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अनजान रीश्ता - 83

पारुल सेम से ध्यान हटाते हुए आवाज वाली दिशा में देखती है लेकिन जब उसका ध्यान अविनाश पर पड़ता है।तो डर का मारे पूरे शरीर में सिरहन दौड़ती है । अविनाश की आंखे पहले से बिल्कुल बदल गई थी। मानो अभी अगर कोई भी उसके सामने आया तो वह उसे जैसे जिंदा जमीन में गाड़ देगा । पारुल का गला सुख रहा था। वह होठ पर जीभ फेरते हुए होठ जो की डर की वजह से सुख रहे थे उसे नर्म बनाए रखने की बेकार कोशिश करती है। अविनाश का ध्यान एक पल के लिए पारुल की इस हरकत पर जाता है और फिर से पहली बार जहां था वहा पर चला जाता है। पारुल अविनाश की नजर देखते हुए खुद की ओर देखती है तो उसे समझ आता है की अविनाश की नजर सेम ने उसके कंधो को सहारा देते हुए थामा है वहीं पर थी। पारुल फिर आंखे बंद करते हुए खुद को कोसती है। " अरे! शीट, इसे भी इस हालत में मुझे देखना था। भगवान क्या जान लेने का इरादा है क्या! कम से कम एक संबंध में तो कड़वाहट ना घोलते। अब इसे कैसे समझाऊं की! " । तभी पारुल को आभास होता है की किसीने उसे कमर से कसकर पकड़कर अपनी ओर खींचा है । पारुल देखती है तो अविनाश था । पारुल उसकी ओर आश्चर्य में देखे जा रही थी । तभी अविनाश कहता है ।

अविनाश: वाइफी! इतनी देर क्यों लगी!? मैं कब से इंतजार कर रहा था! तुम्हारा! तुम्हे पता है ना मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता!।
पारुल: ( आश्चर्य में बड़ी आंखों से अविनाश की ओर ही देखे जा रही थी । और सोचती है: क्या उल्टा सीधा बोल रहे हो!? भगवान के लिए अपनी जुबान पर लगाम दो। एक तो बात वैसे ही बिगड़ी हुई है। ) ।
अविनाश: वाईफी चुप क्यों! हो!? किसीने कुछ कहां क्या!?।
पारुल जवाब से उससे पहले ही पारुल की मोम (जया) जवाब देती है।
जया: हां मैने कहां!? क्या करोगे तुम मुझे डराओगे क्या!? ।
अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) आहान! सासु मां! आपने मेरी वाईफी को डांटा!? टू बेड! क्यों किया ऐसा अपने में जान सकता हूं ।
जया: ( गुस्से में लाल पीली होते हुए ) क्यों! डांटा..टा!? जिस प्रकार की हरकत करके ये आई है शुक्र मनाओ! की मैने इसे अभी तक थप्पड़ नहीं मारा वर्ना ऐसी लड़की को तो... ।
अविनाश: ( जया कि बात को काटते हुए ) शहहह! ( अपने मुंह पर उंगली रखते हुए जया को चुप करवाते हुए )। सासु मां ऐसा ना हो की आपके बोले हुए शब्द आप पर भारी पढ़ जाए। आप मेरी वाइफ की मधर है इसलिए में आपकी इज्जत करता हूं! पर इसका मतलब ये नहीं की आपको हक है की आप मेरी वाइफ की बेइज्जती करे! तो आइंदा से ध्यान रखिएगा! ठीक है।
किरीट: भूलो मत वह हमारी बेटी पहले है तुम्हारी वाइफ बाद में ।
पारुल: ( नम आंखों से अपने डेड की ओर देखती है। लेकिन किरीट उससे नजर नहीं मिला रहा था। ) डे.. ड...।
किरीट: ( पारुल को हाथ दिखाते हुए रोकता है। ) मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी! तो बेहतर यहीं होगा की तुम कोशिश ना करो! ।
पारुल: डेड! एक बार मेरी बात तो सुने!? ।
अविनाश: बीवी! मुझे लगता है तुम्हे यहां से चलना चाहिए! क्योंकि मैं तो तुम्हे यहां पग फेरे की रश्म के लिए लाया था और तुम ही जिससे यहां आना था। अब देख लो अपनी इकलौती बेटी और दामाद का स्वागत कोई ऐसे करता है। भला! नॉट गुड! मैनर्स की कमी है।
किरीट: ( गुस्से में ) तुम मेरे दामाद नहीं हो! समझे! ना ही में कभी स्वीकार करूंगा तुम्हे।
अविनाश: हाहहहा! ससुर जी! क्या मजाक करते है आप! अब आप माने या ना माने मैं आपकी स्वीट बेटी का पति हूं और रहूंगा! अब यह बात तो किसी के मानने या ना मानने से बदल नहीं जाएगी। ( पारुल के कद के बराबर चेहरा करते हुए) है ना! वाइफी ( गुस्से में )।
पारुल: ( धीरे से ) प्लीज!।
अविनाश: हां ये बात अलग है की मेरी बीवी आपकी सगी बेटी नहीं है अगर आप उस लहजे से कह रहे है तो में आपका!।
पारुल: ( अविनाश बात पूरी करे उससे पहले ही पारुल उसे एक थप्पड़ मारती है। ) ।
अविनाश: ( अपने गाल को छूते हुए.....सीधा पारुल की ओर ही देखता है। मानो उसकी आंखो में साफ साफ दिख रहा था की पारुल ने जो भी किया वह सही नही था। वह गुस्से में दांत भीसते हुए खुद को काबू में लाने की कोशिश कर रहा था । ) ।
पारुल: आइंदा अगर ऐसी बेहूदा बाते की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। वह लोग जैसे भी है मेरे मॉम डैड है और उनसे इस तरह से बात करने का तुम्हारा कोई हक नहीं बनता। यह मेरे और उनके बीच का मामला है! तो मैं अच्छी तरह से जानती हूं की मुझे किस तरह से सुलझाना है । समझे तुम! ।
अविनाश: ( गुस्से में वहां से चला जाता है ।) ।
पारुल: ( मॉम डैड की ओर देखते हुए ) उसकी ओर से में आपसे माफी मांगती हूं। जानती हूं कि आप लोग गुस्सा है और नाराज भी। मैं नहीं जानती की आप लोग मुझे माफ करेंगे भी या नहीं। पर में सच कह रही हूं मैने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे आप लोगो का सिर शर्म से झुके! चलती हूं! ख्याल रखिएगा अपना! और मेरी फिक्र मत करिएगा! में वहां ठीक हूं।

यह कहने के साथ पारुल वहां से चली जाती है। पारुल के मॉम डैड के आंखो में से आंसू बह रहे थे। वह पारुल को रोकना चाहते थे। लेकिन उन लोगो ने हिम्मत नहीं थी की वह रोक पाए। बेबसी उन्हे खाए जा रही थी। सेम बेजान इंसान की तरह जिस तरह से पारुल को थामे बैठा था अभी भी वैसी ही स्थिति में बैठा था। वह बाते सुन तो रहा था। पर सारी बाते उसके यकीन के परे थी। इसलिए वह बस समझने की कोशिश कर रहा था की क्या उसने जब पारुल और उसके डेड बात कर रहे थे वह सच था। क्योंकि सेम ने पारुल के डेड के फोन में पारुल की आवाज सुनकर दौड़ा चला आया । शायद इसी वजह से उसने पारुल ने जो भी बातें कही वह नहीं सुनी थी की उसकी शादी हो चुकी है और वो भी अविनाश से! । यह बात उसे समझ ही नही आ रही थी। तभी पारुल की मॉम उसे हड़बड़ाते हुए अपने इस खयालों के मायाजाल से निकालते है । सेम जब देखता है तो पारुल वहां नहीं थी। वह जल्दी से खड़ा होते हुए... पारुल को ढूंढने दौड़ते हुए बाहर की ओर निकल पड़ता है।