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इन्तजार एक हद तक (महामारी) - 18




फिर बच्चे इधर उधर बैठे थे उर्मी ने देखते ही कहा चलो सब पढ़ने बैठ जाओ। पढ़ाई बहुत जरूरी है। रवि ने कहा हां चाची जरूर।आप पहले भी हमें ऐसा कहती थी। फिर सभी बच्चे पढ़ने बैठ गए। रमेश ने चुपके से देखा कि उर्मी बड़े ध्यान से बच्चों को पढ़ा रहीं थीं।
फिर सभी खाना खाने बैठ गए। उर्मी ने गर्म गर्म आलू के परांठे बनाने लगीं। चन्दू भी बहुत ही खुश हो गया और सबको परोसने लगा। सभी खाना खा कर सो गए। रमेश भी सो गया। दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर तैयार हो गए। सभी बच्चे बहुत खुश हो गए क्योंकि उन्हें फिर से जाने का मौका मिला। रमेश ने कहा कि बस जाना है और फिर वापस आ जाना है। सभी जल्दी से नाश्ता करने लगे और फिर निकल गए।
सभी एक गाड़ी में सवार होकर चले गए। स्टेशन पहुंच कर रमेश ने आने जाने वाली टिकट बुक करवा दिया था। फिर कुछ देर बाद ही गाड़ी आ गई। सभी गाड़ी में बैठ गए। उर्मी ने कहा कि अब हम हुकुलगंज जा रहे हैं।नाम काफी सुना हुआ है पर।।।
फिर दोपहर तक पहुंच गए। स्टेशन पर एक टांगें पर सब बैठ गए। टांगा वाला सरपट दौड़ पड़ा। और फिर अस्पताल भी आ गया।गेट के अंदर ही अम्मा जी और बाबूजी का मूर्ति लगा था। सबने पहले पुजा और प्रार्थना किया। रमेश ने उर्मी को कहां ये जल लो और चारो तरफ गिरा देना। उर्मी ने वैसा ही किया। उसके बाद सब अन्दर पहुंच गए। उर्मी इधर उधर बहुत ध्यान से देख रही थी और फिर बोली कि यहां तो एक चबूतरा हुआ करता था जहां बाबू जी अखबार पढ़ा करते थे। और वहां तो रसोई घर था और वहां से ऊपर की सीढ़ियां।। अरे ये सब कहां गया।। हां ये कहते हुए उर्मी बेहोश हो गई।
रमेश ने तुरंत उर्मी को वहां के डाक्टर के पास लें कर गए। डाक्टर को सारी बात बताई फिर डाक्टर से एक इंजेक्शन दिया फिर बोला कि उसको बहुत ज्यादा मानसिक तनाव हुआ है। थोड़ी देर आराम करने दिजिए।
एक घंटे बाद उर्मी को होश आया और वो बोली मैं कहा हूं।। रमेश ने कहा तुम हुकुलगंज में हो। उर्मी ने रमेश को देखते ही कहा रमेश तुम कैसे हो कब आए। रमेश दौड़ कर गया और उर्मी को अपने सीने से लगा लिया और फिर बोला उर्मी तुम ठीक हो। रवि, रत्ना को देखते ही उर्मी रोने लगी और बोली मेरे बच्चे आओ अपनी चाची के पास। सभी बच्चे गले से लिपट गए। उर्मी ने कहा चन्दू काका आप कैसे हो? उर्मी ने रोते हुए कहा रमेश तुमने आने में बहुत देर कर दी। रमेश ने कहा तुम चिंता मत करो। मैं तुम्हें सारी कहानी बताऊंगा। तीन साल बीत गए हैं।
उर्मी ने कहा क्या तीन साल, तीन साल से हम ऐसे हैं। रमेश ने कहा हां हमने तो आस ही छोड़ दिया था।पर देखो अम्मा जी के विश्वास ने उनकी आस्था ने, उनके प्यार ने, उनके बलिदान ने, और एक मां के इन्तजार ने ये कर दिखाया। आज बहुत खुशी का दिन है।हम मिठाई बंटवाऐगे। चन्दू को एक हजार रुपए देकर बोला मिठाई सबको खिलाओ।
रमेश ने कहा उर्मी अब कैसी हो तुम! उर्मी ने कहा ठीक हुं मैं पर अम्मा जी को कैसे भुल जाऊं मैं।उनका बलिदान। मैं अगले जन्म में उसी अम्मा जी को पाऊं और उनका गोद पाऊं। रमेश पता है अम्मा जी की वजह से परी को नया जीवन मिला था वरना क्या हो जाता। रमेश ने कहा अच्छा ठीक है उर्मी तीन साल की बात एक दिन हो पाएगा और फिर हमें वापस भी जाना होगा। उर्मी रोने लगी रमेश हमने तो अम्मा जी को पुरे परिवार को खो दिया। रमेश ने कहा ये लो ये जूस पी लो। चन्दू ने सबको मिठाई बांटने लगा।पुरे हुकुलगंज में ही मिठाई बांटी गई। फिर वहां से सब निकल गए। स्टेशन पहुंच कर भी जो कुछ मिठाई बचा था तो स्टेशन मास्टर को कुली को बांट दिया।
कुछ देर बाद गाड़ी आ गई सब लोग बैठे। गाड़ी में ज्यादा भीड़ नहीं थी।रात ग्यारह बजे तक अलीगढ़ पहुंच गए। उर्मी स्टेशन पर उतर कर देख रही थी और फिर बोली अम्मा जी आपको हमेशा से मेरे लिए चिंता थी ना देखिए मैं आज रमेश के घर जा रही हुं बस अफसोस सिर्फ इस बात का रहेगा कि मेरा पुरा परिवार एक साथ ना हो पाया। अम्मा जी, बाबूजी, बाकी सदस्यों को खो दिया हमने। रमेश ने कहा उर्मी खुद को सम्हाल लो। फिर आटो रिक्शा में बैठ कर घर पहुंच गए। उर्मी पहली बार रमेश के घर आई थी पर वो बहुत ही उदास थी।रात को सभी हल्का सूजी का हलवा खाकर सो गए।
दूसरे दिन सुबह उर्मी के लिए एक नई सुबह लेकर आईं।
चन्दू ने नाश्ता और चाय पीने को दिया। रमेश ने उर्मी को धीरे धीरे यहां का रहन सहन समझा दिया। रवि, रत्ना और परी के स्कूल के बारे में भी सब बताया। उर्मी उन बीते हुए दिनों को याद करके रोती जा रही थी। रमेश ने कहा देखो उर्मी हमें अब अपने बच्चों के लिए जीना होगा उनकी पढ़ाई लिखाई में मैं कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता। अम्मा जी का सपना पूरा करना होगा हमें। आज रवि और रत्ना के माता-पिता हम दोनों ही है। उर्मी ने कहा हां ठीक कहा आपने। मैं पुरी कोशिश करूंगी कि उनकी परवरिश ठीक से कर पाऊं। जैसे अम्मा जी ने आप की इतनी अच्छी परवरिश की थी कि आज आप इस मुकाम पर पहुंच गए हैं।पर हां दुख इस बात का है कि अम्मा जी ये सब देखने के लिए नहीं है उनकी छत्रछाया में थी तो सबकुछ कितना आसान सा लगता था। रमेश ने कहा हां अम्मा जी हमारे पास ही है। उर्मी ने कहा एक मां का सच्चा प्यार और इन्तजार रंग लाया वरन् हम तो परी को खो चुके थे। रमेश ने कहा हां ठीक कहा तुमने अम्मा जी ने सही समय पर हमें सब चीजों से अवगत कराया और तभी तुम मेरे पास हो। उर्मी ने कहा हां परी को तो वो आशा मैडम लेकर एक दम्पत्ति को दे दिया था। और जब हमें ये पता चला कि हमें तो मामूली सा बुखार ही था कोरेला नहीं था पर तब तक बहुत देर हो गई थी। अम्मा जी भी घर पहुंच गई थी और फिर सब बिना डॉक्टर के बिना दवा के चले गए।
रमेश ने कहा हां उर्मी ये हम कभी नहीं भुला सकते हैं। उर्मी ने कहा एक सांस होकर इतना बलिदान दिया कौन कहता है कि सास मां नहीं हो सकती है मेरी अम्मा जी मेरी मां ही थी।
रमेश ने कहा हां ठीक कहा। अच्छा मुझे एक बार आफिस जाना होगा। और एक दावत करवाना होगा और फिर एक पुजा भी करवाना होगा। उर्मी ने कहा हां जी। पहले एक पुजा करवाते हैं जिसमें हवन भी करेंगे जिससे हमारे परिवार के लोगों की आत्मा की शांति प्रदान करे। रमेश ने कहा हां मैं अभी पंडित जी को बोल देता हूं। फिर रमेश सबसे पहले आफिस पर गया और वहां सभी लोगो को मिठाई बंटवाया और फिर सबको आमन्त्रित किया कि परसों एक दावत रखा गया है। सभी ने खुशी जाहिर किया। अमित भी सुनकर बहुत खुश हुआ। और फिर बड़े बाबू को भी आमंत्रित किया। वहां से निकल कर सीधे पंडित जी को बोलने पहुंच गए कि कल एक पुजा और हवन करवाना है। पंडित जी ने तुरंत एक लिस्ट तैयार कर के दे दिया। रमेश वहां से घर जाते समय ही पुजा की सारी सामान खरीद कर घर लौट आए। चन्दू को सारा सामान पुजा घर में रखने को कहा।
फिर सारी बात उर्मी को बताया। और उर्मी को वो साड़ी निकाल कर दिया जो जोधपुर से खरीदा था। उर्मी ने देखते ही कहा वाह गुलाबी जामदानी साड़ी खरीदा था। मैं कल ये पुजा में पहनूं? रमेश ने कहा हां ज़रूर। फिर सारी तैयारियां हो गई थी। सभी खाना खा कर सो गए। सुबह उठकर तैयार हो गई थी उर्मी। फिर पंडित जी आकर सारी पुजा सामग्री को अच्छे से सजा दिए। अम्मा जी, बाबूजी बाकी सदस्यों की फोटो पर माल्यार्पण कर दिया था उर्मी ने। फिर पुजा में सभी बैठ गए। पुजा विधिवत रूप से हो गया और फिर हवन भी शुरू हो गया।सब अच्छी तरह से हो गया। फिर उर्मी ने बहुत ही भक्ति से भोग बनाया था।भोग चढ़ाने के बाद पुजा सम्पन्न हुआ तो रमेश जाकर छत पर भोग रख दिया। फिर सभी लोग भोजन करने बैठे। अमित भी आ गया था। सारी चीज़ें अम्मा जी और बाबूजी बाकी सदस्यों के पसंद का बना था। पुरी, कचौड़ी, पुलाव, पनीर कोफ्ते, आलू दम, चटनी, रायता, ढोकला,खीर, भाजी, दाल कढ़ी, गाजर का हलवा,बेसन के लड्डू। इतना कुछ उर्मी ने बनाया था। रमेश, अमित खाने की तारीफ करते नहीं थके थे। बच्चे भी बहुत खुश हो कर खा रहे थे। चन्दू ने कहा उर्मी बहु इतना कुछ बनाई है रात को और कुछ भी बनाने की जरूरत नहीं है। उर्मी ने कहा हां चाचा जी।
फिर अमित और रमेश नीचे जाकर कर देखने लगे जहां दावत की व्यवस्था करनी थी। रमेश कि कालोनी काफी बड़ी थी तो वहां के अध्यक्ष से बात करके सब कुछ तय कर लिया। और वहां से टेन्ट वाले के पास जाकर सब बातें करने लिया। और फिर वहां से खाना बनाने वाले रसोईए से भी बात कर लिया। रमेश और अमित ने ही खाने की मेनू बता दिया।सब कुछ हो जाने के बाद अमित चला गया। रमेश उपर आकर उर्मी को सारी बात बताई। उर्मी ने कहा हां सब कुछ ठीक है पर अम्मा जी और बाबूजी बाकी सदस्य नहीं हैं वो लोग रहते तो क्या बात थी। रमेश ने कहा उर्मी अब दुखी मत हो आज शायद अम्मा जी को शांति मिल गई मुक्ति मिल गई। उर्मी ने कहा हां ज़रूर।
फिर दूसरे दिन सुबह से काम शुरू हो गया था नीचे। क्योंकि दावत कल थी।टेन्ट लग रहा था और बैठने के लिए कुर्सी टेबल लग रहे थे। रमेश ने सारी व्यवस्था अम्मा जी की पसंद अनुसार करवाया था उनको बैठ कर खाना खाना पसंद था तो रमेश ने भी दवात में कुर्सी टेबल की व्यवस्था करवाई थी। खाना भी चुल्हे में बनना था इसलिए चुल्हा सब बन कर तैयार था। दुसरे दिन सुबह जल्दी ही महाराज आ गए थे खाना बनाने के लिए। नाश्ता और दोपहर का भोजन भी नीचे ही बनना था। चन्दू भी नीचे पहुंच कर महाराज का हाथो हाथ काम करवाने लगे थे। नाश्ते में आलू की पुरी और पालक सांग बना था। रमेश, रवि, रत्ना,परी, उर्मी सब नीचे पहुंच कर नाश्ता करने लगे। नाश्ता बहुत ही अच्छा बना था। कुछ देर बाद अमित भी आ गया और वो भी नाश्ता करने लगा। अमित ने कहा वाह रमेश सब कुछ बढ़िया हुआ भाई। अम्मा जी के आशीर्वाद से। फिर इसी तरह दोपहर का खाना भी सब खा चुके थे। फिर शाम होते ही सारे मेहमान आने लगें। फिर सभी को बहुत ही अच्छी तरह से खाना खिलाया गया। सभी लोग बहुत ही तिप्त होकर खाना खाने लगे। कुछ देर बाद ही रमेश के आफिस के सारे सदस्य आने लगें। बड़े बाबू भी आ गए थे। सभी लोग बहुत ही मन से दावत खाने लगे। फिर सभी मेहमान चले गए। रमेश का परिवार बैठा था खाना खाने के लिए। अमित भी साथ में बैठ गए। उर्मी ने कहा लगता है कि मेरा पुरा परिवार यहां पर ही है। रमेश ने कहा हां उर्मी ठीक ही कहा अम्मा जी, बाबूजी बाकी सब हमारे दिल में है हमारी यादों में है और हमेशा रहेंगे हमें सही रास्ता दिखाने के लिए अम्मा जी आज भी वही दरवाजे पर लालटेन लिए खड़ी है। और हमेशा खड़ी रहेगी।



समाप्त,🙏