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अतीत के पन्ने - भाग ४

आज हमेशा के लिए मैंने ही तुझे विदा किया और अब आगे।।



फिर सब गंगा में स्नान करने के बाद सब हवेली आ गए।
काव्या तो खुद को सम्हाल नहीं पा रही थी। कुछ देर बाद सरिता अपने पति के साथ आ गई।
और दो दिन बाद राधा भी आ गई थी।
सब एक साथ बैठक में बैठ कर मां की श्राद्ध की तिथि देख रहे थे। पंडित जी बोले काव्या तूने ही सब किया है तो काम भी कर देना। काव्या ने सर हिला दिया और वो पत्थर जैसी बनी रही।
नन्हा सा आलेख उसके आगे पीछे घूम रहा था और अपने तुतलाहट से काव्या का मन मोह रहा था।
काव्या से अब और रहा ना गया और आलेख को अपनी गोदी में उठा कर अपने कमरे में लेकर खुब प्यार, दुलार करने लगी उसकी ममता मानो उसके वश में ना हो।
फिर कब आंख लग गई पता नहीं चला और जब आंख खुली तो सबकुछ बदला हुआ था। क्योंकि काव्या वर्तमान में आ गई थी।

छोटी मां ओ, छोटी मां तबियत ठीक है ना? काव्या ने कहा हां बाबू बिल्कुल ठीक हुं मैं।
चल जल्दी तैयार हो कर नीचे पहुंचना होगा।

आलेख ने कहा आप चिंता न करें अभी तो तीन दिन है। आप तैयार हो कर नीचे आ जाओ। नाश्ता करना होगा। काव्या ने कहा हां ठीक है।
आलेख मैं स्टेशन हो कर आता हूं राधा मासी को लेने।
काव्या ने कहा हां ज़रूर। काव्या नहाकर पुजा पाठ करने के बाद फिर काव्या अनमानी सी हो कर नीचे आ जाती है।
रेखा, आलोक सब बैठ कर हवेली की चर्चा करते हैं। रेखा ने कहा अब तो मां चली गई और अब इस भुतहा हवेली में कौन रहेगा।
काव्या ने कहा अरे दीदी ऐसा ना बोलो।हम तो बरसों से है यहां।
रेखा ने गुस्से में कहा हां पर क्या अकेले ही हड़प लेना है।
काव्या ने कहा दीदी आप हमेशा मुझे गलत क्यों समझाती हो? आप लोग भी आकर रहो ना।
ये पुरखों की हवेली है बहुत कुछ अतीत के पन्ने है यहां।
रेखा ने कहा हां तुम इसी में जियो इसी में मरो।
छाया ने कहा सबको नाश्ता दे दिया है टेबल पर।
फिर सब नाश्ता करते हैं।
रेखा ने कहा देखो काव्या मेरा सब कुछ तुमने छिन लिया है और फिर आलेख का भी एक भविष्य है वो कैसे यहां रहेगा।
काव्या ने कहा हां दीदी आप आलेख को लेकर जा सकती हो।
रेखा ने कहा हां,जना मैंने है उसे पर मां कहलवाई तुम।।
बचपना में जब लेकर गई थी उसे कम दिक्कतें नहीं हुआ था हमे और जब मां चली गई तब तुने ही आलेख को मुझसे छिना था वो कभी ना भुलूगी।
कैसे आलेख ने जिद पकड़ ली थी कि तेरे साथ रहेगा और फिर खुद को मां के कमरे में बन्द कर लेना। आज तक नहीं भुल पाई हुं।
काव्या ने कहा हां दीदी गलती तो मेरी है हां पर अब गलती सुधारने की कोशिश करूंगी।
फिर राधा को आलेख लेकर आ गया।
काव्या ने कहा कैसी है लाडो।
राधा ने कहा हां दीदी ठीक हुं।
काव्या ने कहा हां चल नहा धो लें फिर नाश्ता कर लेना हां।
राधा ने कहा रेखा दीदी बिल्कुल नहीं बदली।
रेखा ने कहा हां तू भी तौ वैसी ही है। काव्या ने कहा अनिल कब आयेगा।
राधा ने कहा कि परसों ही आयेंगे।
फिर राधा भी अपने कमरे में चली गई।

काव्या ने कहा छाया रात के खाने में परांठे और दम आलू बना देना।
राधा ने कहा दीदी अब तुम्हारा क्या होगा दीदी। तुम कहां जाओगी?
काव्या ने कहा छोटी तू चिन्ता मत करो यही जीना यही मरना है।
मेरे मरने के बाद इस हवेली को बेच देना।ये बोल कर चली गई और फिर से मां के कमरे में जाकर खुब रोने लगी।
और अतीत में जाकर खुद को वहीं पाया जहां आज है।
आलेख तुतलाहट में कहा कि मैं अब थोटी मां के पास लहुगा।
रेखा ने कहा हां जिस का डर था वहीं हुआं।
काव्या ने कहा दीदी कुछ वक़्त दे दो मुझे मैं खुद उसे लेकर आऊंगी। मां का तेरहवीं हो जाने दो।
आलोक ने कहा रेखा तुम आलेख को यहां छोड़ दो। कुछ दिनों बाद मैं ही लेकर आऊंगा।
रेखा ने कहा आप तो काव्या का हमेशा पक्ष लेते है। आलोक ने कहा हां जो सच है वो है। काव्या ने बहुत ही निष्ठा से काम सम्पन्न किया। सभी ब्राह्मण भोज कराया गया। और बाकी सब को भोजन कराया गया। सब कुछ अच्छे से हो गया। सभी अतिथि अपने अपने घर चले गए। काव्या ने कुछ कम्बल और चादर दान भी किया।
किसी तरह मां का काम हो गया ये बात रेखा ने कहा। सरिता ने कहा हां अब आलेख को लेकर जाओ। आलोक ने कहा अरे ये क्या बात हुई।
रेखा और आलोक में गहमागहमी शुरू हो गई थी।
काव्या ने कहा आलोक जी मैं समय पूर्व ही आलेख को लेकर आऊंगी, आप दीदी को समझा कर लें जाइए। आलोक ने कहा काव्या तुम चिंता मत करो मैं सम्हाल लुंगा।
काव्या अपने कमरे में आलेख को सुलाने लगी और तभी आलोक जी आकर बोले काव्या जो सच है वो एक दिन बाहर आयेगा तब क्या करोगी तुम।
काव्या ने कहा आलोक जी आज तक कभी मैंने अपने बारे में नहीं सोचा वरन् आज जहां दीदी है वहीं मैं होती।
आलोक ने कहा तुमने ही तो मुझे ठुकरा दिया था काव्या।
काव्या ने कहा हां मैं मजबूर थी। अपने ही जब सितम करते हैं तो गैरों से क्या उम्मीद करें हम।। रेखा दीदी अपनी होकर भी अपनी नहीं है।
फिर रेखा और आलोक निकलने लगें और फिर रेखा ने कहा अच्छा काव्या किस जन्म का बदला ले रही है। रेखा दीदी ये क्या बोल रही हो ये बात सूखे हुए स्वर में कहा काव्या ने।।
तभी से आज तक आलेख मेरे पास ही है सोलह साल बीत गए पर आलेख अपनी छोटी मां को ना छोड़ पाया ये कैसी ममता है। क्या सिर्फ इसलिए कि मैंने उसे जन्म के बाद से पाला पोसा या फिर कुछ और ही है।

उस पल को मैं कभी भुल नहीं पाती हूं जब शादी के बाद रेखा दीदी और आलोक जी आए थे।
मैंने कभी किसी को अपने दिल की बात नहीं बताई कि आलोक को मैं कालेज से ही जानती थी हम-दोनों पहले दोस्त ही थे पर अब एक दूसरे के लिए हम प्यार अपने मन संजोए हुए थे।।हम दोनों एक दूसरे से कसम खाएं थे कि एक दूसरे को कभी ना छोड़ने का वादा भी किया।। उन दिनों बहुत ही कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। कालेज से आते समय मैं और आलोक हमेशा एक चाय की दुकान पर कुल्हड़ वाली चाय पीने जातें थे। आलोक कहता था कि चायतो एक बहाना है तुम्हें करीब जो पाना है मैं हमेशा शर्म से लाल हो जाती थी। आलोक ने कहा देखो अगर तुम मुझे नहीं मिल तो मैं शादी नहीं करूंगा।। काव्या ने हंस कर कहा अच्छा देखते हैं।अब एक दूसरे के इतने करीब आ गए थे कि पता नहीं चल पाया।
जब आलोक मेरा रिश्ता लेकर हवेली आएं थे। और रेखा दीदी का रिश्ता टूट गया था और वो खुद को सम्हाल नहीं पा रही थी अपने आप को मारने के लिए दवाई खाने वाली थी कैसे रोका था और वादा कर दिया कि उनकी शादी कराके दम लुंगी।
बिना सोचे ही मैंने आलोक से उसकी जिंदगी मांग ली थी और बदले में सिर्फ रुसवाई मुझे मिली।

आलोक ने साफ मना किया था और कहा कि मुझे अगर तुम नहीं मिली तो मैं जान दे दुंगा।

काव्या ने कहा आलोक हमें वो नहीं मिलता जो हम चाहते हैं तुम अगर रेखा दीदी से शादी कर लोगे तो सुखी जीवन व्यतीत करोंगे।
आलोक ने कहा तुम मुझे मरने को कह रही हो।
हमारे प्यार का क्या। मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगा काव्या।।
मैं अपनी जान दे दुंगा।पर किसी और कैसे शादी कर लूं। काव्या ने कहा सिर्फ मेरे लिए और प्यार करने का मतलब ये तो नहीं है जो आप चाहोगे वहीं होगा।।

काव्या ने कहा मेरी मां की तबीयत ठीक नहीं है और अगर उनको कोई लड़का रेखा दीदी के लिए नहीं मिला तो उनका सम्मान कैसे बचा पाएगी। मैं मां को दुखी नहीं देख सकती हुं आलोक।। आलोक क्या चाहती हो तुम? चलो हम भाग कर शादी कर लें? काव्या ने कहा नहीं, नहीं मैं कैसे ऐसा कर सकती हुं। पहले रेखा दीदी की शादी होगी।। आलोक ने कहा तुम मुझे कुछ ऐसा मत कहो कि मैं पुरा नही कर सकूं।। काव्या ने कहा ऐसा क्यों? तुम रेखा दीदी से शादी कर लो बस।। आलोक ने कहा काव्या तुम पागल हो गई हो अपने हाथ से प्यार का गला घोंट रही हो।।

काव्या ने कहा बस एक आस बाकी है फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा आलोक।। आलोक ने कहा मैं समझौता नहीं कर सकता हूं ‌।


ऐसा कहते हुए आलोक निकल गया। मैं हवेली पहुंची तो माहौल बहुत ही खराब था। काव्या एक दम से बैठ गई। सरस्वती ने कहा काव्या क्या करें कुछ समझ नहीं आया।।

रेखा सब बर्तन पटकने लगी और बोली अगर मेरी शादी नहीं हुई तो घर का चुल्हा नहीं जलाने दुंगी। देखो मां मुझे अब सबके ताने तो नहीं सुनने है हां बस, किसी तरह से शादी करके यहां की मनहुसीहत से निकल जाना है।अब और सहन नहीं होता है। क्या अभिशाप लगा है और किसका अभिशाप हां।। काव्या ने पानी का गिलास देते हुए कहा अरे दीदी थोड़ा सब्र करो मैं सब कुछ ठीक कर दुगी और फिर तुम तो इतनी सुन्दर हो कोई तुम्हें मना नहीं कर सकता। रेखा ने एक धक्के से गिसाल भी फेंक दिया और काव्या भी नीचे गिर गई। राधा दौड़ कर आई और काव्या को उठाया और फिर बोली ये क्या रेखा दीदी कोई जानवर के साथ भी ऐसा नहीं करता जैसे आप करती हो।। कभी कभी लगता है कि आप हमारी सगी बहन नहीं हो? ये सौतेले व्यवहार क्यों? सरस्वती ने कहा राधा क्या बोल रही है ऐसा मत बोल।। काव्या ने कहा मैं ठीक हूं और मुझे ही कुछ करना होगा थोड़ा सा मुझ पर भरोसा करो मैं सब कुछ ठीक कर दुगी। रेखा चिल्ला उठी और बोली हां, हां ठीक है। सरस्वती ने कहा मैं एक बार रेखा की कुंडली दिखा देती हुं। काव्या ने कहा हां कल सुबह हम दोनों जाते हैं।
किसी तरह से रात कट गई और फिर सुबह जल्दी उठकर तैयार हो कर दोनों निकल गई। काव्या किस मिट्टी की बनी हुई है दुःख और तकलीफ तो जैसे छूकर निकल जाती है कब उसको तकलीफ होती है कब खुशी मिलती है वो तो कोई नहीं जान सकता। सरस्वती ने कहा रेखा के बाबा हमेशा कहा करते थे कि ये काव्या तो बिल्कुल मेरी मां की छवि है और रेखा में शायद कोई खुबी नहीं है उसे सबको दुख देकर खुशी मिलती है। काव्या ने कहा मां जाने दो सब अपने ही तो है।जिसको जो सही लगें वो ही करने दो।
फिर दोनों ज्योतिष के पास जाकर बैठ गए और फिर रेखा की कुंडली देखने को दिया।
देखते ही बोले कि दशा बहुत ही ज्यादा है पर सब कुछ अच्छा होने वाला है। काव्या ने कहा देखा मां मैंने कहा था कि सब अच्छा होगा। सरस्वती ने कहा हां ठीक है पर काव्या का हाथ भी देख लीजिए। काव्या ने कहा अरे क्या मां मुझे नहीं दिखाना है हाथ मां मुझे तेरे साथ ही रहना है।। सरस्वती ने हंस कर कहा हां मैं तो जिंदगी भर रहुंगी जैसे।। काव्या अतीत से वर्तमान में लौट आईं और सोचने लगी कि मां तुम सच में नहीं हो अब।।

क्रमशः।।