Atit ke panne - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

अतीत के पन्ने - भाग १

कुछ अतीत के पन्ने ऐसे होते हैं जो कभी, कभी इन्सान को इतना मजबूर बना देता है कि जिंदगी जैसे रुक सी जाती है कहीं थम सी जाती है। दोस्ती आज मैं जो उपन्यास लेकर आई हुं। उसमें एक लड़की के जीवन से जुड़ी हुई हर एक पहलू को उजागर किया है। मुझे विश्वास है आप सभी को मेरी ये कहानी अच्छा लगेगा।



क्या लिखूं कहा से शुरू करूं कुछ समझ नहीं आ रहा था। आज मां की बरसी थी पर कहने को इतनी बड़ी हवेली पर सम्भवतः गिने चुने लोग ही रह गए थे।

इतनी बड़ी हवेली में तो बहुत से लोग रहते थे पर अब जैसे काटने को दौड़ता है पर एक एकान्त की आदत सी हो गई थी।
मैं सब बहनों में कहने को मजली थी पर कोई मुझे मानता नहीं था।हम बहनों में प्यार से ज्यादा दिखावा था। बड़ी दीदी रेखा, जैसा नाम वैसा ही रंग रूप तो इस बात का बड़ा गुरूर था।
दूसरे नंबर पर थी सरिता जैसी फिल्मों में सुन्दर होती है वो वैसी थी और अपने दुनिया में रहती थी उसे तो उड़ना था बस किसी का साथ मिल जाए।
तीसरे नंबर पर थी मैं , मैं अपने बारे में क्या बताऊं,सब कहते हैं ना तो बात करने का तरीका है और ना ही चलने फिरने का सलीका है। वैसे मेरा नाम मेरी मां ने रखा था काव्या।।
और सबसे छोटी राधा जो मुझे बहुत ही समझती थी।
आप सभी को मैं अपने कुछ अतीत के पन्नों को पलटना चाहती हुं, मुझे हमेशा से लिखने की आदत थी और उसकी वज़ह थी मेरी मां,वो मेरे लिए मेरी दुनिया थी वैसे चारों बहनों को प्यार तो करती थी पर शायद मुझे कुछ ज्यादा।
इतनी बड़ी हवेली को सम्हालती थी मेरी मां।।सब कुछ ठीक से काम करवाती थी हमारा अपना बहुत कुछ था पर कहते हैं किसी की नजर लग जाती है तो वहीं हो रहा था।
मां की हालत मैं ही समझती थी हम चारों ही उम्र की यौवन की दहलीज पर कदम रख रही थी और फिर सबसे पहले बड़ी दीदी के रिश्ते आ रहे थे और सब बड़ी हवेली को देख कर रिश्ता करने को तैयार हो रहे थे पर जब बाहर से पता चलता था कि सब कुछ खोखला है तो सब तोड़ दिया करते थे।
मां के पास कुछ गहनों के आलावा एक जमीन का टुकड़ा ही बचा था।
रेखा ने कहा मां क्या मैं भाग कर शादी कर लूं।
सरस्वती ने कहा अरे बाबा ऐसा क्यों सोच रही है सब हो जाएगा।
काव्या ने कहा मां मुझे एक स्कूल में नौकरी मिल रही है कर लेती हुं।
रेखा ने मजाक कर के कहा हां तू ही एक पढ़ी लिखी है हम सब तो अनपढ़ है।
काव्या ने बड़े प्यार से कहा रेखा दीदी मैंने तो घर की थोड़ी मदद करनी चाही थी।
सरिता हंस कर कहा हां कर ना ।।

सरस्वती ने कहा हां काव्या कर ले ।
राधा कालेज से आकर खाना खा रहीं थी। और फिर उसने कहा अगर मुसीबत है तो सब मिलकर करेंगे और काव्या दीदी ही क्यों करेंगी? काव्या ने हंस कर कहा अरे मेरी गुड़िया तू अभी बहुत छोटी है।
रेखा ने खीज कर कहा जो भी हो अम्मा मुझे तरूण से ही शादी करनी है।
सरस्वती ने कहा हां ठीक है मैं पंडित जी से कह कर एक शुभ मुहूर्त देखती हुं।
सरिता ने हंस कर कहा हां मां उसके बाद तो मेरी बारी।
अब फिर काव्या अपने वर्तमान में आ गई।
शीला ने कहा दीदी सब सामान आ गया है अब रसोई का थोड़ा देख लो।
काव्या ने कहा हां,सब कुछ मां की पसंद का ही बनेगा।
फिर फोन की घंटी बजी। काव्या ने फोन उठाया हेलो। उधर से आवाज आया मौसी मैं नीरज।
काव्या ने कहा हां नीरज बोलो बेटा,कब पहुंच रहे हो?
नीरज ने कहा मौसी बस एक घंटे में।
काव्या उठकर मां के कमरे में गई और तस्वीर को देखकर बोली मां आज सब आ रहे हैं आपके अपने लोग। कैसे सब कुछ बिखर गया मां।इतनी बड़ी हवेली में अब सिर्फ दो लोग ही रह गए हैं एक मैं और मेरा आलेख, देखा मां आप मुझे अकेले छोड़ कर चली गई और रेखा दीदी का बड़ा बेटा बाबू कैसे अपनी मां,बाप को छोड़ कर मेरे पास रह गया।
तभी छोटी मां ओ छोटी मां।पुकारते हुए बाबू यानी कि आलेख आ गया। अरे आप यहां हों। मैं कब से ढुंढ रहा हूं।
काव्या ने कहा हां बाबू बोल बेटा, मैं मां से बात कर रही थी, देखते देखते कितने साल बीत गए हैं ना।।
आलेख ने पूछा कल तो नानी की सोलहवीं बरसीं है ना।
काव्या ने कहा हां बाबू!मानो कल की बात हो। आलेख ने कहा छोटी मां आप चिंता मत करो सब अच्छा होगा।
अब चलिए और कुछ खा लिजिए।
काव्या ने कहा हां बस चल रही हूं। कुछ अतीत के पन्नों को पलट रही थी।
आलेख ने कहा क्या छोटी मां आप भी।किनके लिए ऐसा कर रही है।
काव्या ने कहा बाबू, भुली बिसरी यादें हैं कहा जाएगी।
फिर दोनों बैठ कर नाश्ता करते हैं।

सोहन लाल द्विवेदी आ गए और बोले बेटा मैंने सब कुछ सामान रखवा दिया है और ये रहे आज का हिसाब।
काव्या ने कहा हां काका अच्छा किया आपने जो ले आएं।
छाया ओ छाया जरा चाय बना कर ला दे साथ में नाश्ता भी।
छाया आकर बोली हां छोटी दीदी अब एक इंसान क्या क्या करें।लो चचा चाय और नाश्ता।।
फिर सोहनलाल द्विवेदी बैठ गए नाश्ता करने लगे।
आलेख ने कहा छोटी मां मैं बैंक होकर आता हूं।

काव्या ने कहा हां ठीक है पर हमारे अलिगढ की देसी घी के बने सोन हलुआ मत भुलना वो मेरी मां को भाता था।
आलेख ने कहा हां याद है मुझे।
फिर सोहन लाल चले गए और आलेख भी चला गया।
काव्या फिर किसी तरह खुद को सम्हाल कर कमरे तक गई और फिर अपने अतीत के पन्नों में खो गई।
आज अगर काव्या स्कूल की नौकरी और टूयशन नहीं करी होती तो घर कैसे चलता।
सरिता ने कहा हां मां तुम ताने मत ही दो ।ये हवेली ले जाओगी क्या?
राधा गुस्से से बोली अरे सरिता दीदी इतनी पढ़ी लिखी हो तुम्हें भी तो नौकरी करना चाहिए, मां को क्यों कोस रही हो।
सरिता ने कहा हां, हां तुम फिर क्या करोगी।

कुछ देर बाद काव्या आ गई और फिर बोली मां ये लो मेरी तनख्वाह! और हां रेखा दीदी के कंगन भी लेकर आ गई ये रख लो।
सरस्वती ने कहा काव्या तूने सोनार को पैसे दे दिए। काव्या ने कहा हां मां,वो ट्यूशन से जो मिले थे वो दे दिया।
रेखा तुरंत नीचे आ गई और फिर बोली दो मेरे कंगन।
सरस्वती ने कहा हां ये ले।
रेखा ने कहा अब खरीदारी भी करना है कितने कम दिन बचे हैं।
काव्या ने हंस कर कहा अरे दीदी आप चिंता मत करो सब हो जाएगा।
सरस्वती ने कहा काव्या चल मुंह हाथ धो लें कुछ खा ले।
काव्या ने कहा हां मां चलो।
सरिता ने कहा अब इस हवेली से विदा लूंगी।
रेखा ने हंस कर कहा हां मेरे बाद तेरी बारी है।

सरस्वती ने कहा देखा काव्या तेरी बड़ी बहन क्या सोचती है। काव्या ने कहा अरे जाने दो मां मैं तो हमेशा से आपके साथ हुं और रहुंगी। सरस्वती ने अपने हाथ से रोटी सब्जी खिलाने लगी।
दूसरे दिन भी काव्या ने कुछ और पैसे अपनी मां को देकर गई। रेखा और सरिता खरीदारी करने निकल गई।
अब वर्तमान में लौट कर आ गई थी काव्या मन में कहीं न कहीं एक डर सा रह गया था कि पता नहीं क्या होगा जो कभी अतीत के पन्नों के साथ मेरा अन्त न हो जाए।
छोटी मां क्या हुआ आपको तबीयत ठीक नहीं है क्या? काव्या ने कहा ना बाबू सब ठीक है मैं भली हुं। आलेख ने सर पर हाथ रखा तो बोला अरे बाबा छोटी मां आपको बुखार है।आप क्यों सोचती हो जो आपको इतना तकलीफ होता है। काव्या ने कहा क्या करूं कुछ बातें ऐसी होती हैं जो आपका जिंदगी भर पीछा नहीं छोड़ती है ‌
आलेख ने कहा हां पर।आप नानी मां का काम कैसे करेंगी? काव्या ने कहा अरे इस बार तू करेगा।
आलेख ने कहा अच्छा मैं गर्म दूध और दवा लेकर आता हूं। फिर आलेख नीचे जाकर छाया को बोला कि एक गिलास दूध दे। छाया ने जल्दी से एक गिलास दूध लेकर आई। आलेख ऊपर दवा लेकर छोटी मां के पास गया और फिर बोला ये पी लिजिए ना । काव्या ने कहा उठा ना जा रहा है। आलेख ने अपना सहारा देकर उठाया और फिर दूध पिला दिया। और दवा भी। काव्या ने कहा बेटा इतनी जल्दी तुम्हारी छोटी मां जाने से रही।तेरा व्याह करना है मेरी इच्छा तू पुरी करेगा तो। आलेख ने कहा ओह क्या सब बोल रही है।सो जाइए। फिर काव्या एक दम से सो गई। आलेख ने नीचे आ कर छाया को बोला कि मुझे खाना दे दो। छाया ने खाना परोसा और टेबल पर रख दिया। आलेख को जरा सा भी खाने का मन नहीं था फिर भी थोड़ा सा खा कर सोने चला गया।
आधी रात को अचानक ही आलेख की आंख खुल गई और उठ गया और फिर सोचा कि एक बार जाकर देख लूं छोटी मां को। और फिर छोटी मां के कमरे की तरफ बढ़ गया आलेख और फिर देखा कि लाइट जल रही थी तो वो खिड़की पर गया तो खिड़की खुली थी आलेख की आंखें खुली की खुली रह गई थी वो ये क्या देख रहा था छोटी मां दुल्हन के जोड़े में और उनके हाथों में किसकी फोटो है कुछ भी दिखाई तो नहीं दे रहा है पर क्या छोटी मां शादी करना चाहती थी इस फोटो वाले इंसान से।। आखिर कौन है वो? कैसे पुछु मैं? छोटी मां कितना खूबसूरत लग रही है उन्होंने शादी क्यों नहीं किया।मैं जाऊं? नहीं नहीं मैं वापस जा रहा हूं। ये सोचते हुए आलेख वापस अपने कमरे में आ गया। क्या बड़ी मां को कुछ पता होगा? ओह हो मैं क्या करूं। ये सोचते हुए आलेख सो गया।
दूसरे दिन सुबह आलेख छोटी मां के कमरे में गया और बोला आप कैसी हैं? काव्या ने कहा एकदम ठीक हुं।चलो नाश्ता करने चले। आलेख कुछ भी पुछ नहीं सका।
काव्या ने नाश्ता करते हुए कहा आलेख तेरे लिए लड़की देखु या खुद ही करेगा? आलेख ने कहा क्या छोटी मां मुझे तो शादी ही नहीं करनी है और अगर करनी है तो आपकी छवि हो बस, काव्या हंसने लगी। आलेख ने कहा अच्छा मैं दुकान जा रहा हूं। काव्या ने कहा हां आते समय सारा सामान लेकर आना। आलेख ने कहा हां।
फिर काव्या की पलकें भारी हो गए। और सोचने लगी कि भगवान भी कितनी परीक्षा लेता है।जो बात मैं कहना चाहती हुं पर कह नहीं पा रही हुं। कितना बेबस हो जाता है इन्सान, कुछ बस में नहीं रहता है। फिर आलेख चला गया। और काव्या अपने अतीत के कुछ पन्नों को समेट कर वर्तमान के ताने-बाने को लेकर अन्दर ही अन्दर कष्ट पा रही थी ‌उसे कभी भी एक दिन का भी आराम नहीं था। जाड़े का मौसम था। मां ने हमेशा से मुझे वो सब कुछ सिखाया था जो और बहनों को शायद कभी सिखने की चाह नहीं थी। जाड़ा आने से पहले ही मां अपनी ऊन की पोटली लेकर बैठ जाती कभी छत पर तो कभी बरामदे में। मैं भी मां का देखा देखी करते करते कब हाथ बैठ गया पता ही नहीं चला। क्योंकि अब एक आदत सी हो गई थी मानो एक प्यार सा हो गया था। और धीरे धीरे सब कुछ सीख ही गई। हवेली में सबकी फरमाइश होने लगी कि मेरे लिए एक कारडिगन ,मफ्लर ,तो कोई एक स्टोल, मैं हंसते हुए सब लोग की फरमाइश पूरी करने में लग जाती थी। काव्या वर्तमान में लौट आईं और आलेख के लिए एक हाई नेक स्वेटर बुनने में लग गई।वो दिन कैसे भुल सकती हुं जब ऐसे ही एक हाई नेक स्वेटर बुनने में लग गई थी और रेखा दीदी ने कहा अरे बाबा ये आलोक को दे दें। तू भला अब किसको देंगी? काव्या खामोश हो गई थी और फिर सोचने लगी कि दीदी को क्या पता मैं किसके लिए बना रही थी।

और फिर मैं क्या करूं कभी कुछ अपने लिए नहीं कर सकती हुं आखिर मेरा कुसूर क्या है।

काव्या ओ काव्या ये आवाज़ आ रही थी। काव्या ने कहा कौन है छाया?छाया ने कहा जी मनोरमा बुआ आई है। काव्या ने कहा अच्छा ठीक है उनको बैठक में ले जाकर बैठाओ। काव्या नीचे आ गई और फिर बोली बुआ क्या वो सब दान के लिए साड़ियां लाई हो? मनोरमा ने कहा हां बाबा हर साल मैं ही तो लाती हूं।।
काव्या ने कहा हां ठीक है दिखाओ। अरे छाया बुआ के लिए चाय नाश्ता लेकर आ। मनोरमा ने कहा और कैसी हो? बाबू कैसे हैं? काव्या ने कहा हां बस जिंदगी चल रही है बुआ। मनोरमा ने कहा सब कब आ रहे हैं? काव्या ने कहा हां सब समय से आ जाएंगे।बुआ मुझे बाबू की चिंता है उसके लिए एक अच्छी लड़की मिल जाए बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
मनोरमा ने कहा अच्छा ठीक है मैं देखती हूं। चलो नाश्ता कर लो। फिर काव्या पैसे लेने चली गई और फिर पैसे लाकर बुआ को दे दिया।
मनोरमा ने कहा अच्छा चलती हूं। काव्या ने कहा बुआ आना ज़रूर। मनोरमा ने कहा हां ठीक है।




क्रमशः