Sparsh - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

स्पर्श--भाग (३)

विभावरी जब तैयार होकर आई तो उसने लहंगे की जगह अब लाल साड़ी पहनी थी और वो हौले हौले चल रही थी,ताकि उसके सिर का पल्लू ना सरकें,फिर उसे औरतों ने कार में मधुसुदन के साथ बैठा दिया और कार चल पड़ी,जब कार मधुसुदन के घर के द्वार पर पहुँची तो मधुसुदन की माँ और बहनों ने उसे कार से उतार कर नेगचार की विधि पूर्ण की फिर भीतर जाकर मुँहदिखाई की रस्म के बाद पास-पड़ोस की औरतें चलीं गईं,तब मधुसुदन की माँ ने विभावरी से कहा....
बहु! रसोई छूने की रस्म भी निभा दो क्योकिं शाम तक तो तुम अपने घर वापस चली जाओगी।।
जी! मुझे दादी ने सब सिखाया है कि कैसे हलवा बनाया जाता है?मैं सब्जी और पूरी भी सीखकर आई हूँ माँ जी! मुझे दादी ने ही खाना बनाया सिखाया है,क्योकिं मेरी माँ नहीं है ना इसलिए,तो क्या आज से मैं आपको अपनी माँ मान सकती हूँ,विभावरी ने इतना सबकुछ भोलेपन में कह दिया...
विभावरी का भोलापन देखकर शान्ती की आँखें भर आईं उसने मन में सोचा बिन माँ की बच्ची है,कितनी भोली है और हम सोच रहे थे कि इसके बाप ने हमें ठग लिया है,हमने इसके बाप को ठगा है दौलत के लिए,कौन कहता है कि ये लड़की मंदबुद्धि है,ये तो सारी दुनिया से परे है,इसके जैसा निर्मल मन तो किसी के भी पास ना होगा.....
फिर शान्ती ने उस दिन सच्चे मन से विभावरी को अपनी बहु स्वीकार कर लिया,उसने विभावरी को उपहार स्वरूप कंगन भेंट किए जो उसे उसकी सास ने दिए थे,कंगन पाकर विभावरी बहुत खुश हुई ,वो अपने साथ भी सबके लिए महंँगे महँगे उपहार लाई थी जो उसने सबको दिए,ऐसे ही बातों बातों में पूरा दिन निकल गया और विभावरी के लौटने का समय हो गया,तब शान्ती ने अपनी बहु विभावरी को बेटे मधुसूदन के साथ वापस भेज दिया....
अपने मायके वापस आकर सबसे पहले विभावरी अपनी दादी के पास पहुँची और उन्हें दिनभर की सारी बातें बता दी,दादी को संतोष हो गया कि विभावरी धीरे धीरे सबके दिलों में जगह बना लेगी...
रात हुई विभावरी पहली रात की तरह ही बिना कुछ कहें चादर फर्श पर बिछाकर सो गई,उसने आज अपना माथा सहलाने की जिद भी नहीं की क्योकिं शायद वो आज बहुत थकी थी इसलिए लेटते ही सो गई....
मधुसुदन बिस्तर पर लेटकर विभावरी को निहारने लगा,उसने सोचा कौन कहता है कि ये मंदबुद्धि है ये तो बहुत ही समझदार है,इसने माँ के साथ इतना अच्छा बर्ताव किया कि माँ भी इसे अपनाने पर मजबूर हो गई,ये मंदबुद्धि नहीं है,बस दुनिया की चालाकी और चापलूसी से दूर है और फिर यही सोचते सोचते मधुसुदन भी सो गया.....
सुबह हो चुकी थी और मधुसुदन अभी भी सो रहा था,तब तक विभावरी उसके लिए चाय लेकर आ चुकी थी ,गीले बाल और बसंती रंग की पारदर्शी साड़ी में वो बहुत ही खूबसूरत लग रही थी और फिर उसने मधुसुदन को जगाया और बोली....
सुनिए जी! चाय पी लीजिए।।
मधुसुदन के कानों में विभावरी की आवाज़ पड़ी तो वो जाग उठा और ज्यों ही उसकी नज़र विभावरी पर पड़ी तो वो उसे देखता ही रह गया लेकिन बोला कुछ नहीं।।
फिर जब वो तैयार होकर नाश्ते की टेबल पर पहुँचा तो उसके ससुर जी बोलें....
दमाद बाबू! आप लोगों के लिए वो जो रानीबाग वाला बंगला है उसे तैयार करवा दिया है,आज शाम आप दोनों वहाँ शिफ्ट हो जाएँ,मैं ने वो बंगला आपके नाम कर दिया है,बेफिक्र होकर आप वहाँ रह सकते हैं....
मधुसुदन बोला...
जी! हम दोनों वहाँ शिफ्ट हो जाएगें,हमें कोई दिक्कत नहीं।।
और फिर उस शाम मधुसुदन विभावरी के साथ रानीबाग वाले बंगले में चला गया,साथ में चार पाँच भरोसेमंद नौकरों को भी मधुसुदन के ससुर जी ने भेज दिया....
अब मधुसुदन का खुद का बड़ा बंगला था,फिर उसके आँफिस के दोस्तों ने पार्टी की जिद की ,बोले शादी की पार्टी तो बनती है,पहले तो मधुसुदन ने मना किया लेकिन फिर पार्टी के लिए राजी हो गया,उसने घर आकर ये बात विभावरी को बताई ।।
दूसरे दिन मधुसुदन आँफिस चला गया शाम को पार्टी थी इसलिए विभावरी ने अपनी दादी को बुलाकर सबकुछ पूछकर पार्टी का इन्तजाम करवा दिया और फिर दादी विभावरी को तैयार करके चली गई,शाम को मधुसुदन वापस लौटा तो साथ में उसके दोस्त भी थे...
इधर मधुसुदन को लग रहा था ना जाने विभावरी ने कैसा इन्तजाम किया होगा लेकिन जब उसने घर की साज-सज्जा और डाइनिंग हाँल देखा तो चकित रह गया ,विभावरी ने पार्टी की सभी तैयारियाँ करवा दी थीं,मधुसुदन के दोस्त बोले....
यार ! भाभी जो को भी बुला...
मधुसुदन जैसे ही विभावरी को बुलाने कमरें में पहुँचा तो विभावरी बिल्कुल तैयार बैठी थी,उसने जामुनी रंग की सुन्दर सी बनारसी साड़ी पहनी थी,बालों का जूड़ा बनाया था,गले में हल्का सा हार और कान में झुमके पहन रखे थे,उसकी सादगी ही उसकी सुन्दरता थी।।
उसने विभावरी को समझाया कि जैसा सब कहें वैसा ही करना,वहाँ कोई ऐसी हरकत मत करना जिससे मुझे शर्मिन्दा होना पड़े,
विभावरी बोली,ठीक है।।
और फिर दोनों बाहर आएं,मधुसुदन ने सबको विभावरी से मिलवाया,सबने विभावरी को नमस्ते की और बैठने को कहा...
विभावरी नजरें नीची करके बैठ गई,पार्टी थी तो मधुसुदन के दोस्त शराब की बोतलें भी साथ में लाएं थे,जाम भी बनने शुरू हो गए,साथ में पीना पिलाना भी शुरू था,मधुसुदन को उसके दोस्तों ने शराब पीने को कहा....
मधुसुदन तो अक्सर पार्टियों में शराब पीता रहता था उसे आदत थी,तब उसके एक दोस्त ने विभावरी के लिए भी पैग बनाकर उसके आगें बढ़ा दिया,बेचारी विभावरी ने ज़ाम पकड़ा और इस डर से गटागट पी गई कि कहीं मना करने पर मधुसुदन उससे खफ़ा ना हो जाए।।
अब उसे नशा छाने लगा और चक्कर आने लगा,मधुसुदन ने देखा तो नौकरानी से इशारों में विभावरी को बेडरूम में ले जाने को कहा,विभावरी अपने बेडरूम में आ गई और उसे अब उलझन हो रही थी,वो बाथरूम में अपना मुँह धोने जाना चाहती थी,वो बिस्तर से उठी और फर्श पर गिर पड़ी उसे होश ही नहीं था,उसके माथे में भी चोट लग चुकी थी।
कुछ ही देर में पार्टी खतम हुई ,सभी दोस्त अपने अपने घर चले गए तब मधुसुदन कमरें में आया तो देखा कि विभावरी फर्श पर गिरी पड़ी है,उसने उसे फौरन बिस्तर पर लेटाया और पानी की छीटें उसके चेहरे पर मारें....
विभावरी बोली.....
मुझे प्यास लगी है....
मधुसुदन फौरन रसोई में गया और नीबू पानी लेकर आया,विभावरी को पिलाया....
तब भी विभावरी नशे में ही थी और बोली....
आप मुझसे गुस्सा तो नहीं हैं ना! मैनें आपको सबके सामने शर्मिंदा तो नहीं किया,वहाँ कोई मुझे पागल तो नहीं कह रहा था....
ये सुनकर मधुसुदन की आँखें भर आईं और उसने सोचा कि नशे में भी बस मेरा ही ख्याल है इसे..
फिर विभावरी बोली....
पता नहीं मैं आपका दिल कब जीत पाऊँगी?
तुम मेरा दिल क्यों जीतना चाहती हो?मधुसुदन ने पूछा...
दादी कहती है कि जब पति का दिल जीत लेते हैं तो पति प्यार करने लगता है,मुझे आपका प्यार चाहिए इसलिए,विभावरी बोली।।
अच्छा! अब तुम सो जाओ,मधुसुदन बोला।।
तो आप मेरा सिर सहला दीजिए,विभावरी बोली।।
और फिर मधुसुदन विभावरी का सिर अपनी गोद में रखकर सहलाने लगा....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....