Surmayi Aankho wali - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

सुरमयी आंखों वाली - 2

उस दिन प्रांजल का बर्थडे था..! पापा ने उसे नई ड्रेस लाने के लिए रुपये दिए थे और मम्मी ने भी उसे रुपये ही दिए थे, ताकि उसकी जो इच्छा हो वो खरीद सके !!
अब हम लोग ठहरे ठेठ देसी लोग ! हमारे यहां जन्मदिन पर पार्टी नही पूजा-पाठ होता है ! सुबह घर पर पूजा हुई उसके बाद हवन !!

पूजा-पाठ के चक्कर मे प्रांजल को कोचिंग के लिए देर हो गयी !! पापा ने कहा,"जा इसे छोड़कर आ और ये प्रसाद इसके सर-मैडम को दे देना !!"

पापा की जगह किसी ओर ने कहा होता तो मैं टाल देता, मगर पिताजी की बात टालना मतलब खुद के सिर खुद ही जूते पडवाना !!

प्रांजल को छोड़कर उसके टीचर्स को प्रसाद देकर मैं घर लौट आया !!शाम को जब प्रांजल आयी तो बड़ी खुश थी ! पापा को मिठाई खिलाते हुए बोली,"पापा, मेरे जो सर है ना उन्होंने मुझे जॉब आफर की है ! पास में ही है, शहर के नाके के पास ऑफिस है उनका !!"

पापा ने साफ स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया मोटी को !! कितनी खुशी हुई थी मुझे, क्या बताऊँ? आजतक पापा ने उसे किसी बात के लिए ना नही कहा था, इसलिए चुड़ैल का घमंड हो गया था, की पापा मेरी बात का कभी इनकार नही करते..!!

लेकिन मेरी बहना रानी इतनी आसानी से हार मानने वालों में से है नही, ये बात मैं बड़ी अच्छे तरीके से जानता था !और वही हुआ ! मोटी इमोशनल कार्ड खेल गयी पापा के साथ..! और पिताजी हमारे बह गए इसके आंसूओ में !

प्रांजल को जब लगभग महीनेभर हो गए, और उसे पहली सैलरी मिली तो वो पापा-मम्मी के लिए कपड़े लेकर आई !! पर मेरे लिए कुछ नही लायी बोली,"इतनी तनख्वाह नही है कि गरीबों पर लुटाती फिरूँ..!!"
साफ शब्दों में कहूँ तो एक तरह से बेइज्जती कर गयी थी वो मेरी !!

लगभग सालभर होने को आया था प्रांजल को जॉब करते ! उसके ऑफिस का स्थान परिवर्तन भी हो गया था .! पहले नाके पर था, अब हाईवे के पास था!

दीप का फोन आया था ! तो मैं बाहर निकल गया ! रास्ता तो खैर अच्छा था मैं ही एक्शन झाड़ रहा था !! बस इसी चक्कर मे गिर पड़ा और पैर में चोट लग गयी..! घर पर किसी को बताने की हिम्मत नही हुई। क्योंकि मम्मी घबरा जाती और मैं पापा के मारे घबराता हूँ..!

दीप के साथ हॉस्पिटल पहुंचा तो डॉक्टर ने एक्सरे करवाने को कहा ! एक्सरे से पता चला, हड्डी अपनी जगह से खिसक गई है थोड़ी..!!
मैंने घर पर कॉल कर झूठ बोल दिया कि अपने फ्रेंड्स लोगों के साथ घूमने जा रहा हूँ देर से आऊंगा..! अब ये झूठ मैंने इसलिए कहा, ताकि शाम तक पैर थोड़ा तो ठीक हो जाएगा ! तो घर पर कुछ भी बहाना कर दूंगा..! बाइक भी सुधर जाएगी तब तक !!

उसी दिन घर पर एक ओर हादसा हो गया।
शाम के छह बजने के थे लेकिन प्रांजल का अब तक कोई अता पता नही था.! हमेशा साढ़े पांच बजे तक घर लौट आने वाली लड़की ने छह बजा दिए।

मम्मी बार बार किचन से बाहर के दरवाज़े पर झांक रही थी। पापा बोले,"अरे आ जायेगी..! बच्ची थोड़े ही है। इतना परेशान मत हो। छह ही तो बजे हैं अभी। मिल गया होगा कोई या किसी काम की वजह से रुक गयी होगी।"

लेकिन मम्मी को चैन कहां..? वे बोली,"हां हो सकता है। पर अगर देर हो रही थी तो फ़ोन कर के बता सकती थी न.!! चिंता तो होती है। हाईवे से होते हुए आना पड़ता है। हाइवेज पर गाड़ियां कितनी गुजरती हैं। पता है ना आपको..?"

पापा फिर मुस्कुराते हुए बोले,"आज पहली बार गयी है क्या.? कबसे नौकरी कर रही है वो..!!! आ जायेगी। उसकी चिंता में अपना स्वास्थ खराब मत करो.!!"

सवा छह होने को आये। बड़े पापा का बेटा और हमारा बड़ा भाई माधव, उस दिन ऑफिस से सीधा हमारे घर आया। आते ही उसने आवाज़ लगाई,"प्राशु एक कप चाय बना कर ला जल्दी..!"
मगर कोई उत्तर नही मिला.! घर मे घुसते ही उसने देखा, माहौल बड़ा गंभीर। उसने कहा,"क्या हुआ.? ऐसे क्यों बैठे हो दोनो..? प्राशु कहां है..?"

मम्मी घबराते हुए बोली,"देख ना बेटा, सवा छह बज गए प्राशु अभी तक नही आई..!"

"प्राशु नही आई अभी तक..!! क्यों..? फ़ोन लगाया था उसने..??" मम्मी की बात सुनकर माधव भाई भी परेशान होते हुए बोला ।।

मम्मी बोली, "नही किया ना..! ना फ़ोन किया और ना ही कुछ खबर मिली.!तू जाकर देख तो कहाँ रह गयी..??"

माधव भाई वैसे ही उल्टे पैर घर से बाहर निकल पड़े । बाइक पर बैठ कर उसने जैसे ही चाबी घुमाई, उनकी नज़र सामने से आती प्राशु पर पड़ी।
बाइक से उतर वो सीधा उसपर गुस्सा होते हुए बोले,"कहाँ थी अब तक..? फ़ोन कहां है तेरा..? देर हो रही थी तो खबर नही कर सकती थी..?" और भी बहुत सारे प्रश्नों की झड़ी लगा दी माधव भाई ने प्रांजल पर।

मम्मी ने आते ही प्रांजल के सिर पर हाथ फेरा। "कहां रह गयी थी बेटा..!कितना जी घबरा रहा था मेरा.बता नही सकती। तू ठीक तो है ना..!!"

पापा माहौल को हल्का करते हुए बोले,"अरे उसे घर के अंदर तो ले लो। जैसे वो जवाब नही देगी तो उसे वही से वापस बाहर रवाना कर दोगी..!"

सब लोग घर के अंदर आये।

माधव भाई ने कहा,"हाँ अब बोल !!इतनी देर कैसे हो गयी..??"

प्रांजल ने जवाब दिया,"आज कोई ऑटो नही मिला..!"

माधव भाई ने कहा,"तो..!तू तो उस रुचि के साथ आती-जाती है ना..??"

प्रांजल माधव भाई पर भड़कते हुए बोली,"हाँ उसी के साथ आती जाती हूँ। पर वो रोज़ थोड़े ही मुझे लेकर आयेगी जाएगी। वैसे भी आज वो आयी ही नही। और जो कलीग थे सबके साथ कोई ना कोई था..!जो थे वो अपने इधर नही रहते। उनका रुट अलग है तो वो उल्टा घूमकर क्यों आएंगे..? और आज कोई ऑटो भी नही मिला..!थोडी देर तो मैं वहीं खड़ी रही..! फिर जब ऑटो नही मिला तो पैदल ही चल ली। वहां कब तक खड़ी रहती..???" प्रांजल सफाई देते हुए बोली।

माधव भाई ने फिर प्रश्न किया,"और तेरा फ़ोन..? कॉल तो कर देती माता ! सब परेशान हो गए तेरी वजह से..!!"

प्रांजल ने फिर कहा,"अरे तो कितनी बार तो कहा है मैंने नही मिलता उधर नेटवर्क। कब से तुझे कह रही हूँ और और सिम ला दे..! पर तु सुन ही कहाँ रहा है..?? ऊपर से ये डब्बा फ़ोन..! अर्चित ने खुद तो स्मार्ट फोन ले लिया और अपना पुराना मुझे दे दिया।"

अच्छा था मैं उस दिन घर पर नही था, वरना तो भाई की नज़रो से ही मर जाता मैं..!!

किसी ने फिर उससे कुछ नही कहा प्रांजल से । सब समझ गए थे कि वो कहीं गलत नही है।

प्रांजल मम्मी के साथ किचन में जाकर काम मे मदद करने लगी। मम्मी ने उससे कहा,"आजकल का माहौल कैसा हो गया है जानती है ना तू..? लड़कियों के लिए तो बिल्कुल सुरक्षित नही है..! मेरी तो जान धुक-धुक कर रही थी साढ़े पांच बजे से ही। जब तक तू घर नही आ गयी।"

प्रांजल ने कहा,"मम्मी....इतनी चिंता मत किया करो। ठीक हूँ मैं ! आप बस अर्चित से बोलकर मेरे लिए नया मोबाइल और एक नया सिम कार्ड मंगवा दो..!"

"ठीक है। मैं तेरे पापा से बात करती हूँ। वो बोलेंगे अर्चित को तो वो जल्दी सुनेगा..!" मम्मी ने कहा।

शाम को खाना खाने के बाद माधव भाई अपने घर लौट गए..!

मैं अपने घर लौटा ! मुझे भी कुछ गंभीरता नज़र आई घर पर.!! मैंने मम्मी से पूछा, जब सब पता चला तो मेरा भी जी धक से रह गया..!
चाहे हम दोनो भाई-बहन की ज्यादा नही पटती थी मगर है तो मेरी बहन ही..! और आजकल लड़कियों के साथ होने वाले हादसों के बारे में पढ़कर-सुनकर ही आत्मा कांप जाती है..! जब खुद पर बीतती है तब ही अहसास होता है.!!
मैं उठकर प्रांजल के पास आ गया।

तब हॉल में सिर्फ और पापा मम्मी थे। मम्मी ने पापा से कहा,"आप प्राशु के लिए एक नया फ़ोन मंगा दीजिये न। बच्ची सही कह रही है कब तक पुराना फ़ोन चलाएगी..? अपना भी बीपी बढा रहता है जब तक प्राशु घर पर नही आ जाती..!!"

पापा को भी मम्मी की बात सही लगी। उन्होंने मम्मी की बात का समर्थन करते हुए कहा,"ठीक है मैं बोल दूंगा अर्चित से। ला देगा वो उसे नया फ़ोन..!!"

अगले दिन मैं जल्दी घर से निकल गया था। मम्मी ने पूछा,"ये अर्चित कहां गया है आज इतनी सुबह..? आज तो रविवार है तो कॉलेज भी नही जाना.! फिर..??"

पापा ने कहा,"किसी जरूरी काम से गया है आ जायेगा, घंटेभर में।"

लगभग एक घण्टे बाद घर के बाहर से गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ आयी। लगातार हॉर्न बजने से प्रांजल ने गेट खोला। गेट खोलते ही उसने देखा,मैं एक नई स्कूटी लेकर आया था। उसने पूछा,"ये किसलिए..*?"

मैंने कहा,"अरे कितनी बार पापा के साथ सामान लाना ले जाना पड़ता है। बाइक पर दिक्कत होती है तो स्कूटी ले ली। इसपर आगे सामान रखा जाएगा आसानी से। जब भी कोई सामान लाना ले जाना होगा इसी को ले जाया करूँगा..!!"

प्रांजल मुंह बनाते हुए बोली,"वाह रे कुत्ते..! घर मे दो दो बाइक्स हैं फिर भी अपने लिए स्कूटी ले आया। मेरे लिए ही ले आता। आधे रुपये में दे देती..!!"

"वाह री चुड़ैल, कहीं की.आधे रुपये दे देती.!मोटी तेरे लिए ही लाया हूँ..! ये ले..!!" कहते हुए मैंने चाबी उसकी ओर बड़ा दी।

स्कूटी की चाभी मिलते ही प्रांजल खुशी से उछल पड़ी। पापा ने उसके सिर पर हाथ रखा तो वो उनके सीने से जा लगी।
"थैंक यू सो मच पापा..!!"

"ये लो..! स्कूटी मैं लेकर आया.! ये गिफ्ट मेरी तरफ से। और थैंक यू पापा को..!बहुत बढ़िया। भलाई का तो ज़माना ही नही रहा..!" मैंने कहा तो प्राशु ने भी जवाब दे दिया,"हाँ तो तू कौन सा अपनी जेब से रुपये देकर आया है..? पापा से भी लिए ही होंगे थोड़े बहुत तो..!!"

पापा ने कहा,"नही दिए बेटा..! ये स्कूटी ये अपने रुपये से ही लाया है।"

प्रांजल ने हैरानी से पापा और फिर मुझको देखा..! लेकिन कुछ कहा नही।

"जय हो माता की..!भाई कितना ही कर ले तुम बहनों को कमी नज़र आ ही जाती है..!!" मैंने कहा।

प्रांजल बोली,"मैंने कब कमी निकाली इसमें..??"

मैंने कहा,"हां तो तारीफ भी कहाँ की..??"

मम्मी आरती की थाली लेकर आई और स्कूटी पर स्वास्तिक बनाकर आरती उतारी। फिर मुझे और प्रांजल को भी तिलक लगाया।

प्रांजल ने स्कूटी में चाभी लगाई और दौड़ा दी सड़क पर..! मम्मी ने जोर से आवाज़ लगाकर कहा,"आराम से चलाना..!"

स्कूटी और नया मोबाइल मिलने से सब टेंशन फ्री हो गए थे। अब प्रांजल की आने जाने की समस्या खत्म हो चुकी थी। अगर कभी उसे देरी होती तो वो कॉल कर के इन्फॉर्म कर देती घर पर।

प्रांजल के चक्कर मे मैं उस लड़की को भूल गया था.! मेरी बहन मेरे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण थी क्योंकि..!!
उस दिन मैं प्रांजल की स्कूटी को सर्विसिंग के लिए लेकर गया था..! वही पास में ही एक अनाथालय था, दिव्यांग बच्चो का.!! अचानक ही मेरी नज़र उस सुरमयी आंखों वाली लड़की पर गयी..!!
मैंने स्कूटी सर्विसिंग के लिए दी और वही पेड़ की आड़ में छिपकर उस लड़की को देखने लगा..! वो बच्चो के साथ इशारो में बात कर रही थी..!
मैं उसे देखकर निहार रहा था ! सच कहूं तो उसकी छवि को अपने मन मे बसा रहा था अपने ज़हन मे उतार रहा था..!

एक छोटी सी मासूम सी बच्ची उसके पास आई और उसका हाथ पकड़कर कुछ इशारा करते हुये बोली..! उस छोटी सी बच्ची में मुझे प्रांजल की छवि नज़र आई ! हमारी प्राशु भी इतनी ही मासूम लगती थी बचपन मे ! ये बात अलग है कि अब वो बड़ी ही खतरनाक हो चुकी है।

लड़की सब बच्चो से बाय का इशारा करते हुए बाहर आ गयी !! तभी पीछे से उसे किसी ने आवाज़ दी..!
"अरे ! "सुरमयी" बेटा..!!!"

"सुरमयी"...!!" मैं दंग रह गया नाम सुनकर! आखिर यही नाम तो मैंने उसे दिया था, उसकी आँखों के अनुरूप ही..! और उसके पैरेंट्स ने भी उसका यही नाम रखा गजब..!!

खैर उस लड़की, नही मेरा मतलब सुरमयी... हाँ सुरमयी ने पीछे मुड़कर देखा ! एक बुजुर्ग व्यक्ति उसके पास आये। और उसे इशारा करने लगे..! मैं बड़े गौर से देख रहा था, मगर कुछ समझ ना सका।

वो बुजुर्ग व्यक्ति चले गए ! सुरमयी भी मुस्कुराते हुए चली गयी..!!

अचानक से मेरा माथा ठनका..! बच्चे तो बोल नही सकते इसलिए उन्होंने इशारो में बात की!मगर वो बुजुर्ग तो बोल रहे थे न.....फिर उन्होंने सुरमयी से इशारो में बात क्यों कि..??"
कहीं सुरमयी.............!!!!!??????"


(जारी)