Atit ke panne - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

अतीत के पन्ने - भाग १०

काव्या ने हंस कर कहा जब तक तुम लोग आओगे तो बहुत देर हो जायेगी।

बाबू भी मुझे गलत समझा, मुझे लगा था कि वो मुझे छोड़ कर नहीं जायेगा।

कब सुबह हो गई पता नहीं चल पाया।
छाया आकर बोली कि अरे काव्या दीदी चाय नहीं पिया ये तो ठंडा हो गया।

काव्या ने कहा अब कुछ अच्छा नहीं लगता ये। जाकर चाय नाश्ता कर लो तुम।।
छाया ने कहा हां बाबा हम तो करते हैं पर तुम तो खुद को मार रहीं हों।

काव्या ने कहा हां अब किसके लिए जीना है मां तो चली गई और वो मुझे बुला रही है।
क्या करूं, मरने से पहले एक बार बाबू को देखना चाहती थी।पर शायद अब और नहीं देख पाऊं। तुम खबर कर देना।

छाया ने कहा तुम अपनी बाबू पर जोर क्यों नहीं लगाया इतना तो हक था ना तुम्हें।

काव्या ने कहा हां कैसा जोर कैसी डोर कैसी ममता कैसा जोर।।

छाया ने कहा हां ठीक है पर मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है। डाक्टर साहब को बुलाती हुं या फिर जतिन जी को बुलाती हुं।

काव्या ने कहा नहीं नहीं जतिन जी को ना बुला।उनका कर्ज कभी नहीं चुका पाऊंगी।सुना है उनका ब्याह है तो उसे कुछ मत बोलो।बस फिर सब कुछ थम सा गया हवाएं जैसे रूक गई।हदय गति रुकने लगी ये कैसा दर्द ये कैसा भय कैसा दुःख।। क्या अंतिम समय ऐसा ही होता है अब बस बहुत हो चुका मैं अब सदा के लिए जा रही थी। बाबू का चेहरा मुझे बार बार याद आ रही थी।
फिर काव्या ने सदा के लिए आंखें बंद कर दिया।
छाया रोने चिल्लाने लगी ये क्या हो गया।।
फिर किसी तरह डायरी में आलोक का नम्बर देखने के बाद छाया ने फोन किया। आलोक ने कहा हां काव्या बोला।। छाया ने कहा अरे आलोक बाबू। काव्या दीदी चल बसीं।
आलोक सुनकर ही एक दम सुन्न पड़ गया।
रेखा और आलेख सब पुछने पर बोले कि काव्या अब इस दुनिया में नहीं है।
आलेख सुनकर रोने लगा और बोला छोटी मां आप चली गई मुझे छोड़ कर।।
आलोक ने कहा अब हमें तुरंत निकलना होगा।।।

रेखा ने कहा हां चलिए। फिर रेखा ने और बहनों को भी फोन पर बता दिया।
अलीगढ के लिए निकल गए।
हवेली पहुंच कर एक सन्नाटा छा गया था क्योंकि काव्या ही उस हवेली की लक्ष्मी थी।

सरिता और राधा भी आ गए।।

हवेली में आंगन में ही काव्या को सुला दिया गया था। ऐसा लग रहा था मानो बरसों बाद सदा के लिए सो गई हों।।

फिर आलेख जाकर काव्या के पार्थिव शरीर को हिला कर उठाने लगा ओ छोटी मां उठो ना।देखो तुम्हारा बाबू आया है।
आलोक ने अपनी आंखें पोछते हुए कहा आलेख बेटा उठो जाओ, तुम्हारी छोटी मां सदा के लिए सो गई।
फिर पंडित जी ने कहा कि अब और देर ना करें वर्ना। वैसे भी कल से ही शरीर पड़ा हुआ है।

आलोक ने कहा हां पंडित जी सब कुछ तो हो गया है। राधा बहुत ही रो रही थी और फिर बोली दीदी तुम्हें मुक्त हो गई इस जीवन में कुछ भी तुम्हारे साथ ठीक नहीं था। भगवान से प्रार्थना करती हुं कि तुम्हें एक अच्छा जीवन प्रदान करें।
फिर सरिता के पति और राधा के पति सब मिलकर कंधा दिया।।

सभी काव्या के अन्तिम यात्रा पर निकले।

श्मशान घाट पर आलोक ने कहा आलेख ही काव्या को मुखाग्नि देगा।
एकाएक आलोक जाकर काव्या की मांग को सिन्दूर से भर दिया और कहा काव्या ये तुम्हारा हक़ था जो मैंने तुम्हें नहीं दे सका और तुम्हारे मरने के बाद ही दे सका।।
आलेख ये सब देख रहा था पर कुछ समझ नहीं पाया और फिर रोते हुए उसने काव्या के शरीर को मुक्त कराया।
आलेख बोला छोटी मां ये कैसी विडम्बना है कि आज मैं ये सब करूंगा कभी सोचा नहीं था।
फिर आलोक ने कहा बेटा जल्दी करो समय बीतने लगा है।
फिर जैसे बरसों बाद काव्या को अब जाकर सूकून मिला था।
फिर सब स्नान करके हवेली लौट आए।।
वहां एक सन्नाटा पसरा हुआ था।
राधा बहुत रो रही थी और फिर छाया ने कहा अच्छा हुआ दी को मुक्ति मिल गई। राधा ने कहा सही कहा तुमने वरना आप लोग ने तो उसे मार ही डाला था और आलेख से मुझे ये उम्मीद नहीं थी।
आलोक ने कहा अब इन बातों का कोई फायदा नहीं है।
सब काम अच्छे से हो जाएं बस।।
आलेख एक बड़ी सी तस्वीर ला कर बैठक पर रखा और दीया जला दिया।
आलेख बोला जो जो कर्तव्य एक बेटे का होता है वो मैं करूंगा।।
सरिता ने कहा हां, अब ये ही बाकी है,तेरी मां अभी जिन्दा है। आलेख ने कहा कौन मां?जन्म के बाद से ही छोटी मां ने ही मुझे पाला और जब थोड़ा सा बड़ा हुआ तो समझ आया कि आप तो सिर्फ नाम के लिए मां है हां।
आलोक ने कहा रेखा इस समय तो तुम कटु शब्द मत बोलो।।

फिर छाया आकर बोली आलेख भईया ये एक डायरी है जिसमें काव्या दीदी कुछ लिखा करतीं थीं मैंने सोचा आपको दे दूं।
आलेख ने कहा अच्छा अब छोटी मां ये कब से शुरू किया। मेरे रहते तो नहीं किया।। छाया ने कहा अरे आलेख भाई तुम क्या गए काव्या दी ने तो जीना ही छोड़ दिया था हमेशा कहा करती थी कि बाबू मुझे छोड़ कर चला गया।
राधा ने कहा लल्ला तू तो चला गया था इसलिए ही काव्या दी बहुत दुखी थीं।

सरिता ने कहा वाह राधा तुझे सब पता है।
राधा ने कहा हां दीदी मुझे सब पता था।।
आप लोगों के रहते तो उन्हें हमेशा दुख मिला।
आलोक ने कहा अब पुरानी यादें ताजा करने से क्या होगा?

रेखा ने कहा अब आलेख पढ़ क्या लिखा है तेरी छोटी मां ने?

आलेख बोला मैं इसे जरूर पढ़ूंगा पर समय आने पर।। जिस दिन छोटी मां का तेरहवीं काम हो जाएगा उसके बाद ही पढ़ना चाहिए।

फिर पंडित जी आकर बोले कि विधिवत पूजन आलेख ही करेगा तभी उसकी छोटी मां को शांति मिलेगी।।

आलोक ने कहा हां पंडित जी जरूर।
आलेख मायूस हो कर अपने कमरे में जाकर अलमारी में छोटी मां की डायरी रख दिया।
और फिर सोचने लगा कि ऐसा क्यों किया आपने छोटी मां मुझे इतना पराया कर दिया कि सारे दुख दर्द आपको एक डायरी में लिखना पड़ा।ओह मैं रहता तो शायद आपको जाने ना देता।
श्मशान घाट पर पापा ने आपके मांग में सिंदूर क्यों भर दिया था मैं कुछ पूछ ना सका।।
और फिर आप हर करवा चौथ पर क्यों दुल्हन का श्रृंगार करती थी जोड़ा भी पहनती थी।
रेखा अपने कमरे में आलोक को भला बुरा कहने लगी कि आप ने काव्या को कैसे सिन्दूर पहना दिया।

आलोक ने कहा उसका हक था।
रेखा ने कहा छि छः छि ।।आपको लाज हया है कि नहीं।।

आलोक ने कहा देखो मैं इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहता हूं।
रात भर आलेख अपनी छोटी मां के कमरे में बैठा रहा एक पल भी न सो पाया।

अगले दिन सुबह वहीं हवेली में जैसे कुछ खो गया हो कोई बहुत अनमोल चीज ।वीरान हवेली में अब कोई हंसने वाला भी नहीं था।

आलेख बोला छाया दीदी कुछ बताओ छोटी मां क्या परेशान थी?
छाया ने कहा हां आलेख बेटा जिस दिन तुम चले गए बस उसी दिन से तुम्हारी छोटी मां खून के आंसू रोए जा रही थी पर आंसू पोंछने वाला कोई नहीं था।
कहती थी कि कोई मुझे नहीं समझ पाया पर बाबू शायद मुझे समझ पाता पर वो भी मुझे गलत समझा।

आलोक ने कहा आलेख तुम ज्यादा सोचो मत तुम्हारी छोटी मां को तकलीफ़ होगी।

आलेख बोला पर पापा मुझे कुछ पूछना था।।
आलोक ने कहा पहले सब काम हो जाए फिर पुछ लेना।।

इसी तरह दस दिन बीत गए और फिर काव्या का श्राद्ध होने वाला था तो हवेली में कुछ चहल पहल हो रही थी।

काव्या का एक सुंदर सी तस्वीर लगी थी और उस पर रजनीगधा के फुलों का माला पहना दिया था आलेख ने। क्यों कि काव्या को ये फुल बहुत ही पसंद था। आलेख तैयार हो कर बैठ गया था।।जहां पुजा पाठ होने वाला था।
बहुत सारे लोग आएं थे।
काव्या के स्कूल से भी सब लोग आएं थे।

फिर श्राद्ध शुरू हो गई।
आलेख के द्वारा पुजा करवाया गया। आलेख पुरी निष्ठा से सारी चीज़ें किया।
फिर सभी ब्राह्मण को भोजन खिलाया गया।
फिर जो जो अतिथि आए हुए थे उनको भी भोजन कराया गया। काव्या के पसंद का खाना बना था। फिर आलेख गंगा नदी जाकर वहां भी काव्या के नाम पर भोजन रख दिया।
सभी के जाने के बाद आलेख ने सभी को बैठक में उपस्थित होने को कहा गया।

कुछ देर बाद सभी बैठक में आकर बैठ गए।

आलेख अपने हाथ में छोटी मां की डायरी सहेज कर रखा था मानो कोई बच्चा हो ।।
आलेख ने डायरी पढ़ना शुरू किया।
उसमें लिखे हुए शब्दों से मातृत्व की झलक मिल रही थी।
आधे पर ही आलेख फुट फुट कर रोने लगा।
आलोक ने कहा बेटा इसमें कोई संदेह नहीं है कि तुम मेरी और काव्या की सन्तान हो।

काव्या का त्याग उसकी ममता ये सब कोई आम इन्सान तो नहीं कर सकता।। सिर्फ अपनी बड़ी बहन को सुराइट करने से बचने के लिए मुझे प्रोत्साहित किया कि मैं उसकी दीदी को बचा लूं।
पर देखो बेटा काव्या का त्याग देख कर मैं भी दंग रह गया था।
उसका निष्पाप मन मै उसे कभी भूल नहीं पाया।
मैं उसका गुनहगार हुं।

आलेख आगे पढ़ने लगा और फिर बोला। बड़ी मां आप तो मेरी मां हो ही नहीं सकती क्योंकि आपने छोटी मां को बहुत तकलीफ़ दी है।
कोई कैसे इतना अपमान सहन कर सकता है और तो और आपको तो ये भी नहीं पता कि आपने एक मरा हुआ सन्तान जन्म दिया था अगर छोटी मां नहीं होती तो आज आप यहां नहीं होती। उन्होंने तो अपना ज़िगर का टुकड़ा आप को सौंप दिया था जिस समय आप मौत के मुंह में थी।
आलोक ने कहा हां मैं ही जाकर काव्या से विनती किया था कि वो अपनी सन्तान को दे दें। आलेख ने कहा हां और छोटी मां ने मुझे दे दिया।उनका इतना बड़ा दुख किसी ने नहीं देखा।।
पापा आप ने भी उनको कष्ट ही दिया।

आलोक ने कहा हां मैं उसका गुनहगार हुं।

राधा ने कहा मुझे पता था कि काव्या दी ने बहुत बड़ा बलिदान दिया है उसका कोई मोल नहीं। अब वो इस दुनिया से विदा हो गई आलेख तुम भी अपनी छोटी मां को अकेला छोड़ दिया क्यों??
आलेख बोला हां,इस बात के लिए मैं खुद को कभी माफ नहीं कर सकता।
और हां ये हवेली छोटी मां ने मेरे नाम पर कर दिया और साथ में जो दो दुकानें हैं वो भी अब मेरे ही नाम पर है।
उम्मीद है कि कोई भी कुछ भी नहीं कहेगा।।

रेखा ने कहा मुझे तो तकलीफ़ इस बात की मेरे पति ने मेरे साथ धोखा किया।

आलेख बोला नहीं बड़ी मां ऐसा नहीं है आप बस एक बार ये डायरी जरूर पढ़ लिजिएगा।

रेखा रोते हुए चली गई।
आलोक ने कहा बेटा तेरी मां का गुनहगार हुं मैं ,अगर मैं रेखा से शादी नहीं करता तो सब ठीक हो जाता था।
पर कहते हैं अतीत के पन्ने कभी छुपाए छुपती नहीं है।

आलेख बोला हां पापा मैंने भी कुछ कम दुःख नहीं दिया उनको।


फिर सभी अपने अपने घर निकलने की तैयारी करने लगे।
रेखा भी अपने सुपुत्र को लेकर जाने लगी।
आलोक ने कहा अरे ऐसे कैसे जा रही हो?
रेखा ने कहा मुझे अब यहां नहीं रहना है और आपको वापस आने की जरूरत नहीं है। बहुत जल्दी ही तलाक़ के पेपर मिल जाएगा और साइन कर दिजियेगा।
वह बंगला मेरे नाम पर ही है।हर महीने पचास हजार रुपए देना होगा।रेखा ने ये सब कहा।

आलोक ने कहा हंसते हुए की मुझे पता है कि तुमने मुझसे शादी नहीं की थी मेरे दौलत से किया था और ये बात जब मैंने काव्या को कहा था तो वो मेरे ऊपर बरस पड़ी थी।
आज वो भी समझ गई है तुम्हें अच्छी तरह से। ठीक है जैसा चाहती हो वैसा ही होगा।

आलेख बोला पापा आप ने।।।।
आलोक ने कहा जाने दो बेटा।

आलोक ने कहा बेटा अब आगे क्या करना है?
आलेख बोला पापा क्यों न हम यही पर रहे।
आलोक ने कहा हां पर क्या ऐसा तुम्हारी छोटी मां चाहती थी।
आलेख बोला हां पापा छोटी मां हमेशा चाहती थी कि ये हवेली कभी वीरान नहीं रहें।
हम यहां रह कर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान कर सकते हैं।
आलोक ने कहा हां बेटा पर मुझे कभी ऐसा नहीं लगा पर तुम कहते हो तो हम यहां रह जाते हैं पर मुझे बिजनेस के लिए बाहर जाना होगा।
आलेख बोला हां पापा वो तो ठीक है।

छाया ने कहा चलिए चल कर नाश्ता कर लीजिए।
फिर आलेख और आलोक बैठ कर नाश्ता करने लगे।
आलेख को ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उसकी छोटी मां उसे देख रही है।
क्रमशः