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अनजान रीश्ता - 94

अविनाश.... तैयार होकर नीचे हॉल में पारुल का इंतजार कर रहा था । पारुल थोड़ी देर में तैयार होकर...नीचे आ रही थी। तभी अविनाश.... पारुल की देखता है... । पारुल ने आज काले रंग का सलवार कमीज पहना था। और बाल खुले रखे थे... । जो की उसके लुक.. को और भी जच रहा था। मानो जैसे पारुल उस पर कोई जादू किया हो.. वह अपनी नजर हटा नहीं पा रहा था। बस एकटक पारुल को देखे जा रहा था मानो जैसे उससे खूबसूरत लड़की कोई इस दुनिया में है ही नहीं या वह इस दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की है... उसके अलावा कोई और खूबसूरत है ही नही । उसका दिल इस बात की गवाही दे रहा था। क्योंकि अभी जिस रफ्तार से वह धड़क रहा था वह... शब्दो में बयान करना संभव नहीं है। पारुल पर हमेशा से ही यह रंग जचता था लेकिन आज पता नहीं अविनाश को कुछ ज्यादा ही सुंदर लग रही थी।अविनाश... मुस्कुराते हुए उसकी ओर ही देखे जा रहा था। पारुल सीढ़ी उतरकर आती है तो अविनाश की ढूंढते हुए नजर उसकी ओर पड़ती है तो अविनाश उसी की ओर देख रहा था। पारुल को जिस तरह से देख रहा था थोड़ा अजीब लग रहा था। पारुल बालो को कान के पीछे करते हुए अविनाश से कहती है।

पारुल: चलो! ।
अविनाश: कहां!? ।
पारुल: शुटिंग पे नहीं जाना!?
अविनाश: जाना है! ।
पारुल: ( आगे बढ़ते हुए ) तो चलो!? ।
अविनाश: ( पारुल का हाथ पकड़ते हुए ) तुम कहां जा रही हो!? ।
पारुल: ( फिर से चेहरे से बाल कान के पीछे करते हुए ) शूटिंग पे तुमने ही तो कहां था।
अविनाश: ( खाखर निगलते हुए... मानो पारुल की एक एक हरकत उसके दिल पर कहर ढा रही थी। ऊपर से उसकी आंखे... आज काजल उसकी आंखे कुछ ज्यादा ही चमकदार लग रही थी। या फिर अविनाश का वहम था। ) तुम कहीं नही जा रही।
पारुल: ( हाथ छुड़ाते हुए अविनाश की ओर देखती है। ) क्यों!? ।
अविनाश: क्योंकि मैंने कहां! इसलिए! ।
पारुल: लेकिन क्यों!? अभी थोड़ी देर पहले तो तुमने कहां था!?।
अविनाश: ( खुद पर काबू पाते हुए ) क्योंकि... तुम्हारी अब जरूरत नहीं वहां!।
पारुल: ( मुंह बिगाड़ते हुए ) हेननअ! ये भला क्या वजह हुई!? ।
अविनाश: जो भी हो! नाश्ता कर लो! और  कमरे में जाना चाहो तो जा सकती हो! या फिर जो कुछ तुम्हे ठीक लगे! । ( तभी आवाज आती है।) ।
विशी: माय... माय.... पारुल... ( साइड से हग करते हुए ) तुम तो कतई जहर लग रही हो! ( मुस्कुराते हुए ) ।
पारुल: ( गले लगाते हुए ) शुक्रिया.... ।
अविनाश: ( घूरते हुए विशी की ओर देखता है फिर पारुल की.. ) हम लोग जा रहे है।
विशी: ( आश्चर्य में अविनाश की ओर देखते हुए ) क्यों!? अभी काफी टाइम है शूटिंग के लिए.. और अभी मैंने तो  नाश्ता भी नहीं किया...
पारुल: कोई बात नहीं विशु... मैं कुछ जल्दी से बनाकर पेक कर देती हूं तुम... ।
अविनाश: ( पारुल की बात काटते हुए )  नॉप.... ( विशी की ओर देखते हुए )  गाड़ी निकलवाओ.. मैं दो मिनिट में बाहर आ रहा हूं.. ।
विशी: पर... अवि! ( अविनाश की ओर देखकर लेकिन अविनाश उसी की ओर देख रहा था... विशी को समझ आता है की बात को और बढ़ाने का कोई फायदा नहीं... वह बच्चो की तरह पांव पटकते हुए वहां से चला जाता है। )
अविनाश: ( पारुल की ओर देखते हुए ) और आप मेरी प्यारी वाइफ... आगे से... यूं ये जो तुम्हारी चैरिटी वर्क है ना किसी के भी लिए खाना बनाना बंद करो! यहां पे नौकर है उस लिए... तो हॉप आगे से तुम किसी को ऐसी ऑफर नहीं करोगी... और ये क्या चुड़ैल के जैसे काले कपड़े... खुले बाल.... हेलोवीन में भाग ले रही हो क्या!?।
( इतना कहते ही वह घर से बाहर निकल जाता है । ) ।

पारुल गुस्से में अविनाश की ओर देखे जा रही थी। " घटिया आदमी... किसी भी अच्छी बात के लायक नहीं है। गधा, उल्लू का पट्ठा.... शयतान का दूसरा रूप है... इसे सॉन्ग लिखने की बजाए किताब लिखनी चाहिए... लोगो के मूड खराब करने के तरीके... ज्यादा कमाई होगी... आह... भगवान इस आदमी का एक दिन में सच में खून कर दूंगी । "  इतना कहते ही वह अपने कमरे में चली जाती है ।

अविनाश कार का दरवाजा खोलते हुए... देखता है तो विशी आगे की सीट पर बैठा था... तभी उससे पूछते हुए .. ।

अविनाश: तुम आगे क्यों बैठे हो!? ।
विशी: ( अविनाश की ओर देखते हुए ) नहीं बस ऐसे ही.. यहां सीट काफी आरामदायक है। ( कल रात का किस्सा याद करते हुए ) ।
अविनाश: अब ये कौन सा नया गेम खेल रहे हो!? ।
विशी: मैं कोई गेम नहीं खेल रहा... मैं तो खुद को बचा रहा हूं! ।
अविनाश: बचा रहे हो!? किस से!? ।
विशी: तू.... ( रोकते हुए ) अरे! भाई कुछ नहीं!। तुम ये बताओ पारुल क्यों नहीं आई!? ।
अविनाश: उसे कुछ काम था इसलिए... ( सफेद जूठ बोलते हुए ) और... तुमने ये क्या पारुल... पारुल लगा रखा है... आई हॉप सो मुझे बार बार तुम्हे ये याद ना दिलाना पड़े की वह बीवी है मेरी... तो उसी की तरह उससे बात करो।
विशी: ( मन में: हां तभी तुम्हे कल मुझ पे डोरे डाल रहे थे। ) आहान! ठीक है! प्वाइंट नोटेड।
अविनाश: ( सिर को हां में हिलाते हुए और कुछ बात नहीं करता... कांच से बाहर देखने लगता है। ) ।

अविनाश के दिमाग में अभी भी पारुल की हरकते दोहरा रही थी। मानो जैसे वह अभी कार में नहीं बैठा बल्कि घर में खड़े होकर पारुल को निहार रहा हो। जिस तरह से वह बालो को कान के पीछे कर रही थी। उसकी आंखे अविनाश के सवाल पर बदलते भाव... उसके चेहरे की चमक... उसका गुस्सा... मानो जैसे सबकुछ अविनाश को भा रहा था। और जब से आज उठा है मानो उसका दिल काफी हल्का महसूस कर रहा था। क्यों!? उसकी वजह उसे पता नहीं थी... पर मानो उसके दिल पर से जैसे एक बोझ हट गया हो ऐसा अविनाश को लग रहा था। मानो जैसे... इतने सालो का जो दर्द था उसकी जगह उसे खुशी महसूस हो रही थी। लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था की वह आखिर ऐसा क्यों महसूस कर रहा था... ।