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गुरुदेव - 1

गुरुदेव पार्ट -1 (एक परिचय)



हमारी जिंदगी में कोई न कोई व्यक्ति हमें ऐसा अवश्य मिलता ही है ,जिसको देखने से ही हमारे रोम-रोम में उत्साह और रोमांच भर जाता है। ऐसा ही एक व्यक्तित्व जिन्होंने मेरे जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल दी जो मेरे रूममेट और मित्र से भी ज्यादा मेरे गुरुदेव है । जिन्होंने मुझे उदासी से भरी ज़िंदगी में हँसना सिखाया। हालाँकि ऐसा एकमात्र मैं ही नहीं हूँ जो उनसे इतना प्रभावित हुआ हुँ, एक बार जो उनसे मिल ले फिर वो उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। आदरणीय गुरुदेव दीनाराम जी धारवी। जिसे सब दीन जी के नाम से बुलाते है और जो काफी जगह दीना राम धारवी की जगह अपना नाम डी. आर. धारवी लिखते है।

बारहवीं क्लास उत्तीर्ण करने के पश्चात मेरा द्विवर्षीय शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम बीएसटीसी में चयन हुआ और मुझे अपने गृह जिले जैसलमेर में ही कॉलेज मिल गई। अभी कॉलेज की क्लासेज शुरू होने में करीब महीना बाकी था, लेकिन इतने समय में घर में फिजूल बैठने की जगह मैंने समय के सदुपयोग करने के विचार से जैसलमेर जाकर कंप्यूटर कोर्स करने का फैसला किया।

रहने के लिए समाज के ही एक भवन में एक कमरा जिसमें मेरा भांजा प्रहलाद पहले से ही रहता था उनसे बात हो गई थी। हॉस्टल का पहला दिन, मैं जब पहुंचा तो प्रहलाद अपने कमरे में ही था। जो कमरा ऊपर वाली पंक्ति में सबसे आखिरी कोने में था । सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने के पश्चात रूम में जा रहा था कि पंक्ति के पहले ही कमरे से बाहर के बरामदे में किसी ने रोक लिया ।

एक युवक जिसकी हाइट शायद किशोरावस्था के शुरुआत में आकर बढ़ना भूल गई थी। नीचे खाकी कलर की निकर और ऊपर हड्डियां वस्त्र के अभाव में अपना प्रर्दशन कर रही थी। हाथों में अखबार लिए मुझे देखकर बोले "राम-राम"
मैं वहीँ रुक गया और उनको वापस राम-राम कहा। और उन्होंने मुझे अंदर बुला लिया।
उन्होंने मेरा नाम ,पता ,गोत्र सब पता किया पर मैं अपने शर्मीले स्वभाव के कारण उनसे कुछ पूछ नहीं पाया। फिर उन्होंने मेरे अध्ययन से सम्बंधित जानकारी ली और मेरे बारहवीं कक्षा के प्रतिशत पूछे। सब जानकारी लेने के बाद उन्होंने मेरी प्रशंसा की और उत्साहवर्धन किया। गाँव से दूर पहली बार किसी ने मेरा इस तरह से परिचय लिया और निश्चित ही हर किसी मानव की तरह अपनी प्रशंसा सुनकर मेरा मन तब प्रफुल्लित हो गया।
जब प्रहलाद के पास गया तब पूछा कि उस कमरे में कौन है जो निकर पहने अखबार पढ़ रहे है।
"अरे ! ओ दीनो है धारवी रो , थाने कयो की कुछ?"
प्रहलाद के द्वारा ही मैंने पहली बार उस शक़्स का नाम जाना, जिन्होंने मेरी जिंदगी का सबसे सुनहरा अध्याय लिखने में मुझे सबसे अधिक योगदान दिया।




गुरुदेव के साथ बिताए हुए लम्हों का सिलसिला 'गुरुदेव' संस्मरण में प्रस्तुत कर रहा हूँ। उनके संघर्ष और उनसे प्राप्त प्रेरणा जिनसे में इतना प्रभावित हुआ ।आशा है आपको भी उनके जीवन के अनुभव प्रभावित कर सकेंगे। इसी आशा और विश्वास के साथ -
- नन्दलाल सुथार'राही'


क्रमशः