TEDHI PAGDANDIYAN - 36 books and stories free download online pdf in Hindi

टेढी पगडंडियाँ - 36

'टेढी पगडंडियाँ

36

बिशनी ने सिर पर परात रखी । परात में ढेर सारा गुङ , रोटियाँ और सब्जी का पतीला टिकाकर आँचल में पाँच पाँच सौ के दो नोट बाँध कर जब गली में पाँव रखा तो खुशी के मारे धरती पर पैर सीधे न पङ रहे थे । चेहरा का कालापन सलोना होकर दमक रहा था । आँखों में अनोखी चमक थी । अपने ही ध्यान में मगन होकर सोचती जा रही थी कि बङे घरों की बातें ही बङी होती हैं । अभी तो किरण के माँ बनने की खबर ही मिली है तो सरदारनी ने इतना दे दिया , जिस दिन बच्चा होने की खबर मिलेगी , उस दिन तो पूरे भण्डारे का मुँह खोल देगी सरदारनी । चाँदी की झांझर या कानों की बालियाँ तो पक्का मिल सकती हैं । आज वह अपने बच्चों को भर पेट रोटी खिलाएगी । साथ में गुङ की एक एक रोङी भी ।
बिशनी चाची , ये कहाँ से इतना सामान लेकर नाचती चली आ रही है । - सामने से गोबर का टोकरा उठाए चली आरही झीवरों की बङी बहु ने टोका ।
बिशनी ने खुशी छिपाने का कोई जतन नहीं किया – सुदेशरानी , कैसी है तू ।
सुदेश ने अपना सवाल फिर से दोहराया – मैं तो ठीक हूँ पर तू सुबह सुबह कहाँ जाके आई है चाची ।
वो अपने भापे की चाची माँ बननेवाली है । सी की खबर करने गयी थी हवेली तो सरदारनी ने दाल रोटी सवा सेर गुङ और हजार रुपया दिया ।
“ सच चाची “
“ सवा आने सच बहु “
इठलाती हुई बिशनी आगे बढ गयी ।
तब तक सामने के दरवाजे से बंती निकल आई – क्या कहा तूने ताई , भापे की चाची माँ बननेवाली है ।
ले मैं क्या तुम लोगों से झूठ बोलूँगी । भाई पक्की खबर है । अभी अभी बिशनी चाची ने बताया । ढेर सारा सामान हाथ में लेकर हवेली से सीधी चली आ रही थी ।
जो वाहे गुरु करे । बेचारों के साथ इतना बङा हादसा हुआ तो वाहेगुरु ने जीने का ये सबब दे दिया ।
थोङी देर में ही यह गाँव की मुख्य खबर थी । औरतों से होते हुए मरदों तक और मरदों से बुजुर्गों तक सब जगह यह खबर पहुँच गयी थी । अवतारसिंह खेत से गाँव की फिरनी चढा ही था कि जसबीर और गुरनाम ने फतह बुलाते हुए बधाई दी – तेरी हवेली कायम रहे सरदारा । बहुत बहुत बधाइयाँ हों । निरंजन की निशानी रह गयी ।
खबर सुन अवतार सिंह पुलक से भर उठा । उसके बाद गाँव भर से बधाइयाँ लेते लेते हवेली पहुँचने में उसे दो घंटे लग गये । हवेली में चन्न कौर ने स्पेशल मीठे चावल बनाये थे जिसकी महक से हवेली महक रही थी ।
क्या बात है सरदारनी । आज तो दूर से ही जर्दा पुलाव की महक आ रही है ।
वो आज न बिशनी आई थी सुबह सुबह ।
वाहेगुरु ने सुन ली चन्न कौरे । हवेली लावारिस होने से बच गयी । निरंजन लौट आएगा अब ।
चन्न कौर ने प्लेट में चावल डाल कर पति को पकङाये । अवतार सिंह वही पङी खाट पर बैठ गया और चावल खाने लगा ।
अचानक उसका ध्यान गया – ये ननी और सिमरन कहाँ है । दिखाई नहीं दे रही ।
वो तो आज सुबह चले गये । सिमरन कई दिनों से सर्विस पर जाने की कह रही थी । सिमरन ने ड्यूटी पर जाना था । मैंने भी कहा चली जाओ । गुरनैब छोङने गया है । जब तक मन लगेगा , करेगी । जिस दिन मन नहीं करेगा , लौट आएगी ।
अवतार सिंह ने एक ठंडा साँस लिया और नहाने चल दिया ।
किरण का मन नाचने का हो रहा था । कितने दिनों से वह यहाँ कोठी में अकेली रह रही थी । पूरा दिन हवेली में उदास उदास अकेली बैठी रहती । कोई बात करने वाला नहीं , कोई सुनने वाला नहीं । दोपहर या शाम में निरंजन आता तो हवेली थोङा गुलजार हो जाती वरना सुनसान पङी रहती । अब उसका अपना बच्चा इस दुनिया में आ जाएगा जिसके सहारे वह जिंदगी काट लेगी । वैसे सुरजीत के आ जाने से उसका अकेलापन दूर हो गया था । सुरजीत सारा दिन कोई न कोई बात सुनाती रहती । गाँव भर की बहु बेटियों के किस्से उसके पिटारे में बंद थे । न जाने किस किस की कहानियाँ सुनाती रहती । सबसे बङा सुख उसे खाने बनाने का हो गया था । अकेले उसका कुछ बनाने का मन ही न होता । अब सुरजीत के लिए तो खाना बनाना ही होता तो वह भी तीनों वक्त खाना खा लेती । सुरजीत खाना बहुत स्वाद बनाती थी और खिलाती भी पूरा मनुहार कर कर के । कभी प्यार से तो कभी थोङा डाँट के भी । जब तब उसे गुरनैब या चन्न कौर को बता देने की धमकी मिलती रहती पर पता नहीं क्यों इस धमकी को सुनकर भी वह मुस्कुराती रहती ।
चन्न कौर आयी थी उसके लिए पाँच किलो के करीब देसी घी लेकर । साथ दो सूट भी दे गयी । दर्जिन को साथ ही लायी थी वे । अपने सामने ही नाप दिलवाया और उससे जल्दी सूट लौटाने का वादा भी ले लिया । उसने उस दिन सुरजीत से गाजर कद्दूकस करवा कर गाजर का हलवा बनाया था । वहीं कटोरे में डाल लाई थी वह – लो बीजी । जेठानी के लिए प्रयोग होने वाला भैनजी शब्द उसके गले में ही अटक कर रह गया था । बोला ही नहीं गया था उससे । जो बोला गया , उसे सुन कर चन्न कौर के साथ साथ वह भी चौंक गयी थी – बीजी । पर उन्होंने कोई विरोध प्रकट नहीं किया और चुपचाप हलवा खाने लगी तो उसने चैन की साँस ली थी । चन्न कौर ने हलवा खाकर कटोरा उसकी ओर बढाया । किरण खाली कटोरा लेकर रसोई में जाने को मुङी तो उन्होंने उसे रोका – सुन और एक छोटे से पर्स से टाप्स निकाल कर उसकी हथेली पर रख दिये - तूने आज पहली बार मीठा खिलाया । तेरा शगुण ।
किरण ने झुक कर पैर छू लिए ।
चन्न कौर ने उसके सिर से सौ का नोट वार कर सुरजीत को दिया । किसी चीज की जरूरत हो तो हवेली खबर भेज देना और वे चली गयी ।
किरण के सिर से भारी बोझ उतर गया था । हवेली ने दूर से ही सही उसके सिर पर हाथ धर दिया था ।