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बचपन का प्यार - 2

2. मीडिल स्कूल में प्रवेश
देखते ही देखते आनन्द और अमिता दोनों प्राईमरी स्कूल में पांचवी कक्षा को उत्तीर्ण कर लेते है और अब दोनों ही एक साथ मीडिल स्कूल में छठी कक्षा में प्रवेश कर लेते है और मीडिल स्कूल भी प्राईमरी स्कूल के साथ ही था।
आनन्द खेल कूद में अच्छा था ...और अमिता पढ़ने में भी बहुत अच्छी थी।
अमिता देखने में पतली थी,गोरा रंग,मुलायम त्वचा,गोल चेहरा और आकर्षक गोल -गोल बड़ी आँखें...यदि अमिता दसवीं या बाहरवीं कक्षा की छात्रा होती तो उसे देखकर हर कोई लड़का उसका दीवाना जरूर होता था...और उस पर मर मिटने वाले आशिक भी बहुत से होते है।
सौभाग्यवश वह अभी छठी कक्षा में थी और दोनों की आयु अभी ग्यारह साल की थी ..,.तो अभी नादान बच्चे तो थे ही और साथ ही साथ प्यार,इश्क,मोहब्बत जैसे नामों से अनजान थे।
दोनों को क्या मालूम था कि ...प्यार क्या होता है ,गर्लफ्रेंड़ क्या होती है..,अभी तो वे दोनों अपनी नादनानियों के साथ बड़े हो रहे थे और गांव का वातावरण था...और उस समय मोबाईल नाम की चीज के बारे में दोनों ज्यादा कुछ जानते ही नहीं..और ना ही शहरी वातावरण के बारे में।
गाँवों के स्कूल में एक अलग ही वातावरण का परिवेश होता था...वहां पर कोई भी आधुनिक उपकरण जैसे की कंप्यूटर आदि की सुविधा नहीं होती है।
बस तो बस घर से स्कूल और पढ़ाई पर ध्यान देना ये सब होता था।
एक लड़का क्या होता है ..एक लड़की क्या होती है उस समय के दौर पर नादान उम्र में इन सबके बारे में ज्यादा कुछ मालूम तो होता नहीं ...बस अपनी नादान उम्र के साथ .,,.शारारतें करना ,हंसना,खेलना आदि इन सबके साथ बच्चे अपनी जिन्दगी को जीते थे।
छठी कक्षा में आने के बात आनंद दिल ही दिल में अमिता को पसंद करने लगा था...और वह स्कूल में उसे देखता रहता था और काल्पनिक दुनिया में खो कर उसके साथ जीने के स्वप्न देेखता रहता था।
आनन्द की सोचने की क्षमता बचपन से ही ज्यादा थी...चीजों को समझना ..,अपने में खोये रहना...एक नई दुनिया के बारे सोचते हुये खोये रहना ये सब मानों उसे ईश्वर की तरफ से कोई गॉड़ गिफ्ट मिला हो।
हालांकि आनन्द और अमिता की आपस में ज्यादा बातें नहीं होती थी...और ना ही दोनों बाते करते थे .,पर अमिता इस बात से अनजान थी कि आनंद उसे दिल ही दिल में पसंद करता है।परंतु अमिता को तो प्यार के बारे मे कुछ पता था ही नहीं वो होता क्या है...उसे बस पढाई ही ज्यादा पसंद थी।
आनन्द भी अमिता से कह नहीं पाता है कि वो उसे प्यार करता है ...और आनंद को भी कहां पता था कि इसे प्यार कहते है....इसे ही मोहब्बत कहते है...बस आनंद को तो अमिता को देखकर ही स्कून मिलता था।
धीरे -धीरे समय बीतता गया और स्कूल में आनन्द की पहचान उसके उल्टे-पुल्टे कारनामों के कारण उसकी ईमेज अमिता के सामने अच्छी बनने की जगह बुरी बनने लगी...क्योंकि आनन्द को कराटे सीखने का शौक था...और बच्चा दिमाग था...ऊपर से मन में हमेशा गुस्सा से भरा हुआ रहता था।
और पहली ही बार गाँव में टेलीवीजिन आनन्द की बड़ी बहन ने लाया था...और उस समय दो ही चैनल चलते थे।
डी.डी नैशनल, डी.डी न्यूज ...और एक बहुत बड़ी छतरी आती थी उसके साथ ..एन्टीने के रूप में
टी.वी. में फाईटिंग मूवी देखकर तो आनन्द के मन में भी फाइटिंग सीखने का शौक चढ़ जाता है ..बच्चा दिमाग था...बच्चों के मन में शौक पल भर में आ जाते थे और पलभर खत्म हो जाते है।
पर आनन्द के दिमाग ऐसा नहीं था...वह जिस को सीखना चाहता तो ...उसे सीखे बिना उसे चैन नहीं आता था...वह भी टी.वी में हीरों की तरह दीवार पर अपनी मुट्ठी से मारता रहता ...लड़ाई का कोई तजूर्बा तो था ही नहीं ..,पर बच्चे दिमाग ने जो टी.वी. देखा तो उसे करना लगा..इससे आनंद की हाथ में चोट लग जाती है ...हाथ सूज जाता है।जब घर पर आनन्द के पिता को पता चलता है तो तब वे आनन्द की पिटाई करता है और उसे गालियां देकर समझाता ...आखिर बाप तो बाप होता है ..और एक ही बेटा था..तो चिंता होनी जाहिर सी बात है।आखिर बुढ़ापे का सहारा जो था। आनन्द रोते हुये अपनी माँ की तरफ देखता है और उसकी माँ उसे चुप कराते हुये आनन्द के पिता पर गुस्सा हो जाती थी।आनन्द को अपने पिता से इतना लगाव था...या यूं कहें प्यार था कि वह अपने पिता के अलावा किसी के साथ नहीं सोता ...अगर उसके पिता किसी काम से घर से बाहर भी गये हुये होते है तो उसके पिता को जैसे मर्जी करके रात को वापिस आना ही पड़ता ...क्योंकि पिता का ना होने पर वो जोर जोर से रोने लगता और फिर चुप नहीं होता और एक ही रट लगाये रखता था कि पापा कहां पर हैं...उन्हें बोला जल्दी वापिस आओ...मुझे पापा चाहिये...तो उसके पिता को अपने जरूरी से जरूरी कामों को छोड़कर वापिस आ जाना ही पड़ता था।
हाथ में चोट आने के कारण दो -तीन दिन के बाद आनन्द स्कूल जाता है और वो ही स्कूल की रोजमरा जिन्दगी जीने लगता है..एक दिन स्कूल में एक लड़के के साथ आनन्द का झगड़ा हो जाता है ...और आनन्द उसकी बुरी तरह से पीटाई कर देता है ..यहां तक की आनन्द उस लड़के को मारने के लिए अपने दोस्तों के साथ मिलकर घर से लम्बा खंजर भी ले आता है...झगड़ा इतना बढ़ गया था कि टीचरों ने आनन्द को रोका।
तबसे से स्कूल में आनन्द की ईमेज एक गुंड़े वाली की ईमेज बन गई थी और अमिता भी अब आनन्द से ड़रने लगी थी और जिसके कारण वह आनन्द से दूर रहने लगी थी।
आनन्द के दोस्त भी उसी की तरह हठी,जिद्दी थे और आनन्द के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते थे।
आनन्द के दोस्त में विजय,हर्ष,पुष्प राणा,कमलेंन्द्र ,रोशन आदि थे।रोशन आनन्द से एक क्लास पीछे पड़ता था और दोनों एक ही गाँव से थे और विजय,पुष्प राणा का गाँव आनन्द के गाँव से थोड़ा दूर था ...
कमलेन्द्र...आनन्द से एक क्लास आगे पढ़ता था और उसका घर पुष्पराणा के घर के साथ ही था।
ये सभी आपस में जिगरी दोस्त थे और एक दूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते थे।
कुछ महीने गुजरने के बाद प्राईमरी स्कूल वाले लड़के टूर्नामेंट की तैयारी कर रहे थे ...और आनन्द कबड्डी के खेल में बहुत अच्छा खिलाड़ी था..पूर्तिला था...तो प्राईमरी स्कूल के टूर्नामेंट नजदीक आ रहे थे...और उन्हें इस बार टूर्नामेंट को जीतना था...तो प्राईमरी स्कूल के टीचर आनन्द की प्रतिभा से वाकिफ थे तो उन्होंने मिडिल स्कूल के टीचरों से बात करके आनन्द को टूर्नामेंट में शामिल कर लिया था...आनन्द का कद ज्यादा लम्बा नहीं था...जिसके कारण यह कह पाना मुश्किल था कि वह मीडिल स्कूल का लड़का हो और टूर्नामेंट में आनन्द का नामांकन ठाकुरदास नाम के लड़के की जगह पर किया और आनन्द का नाम ठाकुरदास लिखाया गया।
अब टूर्नामेंट के लिए तैयारी चल रही थी...ट्रेनिंग में आनन्द ने अच्छा प्रदर्शन दिखाया ..जिसके कारण टीचरों को उनके स्कूल के जीतने की उम्मीद जाग गई।आनन्द के टीम में आते ही सभी लड़कों में जोश आता है..वह सब आनन्द को Support करते है।
अब कुछ दिन के बाद दूसरे गाँव के स्कूल में आयजित होने वाले टूर्नामेंट के लिए आनन्द प्राईमरी स्कूल के लड़कों और टीचरों के साथ अपने बैग में कपड़े आदि डालकर निकल गया।

क्या आनन्द प्राईमरी स्कूल के टीचरों की उम्मीद पर खरा उतर पायेगा...क्या आनन्द की टीम टूर्नामेंट जीत पायेगी...इन सभी सवालों के जबाव जानने के लिए पढ़ते रहे मेरे साथ यानि निखिल ठाकुर के साथ इस कहानी को मेरी कलम से जिसका नाम है ""!!बचपन का प्यार !!"""""