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जीवन वीणा - 9

तोड़ सकोगे सारे बंधन, मुक्ति मार्ग पर कदम बढ़ाकर ।
मुक्त स्वतंत्र हो सकेंगे सब, परमानंद व्योम में जाकर ।।
अध्यात्मिक उन्मुक्त क्षितिजमें,उड़ जाओ कुछ वहां न हानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

यह तो सच है जीवन अपना, पहले भी था और रहेगा ।
अस्थाई तन यहां मिला जो, रहने की वह यहीं कहेगा।।
लेकिन जाना भी निश्चित है,इस दुनियां से डाल रबानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

नहीं यथार्थ रूप को जबतक, पहचानोगे,दुखी रहोगे ।
देहान्तरण हमेशा होगा, बार - बार यह कष्ट सहोगे ।।
मानव जीवन ही वह अवसर,जो दे सकता मुक्ति सुहानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

हमें अहम् से दूर परम तक,पहुंचा सकता यह मानव तन ।
कठिन यात्रा बेशक लेकिन, योग विधा है उत्तम साधन ।।
एक मार्ग दर्शक, गुरु ढूंढो, उससे कहदो अन्तर वानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

ईश्वर को सर्वस्व मानकर, करिए उसका ध्यान निरंतर ।
उस प्रकाशको हृदय गर्भमें,संस्थापित करदो ले जाकर।।
ध्यान समाधि लगाते ऐसे, परमेश्वर में ज्ञानी ध्यानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

मुक्ति मिले'मैं' के पिंजड़े से,तो उड़ सकते आत्मगगन में।
आत्माकाश असीम,अपरमित, है ब्रम्हांड इसी आंगन में।।
सब अपने में दिखे समाया, भौतिकता लगती बेमानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

अंतस् का आकाश असीमित,उसमें उड़ना कितना भाता।
यह आनंद अलौकिक इसमें, मुक्त विचरना मुक्ति कहाता।।
सुख दुख हर्ष विषाद आदि सब,लगते जैसे चीज हिरानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

पाप पुण्य के बंधन सारे, जाने कहां लुप्त हो जाते ।
आत्मतत्व के बृहत् तेज में,मन के भाव गुप्त हो जाते।।
दिखती है सम्पूर्ण सृष्टि यह,आत्मतत्व की उद्भव दानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

करुणा,दया, प्रेम की लहरें, संवेदना हृदय प्रगटातीं ।
आल्हादित,आनंदित करतीं,पुलकन अंतरमन उपजातीं।।
इनका प्रबल प्रवाह 'मै'पना,कर देता है पानी पानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।

हम मानव से तभी देवमानव सचमुच में सकते हैं बन ।
योग और अध्यात्म यात्रा,जब करने लग जाए तन मन।।
अहंभाव से परम भाव की,योग यात्रा परम सुहानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।

द्वैत भावसे चल अद्वैत तक मानव जब यूं बढ़ जाता है।
तब वह जीवन सफल कहाता,जब यह सीढ़ी चढ़ जाता है।।
वरना जीवन मरण चक्र में, कैद रखेगी पिंजड़ा दानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

स्वाध्याय है खुदको पढ़ना,बाकी विषयों के हैं अध्ययन।
जो अपना संज्ञान करादे, उसमें रखो लगाकर तन-मन।।
आलस और प्रमाद हमारे, इसमें हैं दो दुश्मन जानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।

महाजनों ने योग बनाया, जो लघु बृहदृ बना सकता है ।
जुड़ जाना ही योग कहाता, जो योगी अपना सकता है।।
योग युक्ति है,युक्ति,मुक्ति है,जो ऋषियों की जानी मानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

योग शब्द का अर्थ यही है,लघुका जुड़ जाना विशाल से।
अलग- थलग हम उससे, मायामयी विभक्ति जाल से ।।
अपनी व्यर्थ विभक्ति हटालो,जुड़ जाने दो जीवन दानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

जो व्यापक है जिसमें हमसब,अलग नहीं उससे हो सकते।
उसका जीवन,वह ही जीवन,कैसे हम उसको खो सकते।।
उसका सबकुछ देखा भाला,अपनी सब राहें अनजानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

आए कई प्रशिक्षक लेकिन, हमने सीखा नहीं बजाना ।
लिए एक आवाज बेसुरी,रहा सुनाता अपना गाना ।।
व्यर्थ गंवा डाला ये जीवन,उर वीणा ध्वनि नहीं समानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

स्रोत शक्ति का वह अनंत है,सीमा हीन,अगोचर,अक्षय।
प्रकृतिअंश जब उससे जुड़ता,तब चेतन बनता है गतिमय।।
बिना प्रकृति के उस व्यापककी देख न पाता जगत निशानी।
वीणा घरमें रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।१३७।

‌‌‌लगातार......................