Ek Anokha Rishta - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

एक अनोखा रिस्ता। - 5

अपनी माँ की तस्वीर देखकर राज वहां हैरत में था तभी वहां
पंडित राजाराम वहां आजाते हैं और राज से कहते हैं,
जिस हैरानी से अपनी माँ की तस्वीर देख रहे हो वो मेरी बहन है।

यह सुनकर राज और अजय पीछे की तरफ घूम जाते हैं जिस ओर से आवाज आई और देखते हैं उनके सामने एक आदमी जो साधा कपड़े पहने और कंधे पर गमछा डाले हुऐ था जोकि पंडित राजाराम है।

राज राजाराम को देखता है और कहता है, क्या कहा आपने।
राजाराम राज और अजय से पहले बैठने के लिऐ बोलता है और खुद भी उनके सामने एक चेयर पर बैठ जाता है।


राजाराम राज से कहता है, मै तुम्हारा मामा हूँ।
राज, ये कैसे हो सकता मेरे डैड ने कहा था मेरी नानी परिवार में मेरी माँ थी उनका कोई भाई बहन नहीं है तो आप मेरे मामा कैसे हुऐ।

राजाराम थोड़ा मुस्कराते हुऐ कहने लगा, तुम सायद मेरी बातों पर यकीन नही करोगे लेकिन जिसने तुमसे ऐसा कहा वो असल में तुम्हारे पिता है ही नहीं।

राज(चिल्लाते हुऐ गुस्से में खड़ा हो जाता है), क्या बकवास है तुम हो कौन और क्यों तुम्हारी बात मानलू अगर दुवारा तुमने ऐसा कहा न मै अपने हाथों को रोक नहीं पाउंगा।

राज गुस्से से अजय कि तरफ देखता है और कहता है इसलिए लाया था क्या मुझे कि कोई भी मेरे पिता के बारे में कह सके,अब चल निकलते हैं।

राज और अजय जाने के लिऐ दरवाजे की ओर बढ ही रहे थे कि तभी राजाराम की आवाज आती है।

राजाराम, रूको राज अपनी माँ की तस्वीर तो देख ली लेकिन अपने पिता कि तस्वीर नहीं देखोगे।

इतना सुनते ही राज अपना आपा खोकर गुस्से से राजाराम की ओर बढता है और तभी राजाराम एक और तस्वीर राज के सामने कर देता है जिसमें उसकी माँ दुल्हन के लिवाज में एक व्यक्ति के साथ होती हैं और उस फोटो को देखकर ऐसा लग रहा था की वो एक मंदिर में शादी के दोरान ली गई फोटो है।


राज उस तस्वीर को देखकर हैरत में इसलिए और था कि उसकी माँ उस फोटो में जिसके साथ खड़ी हैं उसका चेहरा हूबहू उसके जैसा ही था।

राजाराम, फोटो देखकर हैरान हो गये कि तुम्हारे पिता हूबहू तुम्हारी तरह थे।

राज उस तस्वीर को नीचे करता है और राजाराम से कहता है आखिर तुम करना क्या चाहते हो ऐसी तस्वीर बहुत बन जाती हैं मुझे बेवकूफ समझा है क्या।

राजाराम , तुम यकीन करो य न करो मै तुम्हें एक और चीज देता हूँ जिस्से तुम्हें यकीन हो जाऐगा कि मैं सच कह रहा।

राजाराम एक डायरी राज को देता है और कहता है,मेरी बहन यानी तुम्हारी माँ जब तुम्हारे पिता से महोब्बत करने लगी थी तब खुद लिखती थी इस डायरी को और वो जहां जहां तुम्हारे पिता के साथ कभी घूमने जाते भी थे तो वहां कि पिक भी रखी हुई है और रहा लिखावट की पहचान तो इसकी दूसरी डायरी तुम्हारे घर में उसके पास है जिसे तुम अपना पिता मानते हो।
और जब यकीन आजाऐ तो फिर आजाना मेरे पास तब बात करेंगे उस मकसद कि जिसके लिऐ तुम यहां आये हो।

राज उस डायरी को हाथ में लेता है और राजाराम की तरफ देखकर कहता है, तुम्हें कैसे पता के हम किस मकसद से यहां आये थे।

राजाराम, तुम यहां आये नहीं तुम्हें यहां लाने के लिऐ तुम्हारे मित्र को एक जरिया बनाया था और रहा तुम्हारे मकसद की बात यानी रिया कौन है? तो वो भी तुम्हें बताऊंगा लेकिन पहले तुम्हें यकीन हो जाऐ कि मै सच कह रहा या झूठ।

राज और अजय वहां से निकलते हैं और दोनों ही सोचते हुऐ अपनी कार की तरफ आते हैं और राज अजय से कार चलाने के लिये बोलता है ताकी वों रास्ते में राजाराम के दुवारा मिली डायरी को पढ सके।

राज को ये सब झूठी पहली सी लग रही थी राज को समझ नहीं आरहा था कि उसकी जिंदगी में दो अजनबीयों ने आकर बहुत से प्रश्न खड़े कर दिये बस ढूंढना था उनके जवाब.. क्या हकीकत है क्या झूठ.....