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बचपन का प्यार - 1


1. स्कुल का पहला दिन
गरीब परिवार में जन्मा आनन्द बहुत ही शरारती और जिद्दी लड़का था। अपनी शैतानी शरारतों से पूरे परिवार को परेशान करता रहता था। आखिर आनन्द जिद्दी हो भी क्यों ना...बडी़ मुश्किल से उसके माँ बाप को तीन लड़कियों के बाद एक लड़का हुआ था। बेटा पाने के लिए उसके माँ-बाप ने बहुत पूजा -पाठ,व्रत व हवनादि किये थे ।तब जाकर आनन्द का जन्म हुआ था और पूरे घर में आनन्द सबका लाड़ला और दुलारा था। आनन्द के जन्म पर उसका दादा जी बहुत खुश हुआ था। वैसे तो आनन्द का परिवार बहुत बडा था।जिसमें उसके तीन चाचा भी थे। परंतु उसके तीनों चाचा गाँव छोड़कर शहर में बस गये थे और आनन्द के तीनों बडे चाचा उसके पिता से बडे थे और उनमें आनन्द का पिता ही सबसे छोटे थे तो वे गाँव में ही रहे और गाँव में अपनी पुश्तैनी जमीन की देखभाल करते थे।
आनन्द के तीन साल पूरे होने के बाद उसके माँ-बाप नें एक बेटे का ईच्छा ओर थी तो जब आनन्द की माँ गर्भवती हुई थी तो पूरे घर में सभी यही दुआ कर रहे थे एक लड़का ओर हो तो फिर दो भाई हो जायेंगे पर ईश्वर की ईच्छा ही कुछ और ही थी तो उनके घर में एक और लड़की ने जन्म ले लिया।इसी बजह से आनन्द पूरे घर में सबका लाड़ला हो गया था और सबसे ज्यादा जिद्दी भी। आनन्द की बड़ी बहन उससे बहुत प्यार करती थी ..वह आनन्द की हर ईच्छा को पूरी करती थी ...उसी के लाड़ -प्यार के कारण आनन्द और भी बिगड गया था क्योंकि घर में अगर आनन्द को कोई कुछ भी बोले या पीटे तो वो आनन्द के लिए सबसे लड़ जाती थी।
आनन्द जब पांच साल का हो गया था तो उसके पिता ने जिनका नाम श्यामलाल था,छ:फुट लम्बा कद,दिखने में सांवले गेंहुये रंग और ना ज्यादा मोटा ना पतला शरीर उन्होंने आनन्द को पढ़ने के लिए पास के सरकारी स्कुल में उसका दाखिला करा दिया था।
आनन्द का स्कुल में पहला दिन छोटा सा कद,छोटे-छोटे पाँव ,छोटे -छोटे हाथ गेंहुयें रंग का चेहरा छोटे-छोटे काले बाल बिल्कुल राजकुमार जैसा दिख रहा था आनन्द। स्कुल घर से थोड़ी दूर था और स्कुल का रास्ता खड़ी चढाई वाला था। जैसे -तैसे करके अपने -अपने छोटे पाँवों से अपनी तीसरी बड़ी बहन का हाथ पकड़कर आनन्द स्कुल पहुंचा।स्कुल में उसकी तरह ही छोटे-छोटे बच्चे जो आनन्द के लिए बिल्कुल अनजान थे और अनजान टीचर ...इन सबको देखकर आनन्द थोड़ा से ड़र जाता है।
क्योंकि कभी घर बाहर आनन्द गया नहीं था ..घर में आजाद होकर रोज नई -नई शैतानियां करता रहता था ..तो आज मानों कि आजाद परिंदे को किस पिंजरे में ड़ाल दिया हो।
आनन्द पहली कक्षा में था। पहले के समय में तो आजकल जैसे आंगनबाडी स्कुल नहीं होते थे जिसमें बच्चे को तीन साल की उम्र ही भेजा जाता है और उन्हें गिनती और अ -अनार पढाया जाये। ना ही सरकारी स्कुलों में अंग्रेजी स्कुलों जैसे N.c आदि की क्लास होती है। सरकारी स्कुल बच्चे को दाखिला तब दिया जाता था जब बच्चा पाँच साल का हो जाता था।
आनन्द भी पहली कक्षा में था तो टीचर ने पहले दिन बच्चों गिनती और अ-अनार पढाया और टीचर ने बच्चों को अपने पीछे -पीछे अक्षरों का उच्चारण को बोला तो सारे छोटे बच्चे टीचर के पीछे बोलने का प्रयास करते है परंतु कुछ शब्दों में उनकी जुबान अटक जाती है तो कुछ शब्दों को वे बोल ही नहीं पाते है..उन सबके लिए काला अक्षर भैंस के समान ही था।
यह तो आप सबकों पता है कि जब छोटा बच्चा स्कुल जाता है तो उसे कुछ भी नहीं आता है उसके लिए तो हर अक्षर भैंस के समान ही होते है।
इन छोटे बच्चों को तो ऐसा लग रहा था कि उनकी आजादी छीन गई हो..उन्हें कहीं दूसरे शहर में भेज दिया हो ...बेचारे बच्चे! जो आजाद होकर हंसते -खेलते रहते थे और शैतानियां करते रहते थे तो आज टीचर के ड़र से उनके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी। स्कुल तो मानों उनके लिए एक खुली जेल हो और उन्हें आज उनकी आजाद दुनियां से इस खुली जेल में ड़ाल दिया हो।
स्कुल में छुट्टी तीन बजे होती थे और इन छोटे बच्चों को घर उनके बडे भाई और बहन ही ले आते थे अपने साथ। इन बच्चों का भुख से भी बुरे हाल हो रहा था..पर ये कह भी किसी नहीं सकते थे।
जब टीचर ने इन्हें बताया कि अब ये स्कुल से घर जा सकते है तो इन बच्चों के चेहरे में एक खुशी मुस्कान उमड आ गई हो ..ऐसा लग रहा था कि मानों ये कोई जंग जीतकर घर आ रहे हो। इनकी खुशी अभी उस फौजी की तरह थी जो बरसों से अपने घरवालों से मिला ही नहीं है और कारगिल से जंग जीतकर वो अब छुट्टी लेकर घर वापिस आ रहा हो और उसकी खुशी को बयान कर पाना ही मुश्किल हो। ठीक वैसी ही खुशी इन छोटे -छोटे बच्चों के चेहरों पर थी अभी।
अपनी बहन के साथ आनन्द घर आ जाता है ...अपने छोटे -छोटे पाँवों से चलकर ....और फिर घर में वो ही मस्तियां ....और शरारतें...इस तरह कर जैसे तैसे स्कुल का एक साल गुजर जाता है और अब पहली कक्षा भी उत्तीर्ण भी कर ली थी...परंतु आनन्द के पिता ने अध्यापकों से गुजारिश कर आनन्द को दुबारा से पहली कक्षा में रखा ...ताकि वह पहले अच्छे पढ़ना और लिखना सीख सकें।
आनन्द दुबारा से पहली कक्षा में ही रहा और इस साल ही आनन्द के स्कुल में एक लता नाम की अध्यापिका आ ...जो दूसरे शहर से थी और उसकी पांच साल एक लड़की थी और तीन साल का एक लड़का ।
उस आध्यापिका की लड़की भी अब आनन्द के साथ ही पढ़ती थी उसी की ही कक्षा में।
बहुत ही सुन्दर ,गोरा चेहरा ,गोल मुखाकृति और पढ़ाई में बहुत अच्छी इस लड़की का नाम था अमिता.....यही तो वो ही लड़की थी जिससे आनन्द को प्यार होता है।
अभी तो बच्चे थे दोनों प्यार के बारे में कुछ तो जानते ही नहीं थे।इसी तरह से स्कुल के दिन गुजरते गये और दोनों एक साथ बड़े होते गये।
इस तरह से पांच साल गुजर गये और पांचवी कक्षा दोंनों ने उत्तीर्ण कर ली थी।
अब दोनों बचपन से कुछ बडेे और जवानी की ओर कदम रख रहे थे और यही वो पड़ाव था जहां से आनन्द दिल ही दिल में अमिता से प्यार करने लगता है।
...अब आगे क्या हुआ है तो यह जानने के लिए जुडे़ रहिये मेरे साथ इस प्यार भरी कहानी में ...मेरे अर्थात आप सबके अपने निखिल ठाकुर के साथ.....