकाश के कारण आंखें चोंधिया गई थीं। वह एक कुर्सी पर थी बैठी। हाथ स्वतंत्र थे मगर दोनों पाँव बंधे हुए थे। वह जहां बैठी थी वह एक बड़ा सा हाल था। 

कुछ ही क्षण बाद साज बजने आरंभ हो गये और पंक्ति बांधे सुंदर तथा स्वस्थ लड़कियों की एक टोली हाल में आ गई, उनको अर्ध नग्न कहा जा सकता था। 

कुछ ही क्षण बाद बहुमूल्य सूट पहने कुछ पुरुष भी दाखिल हुये और उनके आते ही लड़कियों ने डांस आरंभ कर दिया। उनमें से जो भी नाचती हुई सरला के समिप से गुजराती, यह अवश्य कहती—”बधाई स्वीकार कीजिये। ”

अचानक सरला की निगाह रेखा पर पड़ी जो राजकुमारियों जैसा वस्त्र धारण किये एक कुर्सी पर बैठी हुई थी। उसके हाथ पाँव दोनों ही आजाद थे। एक आदमी उसकी कुर्सी के हत्थे पर अपनी कोहनी टेके उससे कुछ कह रहा था। रेखा कभी मुस्कुरा पड़ती, कभी संकेत करती और कभी हंसने लगती। 

अचानक रेखा खडी हो गई और उस पुरुषकी भुजाओं में अपनी भुजाएं फंसा कर नाचने वाली लड़कियों की टोली में जा कर मिल गई। सरला ने उसे आवाज़ दी। उसने मुड़ कर देखा भी, मगर फिर इस प्रकार मुंह फेर लिया जैसे सरला उसके लिये चिरपरिचित हो। 

नाच हो रहा था। धीरे धीरे पुरुषों की संख्या भी बढ़ती रही, मगर सरला ने नेत्र बंद कर लिये थे, क्योंकि नाच को आधार बना कर वहाँ जिस प्रकार का मनोरंजन हो रहा था वह सरला के लिये असहनीय था। 

अचानक एक आदमी ने सरला का हाथ पकड़ कर खींचा। सरला ने नेत्र खोल दियेऔर फिर उसका उलटा हाथ उस आदमी पर पड़ा। वह बेचारा अपना गाल सहलाने लगा, फिर उसने झपट कर सरला का हाथ पकड़ना ही चाहा था कि किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रख दिया और बोला—

“नहीं दोस्त ! तुम इसे हाथ नहीं लगा सकते! यह बास के लिये है!”

“तो फिर यहाँ क्यों बैठी है?” पहले वाले ने मुड़ कर कहा। 

सरला चोंक पड़ी, क्योंकि पहले वाले की आवाज़ उसे जानी पहचानी मालूम हुई थी। 

“बास यहाँ ख़ुद आयेंगे—” दुसरे ने कहा—”और इन्हें अपने साथ ले जायेंगे.....आओ हम लोग चले !”

वह दोनों जैसी ही वहाँ से हटे, किसी ने चिल्ला कर कहा—

“रात जवान हो चुकी है इसलिये अब तुम लोग नाच बंद करो और अपनी अपनी पसंद की लड़की ले कर एकांत में चले जाओ और इस प्रकार एश करो कि तारे लज्जित हो जायें। ”

लेकिन उसकी आवाज़ की गूंज समाप्त होते ही किसी ने चीख कर कहा—

“पुलिस ...भागो ..पुलिस !”

हाल में भगदड़ मच गई, मगर जिस आदमी को सरला ने थप्पड़ मारा था वह अपना नकाब नोच कर सरला के सामने आ गया था। उसके हाथ में अब रिवाल्वर था और दरवाज़े पर पुलिस के आदमी थे, जिनके साथ डी. आई. जी भी थे। नकाब नोचने वाला रमेश था। डी.आई. जी. उसे पहचानते थे। उन्होंने बुरा सा मुंह बना कर कहा—

“तुम यहाँ कैसे?”

“इसका उत्तर कर्नल साहब देंगे---” रमेश ने कहा और रेखा की ओर बढ़ गया, जो उसी की ओर आ रही थी। उसने रेखा से पूछा-”तुमने वालचन को पहचाना?”

“नहीं वह इन लोगों में नहीं है—” रेखा ने कहा। 

“यह कौन है ?” डी.आई.जी. ने रेखा की ओर संकेत करके रमेश से पूछा। 

“लेडी इन्स्पेक्टर रेखा –” रमेश ने कहा। “कर्नल साहब कहाँ है?”

“वह आता ही होगा “ डी.आई. जी. ने कहा, फिर सिप[आहियों से कहा –”इन सब को गिरफ्तार कर लो, मगर इतना ध्यान रहे कि किसी के मुख से नकाब न हटाया जाये। ”

******

विनोद की कार तेजी से चिथंम रोड कि ओर जा रही थी। 

रोबी से बातें करने के बाद उसने डी. आई. जी. को फोन कर के सारी बातें बता दी थी और ट्रेनिंग सेंट्रो के नाम और पते भी नोट करा दिये थे, मगर डी. आई. जी. को विश्वास नहीं हुआ था क्योंकि वह जानते थे कि ट्रेनिंग सेंटर को चलाने वाले नगर के बड़े लोग है, इसलिये उन्होंने पूछा था । 

“तो क्या तुम्हारे विचार में यह सब बदकारी के अड्डे है ?”

“जी हाँ ओर इन अड्डों की स्मगलरों को एक टोली चलती है । यह अड्डे देश के विरुद्ध षडयंत्रों की एक संस्था के है । इस ठोलो का संबंध उन परछाइयों से भी है, जिन्होंने नगर में आतंक फैला रखा है । आप देर न कीजियेगा । ठीक समय पर छापा मार कर गिरफ्तार कीजिये, मगर इतना और कीजियेगा कि गिरफ़्तार होने वालों के चेहरों से नकाब न उठाइयेगा । मैं टीन चार बजे के लगभग आपसे कोतवाली में मिलूंगा, फिर आपको विवरण बताऊंगा । ”

विनोद ने इतना कह कर संबंध काट दिया था और कार लेकर चीथम रोड की ओर चल पड़ा था । 

रोबी के बताये हुये पते पर उसने कार रोक दीं और उतर कर कोठी के पिछले भाग की ओर आया और खिड़की के रास्ते एक कमरे में दाखिल हो गया । 

कमरे में मंद मंद सा प्रकाश था मगर कमरे में कोई था नहीं । उसने इधर उधर नजर दौड़ाई, मगर इसे केवल एक संयोग ही कहना चाहिये कि विनोद जैसे चतुर आदमी की भी निगाह उस वक्स पर नहीं पड़ी जिस पर लाल और हरे रंग के दो बल्ब लगे हुये थे जो बारी बारी जलते बुझते थे । 

उसने बगल वाले कमरे के द्वार पर हाथ रखकर धीरे से दबाया । यूंकि वह बंद नहीं था इसलिये पट हट गये । विनोद ने झांक कर देखा । मसहरी पर कोई सोया हुआ था । वह दबे पाँव मसहरी तक गया । सोने वाली लिली थी । विनोद ने बड़ी तेजी से उसकी दोनों कनपटियाँ दबाई और फिर उसे कंधे पर लाद कर खिड़की के मार्ग से बाहर आया और कार में अगली सीट पर लिली को इस प्रकार बैठा दिया कि वह सीट से टिकी पड़ी रहे । फिर उसने कार स्टार्ट कर दी । वह इतनी जल्दी में था कि उसकी नजर उस आदमी पर नहीं पड़ी, जो उसकी कार से कुछ ही दूरी पर खड़ा था । 

*******************

उस आदमी के पाँव बहुत छोटे और सूखे थे । सीना चौड़ा था । चेहरे पर भूरे रंग की दाढ़ी थी । देखने से वह कोई पादरी जान पड़ता था । 

जैसे ही विनोद की कार चली वैसे ही उसने ठंडी साँस खींची और बडबडाया”बेटे नारेन !इसे स्वीकार कर लो कि विनोद तुमसे अधिक चतुर है । शैतान का बच्चा न जाने कौन सा जूता पहन कर आया था कि लिली के कमरे में प्रविष्ट होते समय न तो उसे बिजली का झटका लगा और न वह बेहोश हुआ । अगर मैं यह जानता होता तो फिर कार ही में बम रख देता, मगर अब तो वह निकल गया, ओह....मुझे जल्दी करना चाहिये । ”

और फिर वह दौड़ कर कोठी में घुसा और लिली के कमरे से कुछ कागज़ निकाल कर जलाये, फिर उस सिस्टम को नष्ट किया जिससे हरे और लाल रंग वाले बल्ब बारी बारी जलते बुझते थे । फिर उसने एक बक्स से रबर के जो टुकड़े निकाल कर अपनी टांगों पर चिपकाये और दाढ़ी अलग कर दी । इस साधारण से परिवर्तन ने उसकी हुलिया ही बदल दी । अब उसे कोई यह नहीं कह सकता था कि यह वही आदमी है जो कुछ देर पहले फुटपाथ पर खड़ा था । 

फिर वह दौड़ता हुआ गैराज में आया । कार निकाली और बालचन की कोठी की ओर चल पड़ा । शायद उसे विश्वास हो गया था कि विनोद सीधा रोबी के लिए बालचन ही की कोठी पर जायेगा । 

कोठी पर पहुंच कर उसने कार रोक दी और फिर बरामदे में आकर कालबेल पर उंगुली रख दी । अंदर घंटी बजने लगी । 

एक नोकर निकला। 

“नम्बर तीन –” नारेन ने उससे कहा। 

थोड़ी ही देर बाद बालचन दरवाज़े पर खड़ा पलकें झपका रहा था। 

“तुम ?” बालचन ने आश्चर्य से पूछा। ”हां मित्र! मुझे नारेन ने भेजा है। विनोद हमारी राह पर लग गया है। वह थोडी ही देर में यहाँ आना ही चाहता है, मगर तुम तो ट्रेनिंग सेंटर जाने वाले थे ना?”

“हां!

“अब वहाँ न जाना !”

“क्यों ?” बालचंन ने पूछा। 

“रोबी आई ?”

“नहीं ! वह कहाँ है?” बालचन ने पूछा। 

“रोबी विनोद की कोठी पर है और अब विनोद लिली को उठा कर ले गया है । तुम अपने दोनों साथियों को लेकर विनोद की कोठी पर पहुंच जाओ। ”

“शेर के मुंह में ?” बालचन भयभीत हो कर बोला।