TEDHI PAGDANDIYAN - 28 books and stories free download online pdf in Hindi

टेढी पगडंडियाँ - 28

टेढी पगडंडियाँ

28

सुबह के सात बजे होंगे जब गुरनैब की नींद टूटी । उसने चारपायी छोङी और पैर में जूती फँसाकर हवेली के बाहर निकल आया । सूरज में अभी ताप नहीं उतरा था । हवा में ठंडक उतर आई थी पर उसे वह हवा अच्छी लगी । लगा , तन मन के साथ आत्मा को सुकून मिल गया । वह खेतों की ओर चल पङा । एक पल के लिए उसका मन डगमगाया । इससे पहले कभी अकेले घर से निकला न था । वह जहाँ भी जाता , हमेशा निरंजन ढाल की तरह उसके साथ होता पर अब तो अकेले ही जाना होगा जहाँ भी जाना चाहे । उसका मन भावुक हो गया । आँखों में आँसू आने ही वाले थे । उसने सिर झटक हर डर हर घबराहट को दूर निकाल फैका और दूर तक चलता रहा । गाँव धीरे धीरे पीछे छूट गया । गाँव की बस्ती खत्म होते ही दलितों के कोठे आये । कोठे पीछे रह गये फिर खेत आ गये । वह बङी देर तक खेतों की मेङ के सहारे सहारे टहलता रहा । फिर नहर के साथ साथ दूर तक घूम आया । पर मन का डावाडोल होना कम नहीं हुआ । अब क्या करे । वह अन्यमनस्क सा वापिस लौटा पर हवेली में वापिस लौट जाने का अभी उसका मन न हुआ । वह गाँव की ओर लौटा । बेध्यान टहलते टहलते अचानक उसके पैर थम गये । उसने सिर उठाकर सामने देखा । वह कोठी के सामने पहुँच गया था । तब तक सूरज ने भी अपनी चादर उतार फैंकी थी । किरणों ने चारों ओर उजाला बिखेर दिया था ।
वह दो मिनट असमंजस में खङा रहा । भीतर जाए या न जाए , क्या करे , फिर अनायास ही उसने कुंडा खटका लिया । किरण अभी उठ कर कमरे से बाहर आयी ही थी । कुंडा दोबारा खटका तो उसने दरवाजा खोला । दहलीज पर गुरनैब को खङा देख वह रास्ता छोङकर एक ओर हो गयी ।
“ इतनी सुबह ? “ उसने हैरान होते हुए पूछा था । सब ठीक तो है न ।
गुरनैब ने कोई जवाब नहीं दिया और सीधा भीतर कमरे में गया और बैड पर ओंधा हो गया । थोङी देर में ही उसके खर्राटों से कमरा गूंज उठा । गुरनैब गहरी नींद सो गया था । किरण का मन डर गया । पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ । इतनी सुबह न तो निरंजन कभी आया था , न गुरनैब । और एक बार उठ कर दोबारा इतनी जल्दी कौन सोता है और वह भी इस तरह ? उसने माथा छूकर देखा । नहीं माथा तो गरम नहीं है । या फिर शायद सारी रात सोया नहीं होगा ।
उसने हिलाकर देखा – क्या हुआ
“ मैंने मार दिया हराम के जने दोनों ससुरों को “ । वह नींद में ही कुनकुनाया ।
क्या बोल रहा है तू ? किसको मार दिया तूने ?
पर उसको जवाब देने से पहले ही वह करवट बदलकर फिर से गहरी नींद में सो गया था ।
किरण कुछ पल वहीं खङी एकटक उसे देखती रही । फिर उसने उसको वहीं सोता छोङा और घर के काम धंधे में लग गयी । झाङू पोछा करके वह रसोई में गयी । कुछ देर खङी सोचती रही । फिर आलू उबलने रख दिये । जबतक आलू उबले , वह नहा ली । चौंकें में बैठ आलू छीलकर परौंठों के भरावन का मसाला तैयार किया । दूध गरम किया । आटा गूँथा । इतना करने के बाद भी अभी नौ ही बजे थे । अब क्या करे ? क्या उसे सोते से उठाए या थोङी देर और सोने दे ? चूल्हे के सामने बैठकर वह बङी देर तक कभी लकङियाँ कभी उपले आगे पीछे करती रही । आखिर नहीं रहा गया तो उसने झिझोङकर गुरनैब को उठा दिया –
चल उठ ! उठकर मुँह हाथ धो ले । मैंने गरम पानी रख दिया है । तब तक मैं चाय नाश्ता तैयार कर देती हूँ ।
नाश्ता रहने दे । मैं चाय ले लूँगा । तू चाय बना ले ।
सब कुछ तैयार है । आटा गुँथा है । मक्खन निकला हुआ है । आलू तैयार हैं । तू बस हाथ मुँह धोकर आ । मैं पाँच मिनट में परौंठे तैयार कर देती हूँ ।
गुरनैब ने फिर कुछ नहीं कहा । वह उठकर नल के पास चला गया । वहाँ बाल्टी में गरम पानी रखा था । रस्सी पर नया धुला तौलिया टंगा हुआ था । उसने हाथ मुँह धोया । तौलिया हाथ में पकङे पकङे वह चौके के बाहर बिछी चारपायी पर आ बैठा । किरण ने थाल में परौंठे डाल कर उस पर मक्खन का पेङा रखा और थाली उसके आगे सरका दी । गुरनैब बिना बोले चुपचाप खाने लग गया । तीसरा परौंठा थाल में रखती किरण ने गौर से उसे देखा –
हाँ अब बता , किसको मारके आया है
हूँ , नहीं – गुरनैब अपनी ही सोच में गुडुप हो रहा था ।
क्या नहीं । सोया पङा पता नहीं क्या क्या बोले चले जा रहा था ।
मैं ? नहीं तो । शायद कोई सपना देखा होगा ।
वाहेगुरु करे , ये सपना ही हो । अभी तेरे चाचे के गम से बाहर नहीं आ पायी । अगर तुझे कुछ हो गया तो मैं तो मर जाऊँगी । कहे देती हूँ ।
ग्रास तोङते गुरनैब के हाथ वहीं के वहीं रुक गये । उसने सिर उठाकर किरण के चेहरे को देखा । पता नहीं उसे किरण की आँखों में क्या दिखाई दिया कि वह आधी खायी थाली छोङकर उठ खङा हुआ ।
लोटे के पानी से उसने हाथ धोये
क्या हुआ ? खा तो ले । वह बिना बोले चुपचाप सङक पर चला आया ।
चाय बनी हुई है । चाय तो पीकर जा । किरण पुकारती रह गयी पर गुरनैब अपनी सीध में चलता चला गया । उसने पलटकर एक बार भी नहीं देखा । किरण दहलीज पकङे खङी रह गयी । जब तक वह जाता दुखता रहा तब तक वह देखती रही । तभी उसे परौंठे जलने की तीखी गंध महसूस हुई । वह भागी । तवे पर पङा परौंठा जलकर काला हो गया था । और अंगारों पर पङी चाय खौलते खौलते आधी रह गयी थी ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...