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तड़प--भाग(५)

जब शिवन्तिका होश में आई तो डाक्टर के जाने के बाद अकेले में चित्रलेखा ने शिवन्तिका से पूछा....
आपने ये क्या किया? आपने हमारी दी हुई छूट का नाजायज़ फायद़ा उठाया,हमें आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी शिवन्तिका ! ये आपने क्या किया? अब हम किसे किसे जवाब देते फिरेगें।।
लेकिन दादी माँ! मुझे भी बताइएं कि क्या हुआ है? मैं शिवदत्त की खबर पाकर परेशान हो उठी थी इसलिए बेहोश हो गई थी,शिवन्तिका बोली।।
आपको पता है कि आप बेहोश क्यों हुईं थीं? चित्रलेखा बोली।।
नहीं दादी माँ! शिवन्तिका बोली।।
क्योंकि आप माँ बनने वालीं हैं और जिसका ये बच्चा है वो भी इस दुनिया से जा चुका है,चित्रलेखा बोली।।
नहीं! दादी माँ! ये नहीं हो सकता,शिवन्तिका बोली।।
यही हुआ है शिवन्तिका ! आपसे बहुत बड़ी गलती हो गई है,चित्रलेखा बोली।।
हमें माँफ कर दीजिए दादी माँ!शिवन्तिका बोली।।
हम तो आपको माँफ ही कर देंगे क्योंकि आप हमारा खून हैं लेकिन इस बच्चे का क्या होगा? इसे दुनिया नाज़ायज़ औलाद कहकर पुकारेगी,ये सब आप सुन सकेगीं,चित्रलेखा ने पूछा।।
मैं क्या करूँ दादी माँ! मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा,शिवन्तिका बोली।।
इसमें ज्यादा सोचने जैसा कुछ भी नहीं,तुम इस बच्चे को नहीं रखोगी,इसे कल ही अस्पताल जाकर खतम कर देते हैं,चित्रलेखा बोली।।
नहीं ! दादी माँ! ऐसा मत कहिए,ये मेरे और शिवदत्त की प्यार की निशानी है,मैं इसे कैसे खतम कर सकती हूँ,शिवन्तिका बोली।।
ये औलाद नहीं पाप है दुनिया की नज़र में, जब आप विधिवत शिवदत्त के साथ सात फेरें लेकर माँ बनतीं तब इसे औलाद का नाम दिया जाता,लेकिन अभी परिस्थिति कुछ और शिवन्तिका ! आप समझने की कोशिश क्यों नहीं करतीं? चित्रलेखा बोली।।
कुछ भी हो दादी माँ! लेकिन मैं इस बच्चे की माँ हूँ,मैं इसे कैसे खतम कर सकती हूँ? मेरा ज़मीर मुझे ऐसा करने से रोकता है,शिवन्तिका बोली।।
ये कैसी बातें कर रही हैं आप? समाज क्या कहेगा? थूकेगा हम पर,हमारे खानदान का नाम मिट्टी में मिल जाएगा,चित्रलेखा बोली।।
मैं खानदान के खातिर इस बच्चे की बलि नहीं दे सकती,शिवन्तिका बोली।।
आपका दिमाग़ खराब हो गया है,क्या कहेंगीं दुनिया से कि ये किसका बच्चा है?चित्रलेखा बोली।।
दादी माँ! मुझे दुनिया की नहीं इस बच्चे की फिकर है,इस नन्हें जीव की क्या ख़ता है? अपनी माँ की ख़ता की सज़ा भला ये क्यों भुगते?शिवन्तिका बोली।।
भावनाओं में मत बहिए,जरा अपने दिमाग़ से काम लीजिए,भावों से दुनिया नहीं चलती ,प्रयोगात्मक होना पड़ता है इस दुनिया में जीने के लिए,चित्रलेखा बोलीं।।
दादी माँ! आप गलत कहतीं हैं,दुनिया भावों से ही चलती है,अगर भाव ना होते तो ये दुनिया ही ना होती,आप मुझसे भावनाओं के कारण ही तो जुड़ी हैं,शिवन्तिका बोली।।
तो आप क्या चाहतीं हैं? कि हम इस बच्चे को स्वीकार कर लें,फिर क्या होगा जब ये बड़ा जाएगा तो हर कोई इससे इसके बाप का नाम पूछेगा,तो क्या जवाब देगा ये सबके सवालों के?चित्रलेखा बोली।।
कुछ भी हो दादी माँ! मैं ये सब नहीं जानती ,मैं तो बस ये जानती हूँ कि ये मेरा खून है,मेरा बच्चा है और मैं इससे कभी अलग नहीं हो सकती,शिवन्तिका बोली।।
तो इसका मतलब है कि आप हमारी बदनामी करवाकर रहेंगीं,चित्रलेखा की आवाज़ में सख्ती थी।।
मैं भी मजबूर हूँ दादी माँ! मैं इस बच्चे को नहीं छोड़ सकती,शिवन्तिका बोली।।
ठीक है तो हम ही कुछ सोचते हैं और इतना कहकर चित्रलेखा चली गई और दूसरे ही दिन चित्रलेखा ने अपने होटल का कार्यभार मैनेजर को दे दिया और घर के नौकरों से कह दिया कि हम और शिवन्तिका दो तीन दिनों के लिए शिमला जा रहें हैं,डाक्टर ने शिवन्तिका का हवा-पानी बदलने की सलाह दी है और दोनों दादी पोती हवेली मे ताला लगाकर शिमला के लिए रवाना हो गईं।।

और उधर किसी मामूली से खैराती अस्पताल ने शिवदत्त ने आँखें खोली और पूछा....
मै कहाँ हूँ?
तुम किसी मछवारे को नदी के किनारे बेहोश मिले थे,तो वो तुम्हें हमारे अस्पताल में भरती करा गया,तुम्हारी हालत अच्छी नहीं थी,तुम्हारी एक टाँग में बहुत ज्यादा चोट लगी थी,उस चोट से सारे शरीर में विष फैलने लगा था,इसलिए मजबूरी में हमें तुम्हारी एक टाँग काटनी पड़ी,डाक्टर बोले।।
नहीं ये नहीं हो सकता,डाक्टर साहब! कह दीजिए कि ये झूठ है,मैं अपाहिज नहीं हो सकता,शिवदत्त चीखा।।
अभी तुम्हें एकाध महीने और यहाँ रहना पड़ेगा,जब तक तुम बिल्कुल ठीक नहीं हो जाते तब तक हम तुम्हें यहाँ से छुट्टी नहीं दे सकते,डाक्टर साहब बोले।।
एक महीने रहना पड़ेगा यहाँ मुझे,शिवदत्त बोला।।
हाँ! एक महीने और ,चाहो तो तुम अपने घरवालों को खबर कर सकते हो,डाक्टर साहब बोले।।
मैं क्या कहूँगा सबसे कि मैं अपाहिज हो गया हूँ? क्या बीतेगी शिवन्तिका पर ये सब सुनकर? शिवदत्त ने मन मे सोचा।।
क्या सच रहो हो? मुझे अपना पता ठिकाना बता दो तो मैं ही चिट्ठी लिख दूँगा,डाक्टर साहब बोले।।
रहने दीजिए,मैं ही बता दूँगा,शिवदत्त बोला।।
और डाक्टर साहब के जाने के बाद शिवदत्त ने सोचा,मैं खुद ही एक महीने बाद वहाँ जाकर सबको सबकुछ बता दूँगा,जब सब मुझे वेशाखी से चलते देखेगें तो खुदबखुद समझ जाऐगें और ये सोचकर शिवदत्त ने शिवन्तिका के पास कोई चिट्ठी नहीं भेजी और ना ही सियाशरन को बताया।।

शिमला में चित्रलेखा की बचपन की सहेली वीना रहती थी,वो वहाँ के किसी अस्पताल में नर्स थी,वर्षों पहले उसने अपने प्रेमी के साथ भागकर शादी की थी,दोनों भागकर शिमला आएं और उसने एक अस्पताल में नर्स की नौकरी कर ली ,क्योंकि वीना ने नर्स की ट्रेनिंग कर रखी थी,वीना दिनभर अस्पताल में खटकर पैसे कमाती और उसका पति कमचोरों की तरह घर में पड़ा रहता और वीना के पैसों में ऐश करता ,उसका पति एक नम्बर का आवारा और लम्पट निकला और कुछ दिनों बाद घर की नौकरानी के साथ भाग गया।।
वीना फिर अपने घर नहीं लौटी,भला किस मुँह से लौटती उसने भागकर जो शादी की थी,धीरे धीरे वो अपने पति को भूल गई और फिर उसने दोबारा कभी भूलकर भी शादी का नाम ना लिया,अकेले रहकर ही पूरी जिन्दगी बिता दी,उसकी ये बातें केवल उसकी पक्की सहेली चित्रलेखा को ही पता हैं,दोनों अच्छी सहेलियाँ हैं चित्रलेखा को इस मुश्किल घड़ी में अपनी सहेली की याद आ गई इसलिए वो शिवन्तिका को लेकर उसके घर आ गई।।
सालों बाद वीना अपनी सहेली चित्रलेखा को देखकर बहुत खुश हुई और पूछ बैठी...
ना कोई ख़त ना तार और यहाँ अचानक,अरे खबर तो कर दी होती तो मैं कुछ तैयारियांँ कर लेती,अकेली रहती हूँ तो जो बन गया सो खा लिया नहीं तो अस्पताल की कैंटीन जिन्दाबाद और ये तेरी पोती है ना!वीना ने शिवन्तिका को गले लगाते हुए कहा,
कितनी बड़ी हो गई,जब ये पाँच साल की थी तब आई थी तू यहाँ इसे लेकर ,तब से अब देख रही हूँ इसे ,कितनी सुन्दर हो गई,कहीं इसकी शादी का न्यौता देने तो नहीं तू मुझे,इतना सबकुछ वीना ने एक ही साँस में कह डाला।।
तुझे सब बताती हूँ आराम से,घड़ी भर बैठ तो सही,चित्रलेखा बोली।।
हाँ...हाँ...पहले चाय-वाय पी लो बहुत ही ठण्ड है,वैसे भी शाम तो हो ही गई है,थोड़ी देर में अँधेरा भी घिर आएगा,चाय पीकर मैं खाने की तैयारी भी कर लेती हूँ,खाना खाने के बाद बातें होगीं,बिस्तर पर लेटकर,वीना बोली।।
ठीक है तो तू अपना काम निपटा ले और किसी मदद की जुरूरत हो तो बता देना,मैं मदद करवा दूँगीं,चित्रलेखा बोली।।
ना बहना! आज इतने दिनों बाद तो कोई मेरे घर आया है मेहमान बनकर,इतना काम भी ना कर पाऊँगी क्या? वीना बोली।।
ठीक है तू ही कर ले सारा काम,चित्रलेखा बोली।।
और फिर सबने चाय पी,उसके बाद वीना रात के खाने में लग गई,खाना बनने के बाद सब खाने बैठे और फिर जब खाना खाने के बाद सब बिस्तर में पहुँचे तो सबके बीच बातें शुरू हो गईं,तब वीना ने चित्रलेखा से उसकी खैरियत पूछी....
कुछ भी ठीक नहीं है बहन! तेरी मदद चाहिए,चित्रलेखा बोली।।
ऐसी भी क्या मजबूरी हो गई ? जो तुझे मेरी मदद की जरूरत पड़ गई,वीना बोली।।
तब चित्रलेखा ने सारी कहानी कह सुनाई कि शिवन्तिका माँ बनने वाली है और उस होनेवाले बच्चे का बाप अब इस दुनिया में नहीं है,कुछ भी समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ? शिवन्तिका उस बच्चे को खतम भी नहीं करना चाहती,चित्रलेखा ने सारी बात वीना को बता दी।।
तो तुम ऐसा क्यों नहीं करती? जब तक बच्चा पैदा नहीं हो जाता तो तुम दोनों यहाँ रहो,जिस अस्पताल में मैं काम करती हूँ वहाँ आराम से बच्चा हो जाएगा,फिर उस बच्चे को मैं पाल लूँगीं,मुझे एक सहारा मिल जाएगा, शिवन्तिका की बदनामी भी नहीं होगी और वो चाहें जब बच्चे से मिल भी सकती है,वीना बोली।।
वीना का ये सुझाव चित्रलेखा को पसंद आ गया,चुटकी बजाते ही उसकी समस्या का हल वीना ने कर दिया था,उसने वीना से कहा....
बहना! तू नहीं जानती कि तूने मुझ पर कितना बड़ा उपकार किया है।।
इसमें उपकार की क्या बात है तू मेरी बचपन की सहेली है,मैं तेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती,वीना बोली।।
और यही तय किया गया,चित्रलेखा ने शिवन्तिका को हफ्ते भर के लिए वीना के पास छोड़ा और अपने सारे काम निपटाकर फिर से वापस शिवन्तिका के पास आ गई और किसी को ये नहीं बताया कि वो कहाँ जा रही है,बस यही कहा कि शिवन्तिका की तबियत अभी भी ठीक नहीं है इसलिए पहाड़ो वाली किसी जगह पर कुछ महीने बिताकर आऐगें,चित्रलेखा ने अपना पता ठिकाना इस बार भी किसी को भी नहीं दिया,यहाँ तक कि होटल के मैनेजर को भी नहीं और ना घर के नौकरों को भी।।

फिर एक महीने बाद जब शिवदत्त ठीक होकर शिवन्तिका के घर पहुँचा तो वहाँ ताला लगा था,उसने सबसे पूछा तो लोगों ने कहा कि उन्हें कुछ नहीं पता कि वें कहाँ गए हैं।।
मायूस होकर शिवदत्त ,सियाशरन के पास पहुँचा,शिवदत्त को सही सलामत देखकर वो बहुत खुश हुआ और पूछा....
तू कहाँ था यार ? और कोई खबर क्यों नहीं दी? मैं मिलने चला आता।।
अब क्या बताऊँ?, ऐसी मनहूस खबर तुझे कैसे देता ? शिवदत्त बोला।।
यार! तू जिन्दा है,यही बहुत है मेरे लिए,बहुत खुशी हो रही है तुझे सामने देखकर,सियाशरन बोला।।
एक बात बता शिवन्तिका कहाँ है?शिवदत्त ने पूछा।।
ये तो मुझे भी नहीं मालूम,एक दिन मैं और सुहासा भी उसके घर गए थे तो ताला लगा था,पास- पड़ोस से भी पूछा तो उन्हें भी कुछ नहीं मालूम,सियाशरन बोला।।
सुहासा को भी कुछ नहीं मालूम,शिवदत्त ने पूछा।।
नहीं उसे भी नहीं मालूम,इस समय तो वो अपने मायके गई हुई है,उसके पैर भारी हैं ना!सियाशरन बोला।।
बधाई हो यार! बहुत बहुत बधाई हो और खुशखबरी सुनकर शिवदत्त ने फौरन ही सियाशरन को गले से लगा लिया।।
उस दिन के बाद शिवदत्त ने शिवन्तिका को खूब खोजा लेकिन वो उसे नहीं मिली।।

फिर दादी पोती शिमला मे रहकर शिवन्तिका के आने वाले बच्चे का इन्तज़ार करने लगें,बीच बीच में चित्रलेखा होटल का काम देखने चली जाती थी और हवेली के नौकरों की तनख्वाह भी दे आती थी लेकिन पता ठिकाना बताकर ना आती,इसी तरह कुछ महीने बीते और सबका इन्तज़ार खतम हुआ,
शिवन्तिका ने सुन्दर से बेटे को जन्म दिया जिसका नाम उसने शिवम रखा,शिवन्तिका अपने बच्चे को पाकर बहुत खुश थी,चित्रलेखा ने सोचा कि ऐसा ना हो कि शिवन्तिका का मोह बच्चे के लिए गहरा होता जाएं और वो बच्चे को छोड़ ही ना पाएं,इसलिए बच्चे के पन्द्रह दिन का होते ही चित्रलेखा ने शिवन्तिका से वापस चलने को कहा,
शिवन्तिका नहीं मानी तब चित्रलेखा ने वीना से कहा कि शिवन्तिका को समझाएं,वीना के समझाने पर शिवन्तिका मान गई और रोते बिलखते हुए शिवम को छोड़कर वो वापस चित्रलेखा के साथ लौट आई,वापस आ कर शिवन्तिका अपने शिवम को याद कर करके खूब रोती उसे शिवदत्त की भी खूब याद आती लेकिन वो हालातों के सामने मजबूर थी।।
वैसे शिवदत्त हर पन्द्रह दिन में हवेली का चक्कर लगा जाता था और हवेली मे ताला लगा होने के कारण मायूस होकर लौट जाता था,लेकिन इस बीच शिवदत्त एक भी बार ना आ पाया।।
अभी शिवन्तिका और चित्रलेखा को शिमला से लौटे हुए हफ्ते भर ही हुए थे कि चित्रलेखा के होटल में एक रात आग लग गई और सबकुछ जलकर ख़ाक हो गया।।

क्रमशः....
सरोज वर्मा....