Gaanv ki lok kahaniyaa - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

गाँवों की लोक कहानियां - 1

1. राक्षस का भाई भाक्षस

----------------------------------------------

ये सारी लोक कहानियां हमारे गाँव के बजुर्ग हमें सुनाया करते थे ...उस समय हम बहुत छोटे होते थे ..तो आज मैं इन कहानियों को यहां आप सबके सामने प्रसतुत कर रहा हूं। यह कहानियां हमारी लोकभाषा में है जिसे पहाड़ी भाषा कहा जाता है।हिमाचल प्रदेश में हर गाँव की अपनी ही एक अलग बोली होती है ..जिसे पहाडी भाषा का नाम दिया जाता है।उनमें से प्रमुख :- कुल्लुवी,मंडयाली,किन्नौरी,कांगडी़,डाम्बरी,आदि है। इनमें से ज्यादा कहानियां मुझे मेरे छोटे मामा जी जिनका नाम श्री दिलेराम है उन्होंने सुनाई। मैं उम्मीद करता हूं कि आप सबको ये कहानियां पसंद आयेगी ।तो बने रहें मेरे साथ यानि निखिल ठाकुर के साथ और लुत्फ उठायें इन लोक कहानियों का।

=============================== राक्षस का भाई भाक्षस

प्राचीन समय की बात थी। एक गाँव में एक ब्राह्मण का लड़का और एक साहूकार लड़का रहता था। दोनों आपस में बहुत घनिष्ठ मित्र थे।दोनों साथ पढ़ते थे और साथ खेलते थे।

धीरे-धीरे वे दोनों समय के साथ बडे होने लगे और युवावस्था में पहुंच गये और उनकी स्कुल की पढ़ाई भी पुरी हो गई थी।

अब दोनों के मन में धन कमाने का ईच्छा होने लगी।जिससे वे धनवान बन सके और एक आनन्द से भरा जीवन जी सके। धन कमाने की ईच्छा के कारण वे दोनों अपने गाँव से किसी अन्य शहर के लिए निकल पड़े।घर से कुछ जरूरी समान और रास्ते के लिए अपने लिए भोजन आदि लेकर वे दोनों शहर की ओर चल पडे़।

रास्ते में चलते-चलते उन दोनों को कुछ वस्तुऐं पडी हुई मिलती है तो ब्राह्मण का लड़का उन वस्तुओं को उठाकर अपने पास रख लेता है।ये सब देखकर साहूकार का लड़का चुप ही रहता है और शांति से शहर के ओर जाने वाले रास्ते में चलना लगता है।कुछ देर आगे चलने पर उन दोनों को कुछ और वस्तुऐं मिलती है जो एक """करनाल"" (श्रृंगा) होता है तो ब्राह्मण का लड़का उसे भी उठाकर अपने पास रख लेता है।ये सब देखकर अब साहूकार के लड़के से रहा नहीं जाता है और वह बोलता है ब्राह्मण के लड़के से-

तुम पंडित(ब्राह्मण) तो होते ही लालची। ऐसे ही जो हर वस्तु को उठाते ही रहते है ।""

इस पर ब्राह्मण के लड़के ने साहूकार से बोला

मित्र :- क्या पता कब,कहां कैसे ,किस समय हमें इन सब वस्तु की जरूरत पड़ जाये।

ये सब सुनकर साहूकार का लड़का कुछ नहीं बोलता है।

अब दोनों आगे चलने लगते है और धूप में कडा़के की लगी हुई थी । जिसके कारण गर्मी बहुत हो रही थी और दोनों के शरीर से पसीना भी बहने लगता है।

दोपहर का समय हो गया था । सूरज अपनी तपिश की उच्चतम शिखर पर था और चमकते हुये अत्याधिक गर्मी के साथ अपनी चमकदार किरणों के साथ आसमान में धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था।

अब दोनों ने विचार किया कि इस कड़ी धूप में वे किसी वृक्ष की छाँव के तले बैठकर थोड़ा आराम करेंगे और अपना भोजनाादि कर लेंगे ।

तो दोनों अब एक बडे से वटवृक्ष की छाया के नीचे बैठकर अपने हाथ धोकर अपना-अपना भोजनन करने लगते है और भोजन करने के बाद वे दोनों कुछ देर उसी वटवृक्ष की छाया में विश्राम करने लगते है।

विश्राम करने के बाद दोनों ने अपने आपको तरोताजा महसुस किया और फिर अब अपनी यात्रा आगे शुरू कर दी।

क्रमश:-